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Showing posts from August, 2020

TIRUPATI BALAJI TEMPLE CHITUR ANDHRA PARDESH तिरुपति बाला जी मंदिर चितूर आंध्रप्रदेश

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 तिरुपति बालाजी हिंदुओं के प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक है. यह आंध्र प्रदेश के चितूर जिले में स्थित है. कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारत की वास्तु कला और शिल्प कला का अद्भुत नमूना है. तिरुपति के चारों ओर पहाड़ियां, शेषनाग के 7 फनों के आधार पर बनी सप्तगिरि कहलाती हैं.माना जाता है यहां पर साक्षात बालाजी विराजमान है.श्री वेंकटेश्वर का मंदिर तिरुपति पहाड़ की सातवीं चोटी  वैंकटचला पर है .श्री वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण इन को वेंकटेश्वर कहा जाता है.                     मंदिर से जुड़ी  पौराणिक  कथा एक पौराणिक कथा के अनुसार सागर मंथन के समय कालकूट विष के साथ 14 रतन निकले थे. उनमें से एक रतन देवी लक्ष्मी जी थी. लक्ष्मी जी के रूप और आकर्षण को देखकर देवता और दैत्य सब उनसे विवाह करने के लिए उत्सुक थे.परंतु लक्ष्मी जी ने वरमाला विष्णु जी को पहना दी. विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को अपने वक्ष पर स्थान दिया. माना जाता है कि एक बार विश्व कल्याण हेतु एक यज्ञ का आयोजन किया गया था. अब समस्या उठी की यज्ञ का फल ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से किसे दिया जाए. उसके लिए भृगु ऋषि को चुना गया. जब भृ

NARADJI KE KIS SHRAP KE KARAN shri ram ko sahna para sita mata ke viyog

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एक बार नारदजी हिमालय पर्वत पर बहुत कठोर तपस्या कर रहे थे. इन्द्र देव को लगा कि कहीं वो तपस्या कर के स्वर्ग लोक तो नहीं पाना चाहते. इस लिए वो काम देव को उनकी तपस्या भंग करने भेजते हैं. लेकिन काम देव उनकी तपस्या भंग नहीं कर पाते और उनके चरणों में गिर कर माफी मांगते है.   नारद जी के मन में अहंकार आ जाता है कि मैंने काम देव को हरा दिया है . नारद जी विष्णु लोक में जाते हैं और श्री हरि को यह बात बताते हैं. भगवान सोचते हैं कि देव ऋषि के लिए अंहकार अच्छी बात नहीं है. नारद जी जब विष्णु लोक से वापिस जा रहे होते हैं तो देखते हैं कि एक अति सुंदर कन्या के स्वयंवर का आयोजन हो रहा होता है. उस कन्या पर नारद जी मोहित हो जाते हैं और वापिस विष्णु लोक आ जाते हैं. और विष्णु जी को कहते हैं कि "मुझे अपना रुप दे दीजिए मैं उस कन्या से शादी करना चाहता हूँ." नारद जी साथ में कहते हैं कि "मुझे वो रुप देना जिस में मेरा हित हो."  भगवान विष्णु कहते  है,"तथास्तु."  नारद जी वहाँ पहुँच गए यहाँ स्वयंवर हो रहा था. नारद जी ने सोचा श्री हरि ने मुझे सुंदर रूप दिया है इसलिए राजकुमारी सीधे आ के म

KONARK SUN TEMPLE कोणार्क सूर्य मंदिर

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  कोणार्क के सूर्य मंदिर को उसकी भव्यता और बनावट के कारण भारत के 7 आश्चर्य में से एक माना जाता है. यह मंदिर अपनी बनावट और खूबसूरती के कारण UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साइड में भी शामिल है. 2015 में जो नए नोटों की सीरीज आई थी उस में 10 के नोट के पीछे भी कोणार्क के सूर्य  मंदिर का चित्र बना है.                                   कहा जाता है कि  श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप  के कारण कोढ़ रोग हो गया था. कटक  ऋषि ने उन्हे इससे बचने के लिए  सूर्य भगवान की पूजा करने  की सलाह दी थी.साम्ब ने चंद्रभागा नदी के संगम पर  मित्रवन में 12 वर्ष  तक सूर्य देव की आराधना की.जिससे प्रसन्न होकर सूर्य देव ने जो सब रोगों के नाशक है उन्होंने साम्ब को रोग मुक्त कर दिया. साम्ब को चंद्रभागा नदी में स्नान करते वक्त सूर्य देव की मूर्ति मिली उसने वहां भगवान सूर्य का मंदिर बनवाया. माना जाता है कि स्वयं विश्वकर्मा जी ने इस मूर्ति को बनाया था. साम्ब ने  मंदिर में इस मूर्ति को स्थापित  किया था. " कोणार्क का अर्थ"  ' कोणार्क' शब्द ' कोण ' और ' आर्क' से बना है आर्क का अर्थ है सूर्य और क

