GAYA JI ME SHRAD KYUN KARTE HAI गयाजी में श्राद्ध क्यों करते हैं

  हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष की शुरुआत पूर्णिमा तिथि से होती हैं और अमावस्या पर समापन होता है. पितृपक्ष के दौरान दिवंगत पूर्वजों की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है .पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है ,पिंडदान किया जाता है और तर्पण किया जाता है .


                           



वायु पुराण के अनुसार 

जिन लोगों का श्राद्ध गया(Gaya) में किया जाता है उन्हें मुक्ति प्राप्त होती है.पितृपक्ष में लोग  पिंडदान करते हैं पहला फाल्गु नदी, विष्णुपद और अक्षयवट में पिंडदान कर कर्मकांड को समापन करते हैं .माना जाता है भगवान राम और सीता जी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गयाजी में पिंडदान किया था.  वायु पुराण के अनुसार चाहे आप का  पुत्र हो या किसी और का ,जिसके नाम का पिंड दान गया जी में किया जाता है उसे मुक्ति अवश्य प्राप्त होती है.

पौराणिक कथा 

 पौराणिक कथा के अनुसार गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तप करके विष्णु भगवान से यह वरदान मांगा कि उनको देखने मात्र से लोगों के पाप कट जाए और उन्हें स्वर्ग प्राप्ति हो .भगवान विष्णु ने उसे वरदान दे दिया.

इससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा क्योंकि पापी से पापी  को जब उसके पाप को सजा मिलने लगती वह कहता मैंने गयासुर के दर्शन किए हैं .इस समस्या का समाधान करने के लिए धरमराज श्री ब्रह्मा जी के पास गए. 

ब्रह्मा जी गया सुर के पास गए और कहने लगे "मुझे यज्ञ करने हेतु पवित्र भूमि चाहिए ." गया सुर की नजर में उसके शरीर से पवित्र कुछ भी नहीं था .वह भूमि पर लेट गया और बोला आप मेरे ऊपर यज्ञ कर लीजिए .गया सुर का शरीर पांच कोस तक फैल गया .

उसके इस काम से भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए और उसको वरदान मांगने के लिए कहा.तो उसने कहा कि यहां पर श्राद्ध करने वालो को मुक्ति प्राप्त हो जाए. तो भगवान ने कहा इस स्थान को गया नाम से जाना जाएगा. और गया की पीठ पर भगवान विष्णु के पैरों के निशान आज भी देखने को मिलते हैं.वहां पर विष्णुपद नाम का मंदिर बना है.         

                               


 

मान्यता है कि पितृपक्ष में जो गया सुर की कहानी को सुनता है उसके पितृ प्रसन्न होते हैं . 

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