TIRUPATI BALAJI TEMPLE CHITUR ANDHRA PARDESH तिरुपति बाला जी मंदिर चितूर आंध्रप्रदेश

 तिरुपति बालाजी हिंदुओं के प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक है. यह आंध्र प्रदेश के चितूर जिले में स्थित है. कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारत की वास्तु कला और शिल्प कला का अद्भुत नमूना है. तिरुपति के चारों ओर पहाड़ियां, शेषनाग के 7 फनों के आधार पर बनी सप्तगिरि कहलाती हैं.माना जाता है यहां पर साक्षात बालाजी विराजमान है.श्री वेंकटेश्वर का मंदिर तिरुपति पहाड़ की सातवीं चोटी  वैंकटचला पर है .श्री वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण इन को वेंकटेश्वर कहा जाता है.                  


  मंदिर से जुड़ी  पौराणिक  कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार सागर मंथन के समय कालकूट विष के साथ 14 रतन निकले थे. उनमें से एक रतन देवी लक्ष्मी जी थी. लक्ष्मी जी के रूप और आकर्षण को देखकर देवता और दैत्य सब उनसे विवाह करने के लिए उत्सुक थे.परंतु लक्ष्मी जी ने वरमाला विष्णु जी को पहना दी. विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को अपने वक्ष पर स्थान दिया.

माना जाता है कि एक बार विश्व कल्याण हेतु एक यज्ञ का आयोजन किया गया था. अब समस्या उठी की यज्ञ का फल ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से किसे दिया जाए. उसके लिए भृगु ऋषि को चुना गया. जब भृगु जी  को ब्रह्मा और महेश में से कोई भी उपयुक्त ना लगा तो वह विष्णु लोक पहुंचे. विष्णु जी की नजर भृगु जी पर नहीं गई तो  ऋषि ने विष्णु जी वक्ष पर  ठोकर मार दी.

विष्णु जी ने भृगु ऋषि से माफी मांगी और कहा ऋषि वर आपके पांव को कहीं चोट तो नहीं लगी .विष्णु जी के व्यवहार से खुश होकर भृगु ऋषि ने विष्णु जी को उपयुक्त घोषित कर दिया .लेकिन इस घटना से लक्ष्मी जी नाराज हो गई कि भृगु ऋषि को किसने  अधिकार  दिया विष्णु   जी के वक्ष पर लात मारने का .लक्ष्मी जी को विष्णु जी पर भी क्रोध आया कि उन्होंने भृगु ऋषि को दंडित करने की अपेक्षा उनसे माफी मांगी.

नाराज होकर लक्ष्मी जी विष्णु लोक छोड़ कर चली गई .विष्णु जी उनको ढूंढते हुए पृथ्वी लोक पर आ गए.लक्ष्मी जी ने वहां पद्मावती के रूप में जन्म लिया और विष्णु जी ने भी धरती पर मनुष्य  'श्री निवास' रूप में जन्म लिया .फिर दोनों का विवाह हो गया और भृगु ऋषि ने आकर लक्ष्मी जी से माफी मांगी और उन्हें आशीर्वाद दिया . 

मान्यता है कि विवाह के समय विष्णु जी ने कुबेर से उधार लिया था और कहा  था कि कलयुग के समापन पर उधार चुका देंगे .कुबेर  जी ने पूछा कि प्रभु आप ऋण कैसे चुकाएंगे .तो श्रीनिवास विष्णु जी ने कहा मेरे भक्त मुझसे धन वैभव मांगने आएंगे ,मेरी कृपा से उन्हें जो धन प्राप्त होगा.उसके बदले मे जो दान प्राप्त करूंगा जो चढ़ावे के रूप में होगा मैं अपना ऋण चुकता रहूंगा.

कुबेर जी ने श्री हरी द्वारा भक्त और भगवान के ऐसे रिश्ते की बात सुनकर उन्हें प्रणाम किया और धन का प्रबंध किया.आज भी वक्त मंदिर में दान देकर भगवान का चढ़ा ऋण इन उतार रहे हैं जो कलयुग के अंत तक चलता रहेगा.