SHRI KRISHNA RADHARANI AND RUKMANI KI KAHANI

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Radhe Krishna:श्री कृष्ण राधा रानी के अटूट प्रेम की कहानी  एक बार श्री कृष्ण जी सो रहे होते थे तो उनकी नींद एकदम से खुल जाती है .और वह" जय श्री राधे ,जय श्री राधे "कहते है .रुकमणी जी उनके पास ही बैठी थी बड़े आश्चर्य से श्री कृष्ण से पूछती हैं प्रभु प्रेम तो मैं भी आपसे  करती हूं लेकिन आप के मुख पर हमेशा राधा रानी का नाम क्यों होता है.                      श्री कृष्ण कहते हैं रुक्मणी क्या तुम कभी राधा रानी से मिली हो.तो वह कहती है नहीं . श्री कृष्ण कहते हैं "जाओ फिर तुम आज राधा रानी से मिल कर आओ फिर तुम्हें पता चलेगा तो मेरे मुंह पर राधा रानी का नाम क्यों रहता है." रुकमणी जी राधा रानी के लिए खीर लेकर उनसे मिलने जाती और उनके द्वार पर पहुंच कर देखती हैं एक रूपवान स्त्री वहां खड़ी हैं .तो वह उनसे पूछती हैं "क्या आप राधा रानी है? " तो वह कहती है नहीं मैं तो उनकी दासी हूं .राधा रानी आपको सातद्वार पार करने के बाद मिलेंगी. जब रुक्मणी जी सात द्वार पार करने के बाद राधा रानी से मिलती हैं उनके मुख पर एक सूर्य के समान तेज था और उनका रूप बहुत ही तेजस्वी था.रुकमणी जी रा

CHAMDI JAYA PAR DAMDI NA JAYA चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए

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  एक बार एक निपट कंजूस सेठ होता है .वह एक दमड़ी भी किसी को देने को तैयार नहीं होता .यहां तक कि वह अपनी सांसे भी सोच समझ कर लेता है .उसका अपनी सांसो को नियंत्रण करने का बड़ा अनुभव होता है . कंजूस करोड़ीमल सेठ श्री कृष्ण का भक्त होता है ,एक बार  स्नान करने के लिए गंगा घाट जाता है ,वहां पर श्री कृष्ण उसकी परीक्षा लेने के लिए प्रकट हो जाते हैं.                                            जब वह गंगा जी में डुबकी लगाने के लिए अंदर जाता है तो एकदम श्री कृष्ण जी उसके सामने एक पंडित के रूप लेकर प्रकट हो जाते हैं ,और कहते हैं यजमान मुझे कुछ दक्षिणा  दे दो .कंजूस सेठ करोड़ीमल कहता है कि "श्रीमान मेरे पास कोई पैसा नहीं है." भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ,"कोई बात नहीं तुम संकल्प कर लो कि मुझे  कुछ दक्षिणा दोगे ".वह सोचता है चलो ठीक है और वह  पंडित को ₹1 का सिक्का देने का निश्चय करता है ,और सोचता है कि पंडित को कौन सा मेरा घर पता है .मैंने तो यही संकल्प किया है, जब वह  अगली बार  मेरे सामने आएगा तो मैं उसे एक सिक्का दूंगा. वह गंगा घाट से स्नान करके अपने घर पहुंच जाता है और जाकर विश

