TULSIDAS JI KA JIVAN PARICHAY

तुलसीदास जी का जीवन परिचय 


गोस्वामी तुलसीदास जी भारतीय साहित्य के महान कवि माने जाते हैं। उन्होंने बहुत से ग्रंथ लिखे लेकिन रामचरितमानस उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है जिस को उन्होंने अवधि भाषा में लिखा था। 

 तुलसी दास जी की जन्म तिथि

तुलसीदास जी का जन्म संवत 1558 की श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन अभुक्त मूल नक्षत्र में हुआ.

 तुलसी दास जी के माता -पिता

तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्माराम दुबे था.जो की सरयूपारीण ब्राह्मण थे . उनकी माता का नाम हुलसी  था.

 जन्म स्थान

कुछ विद्वानों का मानना है कि उनका जन्म प्रयाग के पास बांदा जिले में राजापुर नाम के गांव में हुआ था. लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि तुलसीदास जी का जन्म सोरों शुकरक्षेत्र में हुआ था. 

 तुलसी दास जी अद्भुत बालक

 तुलसीदास जी 12 महीने अपनी मां के गर्भ में रहे थे . जन्म के समय वह रोए नहीं थे . उनके मुख में से पहला अक्षर राम निकला था और उनके मुख में 32 दांत मौजूद थे . माना जाता है कि अद्भुत बालक को देखकर माता - पिता अमंगल की आशंका से डर गए थे .उनकी मां ने दशमी तिथि की रात को अपनी दासी चुनिया को इस बालक को  हरिपुर उसके ससुराल ले जाने को कहा और वह स्वयं अगले दिन चल बसी . 

तुलसीदास जी का पालन पोषण

  तुलसीदास जी का पालन पोषण  चुनिया नाम की उनकी मां की दासी ने किया .लेकिन जब वह 5 साल के थे तो वह दासी भी चल बसी और वह अनाथ हो गए. कहा जाता है कि मां पार्वती एक ब्राह्मणी का रूप धारण करके  हर दिन खाना खिलाने आती थी.

बचपन और शिक्षा , गुरु

भगवान शिव की प्रेरणा से श्री अनंतानंद जी के शिष्य श्री नरहर्यानंद जी ने इस बालक को ढूंढा और अपने साथ अयोध्या ले गए और उनका नाम राम बोला रखा.

  संवत 1562 माघ शुक्ल पंचमी  को उनका यज्ञोपवीत  संस्कार हुआ था.  उन्होंने गायत्री मंत्र का उच्चारण बिना सिखाए किया तो सब हैरान हो गए. नर हरि ने उन्हें राम मंत्र की दीक्षा दी थी . नरहरि के मुख से ही उन्होंने पहली बार श्री राम जी का चरित्र सुना था .उसके बाद तुलसीदास जी काशी में शेषासनातन जी से 15 वर्ष तक वेदों का अध्ययन किया . जहां से वह वापस अपने जन्मभूमि लौटे और विधि पूर्वक अपने पिता का श्राद्ध किया राम कथा सुनाने लगे

तुलसीदास जी के आराध्य देव

तुलसीदास जी के आराध्य देव श्रीराम है. वह राम जी के परम भक्त थे. उन्होंने पैदा होने के बाद पहला अक्षर राम बोला था.  माना जाता है कि उनका प्रिय शब्द राम है.  वह भगवान शिव  और माँ पार्वती  को अपने माता- पिता, गुरु मानते थे.

तुलसीदास जी का विवाह 

उनका विवाह भारद्वाज गोत्र के दीनबंधु पाठक की सुंदर कन्या रत्नावली से हुआ .सावन महीने के शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि को हुआ  .माना जाता है कि विवाह के कुछ साल बाद उन के घर एक पुत्र हुआ. उसका नाम तारक रखा गया था. लेकिन बचपन में ही उसकी मृत्यु हो गई. 

तुलसीदास जी का जीवन बदलने वाली घटना

 एक  बार जब उनकी पत्नी मायके गई तो वह भी चुपके से उनके पीछे चले गए .कहा जाता है कि रास्ते में एक नदी थी, रात होने के कारण कोई नदी पार कराने वाला नहीं था तुलसीदास जी ने  एक मुर्दे की मदद से  उस नदी को पार किया था और अपनी पत्नी के  मायके की दीवार पर  सांप को रस्सी समझकर चढ़ गए थे .इस बात के लिए उनकी पत्नी ने उन्हें धिक्कारा कि, जितनी असक्ति तुम्हारी मुझ में है ,अगर तुमने भगवान में दिखाई होती तो तुम्हारा  बेड़ा पार हो गया होता.यह वचन तुलसीदास जी  मन में लग गए और वह प्रयाग चले गए .उन्होंने गृहस्थ वेश त्याग दिया और साधु वेश धारण कर लिया .

