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Showing posts from November, 2020

RAMCHARITMANAS BALKAND

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रामचरितमानस   की रचना तुलसीदास जी ने की थी. बालकांड  तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस का एक खण्ड (भाग, सोपान) है. तुलसीदास जी कहते हैं कि मैं श्री राम जी के गुणों वर्णन करना चाहता हूँ . राम का नाम ही है जिसे भगवान शिव मां पार्वती के साथ जपते रहते हैं. माँ सती का भ्रम और श्री राम की परीक्षा लेना एक बार त्रेता युग में भगवान शिव और  मां सती अगस्त्य ऋषि के आश्रम गए . वहां उन्होंने सुंदर राम कथा सुनी. भगवान शिव और सती जब अगस्त्य ऋषि से विदा मांग कर वापिस कैलाश पर्वत पर जा रहे थे  तो रास्ते में दंडक वन में भगवान श्री राम मां सीता को ढूंढ रहे थे.क्योंकि रावण उनका अपहरण करके ले गया था?  भगवान राम  का मां सीता के लिए वियोग देखकर मां सती के मन में संदेह उत्पन्न हो गया. क्या यह सचमुच भगवान विष्णु के अवतार हैं ! यह तो साधारण मनुष्य की तरह अपनी पत्नी के लिए वियोग  कर रहे हैं. भगवान शिव ने उन्हें बहुत समझाया लेकिन मां सती के मन की शंका दूर नहीं हुई . उन्होंने ने श्रीराम की परीक्षा लेने की सोची.  वह माँ सीता जी का  रूप धारण कर के चल  पडी़. भगवान श्रीराम ने उनको देख  कर प्रणाम किया और हाथ जोड़कर पूछा मा

SHRI RAM KE MATA KAUSHLYA PITA DASHRATH KI KATHA

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 माता कौशल्या और पिता दशरथ को श्री राम के माता पिता बनने का सौभाग्य कैसे प्राप्त हुआ  श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। उनके पिता का नाम दशरथ और माता का नाम कौशल्या था। तुलसीदास जी की रामचरितमानस के अनुसार भगवान शिव ने  मां पार्वती को बताया कि  भगवान श्रीराम ने  कौशल्या और दशरथ के घर  पुत्र रूप में जन्म क्यों लिया?  भगवान कहते हैं स्वयंभू मनु और शतरूपा उनकी पत्नी जिन से मनुष्य की सृष्टि हुई . राजा उत्तानपाद उनके पुत्र हुए और हरि भक्त ध्रुव जी उनके पुत्र हुए .देवहुति उनकी कन्या थी जो कर्दम ऋषि की पत्नी थी उन्होंने भगवान कपिल को अपने  गर्भ में धारण किया. कपिल भगवान ने सांख्यशास्त्र का वर्णन किया.  एक दिन राजा मनु के मन में वैराग्य जाग गया और अपने पुत्र को राजपाठ सौंप स्वयं नैमिषारण्य तीर्थ चले गए. वहां उन्होंने घोर तपस्या की और उनके मन में अभिलाषा थी कि वह स्वयं अपनी आंखों से भगवान को देखें.उन्होंने कई हजार वर्षों तक प्रभु की तपस्या की.  आकाशवाणी हुई कि वर मांगो. प्रभु भगवान विष्णु प्रकट हुए तो मनु शतरूपा एक टक उनको देखते ही रह गए. भगवान ने उनसे वर मांगने को कहा तो व

RAVAN KA PURV JANAM KI KAHANI

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तुलसीदास जी की रामचरितमानस के अनुसार भगवान शिव  माँ पार्वती जी से कहते हैं श्रीराम के अवतार लेने का एक कारण रावण नाम के राक्षस ने देवताओं को अपने अधीन कर लिया और जहां भी यज्ञ, श्राद्ध,वेद पुराण की कथा होती वहां उसके भेजे राक्षस बहुत उत्पात मचाते. पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ गए तो पृथ्वी गाय का रूप धारण करके ब्रह्मा जी के पास गई .ब्रह्मा जी के साथ मिलकर सब ने भगवान विष्णु की स्तुति की .तब आकाशवाणी हुई थी मैं सूर्यवंश में मनुष्य रूप में उतार लूंगा .यह सुनकर पृथ्वी निर्भय हो गई.  रावण के पूर्व जन्म की कहानी तुलसीदास जी की रामचरितमानस के अनुसार संसार में एक प्रसिद्ध कैकय देश था .वहां सत्यकेतु नाम का राजा राज्य करता था. उसके दो वीर पुत्र थे- प्रताप भानु और अरिमर्दन जिसकी बुजाओं में अपार बल था . राजा प्रताप भानु को राज्य सौंप कर स्वयं वन में भक्ति करने चला गया . प्रताप भानु के राज्य में पाप का लेश मात्र भी नहीं था . उसका धर्म रूचि नाम का एक मंत्री था .जो बहुत बुद्धिमान था .इस प्रकार प्रताप भानु ने अपने बलवान और वीर भाई और बुद्धिमान मंत्री के दम पर सातवें द्वीपों पर अपना एकमात्र राज्य स्थापित कर द