HARI ICHCHA SHRI KRISHNA , ARJUN AUR PANDIT KI KAHANI हरि इच्छा

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  एक बार भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन नदी के किनारे घूम रहे थे, तो उनको एक गरीब ब्राह्मण भिक्षा मांगते हुए मिला. अर्जुन को उस पर दया आई और उसनें ब्राह्मण को सोने के सिक्कों की एक थैली दी.अर्जुन ने कहा कि पंडित जी अब जीवन भर आपको भिक्षा नहीं मांगनी नहीं पडे़गी.                                     पंडित जी अर्जुन का शुक्रिया करके और श्री कृष्ण को प्रणाम करके जा रहे थे. रास्ते में एक लुटेरा उनकी सिक्कों की थैली लेकर भाग जाता है. अगले दिन पंडित जी फिर भिक्षा मांगने निकलते हैं और अर्जुन और श्री कृष्ण की नज़र उन पर पड़ती है.  अर्जुन उन से पूंछते है क्या हुआ? पंडित जी!  पंडित जी बताते हैं कि थैली तो चोर ले गया.  तो अर्जुन उन्हें एक बेशकीमती मोती देते हैं और कहते हैं, "इसे बेच कर आपकी किस्मत बदल जाएगी." वह मोती लेकर घर चला जाता. घर में कोई संदूक ना होने के कारण वह मोती को घड़े  में छुपा देता है और सो जाता है.  उसकी बदकिस्मती कि उस की पत्नी रोज़ जिस घड़े में पानी लाती थी वह टूट जाता है और वह वही पुराना घड़ा लेकर नदी पर गई और पानी भरते वक्त मोती नदी में गिर गया. जब पंडित जी सोकर उठते है

GHAR MEIN KISKI CHALTI HAI

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घर में किसकी चलती है एक मजेदार कहानी   एक बार एक बहुत ही न्याय प्रिय राजा था. उस की रानी भी बहुत समझदार थी. बहुत बार राजा अपने राज्य के मामलों में उस की सलाह लेता. लेकिन जब बात उनके घरेलू मामलों की आती तो रानी अपना तर्क सही साबित कर के अपनी बात मनवा लेती. एक बार राजा ने सोचा कि क्यों ना प्रतियोगिता रखी जाए कि घर में किस की चलती  है पति की पत्नी की या दोनों की. राज्य के सभी दरबारियों, कर्मचारियों, और अधिकारियों के लिए प्रतियोगिता में भाग लेना आवश्यक कर दिया गया.                        प्रतियोगिता के पहले नियम के अनुसार सब को बताना था कि घर में फैसले कौन लेता है. अगर पति - पत्नी मिल कर लेते हैं तो प्रतियोगी को एक संतरा उठाना था और वो ईनाम का हकदार नही होगा.   दूसरे नियम के अनुसार अगर पति अकेले फैसला लेता है तो उसे सेब उठाना था और वह लाखों के मुल्य की वस्तु का हकदार होगा. महल में बहुत से ऐसे कर्मचारी थे जो अपनी पत्नी को मार कर, डांट कर अपनी बात मनवा लेते थे. राजा यह बात जानता था इस लिए  प्रतियोगिता का तीसरा नियम था कि अगर जीतने के बारे में यह बात पता चली कि वो अपनी पत्नी को मारता है तो

ISHWAR KA NAYAAY(justice of god) ईश्वर का न्याय

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हम भी जब किसी के लिए कुछ  त्याग करते हैं तो हमें लगता है कि उसका फल बहुत ज्यादा मिला हैं.और कई बार लगता है कि बहुत कम फल मिला. ऐसा इस लिए होता है क्योंकि ईश्वर का दृष्टि कोण हमारे दृष्टि कोण से बड़ा  होता है.                                एक बार राम और शाम दोनों दोस्त अपने गाँव के पास एक तीर्थ स्थल पर गए. वहां दर्शन करने के बाद वह दोनों सीढ़ियों पर बैठे थे तो उनकों वहां उनका पुराना मित्र सुरेश मिला. तीनों कई घंटो तक बातें करते रहे. फिर सुरेश ने कहा मुझे बहुत भूख लगी है .  तो राम ने कहा, " मेरे पास पाँच रोटियां है" और शाम ने कहा ,"मेरे पास तीन रोटियां है." वह सोचते हैं कि इन 8 रोटियाँ को तीन हिस्सों में कैसे बाँटे. फिर राम एक सुझाव देता है कि हर रोटी को तीन हिस्सों में बाँट लेते हैं. इस तरह रोटी के 24  हिस्सों हो गए और हर एक को आठ हिस्से आए.  सुरेश खाना खाकर बहुत प्रसन्न होता है और उन दोनों को सोने के आठ सिक्के दे देता है और कहता है कि तुम दोनों इसे बाँट लेना. जब बाँटने की बारी आती है तो राम कहता है , "मेरी पाँच रोटियां थी इस लिए मुझे पाँच सिक्के मिलने चाहिए और

