KONARK SUN TEMPLE कोणार्क सूर्य मंदिर
कोणार्क के सूर्य मंदिर को उसकी भव्यता और बनावट के कारण भारत के 7 आश्चर्य में से एक माना जाता है.
यह मंदिर अपनी बनावट और खूबसूरती के कारण UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साइड में भी शामिल है.
2015 में जो नए नोटों की सीरीज आई थी उस में 10 के नोट के पीछे भी कोणार्क के सूर्य मंदिर का चित्र बना है.
कहा जाता है कि श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप के कारण कोढ़ रोग हो गया था. कटक ऋषि ने उन्हे इससे बचने के लिए सूर्य भगवान की पूजा करने की सलाह दी थी.साम्ब ने चंद्रभागा नदी के संगम पर मित्रवन में 12 वर्ष तक सूर्य देव की आराधना की.जिससे प्रसन्न होकर सूर्य देव ने जो सब रोगों के नाशक है उन्होंने साम्ब को रोग मुक्त कर दिया.
साम्ब को चंद्रभागा नदी में स्नान करते वक्त सूर्य देव की मूर्ति मिली उसने वहां भगवान सूर्य का मंदिर बनवाया. माना जाता है कि स्वयं विश्वकर्मा जी ने इस मूर्ति को बनाया था. साम्ब ने मंदिर में इस मूर्ति को स्थापित किया था.
"कोणार्क का अर्थ"
'कोणार्क' शब्द 'कोण 'और 'आर्क' से बना है आर्क का अर्थ है सूर्य और कोण का अर्थ है किनारा.
कोणार्क के सूर्य मंदिर की संरचना:
इस मंदिर की रचना इस प्रकार की गई है कि माना जाता है सूर्य देव सात घोड़े वाले रथ पर सवार होते हैं . उसी से प्रेरणा लेकर मंदिर की कल्पना की गई है .जैसे रथ में 12 विशाल पहिए लगाए गए हैं सात ताकतवर घोड़े उससे खींच रहे हैं. इन घोड़े पर सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है.परंतु वर्तमान में एक ही घोड़ा बचा है .12 चक्र साल के 12 महीनों को दर्शाते हैं . प्रत्येक चक्र आठ अरों से मिलकर बना है और प्रत्येक अर दिन के 8 पहरों को दर्शाते हैं.
मंदिर का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थरों और ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है .इसे सुमंत राजा नरसिंह देव द्वारा बनवाया गया था वहां लगे ताम्रपत्र से पता चलता है.
इस मंदिर को तीन मंडलों में बनाया गया है .दो मंडप ढह चुके हैं. इस के प्रवेश द्वार पर 2 सिंह हाथियों पर आक्रमण करते हुए दिखाई देते हैं .दो हाथी एक-एक मानव के ऊपर स्थापित हैं.यह प्रतिमाएं एक ही पत्थर से बनी है. मंदिर के दक्षिण भाग में दो सुसज्जित घोड़े बने हैं इसे उड़ीसा सरकार ने राज चिन्ह के रूप में अंगीकार किया है.
इस के प्रवेश द्वार पर नट मंदिर हैं .यह वह स्थान है जहां मंदिर की नृर्तकियां सूर्य देव को अर्पण करने के लिए नृत्य किया करती थी .मान्यता है कि आज भी नृर्तकियां यहाँ नृत्य करने आती हैं. बहुत से लोगों का मानना है कि आज भी यहां पायल की झंकार सुनने को मिलती है.
महान कवि 'रविंद्र नाथ टैगोर 'ने इस मंदिर के बारे में लिखा है, "कोणार्क जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से बेहतर है".
चुंबकीय शक्तिआ
माना जाता है कि मंदिर के शिखर पर 52 टन का चुंबकीय पत्थर लगा हुआ था .एक समय ऐसा था जब मुख्य चुंबक की अन्य चुंबकों के साथ इस तरह व्यवस्था की गई थी की मंदिर की मूर्ति तैरती हुई नजर आती थी.अंग्रेजों के काल में चुंबकीय शक्ति के कारण पानी के जहाजों को नुकसान होने लगा तो उन्होंने चुंबक को वहां से निकाल दिया.
माना जाता है कि कोणार्क मंदिर में सूर्य की पहली किरण जब पड़ती है तो सूर्य की किरने मंदिर से पार होकर मूर्ति के केंद्र में हीरे की तरह प्रतिबिंबित होकर चमकदार दिखाई देती हैं.
पूजा अर्चना संबंधी धारणा:
कहते हैं कि मुगल काल में मंदिरों को तोड़ने के लिए अथक प्रयास हो रहे थे .मंदिर के पंडों ने भगवान की मूर्ति को रेत में दबा दिया और बाद में पूरी भेज दिया लेकिन लोगों का कहना है कि सूर्य देव की जो मूर्ति नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी गई है ,वही प्रधान मूर्ति हैं .कहा जाता है कि मूर्ति हटाने के बाद पूजा अर्चना बंद हो गई और यह स्थान कई सालों तक जंगल से ढका रहा.
एक अन्य मिथक है कि मंदिर का जो मुख्य शिल्पकार था उसके बेटे ने मंदिर में आत्महत्या कर ली थी .इसलिए मंदिर में कभी भी पूजा-अर्चना नहीं की गई.
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