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Showing posts from July, 2020

Kathgarh Mandir Himachal काठगढ़ मंदिर

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 काठगढ़ मंदिर का इतिहास देव भूमि हिमाचल के  कांगडा जिले मे भगवान शिव का एक रहस्मयी मंदिर है. यहा पर शिव लिंग दो भागों मे विभाजित है. गर्मियो मे यह स्वरुप दो भागों मे विभाजित हो जाता है और महा शिवरात्रि को एक रुप धारण कर लेता है.                         यहां इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती का मिलन देखने का सौभाग्य श्रद्धालुओं को मिलता है. इस मंदिर में विराजमान शिवलिंग देश का इकलौता ऐसा शिवलिंग है जो दो भागों में विभाजित है. छोटे भागों को मां पार्वती और बड़े भाग को भौले नाथ के रुप में पूजा जाता है.                               मंदिर में स्थापित शिवलिंग अष्टकोणीय है. भगवान शिव के रुप में पूजा जाने वाले शिवलिंग की ऊंचाई 8 फुट और माता पार्वती के रुप में पूजा जाने वाले हिस्से की ऊंचाई 6 फुट के करीब है. मान्यता के अनुसार मां पार्वती तथा भगवान शिव के अर्धनारीश्र्र के मध्य का हिस्सा नक्षत्रों के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि पर दोनों का मिलन होता है. मान्यता है कि मंदिर में सिर झुकने वालो की झोली की खाली नहीं रही ं.                       पौराणिक कथा के अनुसार शिव पुराण के अनुस

विश्वास( VISHWAS)

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"किसी के विश्वास का तू विश्वास बन, बन किसी का सहारा ।  चंदर जी ने तब उनकी मदद की जब सब ने कर लिया किनारा । " एक लड़के  का नाम राघव था, वह बेहद मेहनती था, पढ़ने में भी अच्छा था। उसका सुखी परिवार था। अचानक एक दिन उसकी पिता की मौत हो गई। घर की सारी जिम़ेदारी  राघव पर आ गई। उसके रिश्तेदारों ने भी उससे और उसकी मां से मुंह फेर लिया मदद करना तो दूर की बात है। उसकी माँ ने उसे एक गहने से भरी एक पोटली दी और कहा, "इसे तुम चंदर जी की दुकान पर जा कर बेच देना देना। वह एक सुनार है मुझे उन पर विश्वास है क्योकि वह तुम्हारे  पिता के करीबी थे। वह तुम्हारी मदद ज़रुर करेगे। । "                                  राघव ने ऐसा ही किया। वह चंदर जी की दुकान पर गया  और उन्हे बताया की, “मैं राजन जी का बेटा हूं. पिता जी की मृत्यु हो गई है और मेरी पढाई और घर का खर्च चलाने के भी पैसा नहीं है.इस लिए मां ने मुझे आप के यह गहने बेचने भेजा है मां को विश्वास है की आप उसका ठीक मुल्य दिला दे गे." चंदर जी ने पोटली खोली गहने देख कर, पोटली फिर से बंद कर दी.और कहा कि बेटा मां से कहना की बाजार में अभी मंदी

SHREE KRISHAN KE BHAKT KA PARSANG

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श्री कृष्ण की भक्ति कथा  "सुना है नसीब वाले होते है भक्त जो तेरे मंदिर तुमे भोग लगाने आते है. सोचता हूं कितना आस्थावान था वह भक्त जिसका भोग तुम खुद लेने आए थे"                  ए क  बार एक सेठ  भगवान श्री कृष्ण का परम भक्त था। वह अपना काम धंधा करता था और सोते जागते ठाकुर जी का नाम जपता रहता था। उसका एक नियम था, वह रोज शाम को कृष्ण मंदिर में जा कर चार लड्डुओं का भोग लगाता था।  एक दिन उसे किसी काम से शहर से बाहर जाना पडा़। और वहा जोरदार बारिश होने लगी और वह वापिस ना जा सकता था।वह  वहा भी वह ठाकुर जी को ही याद कर रहा थी। कुछ समय परेशान रहा की आज मेरा भोग लगाने का नियम टूट जाएगा। फिर उसने मन में कान्हा जी से की मैंने अगर तो सच्ची भक्ति की है तो मेरा नियम ना टूटनें देना। और वह कान्हा जी का नाम लेते-लेते सो जाता हैं।   अगले दिन वापिस आकर मंदिर जाता है। दुकान से प्रसाद में चार लड्डुओं को लेता है और दुकानदार को पैसे देता है। दुकानदार उस सेठ से कहता है, "आपके कल के पैसे भी रहते हैं सेठ जी।" यह सुनकर वह हैरान रह गया। उस ने दुकानदार को बताया कि कल तो वह आया ही नहीं तो कल कौन