DAVKI AUR VASUDAV KI KATHA

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   इस सृष्टि के पालन हार श्री कृष्ण के माता पिता बनने का सौभाग्य देवकी और वसुदेव जी क्यों मिला. उनके पूर्व जन्म के अनुसार उन्होंने भगवान विष्णु की बहुत भक्ति की.                                 देवकी और  वसुदेव पूर्व जन्म में पृश्नि और सुतपा नाम के प्रजापति थे. दोनों ने 12 हज़ार वर्ष तक तपस्या की. भगवान ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए.  उन दोनों ने भगवान से कहा, " हमें आपके जैसा पुत्र चाहिए ". भगवान उनकी भक्ति से इतने प्रसन्न थे उन्होंने तीन बार कहा, " तथास्तु, तथास्तु, तथास्तु." इस लिए भगवान श्री हरि उस जन्म उनके पुत्र बने और पृश्नि गर्भ नाम से विख्यात हुए. दुसरे जन्म में श्री हरि,अदिति और देव ऋषि कश्यप के पुत्र बने. उनका नाम था उपेन्द्र. छोटा आकर होने के कारण उनके अवतार को "वामन " भी कहा जाता है. अपने तीसरे जन्म में वह दोनों देवकी और वसुदेव के नाम से प्रसिद्ध हुए. और श्री कृष्ण के रूप में श्री हरि ने जन्म लिया.  जब उन दोनों ने वर मांगा था कि हमें आप जैसा पुत्र पैदा हो तो श्री हरि ने तीन बार उन्हें तथास्तु कह दिया. पर उन्होंने ने सोचा कि मेरे जैसा तो मैं

MAA YASHODA AUR NAND BABA

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 कृष्ण के माता पिता माँ यशौदा और नंद बाबा की कथा  श्री कृष्ण के माता पिता कौन थे ? श्री कृष्ण भगवान सारे संसार का पालन पोषण करते हैं परंतु उनके पालन पोषण का सौभाग्य माँ यशोदा और  नंद बाबा को मिला. इसके पीछे उनके पूर्व जन्म की कहानी है .     नंद बाबा जो अपने पूर्व जन्म मे राजा द्रोण ओर माँ यशोदा उनकी पत्नी धरा ने कई हजारों सालों तक भगवान की तपस्या की. वह दोनों उनके बाल रुप के दर्शन करना चाहते थे. उन्होंने अपनी तपस्या के दौरान खाना- पीना छोड़ दिया. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें वर मांगने को कहा. दोनों बोले , " भगवान विष्णु के बाल रुप के दर्शन करने है, उनकी लीला देखनी है . " ब्रह्मा जी ने उन्हें यह वरदान दे दिया. ब्रह्मा जी के इस वरदान को सत्य करने के लिए विष्णु जी ने जब कृष्ण रुप में अवतार लेना था तो उन्होंने नंद बाबा और वसुदेव जी को सम्बंधी बना दिया. और योग माया को माँ यशोदा के यहाँ जन्म लेने भेज दिया.  कंस के भय से वसुदेव जी श्री कृष्ण को टोकरी में रखकर नंद बाबा के घर चले गए. एक नंद बाबा ही थे जो वसुदेव जी के लिए अपने बच्चे का त्याग कर

BAIJNATH MANDIR KANGRA HIMACHAL PRADESH बैजनाथ मंदिर कांगड़ा हिमाचल प्रदेश

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बैजनाथ मंदिर हिमाचल प्रदेश  बैजनाथ मंदिर देवभूमि हिमाचल में स्थित एक हिंदू मंदिर है। यह कांगड़ा ज़िले के छोटे से शहर बैजनाथ में स्थित है। इसे अहुका और मनुका द्वारा 1204 ईस्वी में बनाया गया था।      पौराणिक कथा  श्री बैजनाथ मंदिर का संबंध लंका पति रावण से है। एक बार लंका पति ने तीनों लोको पर विजय पाने के लिए कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की घोर तपस्या की।इसने जब 9 सिर काट कर हवन कुंड में चढ़ा दिया, तो दसवां सिर काटने से पहले भगवान शिव प्रकट हुए।और रावण ने वर के रूप में भगवान शिव से असीम शक्तियां माँगी. भगवान ने कहा तथास्तु. लंका पति ने भगवान शिव को भी लंका ले जाने की इच्छा जताई। भगवान शिव मान गए और एक शिवलिंग में परिवर्तित हो गए। भगवान ने कहा मेरी एक शर्त है, कि तुम कैलाश से लेकर लंका तक इस शिवलिंग को नीचे नहीं रखोगे।                         माना जाता है कि रास्ते में रावण को लघुशंका हुई। तो उसने शिवलिंग को बैजू नाम के गवाला को पकड़ा दिया। वह  गवाले के रूप से श्री हरि थे। वह नहीं चाहते थे कि रावण भगवान शिव को लंका ले जाए। इसके लिए उन्होंने शिवलिंग को वही स्थापित कर दिया गया है। इस लिए इस जग

