HARI ICHCHA SHRI KRISHNA , ARJUN AUR PANDIT KI KAHANI हरि इच्छा

 

एक बार भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन नदी के किनारे घूम रहे थे, तो उनको एक गरीब ब्राह्मण भिक्षा मांगते हुए मिला. अर्जुन को उस पर दया आई और उसनें ब्राह्मण को सोने के सिक्कों की एक थैली दी.अर्जुन ने कहा कि पंडित जी अब जीवन भर आपको भिक्षा नहीं मांगनी नहीं पडे़गी. 

                                

  पंडित जी अर्जुन का शुक्रिया करके और श्री कृष्ण को प्रणाम करके जा रहे थे. रास्ते में एक लुटेरा उनकी सिक्कों की थैली लेकर भाग जाता है.

अगले दिन पंडित जी फिर भिक्षा मांगने निकलते हैं और अर्जुन और श्री कृष्ण की नज़र उन पर पड़ती है.  अर्जुन उन से पूंछते है क्या हुआ? पंडित जी!  पंडित जी बताते हैं कि थैली तो चोर ले गया. 

तो अर्जुन उन्हें एक बेशकीमती मोती देते हैं और कहते हैं, "इसे बेच कर आपकी किस्मत बदल जाएगी." वह मोती लेकर घर चला जाता. घर में कोई संदूक ना होने के कारण वह मोती को घड़े  में छुपा देता है और सो जाता है. 

उसकी बदकिस्मती कि उस की पत्नी रोज़ जिस घड़े में पानी लाती थी वह टूट जाता है और वह वही पुराना घड़ा लेकर नदी पर गई और पानी भरते वक्त मोती नदी में गिर गया.

जब पंडित जी सोकर उठते हैं तो पत्नी से घड़े के बारे में पूछते हैं और बताते हैं कि उस घड़े में एक बेशकीमती मोती था.

लेकिन वह मोती अब नदी में गिर चूका था. पंडित जी सोचते हैं कि शायद मेरे अमीर होने का सपना कभी पूरा नहीं होगा.

दो- तीन दिन बाद वही पंडित अर्जुन और श्री कृष्ण से मिलता है और उन्हें अपनी सारी बात बताता है.  अर्जुन श्री कृष्ण से पूछते हैं, " भगवान  इस पंडित की कैसी बदकिस्मती है "

भगवान कृष्ण शांत रहते हैं और उस पंडित को दो पैसे देते हैं. और कहते हैं कि" मैं चाहता हूँ की तूम आगे भिक्षा माँगने मत जाना, यहाँ से वापिस अपने घर चले जाओ. 

 हरि इच्छा मानकर पंडित वापिस  चला जाता है लेकिन सोचते हैं कि श्री कृष्ण से अच्छे तो उन के सखा है जिन्होंने मुझे सोने के सिक्के और मोती दिए थे. पंडित जी जब नदी के पास जाते हैं तो देखते हैं कि एक मछुआरे ने छोटी सी मछली पकड़ी है तो बहुत तड़प रही है. उसे उस मछली पर तरस आता है और वह मछुआरे को दो पैसे देकर उससे मछली ले लेता है और उसे अपने कमण्डल में डाल देता है. 

वह देखता है कि जो मोती उसे अर्जुन ने दिया था उसे मछली कमण्डल में उगल देती है. यह देखकर वह जोर- जोर से चिल्लाने लगता है, " मिल गया, मिल गया."

उसी समय वह चोर उधर से जा रहा होता है जिस ने उसकी थैली चुराई होती है. पंडित जी के चिल्लाने पर वह पंडित के पैड़ो में गिर पड़ता है और कहता है कि ,"तुम राजा को मेरे बारे में मत बताना तो मैं तुम्हारे सिक्को की थैली वापिस कर देता हूँ."

यह सब कुछ श्री कृष्ण और अर्जुन देख रहे थे तो अर्जुन श्री कृष्ण से पूछते हैं, " भगवान यह आपकी कैसी लीला हैं."

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, " जब तुम ने पंडित को पैसे दिए तो वह केवल अपने बारे में सोच रहा था लेकिन जब मैंने दो पैसे दिए तो मछली की जान बचाने के लिए उस ने उन पैसों का त्याग कर दिया. और तुम जानते ही हो अर्जुन, त्याग का फल तो हमेशा ही मिलता है.

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