KARMO KA FAL STORY IN HINDI

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कर्मों का फल एक प्रेरणादायक कहानी  एक बार की बात है , एक पति-पत्नी जंगल से नगर की तरफ जा रहे थे. चलते-चलते उन्होने ं ने एक पेड़ के नीचे विश्राम करने का सोचा. पति अपनी पत्नी की गोद में अपना सर रखकर सो जाता है. वहा एक योद्धा भी विश्राम करने के लिए साथ वाले पेड़ के नीचे बैठ जाता है. पत्नी उस योद्धा से कहती है, "मैंने कभी अपने जीवन में तलवार नहीं देखी. क्या आप मुझे कुछ क्षण के लिए अपनी तलवार देखने का मौका दोगे? "                                 योद्धा को उस की भोली सुरत पर विश्वास हो जाता है और वह तलवार उस औरत को देखने के लिए देता है. औरत तलवार पकड़ते ही अपने पति का गला काट देती है और तलवार योद्धा की तरफ फेंक देती है और नगर की तरफ भागती है और कहती है, "इस योद्धा ने मेरे पति को मार डाला." यह बात राजा तक पहुंची. राजा ने औरत की बात को सुना और योद्धा को दोषी ठहराया. राजा ने अपने सलाहकार से पूछा, "उचित सज़ा क्या होनी चाहिए . " सलाहकार ने कहा, "राजन इस योद्धा ने अपनी तलवार से औरत के पति की हत्या की है, तो इस की दोनो बाजूओं को काट देना चाहिए ताकि वह कभी तलवार ना

JIVAN KA SUTRA जीवन का सूत्र

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जीवन का सूत्र  एक बार एक राजा था. उसका कोई भी पुत्र नहीं था . वह चाहता था कि उसका कोई उत्तराधिकारी मिल जाए. उसने अपने महल के साथ एक सुंदर सा महल बनवाया और उसके उपर एक गणित का सू त्र लिखवा दिया और कहा जो इस को सुलझाएगा और महल का दरवाजा खोलेगाा तो महल उसका हो जाएगा.                                 नगर में यह घोषणा करवा दी गई. पर कोई भी उसको सुलझा नहीं पाया. बात दूसरे राज्य तक पहुंची, दूर- दूर से विद्वान आए पर वह  उसे सुलझा ना सके  . दिन- महीने बीतते चले गए. राजा ने घोषणा करवा दी कि कल आखिरी दिन है गणित का सूत्र सुलझाने का. बहुत से विद्वान आए, पंडित आए. एक 16-17 साल के लड़के ने भी सुना की राजा ने कोई प्रतियोगिता रखी है. वह भी वहा पहुंच गया. जो प्रतियोगिता का संचालक था उसने लड़के से कहा, " अगर तुम पहले सूत्र सुलझाना चाहते हो तो पहले जा सकते हो." लड़का बोला, "पहले विद्वानों को मौका दीजिए. मैं बाद मे चला जाऊंगा."लेकिन कोई भी सूत्र सुलझा ना पाया. राजा ने सोचा की लगता है कोई भी उत्तराधिकारी बनने के योग्य नहीं है .  अंतिम बारी उस लड़के की थी. उसने समय लेकर कुछ सोचा और दरवाज

MATA CHINTPURNI DHAM HIMACHAL PARDESH

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माता चिंतपूर्णी मंदिर हिमाचल प्रदेश  माता चिंतपूर्णी धाम हिमाचल प्रदेश के "जिला ऊना", "तहसील अम्ब" में स्थित है.हिमाचल का नाम देव भूमि इस लिए है क्योकि यहां देवी -देवताओं  का वास है. चिंतपूर्णी धाम शक्ति पीठों में से एक है. चिंतपूर्णी धाम का संबंध माँ सती और भगवान शिव से है.       पौराणिक कथा पौराणिक  कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया परंतु उसमे भगवान शिव और माता सती को नहीं बुलाया गया.माता सती बिना बुला  यज्ञ में चली गया गई. उसके सामने भगवान शिव का अपमान किया गया, जिसे वह सहन ना कर पाई और यज्ञ की अग्नि में कूद गई. भगवान शिव को यह बात पता चली तो वह सहन ना कर पाए. माता सती के शरीर को यज्ञ कुंड से निकाल कर तांडव कर ने लगे. उस से सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गई. ब्रह्माण्ड को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्कर से 51 भाग में बांट दिया. यहां यहां माता सती के शरीर के भाग गिरे वहां वहां शक्ति पीठ बन गई. यहां पर माता सती के चरण गिरे थे.  चिंतपूर्णी को छिन्नमस्तिका क्यों कहा जाता है मां  चिंतपूर्णी धाम क