BHAGWAN SHIV AUR MATA PARVATI KI KAHANI NAKAL MAT KARNA

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सावन‌ मास में पढ़ें भगवान शिव और मां पार्वती की प्रेरणादायक कहानी  एक बार भगवान शिव और माता पार्वती एक मंदिर के पास से गुज़र रहे थे. माता पार्वती की नज़र एक पति-पत्नि के जोड़े पर पड़ती है जो मंदिर से दर्शन कर के आ रहे थे. उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी.                             उन की हालत देखकर माता पार्वती भगवान शिव से कहती है, " प्रभु आप इन दोनो पर कृपा क्यों नहीं करते. " भगवान शिव कहते हैं, " मैंने तो बहुत बार कोशिश की परंतु यह अपने कर्मों के कारण उस का फल नहीं भोग पाते. माँ पार्वती कहती है, " आप एक बार मेरे कहने पर इन पर कृपा कर दो. भगवान शिव माता पार्वती की बात मान जाते हैं. और बताते हैं कि , " मैंने इन के 100 कदमों की दूरी पर सोने के सिक्के रख दिए है. जब वह वहा तक पहुँचेगे तो देख सकेंगे."                      माता पार्वती प्रभु का कथन सुनकर सोचती है कि अब इन दोनों को अमीर बनने से कोई नहीं रोक सकता. अभी वह पति -पत्नी 10 कदम ही चले होते हैं कि पीछे से सुंदर भजन की आवाज ़आती है. मुड़कर देखते हैं तो एक अंधे पति -पत्नी का जोड़ा भजन गा रहे होते हैं.

ANGUTHA CHHAP motivational story अंगूठा छाप

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 अंगूठा छाप एक प्रेरणादायक कहानी जो इस कथन को सत्य करती है कि ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए ही करता है. एक बार एक रघु नाम प्रेरणादायक लडका था. उस के माता- पिता नहीं थे. मंदिर में ढोलकी बजा कर जो पैसे मिलते उस से अपना गुजारा करता. एक दिन जिस सेठ ने मंदिर बनवाया था उस की मृत्यु हो गई. और मंदिर का संचालन उसके बेटे के पास आ गया. जो विदेश से पढ़  कर आया था. उसने एक नियम बना दिया कि मंदिर का कोई भी कर्मचारी अंगूठा छाप नहीं होना चाहिए. वह कोरा अनपढ़ था. इस लिए उस की नौकरी चली गई.                     रघु जो संतोख से जिंदगी जी रहा था अब भगवान को उलाहना देता है ,अपने मुझे अंगूठा छाप क्यों बनाया. मंदिर में आने वाले भक्तों को उस की नौकरी चली जाने का दुख होता था. तो कुछ भक्तों ने मिलकर मंदिर के सामने खाली पडी़ जमीन पर पूजा में काम आने वाला धूप, अगरबत्ती, प्रसाद आदि का ठेला लगवा दिया.                         उसके पिता मरने से पहले धूप- अगरबत्ती बनाने की फैक्ट्री में काम करते थे. उसने अपने पिता से धूप अगरबत्ती बनाना सिखा था. अपनी ठेले पर बेचने वाले धूप वह स्वयं बनाता जिस की सुगंध पूरे घर या मंदिर को