SUB ISHWAR KI KRIPA HAI MOTIVATIONAL STORY

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सब ईश्वर की कृपा है  एक राजा के पास दो भिखारी प्रतिदिन भिक्षा लेने आते थे. राजा दोनों को  एक  सी  भिक्षा देता था. एक भिखारी कहता," सब  राजा जी की कृपा हैं ". दूसरा कहता, "सब ईश्वर की कृपा है ".राजा को बहुत अटपटा लगता कि दान मैं देता हूं कृपा ईश्वर की कहता है .लेकिन ईश्वर से तो अब प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता था. एक दिन राजा सोचता है कि,जो भिखारी कहता है, "राजा जी की कृपा है".मैं चुपचाप उसकी मदद कर दूंगा. क्योंकि दोनों इकट्ठे आते हैं, इसलिए भिक्षा तो एक सी ही देनी पड़ेगी ? अगर एक को ज्यादा दी तो मेरा नाम खराब होगा . लोग कहेंगे राजा पक्षपात करता है. अगले दिन राजा ने दोनों को एक सा दान दिया ,लेकिन जो भिखारी कहता ,"राजा जी की कृपा है ".उस भिखारी को  राजा कहता है कि तुम आज उस मार्ग से जाओ जिससे मैं रोज जाता हूं.जब वह भिखारी इस बाग से निकल रहा था तो वहां के फूलों की सुगंध बाग की साफ-सफाई देखकर मंत्रमुग्ध हो गया .  वह सोचने लगा कि इतना स्वच्छ मार्ग है .क्यों ना मैं आंख बंद करके जाऊं ? ताकि मैं फूलों की सुगंध अच्छे से महसूस कर सकूं. अगले दिन जब फिर से भीख म

LAKSHMI JI KE SATH GANESH JI KI POOJA KYUN KI JATI HAI

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 कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है. इस दिन मां लक्ष्मी जी के साथ धन के देवता कुबेर जी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है. इस दिन भगवान श्री राम 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या वापस आए थे, तो अयोध्या वासियों ने नगर को दीपों से सजाया था. दिवाली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों की जाती है  गणेश जी रिद्धि- सिद्धि और बुद्धि के देवता हैं. गणेश जी की पत्नियां रिद्धि-सिद्धि हैं और दो पुत्र शुभ- लाभ है.  मां लक्ष्मी धन-संपत्ति की देवी हैं. माना जाता है मां लक्ष्मी उसी के पास टिकती है जिसके पास बुद्धि होती है . इसीलिए लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा करने  का विधान है.   एक पौराणिक कथा   एक  पौराणिक कथा के अनुसार लक्ष्मी जी को एक बार धन की देवी होने का अभिमान हो गया . विष्णु जी ने उनके अभिमान को दूर करने के लिए कहा कि, "स्त्री तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक मां नहीं बन जाए". लक्ष्मी जी का कोई भी पुत्र नहीं था. इसलिए वह मां पार्वती के पास गई और उनसे एक पुत्र को गोद देने के लिए कहा. मां पार्वती जी ने लक्ष्मी जी का दर्द समझते हुए पुत्र गणेश को

