MATA CHINTPURNI DHAM HIMACHAL PARDESH

माता चिंतपूर्णी मंदिर हिमाचल प्रदेश 

माता चिंतपूर्णी धाम हिमाचल प्रदेश के "जिला ऊना", "तहसील अम्ब" में स्थित है.हिमाचल का नाम देव भूमि इस लिए है क्योकि यहां देवी -देवताओं  का वास है. चिंतपूर्णी धाम शक्ति पीठों में से एक है. चिंतपूर्णी धाम का संबंध माँ सती और भगवान शिव से है.      

पौराणिक कथा

पौराणिक  कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया परंतु उसमे भगवान शिव और माता सती को नहीं बुलाया गया.माता सती बिना बुला  यज्ञ में चली गया गई. उसके सामने भगवान शिव का अपमान किया गया, जिसे वह सहन ना कर पाई और यज्ञ की अग्नि में कूद गई. भगवान शिव को यह बात पता चली तो वह सहन ना कर पाए.


माता सती के शरीर को यज्ञ कुंड से निकाल कर तांडव कर ने लगे. उस से सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गई. ब्रह्माण्ड को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्कर से 51 भाग में बांट दिया. यहां यहां माता सती के शरीर के भाग गिरे वहां वहां शक्ति पीठ बन गई. यहां पर माता सती के चरण गिरे थे. 

चिंतपूर्णी को छिन्नमस्तिका क्यों कहा जाता है


मां  चिंतपूर्णी धाम को छिन्नमस्तिका कहा जाता है. छिन्नमस्तिका का अर्थ है बिना सिर वाली देवी.स्कन्द पुराण के अनुसार एक बार असुरो को युद्ध मे हराने के पश्चात भी माता की दो योगनियो जया और विजया की रक्त की पिपासा ना शांत हुई तो माता ने अपना सिर काट कर उन योगनियों जया और विजया की रक्त की प्यास बुझाई.

                              


यह मान्यता है की किसी भक्त की जो चिंता होती है वह माता के दरबार आने पर दूर हो जाती है. इस लिए ही इस को चिंतपूर्णी धाम कहा जाता है.
माना जाता है, की छिन्नमस्तिका धाम की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते है. पूर्व मे महाकलेक्ष्वर धाम ,पश्चिम में नारायण महादेव ,उत्तर में  मुचकुंद महादेव , दक्षिण में शिव बाड़ी.


चिंतपूर्णी धाम का इतिहास (HISTORY OF CHINTPURNI DHAM) 

कहा जाता है की माता का भगत बाह्मण माई दास दिन-रात उनकी भक्ति में लीन रहता. काम धंधा में उसका मन नहीं लगता था.इस लिए उसके भाईयों ने उसको घर से निकाल दिया.एक दिन जंगल के रास्ते ससुराल जा रहा था एक वट के पेड़ के नीचे विश्राम करने रुका. माता ने उसे स्वपन में यहां रह कर भक्ति करने का आदेश दिया. और उसकी नींद खुल गई. जब वह ससुराल से वापिस आया तो उसी पेड़ के नीचे माता का स्मरण कर के कहा अगर आप चाहती है की मैं यहां रहकर भक्ति करु तो मुझे प्रत्यक्ष दर्शन दे.

                        


माता ने उसे प्रत्यक्ष दर्शन दे दिए, और कहा इस पेड़ के नीचे में पिंडी रुप में विराजमान हूं.आज भी उसी वट के वृक्ष के नीचे माता पिंडी रुप में विराजमान है.भक्त माई दास ने जहां से पत्थर हटा कर पानी निकाला था. वहा एक तालाब बना है.

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