तिरुपति बालाजी के मंदिर से जुड़े 11 अनोखे तथ्य

सदा जलने वाला दिया

माना जाता है कि भगवान बालाजी के मंदिर में दीया हमेशा जलता रहता है उसमें कभी भी किसी ने घी या तेल नहीं डाला .कोई भी नहीं जानता कितने वर्षों पहले यह दिया किसने जलाय . 

मूर्ति मध्य में या दाएं और

जब गृभ गृह के बाहर से देखते हैं तो मूर्ति दाएं और लगती है और जब गर्भ गृह के अंदर से देखते हैं तो मूर्ति मध्य स्थापित प्रतीत होती है.

विषेश कपूर का प्रयोग

भगवान की मूर्ति को एक विशेष तरह का कपूर लगाया जाता है ,जिसके बारे में वैज्ञानिकों का मानना है कि पत्थर पर लगाने से चटक जाता है लेकिन बालाजी की प्रतिमा पर उसका कोई असर नहीं होता.

मूर्ति पर लगे बाल 

माना जाता है कि बालाजी की मूर्ति पर लगे बाल कभी उलझते  नहीं वह हमेशा मुलायम रहते हैं.

समंदर लहरों की ध्वनि

भगवान की मूर्ति पर कान लगाने से समुंदर की लहरों की ध्वनि सुनाई देती हैं यही कारण है कि माना जाता है मूर्ति के नम रहने का.

अद्भुत छड़ी

मंदिर के दाएं और एक अद्भुत छड़ी है माना जाता है इससे बालाजी  की बाल्य अवस्था में की पिटाई की गई थी इसी कारण उनकी ठुड्डी बहुत चोट लग गई थी.

अनोखा गांव

 बालाजी मंदिर से कुछ दूरी पर एक गांव है माना जाता है कि भगवान के चढ़ावे के लिए फल, फूल, दूध ,दही यहीं से आता हैं यहां की स्त्रियां सिले हुए वस्त्र धारण नहीं करती. किसी बाहरी व्यक्ति को  इस गांव में जाने की अनुमति नहीं है.

ऊपर साड़ी नीचे धोती 

प्रतिमा के ऊपर भाग को साड़ी और नीचे धोती पहनाई जाती है .मान्यता है कि बालाजी में ही मां लक्ष्मी का रूप है.

मूर्ति नम रहती हैं

मंदिर में बालाजी की मूर्ति जीवंत लगती है .मान्यता है की मूर्ति को गर्मी लगती है इसलिए उनकी पीठ हमेशा नम रहती हैं.

चंदन का लेप

बालाजी का पूरा श्रृंगार उतारकर उन्हें स्नान करवाकर चंदन का लेप लगाया जाता है.जब लेप हटाया जाता है तो उस पर मां लक्ष्मी की छवि उभर कर आती है.

फूलपती भक्तों को नहीं दिया जाता

मान्यता के अनुसार जो फूल, पत्ती, तुलसी चढ़ाई जाती है उसे भक्तों को नहीं दिया जाता.एक कुंड में विसर्जित कर दिया जाता है क्योंकि इसको  भक्तों को देना शुभ नहीं माना जाता.

बाल दान के बारे में मान्यता

तिरुपति बालाजी के मंदिर में बालों के दान का विशेष महत्व माना जाता है . यहां बाल दान करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती हैं प्रतिदिन 20000 भक्त यहां बाल दान करते हैं.यह कार्य को संपन्न करने के लिए 600 नाइयो को रखा गया है.मान्यता है कि भक्त अपने बाल दान करके  अपनी बुराइयां और पाप  यही छोड़ जाते .एक और मान्यता के अनुसार बाल दान करने से.कई गुना लक्ष्मी प्राप्त होती हैं. मन्नत पूरी होने पर भी लोग बाल दान करते है.

 तिरुपति बालाजी में  चढ़ने वाले बालों का क्या किया जाता है

बहुत से भक्तों के मन में यह सवाल उठता है कि बालाजी पर जो बाल दान किए जाते हैं उनका क्या होता है .वहां पर दान किए गए बाल अंतरराष्ट्रीय बाजार में करोड़ों में बिकते हैं .खासकर जो बाल  वर्जिन होते हैं.वर्जिन से भाव उन वालों पर किसी तरह का केमिकल ना लगा हो या कोई ट्रीटमेंट ना करवाई गई हो .इन बालों की कीमत कई गुना ज्यादा मिलती है.

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