BANKE BIHARI TEMPLE VARINDAVAN DHAM

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 बांके बिहारी वृन्दावन धाम  बाँके बिहारी मंदिर वृन्दावन धाम का ऐसा मंदिर है, जिस की मान्यता है अगर कोई भक्त आंख भरकर उनके स्वरुप को देखले तो बिहारी जी उसके साथ चले जाते है.   बाँके बिहारी मंदिर में बार बार पर्दा किया जाता है. वृन्दावन ऐसी पावन भूमि है जहांं आने पर सभी पापों का नाश हो जाता है. बाँके बिहारी का विग्रह स्वयं प्रकट हुआ है, इसे किसी ने बनाया नहीं है.   ऐसा माना जाता है कि बाँके बिहारी के मंदिर का निर्माण स्वामी हरिदास जी  के वंशजों द्वारा किया गया है. श्री हरिदास जी के प्रेम में ही बाँके बिहारी स्वयं प्रकट हुए थे. हरिदास जी प्रसिद्ध गायक तानसेन के गुरू थे.                      बाँके बिहारी मंदिर एक ऐसा मंदिर जहां मान्यता जाता है जहांं बाँके बिहारी अपने भक्तों के प्रेम भाव से इतने प्रभावित हो जाते है की अपने आसन से उठ कर अपने भक्तों के साथ चले जाते है. ऐसा बहुत बार हो चुका है जब बिहारी जी का विग्रह गायब हो चुका है. कोई भी आँख भरकर बिहारी जी के दर्शन नहीं कर सकता तांकि भक्तों के साथ बिहारी जी की आँखे चार ना हो जाए. इस लिए उन्हे पर्दे  में रखकर क्षणिक झलक ही दिखाई जाती है. पुजा

MAHAKALESHWAR MAHADEV MANDIR HIMACHAL PRADESH

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महाकालेश्वर मंदिर हिमाचल प्रदेश चिंतपूर्णी धाम से है संबंध  चिंतपूर्णी मंदिर से संबंध महाकालेश्वर महादेव मंदिर हिमाचल प्रदेश में व्यास नदी के किनारे स्थित है। इस मंदिर का चिंतपूर्णी धाम से गहरा संबंध है। एक मान्यता के अनुसार महाकलेश्वर महादेव मंदिर उन चार महा रुद्रों में से एक है जो मां चिंतपूर्णी की रक्षा करते है. यह मंदिर चिंतपूर्णी माता जी  पूर्व में स्थित है. चिंतपूर्णी धाम के चारों ओर एक ही फासले पर चारों दिशाओं में शिव मंदिर स्थित है।  पूर्व में महाकालेश्वर महादेव पश्चिम में नारायण महादेव उत्तर में मुचकन्द महादेव दक्षिण में शिव बाड़ी  मुचकुंद महादेव मंदिर मधियानी नंगल गांव हिमाचल प्रदेश MAHAKALESHWAR MANDIR HISTORY(महाकलेश्वर  मंदिर का इतिहास)  महाकलेश्वर महादेव मंदिर व्यास नदी के किनारे पर स्थित है. माना जाता है कि  इस शिवलिंग में महाकाली और भगवान शिव दोनों का वास है . स्कंद पुराण के अनुसार मां शक्ति ने दैत्यों का संहार करने के लिए मांँ काली का रुप धारण किया, तो अपने क्रोध की अग्नि से उन्होने सभी दैत्यों का संहार कर दिया लेकिन माँ का क्रोध शांत ना हुआ . जहाँ- जहाँ से माँ काली ग

SHIV BARI MANDIR HIMACHAL PRADESH

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 शिव बाडी मंदिर हिमाचल प्रदेश हिमाचल का नाम देव भूमि इस लिए है क्योकि यहां देवी -देवताओं के वास के साक्षात प्रमाण मिलते है.ऐसा ही एक स्थान है ऊना के गगरेट के नजदीक शिव बाडी. शिव बाडी का अर्थ है शिव जी का वास है.          पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर का संबंध महाभारत काल से है. कहा जाता है  कि गुरू द्रोणाचार्य यहां अपने शिष्यों को धनुर्विद्या सिखाते थे. वह हर रोज भगवान शिव की पूजा करने कैलाश पर्वत पर जाते थे. एक दिन उनकी छोटी बेटी यज्याति ने भी उनके साथ कैलाश पर्वत जाने की ज़िद की.लेकिन गुरू द्रोणाचार्य ने उसे कहा, " अभी तुम बहुत छोटी हो. तुम यही पर रह कर भगवान की पूजा करो" यज्याति  ने उनकी बात मान ली. उस ने वही पर मिट्टी का शिवलिंग बना कर वही पर पूजा करनी शुरु कर दी.वह इतने श्रद्धा से पूजा करती की भगवान शिव स्वयं बालक के रुप में ज्जायती से मिलने आते थे. एक दिन ज्यजती ने यह बात गुरू द्रोण को बताई कि भगवान शिव स्वयं उस से मिलने आते है. यह सुनकर गुरू द्रोण अगले दिन कैलाश पर्वत ना जाकर छुपकर ज्यजती को पूजा करते देखने लगे.द्रोणाचार्य उस बालक के ओज को देखकर समझ गए की वह स्वयं भग