PRATHNA KI TAKAT

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प्रार्थना की ताकत  प्रार्थना में बहुत ताकत होती है. कहते सच्चे दिल से की गई प्रार्थना ईश्वर जरूर सुनते हैं. उस प्रार्थना के बल पर ईश्वर सही समय पर सही व्यक्ति को मदद के लिए भेज ही देते हैं . इसी कथन को सत्य करती एक कहानी. एक बार एक लड़के को उसकी प्रशिक्षिण के लिए नासिक जाना पडा़. वहा उसे एक गुरूकुल मे ठहराया गया. गुरूकूल का नियम था.हर रोज सुबह एक घंटा प्रार्थना करनी पडती थी. वह लड़का नास्तिक था.उसने बोला गुरूजी ,"आप मुझे इस नियम के लिए बाध्य ना करे."  गुरूजी ने समझाया कि प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है. लेकिन वह लड़का नास्तिक था , इसलिए नहीं माना. गुरूजी ने कहा, "एक दिन तुमे प्रार्थना की शक्ति का अहसास जरूर होगा. उसने इस बात को हंसी में उडा दिया." कुछ दिनों में उसका प्रशिक्षिण ख़तम हो गया.और वह वापिस चला गया. पद्रंह साल बाद वो कामयाब बिजनैस मैन था. सब कुछ था, सुंदर बीवी और बच्चे थे.एक रात वह घबराहट के कारण उठ गया. उसका ध्यान गुरूजी कि तरफ़ गया. उसका मन  गुरूजी को मिलने का हुआ.  अगले दिन सुबह उसने गुरूकुल मे फोन किया तो पता  चला की गुरूजी  ठीक से चल नहीं पाते, सुन

BHAKTI KI SHAKTI भक्ति की शक्ति

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भक्ति की शक्ति  ईश्वर की भक्ति में बहुत शक्ति होती है। क्योंकि कहते हैं कि जो सब आसरे सहारे छोड़ कर उसका ही स्मरण करता है ईश्वर उस पर अपनी कृपा जरूर करते हैं। द्रोपदी ने भी सभी सहारे छोड़ कर श्री कृष्ण की स्तुति की थी तो श्री कृष्ण ने उसकी लाज बचाई थी। गजेन्द्र ने श्री हरि का स्मरण किया श्री हरि ने ग्राह से उसे मुक्त करवाया था। भक्त ध्रुव और प्रह्लाद को श्री हरि ने अपनी अखंड भक्ति प्रदान की थी। पढ़ें भक्ति की शक्ति का एक भावपूर्ण प्रसंग  एक बार एक लडका था । वह सारा दिन भगवान की भक्ति में लगा रहता। साधू संतो की सेवा करता था। लेकिन कोई काम धंधा नहीं करता था। उसके मां-बाप भाई सब उसे निकम्मा कहते थे। पूरा परिवार उस से परेशान रहता था।   उस नगर के राजा की कोई संतान नहीं थी। ज्ञानी पंडितो ने कहा, राजन अगर आप किसी नव युवक की बलि दोगे तो आप को संतान अवश्य होगी। पूरे नगर में घोषणा करवा दी गई कि जो परिवार अपने बेटे को राजा की बलि के लिए देने को तैयार है, उसे बहुत सा धन दिया जाएगा।  यह खबर उस लड़के के परिवार तक पहुंची। परिवार ने सोचा कोई काम धंधा तो करता नहीं, हमारे किसी काम का नहीं। इसी को राजा क

BHAGWAAN SE MANGNE KI KALA भगवान से मांगने की कला

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   परिवार मे कलेश हो तो  परिवार के सदस्य ना तो खुदका भला कर नहीं पाते है ना ही किसी और का. परिवार मे प्रेम हो तो परिवार के सदस्य अपने अपने साथ आने वाली पीढ़ियां का भी भला कर जाते है. एक बार भगवान शिव और माता पार्वती की नज़र एक पति-पत्नी और उनके बच्चे पर पड़ी. उनकी हालत दयनीय थी. पार्वती जी ने भगवान शिव से कहा कि, प्रभु इनकी हालत सुधार दो.तो भगवान शिव बोले की वह अपने कर्मो के कारण ऐसे है ;उन्होने बहुत बार देने की कोशिश की है. माता बोली कि एक बार उनके कहने पर एक और मौका दे दो. तो भगवान शिव उनके पास गए और बोले कि तुम तीनों के पास एक एक वरदान है मांगो. सबसे पहले औरत बोली, "मुझे 16 साल की सुंदर युवती बना दो ताकि मै  अपने पति को छोड़कर किसी अमीर व्यक्ति से शादी कर लूंगी"    भगवान शिव बोले "तथास्तु"    फिर आदमी की बारी आई तो वह सोचने लगा कि पत्नी जवान हो गई है, मुझे छोड़ देगी. जलन में उसने भगवान शिव से कहा, "इसे 80 साल की बुढ़िया बना दो. भगवान बोले,"तथास्तु, "  बेचारा बच्चा करे तो क्या करे. मां बुढिया हो गई. वह बोला, "भगवान मेरी मां पहले जैसी थी वैसी कर