NARADJI KE KIS SHRAP KE KARAN shri ram ko sahna para sita mata ke viyog

एक बार नारदजी हिमालय पर्वत पर बहुत कठोर तपस्या कर रहे थे. इन्द्र देव को लगा कि कहीं वो तपस्या कर के स्वर्ग लोक तो नहीं पाना चाहते. इस लिए वो काम देव को उनकी तपस्या भंग करने भेजते हैं. लेकिन काम देव उनकी तपस्या भंग नहीं कर पाते और उनके चरणों में गिर कर माफी मांगते है.  

नारद जी के मन में अहंकार आ जाता है कि मैंने काम देव को हरा दिया है . नारद जी विष्णु लोक में जाते हैं और श्री हरि को यह बात बताते हैं. भगवान सोचते हैं कि देव ऋषि के लिए अंहकार अच्छी बात नहीं है. नारद जी जब विष्णु लोक से वापिस जा रहे होते हैं तो देखते हैं कि एक अति सुंदर कन्या के स्वयंवर का आयोजन हो रहा होता है.

उस कन्या पर नारद जी मोहित हो जाते हैं और वापिस विष्णु लोक आ जाते हैं. और विष्णु जी को कहते हैं कि "मुझे अपना रुप दे दीजिए मैं उस कन्या से शादी करना चाहता हूँ." नारद जी साथ में कहते हैं कि "मुझे वो रुप देना जिस में मेरा हित हो."

 भगवान विष्णु कहते  है,"तथास्तु." 

नारद जी वहाँ पहुँच गए यहाँ स्वयंवर हो रहा था. नारद जी ने सोचा श्री हरि ने मुझे सुंदर रूप दिया है इसलिए राजकुमारी सीधे आ के मेरे गले में वरमाला डालेगी. लेकिन राजकुमारी आई और सीधी आगे चली गई श्री हरि विष्णु जी वहां आए हुए थे .राजकुमारी ने वरमाला विष्णु जी के गले में डाल दी. नारद जी ने राजकुमारी से पूछा की उसने उनको क्यों नहीं चुना,तो राजकुमारी ने कहा, "अपना मुख देखा है आईने में. "

नारद जी ने जब अपना चेहरा तालाब में देखा तो श्री विष्णु ने उन्हें वानर का रूप दिया था . नारद जी क्रोधित हो गए और विष्णु जी के पास पहुंचे. 

नारद जी ने कहा ,"मैंने कहा था कि मैं उस राजकुमारी से शादी करना चाहता हूं. मुझे अपना रूप दे दो .आपने तो स्वयं ही उससे शादी कर ली और मुझे रूप दिया भी तो वानर का! "

नारद जी ने श्री हरि को श्राप दे दिया की जिस तरह मुझे राजकुमारी नहीं मिली .आप अगले जन्म में मनुष्य रुप लेंगे तो आपको भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा ,और आपको उससे मिलने के लिए वानरों की ही सहायता लेनी पड़ेगी.

नारद जी के इतना कहते ही श्री हरि अपनी माया खींच ली.तब नारद जी को अपनी गलती का एहसास हुआ. लेकिन तब तक वह श्राप दे चुके थे.श्री हरि ने कहा नारद जी आप तो देव ऋषि है आपने स्वयं ही तो बोला था प्रभु मुझे वह रूप देना जिससे मेरा भला हो .इसलिए मैं नहीं चाहता था कि आप हरि भक्ति से विमुख हो.

नारद जी के इसी श्राप के कारण राम जी और सीता मां का वनवास के दौरान वियोग हुआ . रावण मां सीता का अपहरण करके ले गया और हनुमान जी जो वानर रुप थे समुंदर पार करके सीता माता का पता लगाया .रामजी ने सुग्री़व की सेना की सहायता से लंका पर विजय प्राप्त की  थी.

 नारद जी के इसी श्राप के कारण देवताओं ने अपने पुत्रों को वानर के रूप में जन्म दिया. जाम्बवन्त राम जी की सेना में उम्र में सबसे बड़े थे, वह ब्रह्मा जी के पुत्र थे.सुग्रीव सूर्य देव के पुत्र थे.बाली इंद्र के पुत्र थे .विश्वकर्मा जी ने नल और अग्निदेव ने नील को अपने पुत्र के रूप में पृथ्वी पर भेजा . श्री राम के सबसे बड़े भगत हनुमान जी वायुदेव के पुत्र थे. इसी प्रकार देवताओं , गंधर्व आदि ने अपने पुत्रों को श्री राम जी की सहायता के लिए वानर और रीछ के रूप में पृथ्वी पर भेजा था और इनकी सहायता से ही श्री राम जी ने रावण की सेना पर विजय प्राप्त की.

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