तुलसीदास जी की हनुमान जी  और राम जी से मुलाकात

 माना  जाता है कि काशी में तुलसीदास  जी जब राम कथा करते थे .तब उनकी मुलाकात एक प्रेत से हुई .उसने तुलसीदास जी को हनुमान जी का पता बताया .तब तुलसीदास जी की  मुलाकात हनुमान जी से हुई . उन्होंने उन्हें राम जी के दर्शन कराने के लिए कहा तो हनुमान जी ने कहा था कि तुम्हें चित्रकूट में राम जी के दर्शन होंगे .मौनी अमावस्या के दिन बुधवार श्री राम जी ने उन्हें दर्शन दिए और  तब तुलसीदास जी चंदन घिस रहे थे. रामजी ने कहा बाबा चंदन दो . भगवान की छवि देख तुलसीदास जी की अपनी सूध भूल गए थे और भगवान राम ने स्वयं उनके माथे पर तिलक लगाया था . हनुमान जी ने सोचा कि तुलसीदास जी  राम जी को पहचान ना पाए तो, इसलिए तोते के रूप में  वहां आए और यह दोहा कहा  

चित्रकूट के घाट पर  भई संतन की भीर 

तुलसीदास चंदन घिसे  तिलक देत रघुवीर 

 रामकथा की प्रेरणा 

माना जाता है हनुमान जी की आज्ञा से तुलसीदास जी अयोध्या की ओर चल पड़े .रास्ते में प्रयाग में माघ मेला लगा था वह वहां कुछ दिन रुक गए .वहां उन्हें 6 दिन बाद भारद्वाज और   याज्ञवल्क्य मुनि के दर्शन हुए. प्रयाग में उन्होंने वही राम कथा सुनी जो बचपन में उनके गुरु ने सुनाई थी. वहां से वह काशी की ओर चल पडे़ और वहा रामकथा करने लगे . 

 भगवान शिव का सपने में आना 

माना जाता है कि जब तुलसीदास जी में कविता शक्ति का स्फुरण   हुआ तो अपनी पहली रचना उन्होंने संस्कृत में लिखी थी. लेकिन जो पद  रात को लिखते थे तो सुबह वह गायब हो जाते थे.  एक दिन भगवान शंकर ने उन्हें सपने में अपनी भाषा में रचना लिखने का आदेश दिया. भगवान शिव ने कहा अयोध्या जा कर काव्य रचना करो और वरदान दिया कि तुम्हारी रचना सामवेद के समान फल देने वाली होगी. 

  तुलसीदास जी की रचनाएं

 तुलसीदास जी ने अपने जीवन में अनेक ग्रंथों की रचना की

 रामचरितमानस

रामचरितमानस में उन्होंने राम जी के सुंदर चरित्र को दर्शाया है किसके  सात खंड हैं 

. गीतावली

 गीतावली में भी सात खंड हैं जिसमें राम जी का भावपूर्ण वर्णन है . 

पार्वती मंगल 

इसमें भगवान शिव और पार्वती जी के विवाह के बारे में बताया गया है इसमें 164 पद है.

जानकी मंगल

 इसमें राम- सीता के विवाह  का वर्णन है इसमें 124 पद है.

 हनुमान चालीसा

 इसमें दो  दोहे और 40  चौपाई हैं. यह हनुमान जी को समर्पित है. तुलसीदास जी ने इसे अकबर की  कैद में लिखा था.

गीतावली 

 गीतावली की रचना तुलसीदास जी ने सूरदास जी के अनुकरण पर की थी यह बृज भाषा में लिखी है.

 विनय पत्रिका 

 यह उनकी आखरी रचना ज्ञात होती है . यह प्रार्थना के रूप में लिखी गई है . श्री रामचंद्र जी ने अवश्य ही इसे स्वीकार किया होगा. 

बादशाह अकबर द्वारा कैद किए जाना

एक बार अकबर ने तुलसी दास जी को अपने दरबार बुलाया और अपने बारे में एक ग्रंथ लिखने के लिए कहा लेकिन तुलसी दास जी ने मना कर दिया. अकबर ने उन्हें कैद कर दिया. वही तुलसी दास जी ने हनुमान चालीसा की रचना की. कहते हैं कि पूरे महल को बन्दरों ने घेर लिया तो अकबर ने अपने सलाह कारों के कहने पर तुलसी दास जी को छोड़ दिया. तुलसी दास जी की रिहाई के बाद बंदर अपने आप वहां से चले गए. 

कलयुग के बाल्मीकि

नभादास ने उन्हें बाल्मीकि का अवतार बताया है. 

तुलसीदास जी का निधन 

  तुलसीदास जी असी घाट पर रहने लगे. माना जाता है कि  संवत 1680 में श्रावण कृष्ण तृतीया शनिवार के दिन वाराणसी में असी घाट पर उन्होंने राम राम कहते देह त्याग किया.

तुलसीदास जी ने  कृष्ण गीतावली ,हनुमान बाहुक ,संकट मोचन जैसी और भी बहुत सी रचनाएँ लिखी है. हनुमान चालीसा तुलसीदास जी की एक ऐसी रचना है जो कि संसार में सबसे बड़ी ज्यादा पढ़ी जाने वाली पुस्तकों  में से एक है .हनुमान चालीसा बहुत ज्यादा फलदाई है .लगभग हर हिंदू घर में यह पुस्तक होती है . तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में रामचरितमानस की रचना की . 

तुलसीदास जी के दोहे

यह भी पढ़े- तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना क्यों और कब की

हनुमान चालीसा तुलसीदास जी ने क्यों और कब लिखी


Comments

Popular posts from this blog

RAKSHA SUTRA MANTAR YEN BADDHO BALI RAJA

KHATU SHYAM BIRTHDAY DATE 2023

RADHA RANI KE 16 NAAM MAHIMA