TULSIDAS JI NA RAMCHRITMANAS ki rachna kab aur kyun ki
तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के बारे माना जाता है इस कि चौपाइयों में मंत्र तुल्य शक्तियां हैं . तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना कब और क्यों की
तुलसीदास जी की श्री राम के प्रति श्रद्धा
तुलसीदास जी एक महान हिंदू संत, समाज सुधारक ,दर्शनशास्त्री और भक्तिरस के कवि माने जाते है. तुलसीदासजी परम राम भक्त थे. उनकी राम जी के प्रति श्रद्धा उनके जन्म से ही दिख गई थी. माना जाता है कि अपने जन्म के समय वह रोए नहीं थे. उन्होंने पहला अक्षर राम बोला था इसलिए उनका नाम रामबोला पड गया.
उनके गुरु ने उन्हें राम नाम के गुरु मंत्र की दीक्षा दी थी. सबसे पहले उन्होंने ने राम जी का चरित अपने गुरु से ही सुना था.
पत्नी द्वारा धिक्कारे जाना
रामचरितमानस की रचना अपनी पत्नी के द्वारा धिक्कारे जाने के बाद की थी . जब उनकी पत्नी मायके गई थी तो वह भी उनके पीछे-पीछे चले गए और कहा जाता है कि वह सांप को रस्सी समझ कर दीवार पर चढ़ गए थे.उनकी पत्नी ने उनकी आसक्ति के लिए उन्हें धिक्कारा और कहा कि, "इतना प्रेम अगर भगवान के प्रति दिखाया होता तो तुम्हारा बेड़ा पार हो जाता". इससे तुलसीदास जी के मन में वैराग्य पैदा हो गया और उन्होंने गृहस्थ जीवन का त्याग कर दिया और सन्यासी हो गए थे .
माना जाता है तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना हनुमान जी के आदेश पर की थी. हनुमान जी ने ही तुलसीदास जी को श्री राम से चित्रकूट में मिलवाया था. और अयोध्या जाकर रामचरितमानस लिखने के लिए प्रेरित किया. माना जाता है कि जब तुलसीदास जी में कविता शक्ति का स्फुरण हुआ तो अपनी पहली रचना उन्होंने संस्कृत में लिखी थी. लेकिन जो पद रात को लिखते थे तो सुबह वह गायब हो जाते थे. एक दिन भगवान शंकर ने उन्हें सपने में अपनी भाषा में रचना लिखने का आदेश दिया . भगवान शिव ने अयोध्या जा कर काव्य रचना करने को कहा और वरदान दिया कि तुम्हारी रचना सामवेद के समान फल देने वाली होगी.
रामचरित मानस की रचना का समय
माना जाता है कि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना 1631 में मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में की थी. तुलसीदासजी ने अयोध्या में सम्पूर्ण रामचरितमानस की रचना की.
तुलसीदास जी ने जब रामचरितमानस शुरू की थी उस दिन चैत्र मास की रामनवमी दिन मंगलवार वैसा ही योग था, जैसा त्रेता युग में श्री राम जन्म के समय था. उस दिन तुलसीदास जी ने काव्य रचना शुरू की थी .2 वर्ष 7 महीने और 26 दिन में इस ग्रंथ की समाप्ति हुई. संवत 1633 के मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में राम विवाह के दिन सातों कांड पूर्ण हो गए.
ग्रंथ की समाप्ति के बाद तुलसीदास जी भगवान की आज्ञा से काशी चले गए. वहां उन्होंने भगवान विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा को सबसे पहले रामचरितमानस सुनाई.
कहा जाता है जब रात को पुस्तक मंदिर में रखी गई तो सुबह मंदिर के कपाट खुलने पर उस पर सत्यम शिवम सुंदरम लिखा पाया गया और नीचे भगवान शंकर की सही थी .वहां उपस्थित लोगों ने सत्यम शिवम सुंदरम की आवाज अपने कानों से सुनी थी.
रामचरितमानस से जुड़े रोचक तथ्य
रामचरित मानस में 7 कांड है.
बालकांड ,अयोध्या कांड ,अरण्यकांड,
किष्किंधा कांड, सुंदरकांड ,लंका कांड ,उत्तरकांड
रामचरितमानस में सबसे बड़ा काण्ड बालकाण्ड है.
सबसे छोटा काण्ड किष्किन्धाकाण्ड है.
रामचरितमानस में 27 श्लोक हैं
रामचरितमानस में 86 छंद हैं
रामचरितमानस में 207 सोरठा है.
रामचरितमानस में 1074 दोहे है.
रामचरितमानस में 4608 चौपाईयाँ है.
विश्वामित्र जी श्री राम और लक्ष्मण को 10 दिन के लिए राजा दशरथ से मांग कर ले गए थे.
राम सेतु का निर्माण 5 दिन में हुआ था.
पुष्पक विमान की चाल 400 मील प्रति घंटा थी.
भगवान शिव के धनुष का नाम पिनाक था.
तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की है. संस्कृत ,उर्दू , फारसी शब्दों का भी प्रयोग किया गया .
. माना जाता है कि तुलसीदास जी ने इसमें श्री राम के चरित्र की साधारण मनुष्य की तुलना में विवेचना की है इसलिए इसे रामचरितमानस कहते हैं.
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