SHRI RAM BHAKT KA PERSANG श्री राम के भक्त का प्रसंग
एक बार वह कही कथा करने गए हुए थे. वहां पर एक सज्जन ने राम कथा वाचक को ऐसा करते देखा. उनके दिमाग पर तर्क हावी हो गया . कहने लगे आप जो कहते हैं ,'आइए हनुमान जी विराजे' तो क्या सच में हनुमान जी आते हैं .
राम कथावाचक कहने लगे यह मेरी आस्था है ,कि हनुमान जी जहां रामकथा होती है वहा जरूर आते हैं . इसलिए मैं हनुमान जी को गद्दी पर आमंत्रित करता हूं. राम कथावाचक कहने लगे कि आस्था को तर्क की कसौटी पर नहीं परखना चाहिए.
लेकिन वह सज्जन जिद पर अड़ गए , कि आपको अपनी आस्था साबित करनी होगी कि सच में हनुमान जी आते हैं . क्योंकि आप जहां भी जाते होंगे सब जगह ऐसा ही बोलते होंगे . कथावाचक ने बहुत समझाया मानो तो भगवान नहीं तो पत्थर . आप कहे तो मैं जहां कथा करनी छोड़ दूं,
लेकिन वह सज्जन नहीं माना और राम कथा वाचक कहने लगे ठीक है .मैं कल साबित करूंगा, कि हनुमानजी आकर गद्दी पर बैठते हैं .आप आज रात गद्दी को अपने साथ अपने घर ले जाना.
राम कथा वाचक और उस सज्जन के बीच की बात पूरे शहर में फैल गई और पहले से कई गुना ज्यादा संगत उस दिन कथा सुनने आई. अगले दिन राम कथा वाचक ने अपनी पूजा की ओर गद्दी पर हनुमान जी को आमंत्रित किया.
राम कथावाचक ने मन ही मन हनुमान जी से कहा कि अब मेरी आस्था की लाज रखना प्रभु और कहा, 'आइए हनुमान जी विराजे '.
उस सज्जन को आमंत्रित किया आप अब इस गद्दी को उठाइए. वह सज्जन आए और गद्दी उठाने के लिए झुके . पूरे पंडाल की नजरें उस सज्जन पर थी, आज तर्क जीतेगा या आस्था.
वह सज्जन पसीना से तर हो गये लेकिन गद्दी को ना उठाया. कुछ देर बाद वह राम कथावाचक के चरणों में गिर पड़े और अपनी हार मान ली और बताया कि गद्दी को उठाना तो दूर वह उसे छू भी नहीं पाया. राम कथा वाचक खुश थे के हनुमान जी ने उनकी आस्था की लाज रख ली.
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