RAVAN KA PURV JANAM KI KAHANI

तुलसीदास जी की रामचरितमानस के अनुसार भगवान शिव  माँ पार्वती जी से कहते हैं श्रीराम के अवतार लेने का एक कारण रावण नाम के राक्षस ने देवताओं को अपने अधीन कर लिया और जहां भी यज्ञ, श्राद्ध,वेद पुराण की कथा होती वहां उसके भेजे राक्षस बहुत उत्पात मचाते. पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ गए तो पृथ्वी गाय का रूप धारण करके ब्रह्मा जी के पास गई .ब्रह्मा जी के साथ मिलकर सब ने भगवान विष्णु की स्तुति की .तब आकाशवाणी हुई थी मैं सूर्यवंश में मनुष्य रूप में उतार लूंगा .यह सुनकर पृथ्वी निर्भय हो गई. 

Ram ji ka roop me vishnu ji ne liya avtar


रावण के पूर्व जन्म की कहानी

तुलसीदास जी की रामचरितमानस के अनुसार संसार में एक प्रसिद्ध कैकय देश था .वहां सत्यकेतु नाम का राजा राज्य करता था. उसके दो वीर पुत्र थे- प्रताप भानु और अरिमर्दन जिसकी बुजाओं में अपार बल था . राजा प्रताप भानु को राज्य सौंप कर स्वयं वन में भक्ति करने चला गया .

प्रताप भानु के राज्य में पाप का लेश मात्र भी नहीं था . उसका धर्म रूचि नाम का एक मंत्री था .जो बहुत बुद्धिमान था .इस प्रकार प्रताप भानु ने अपने बलवान और वीर भाई और बुद्धिमान मंत्री के दम पर सातवें द्वीपों पर अपना एकमात्र राज्य स्थापित कर दिया . 

एक बार राजा वन में शिकार खेलने गया .वहां उसने एक विशाल सूअर को देखा.सूअर का शिकार करने के लिए राजा उसके पीछे-पीछे घने जंगल में चला गया .सूअर एक ऐसी गुफा में घुस गया जहां राजा का जाना मुश्किल था . राजा को निराश होकर वापस आना पड़ा.

राजा भुख-प्यास से  व्याकुल किसी आश्रय को ढूंढ रहा था तो उसे एक साधु की कुटिया देखी. राजा वहां चला गया. वह साधु वास्तव में एक राजा था जिसे राजा प्रताप भानु ने हरा दिया था .वह युद्ध से भागकर इस कुटिया में साधु वेश में रह रहा था .उसने राजा को पहचान लिया और राजा का अच्छे से सत्कार किया . 

तपस्वी ने राजा से कहा ,"रात बहुत हो गई है, आज रात इस कुटिया में ही रह जाओ" . राजा ने तपस्वी से उनका नाम पूछा तो उसने कहा कि, "मेरा नाम एकतनु है" . राजा ने उसके नाम का अर्थ पूछा ,  तपस्वी राजा ने कहा कि जब से सृष्टि उत्पन्न हुई थी .तब मेरी उत्पत्ति हुई थी . तब से मैंने दूसरी देह धारण नहीं की इसलिए मेरा नाम एकतनु है . 

उसने राजा को धर्म-कर्म ,वेदों की बहुत सी बातें सुना कर अपने वश में कर लिया .राजा उसकी बातों में आ गया और उसे कहने लगा कोई ऐसी कृपा करें कि मुझे कोई शत्रु जीत ना पाए और पृथ्वी पर मेरा एकमात्र राज्य हो.

तपस्वी ने कहा राजा ब्राह्मण कुल को छोड़कर काल भी तुम्हारे चरणों में सिर झुकाएगा. ब्राह्मण कुल के शाप के कारण ही तुम्हारा विनाश हो सकता है .राजा ने तपस्वी से उपाय पूछा ," क्या करने से ब्राह्मणों के क्रोध से सदा के की मेरी रक्षा हो "? 

 वह कपटी राजा कहता है कि अगर मैं रसोई बनाऊ और तुम ब्राह्मणों को परोसो तो सब ब्राह्मण तुम्हारे अधीन हो जाएंगे. तुम एक लाख ब्राह्मणों को भोजन का निमंत्रण भेज देना मैं आकर भोजन बनाऊंगा और तुम परोस देना . 