ISHWAR KA CHAMATKAAR (MAGIC OF GOD) ईश्वर का चमत्कार

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  एक बार एक छोटा सा बच्चा शहर की सबसे बड़ी दवाइयों की मार्केट में दुकान- दुकान जा कर कुछ मांग रहा था. लेकिन हर दुकान से वह निराश होकर लौट आता . एक सज्जन सड़क किनारे खड़े हुए उसे बड़े ध्यान से देख रहे थे .वह जिस दुकान के बाहर खडे़ थी जब वहां से भी निराशा के साथ बाहर निकला तो, उनसे रहा नहीं गया उन्होंने बच्चे से पूछा तुम कौन सी दवाई ढूंढ रहे हो, जो  पूरी मार्केट में किसी के पास नहीं है. उस बच्चे की बात सुनकर वह सज्जन अपनी आंखों से आंसू नहीं रोक पाए . उस बच्चे ने बताया कि उसकी मां बहुत बीमार है उसके पिता ने बताया  कि  उसकी मां का दिल का ऑपरेशन होना है.  उसके पिता का कहना है कि उनके पास पैसे नहीं हैं .अब "ईश्वर का चमत्कार" ही तुम्हारी मां को बचा सकता है . इसलिए मैंने अपनी गुल्लक तोड़ी .उसमें से कुछ सिक्के निकले .उन सिक्कों से ही मैं हर एक दुकानदार से" ईश्वर का चमत्कार" मांग रहा हूं . लेकिन कोई डांट कर भगा देता है, तो कोई हंस कर आगे जाकर ढूंढने को कहता है . वह बच्चा कहता है, "मैं हार नहीं मानूंगा, कोशिश करता रहूंगा".कहीं से तो "ईश्वर का चमत्कार" मिलेग

SHIVA AUR SATI KI KATHA IN HINDI

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 भगवान शिव और माता सती की कथा  तुलसीदास जी की रामचरितमानस के अनुसार एक बार त्रेता युग में भगवान शिव और  मां सती अगस्त्य ऋषि के आश्रम गए . वहां उन्होंने सुंदर राम कथा सुनी. भगवान शिव और सती जब अगस्त्य ऋषि से विदा मांग कर वापिस कैलाश पर्वत पर जा रहे थे  तो रास्ते में दंडक वन में भगवान श्री राम मां सीता को ढूंढ रहे थे.क्योंकि रावण उनका अपहरण करके ले गया था?  भगवान राम  का मां सीता के लिए वियोग देखकर मां सती के मन में संदेह उत्पन्न हो गया. क्या यह सचमुच भगवान विष्णु के अवतार हैं ! यह तो साधारण मनुष्य की तरह अपनी पत्नी के लिए वियोग  कर रहे हैं. भगवान शिव ने उन्हें बहुत समझाया लेकिन मां सती के मन की शंका दूर नहीं हुई . उन्होंने ने श्रीराम की परीक्षा लेने की सोची.  वह माँ सीता जी का  रूप धारण कर के चल  पडी़. भगवान श्रीराम ने उनको देख  कर प्रणाम किया और हाथ जोड़कर पूछा मां भगवान शिव कहां हैं ?आप अकेली वन में विचरण क्यों कर रही हैं ? यह सुनते ही मां सती का सारा अज्ञान दूर हो गया . मां सती चुपचाप वापस चली आई. रास्ते में उन्होंने मां सीता ,श्री राम और लक्ष्मण जी के एक साथ दर्शन किए .उनके मन का स

SHRI KRISHAN NE HANUMAN JI KI madad se satyabhama, gurud ji aur sudarshan chakkar ka gamand kase tora

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श्री कृष्ण ने हनुमान जी की मदद से सत्यभामा ,गरूड़ जी और सुदर्शन चक्र के घमंड कैसे चूर-चूर किया एक बार भगवान श्री कृष्ण की पत्नी सत्यभामा को अभिमान हो गया कि वह सबसे सुंदर है. इस लिए भगवान ने उनके कहने पर स्वर्ग से पारिजात का वृक्ष पृथ्वी पर ले आए. वह एक बार भगवान श्री कृष्ण के साथ सिंहासन पर बैठी थी. श्री कृष्ण से पूछने लगी प्रभु जब आपने त्रेता युग में श्री राम का अवतार लिया था . क्या सीता जी भी मुझ जैसी सुंदर थी?  उनके पास में गरुड़ जी खड़े थे .उनको भी अभिमान  था कि मेरी गति सबसे ज्यादा तेज है . मुझसे तेज गति और किसी की भी नहीं है . इसीलिए भगवान श्री हरि हर जगह मुझे साथ ले जाते हैं . सुदर्शन चक्र को घमंड हो गया कि भगवान ने कई दुष्टों का संहार मेरे द्वारा किया है. मैं भगवान का सबसे शक्तिशाली  शस्त्र हूँ.  भगवान श्री कृष्ण ने सोचा कि  इन तीनों के अहंकार मिटाने का समय आ गया है.  भगवान श्री कृष्ण ने गरुड़ जी से कहा जा कर हनुमान जी से कहो कि भगवान श्री राम माता सीता के साथ आपसे मिलने की प्रतीक्षा द्वारिका जी में कर रहे हैं . सत्यभामा से कहा, "तुम सीता जी की तरह तैयार हो जाओ . स्वयं