मैं तुम्हारे पुरोहित के रूप में आऊंगा और एकांत में तुमको कथा सुना लूंगा तब मुझे पहचान लेना .राजा तपस्वी की बात मान गया और सो गया. उसी समय कालकेतु नाम का राक्षस वहा आया जिसने सूअर बन राजा को फंसाया  था. वह बहुत परपंच और माया जानता था . उसके 100 पुत्र थे 10 भाई थे .जो देवताओं और ब्राह्मणों को दुख देते थे. राजा ने उन सब को मार डाला था . 

अपने उसी वैर का बदला लेने के लिए उसमें ने तपस्वी राजा के साथ मिलकर एक षड्यंत्र रचा था. उसमें तपस्वी राजा को दिलासा दिया कि अब हमारे शत्रु का नाश होगा . मैं आजसे चौथे दिन तुमको मिलूंगा . उस राक्षस ने माया से राजा को घोड़े सहित उसके घर पहुंचा दिया .

उसके पुरोहित का अपहरण करके स्वयं उसका स्थान ले लिया और चौथे दिन राजा से मिला और उसे सब बातें स्मरण कराई. राजा को आभास नहीं हुआ कि उसके गुरु के वेश में राक्षस कालकेतु है. उसने तुरंत एक लाख ब्राह्मणों को कुटुंब सहित निमंत्रण भेजें . 

उस मायावी राक्षस ने अनगिनत पकवान बनाएं .उसमें पशुओं और ब्राह्मणों का मांस मिला दिया. जब सभी ब्राह्मणों को राजा खाना परोसने लगा तो कालकेतु ने अपनी माया से आकाशवाणी की, कि ब्राह्मणों इस भोजन को मत कर खाओ .इसकी रसोई में ब्राह्मणों का मांस बना है .सभी ब्राह्मण उसी समय उठ खड़े हुए और उन्होंने राजा को श्राप दिया कि तुम परिवार सहित राक्षस बन जाओ. 

उसके तुरंत बाद दैवीय आकाशवाणी हुई जो कुछ भी हुआ उसमें राजा का कोई दोष नहीं है. राजा जब रसोई में जाकर देखता हैं तो वहां ना तो भोजन था ना ही रसोईया . राजा ने सारी बात ब्राह्मणों को बताई.  ब्राह्मणों ने कहा कि ब्राह्मणों का श्राप टाले नहीं टल सकता.

तपस्वी राजा ने प्रताप भानु के सभी शत्रुओं को पत्र भेजकर उन्हें युद्ध करने का निमंत्रण भेजा .उस युद्ध में सत्यकेतु के कुल में से कोई भी नहीं बचा .   बाह्मणों का श्राप झूठा कैसे हो सकता था . 

वही राजा परिवार सहित रावण नाम का राक्षस हुआ. अरिमर्दन नाम का उसका छोटा भाई कुंभकरण हुआ .और उसका मंत्री धर्म रुचि विभीषण नाम का उसका छोटा भाई हुआ . उसके पुत्र और सेवक भी भयानक राक्षस हुए . यद्यपि वे सभी पुलस्त्य ऋषि के पवित्र कुल में पैदा हुए थे .लेकिन ब्राह्मणों के श्राप के कारण वह सब पाप रूप हुए. 

रावण ने देवताओं को अपने अधीन कर लिया और जहां भी यज्ञ, श्राद्ध,वेद पुराण की कथा होती वहां उसके भेजे राक्षस बहुत उत्पात मचाते. पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ गए तो पृथ्वी गाय का रूप धारण करके ब्रह्मा जी के पास गई .ब्रह्मा जी के साथ मिलकर सब ने भगवान विष्णु की स्तुति की .तब आकाशवाणी हुई थी मैं सूर्यवंश में मनुष्य रूप में अवतार लूंगा .यह सुनकर पृथ्वी निर्भय हो गई. 

भगवान श्रीराम ने चैत्र का महीना ,नवमी तिथि, शुक्ल पक्ष अभिजीत मुहूर्त में अवतार लिया.

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