SHIVA AUR SATI KI KATHA IN HINDI

 भगवान शिव और माता सती की कथा 


तुलसीदास जी की रामचरितमानस के अनुसार एक बार त्रेता युग में भगवान शिव और  मां सती अगस्त्य ऋषि के आश्रम गए . वहां उन्होंने सुंदर राम कथा सुनी. भगवान शिव और सती जब अगस्त्य ऋषि से विदा मांग कर वापिस कैलाश पर्वत पर जा रहे थे  तो रास्ते में दंडक वन में भगवान श्री राम मां सीता को ढूंढ रहे थे.क्योंकि रावण उनका अपहरण करके ले गया था? 

भगवान राम  का मां सीता के लिए वियोग देखकर मां सती के मन में संदेह उत्पन्न हो गया. क्या यह सचमुच भगवान विष्णु के अवतार हैं ! यह तो साधारण मनुष्य की तरह अपनी पत्नी के लिए वियोग  कर रहे हैं. भगवान शिव ने उन्हें बहुत समझाया लेकिन मां सती के मन की शंका दूर नहीं हुई . उन्होंने ने श्रीराम की परीक्षा लेने की सोची.

 वह माँ सीता जी का  रूप धारण कर के चल  पडी़. भगवान श्रीराम ने उनको देख  कर प्रणाम किया और हाथ जोड़कर पूछा मां भगवान शिव कहां हैं ?आप अकेली वन में विचरण क्यों कर रही हैं ? यह सुनते ही मां सती का सारा अज्ञान दूर हो गया . मां सती चुपचाप वापस चली आई. रास्ते में उन्होंने मां सीता ,श्री राम और लक्ष्मण जी के एक साथ दर्शन किए .उनके मन का सारा अज्ञान दूर हो गया .

अब उन्हें  डर सताने लगा भगवान शिव से  जाकर क्या कहेंगी. भगवान पूछते हैं क्यों सती ले ली परीक्षा ? माँ सती डर से झूठ बोल देती हैं . मैंने तो परीक्षा ली ही नहीं है. 

भगवान शिव अपने दिव्य दृष्टि से सारा वृत्तांत जान लेते हैं और कहते हैं सती ने मां सीता का रूप धर के ठीक नहीं किया .क्योंकि भगवान शिव मां सीता को मां के स्वरूप में मानते हैं. भगवान शिव ने मन ही मन प्रतिज्ञा ली की सती के साथ पति- पत्नी के रूप में भेट नहीं हो सकती. 

रास्ते में अकाशवाणी हुई  आप सच्चे राम भक्त हैं. ऐसी प्रतिज्ञा केवल आप ही कर सकते हैं. मां सती को चिंता सताने लगी कि भगवान ने ऐसी क्या प्रतिज्ञा की है . लेकिन अपनी गलती के कारण भगवान शिव से कुछ भी पूछ नहीं पाई. 

कैलाश पहुंचकर भगवान समाधि में बैठ गए और मां सती मन ही मन अपनी गलती पर पश्चाताप करने लगी . मैंने भगवान राम जी पर संदेह क्यों किया ? भगवान शिव के वचन को क्यों नहीं माना. श्री राम से प्रार्थना करने लगी कुछ ऐसा हो जाए कि मेरी देह छूट जाए.

उसी समय मां सती के पिता दक्ष को ब्रह्मा जी ने प्रजा पतियों का नायक बना दिया . दक्ष को इस बात का अभिमान हो गया इतना बड़ा पद आज तक किसी को नहीं मिला. दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया.  यज्ञ का भाग लेने के लिए सभी देवताओं को निमंत्रण भेजा . 

जब सती ने देखा कि आकाश मार्ग से सभी अपने-अपने विमानों में जा रहे हैं . उन्होंने पूछा भगवान शिव से पूछा कि यह सब कहां जा रहे हैं. तो शिवजी ने बताया कि तुम्हारे पिता दक्ष प्रजापति बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे हैं .लेकिन मुझ से विरोध के कारण मुझे नहीं बुलाया क्योंकि एक बार ब्रह्मा जी की सभा में वह मुझ से अप्रसन्न हो गए थे. 

माँ सती ने बिना बुलाए ही अपने पिता दक्ष के यज्ञ में जाने के लिए भगवान शिव से अनुमति मांगी. भगवान शिव ने कहा मित्र, पिता ,गुरु और स्वामी के घर बिना बुलाए जा सकते हैं. लेकिन जब आपस में विरोध चल रहा हो तो स्नेह  नहीं मिलेगा .मर्यादा भंग होगी .लेकिन जब किसी भी तर्क से सती नहीं मानी तो भगवान शिव ने दो गणों  को उनके साथ भेज दिया. 

वहां पहुंचकर सती ने यज्ञ में भगवान शिव का भाग नहीं देखा तो उनका शरीर क्रोध की अग्नि में जलने लगा . वह अपने पिता द्वारा किया गया पति का अपमान न सह सकी और हवन कुंड की अग्नि को अपना देह त्याग कर दिया. भगवान शिव को समाचार मिला तो उन्होंने वीरभद्र को वहां भेजा और यज्ञ का विध्वंस कर दिया.दक्ष की भी वही गति हुई जो शिवद्रोही की होनी चाहिए .

सती ने मरते समय श्रीहरि से यह वरदान मांगा था कि उनकी प्रीति भगवान शिव के लिए जन्म - जन्म तक रहें .इसलिए अगले जन्म में उन्होंने हिमाचल के घर में माँ पार्वती के रूप जन्म लिया . जब नारदजी पर्वतराज हिमालय के घर गए तो हिमाचल राज ने उनसे अपनी पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा. 

नारद जी ने कहा तुम्हारी पुत्री सारे जगत में पूज्य होगी .संसार की स्त्रियों उनका  नाम लेकर पतिव्रत रूपी तलवार की धार चढ़ जाएगी . नारद जी ने कहा इसके हाथ में ऐसी रेखा है इसे योगी ,जटाधारी ,नंगा, अमंगल वेश वाला पति मिलेगा. 

यह सुन कर दोनों पति -पत्नी हिमाचल और माँ पार्वती की माँ मैना ने पूछा इसका निवारण क्या है ?नारद जी ने कहा है विधाता ने जो लिख दिया इसे कोई नही मिटा सकता . नारद जी ने प्रेरणा दी की इसकी शादी भगवान शिव के साथ कर दो. जो अवगुण है वह गुण बन जाएंगे. परंतु शिव भक्ति कठिन है . पार्वती जी ने नारद जी के कहने पर भगवान शिव की  कठिन तपस्या की .

भगवान राम ने शंकर जी से पार्वती का पुनर्जन्म सुनाया और उनसे विवाह करने की विनती की .भगवान शिव ने   सप्त ऋषियों को पार्वती की परीक्षा लेने भेजा.सप्त ऋषियों ने कहा, "तुम नारद के कहने पर इतनी घोर तपस्या कर रही हो ".क्या नारद के कहने पर भी किसी का घर बसा है? माँ पार्वती जी ने जवाब दिया मैं मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान चुकी  हूं .

नारद जी स्वयं आकर भी कह दे तो भी मैं अपना हठ नहीं छोडूंगी .सप्त ऋषि ने हिमाचल को पार्वती को लेने भेजा और स्वयं भगवान शिव को सारा वृत्तांत सुनाया .

उसी समय तारक नाम का एक राक्षस हुआ उसने देवताओं को युद्ध में हरा दिया. वह अपने आप को अजर अमर समझता था. ब्रह्मा जी ने देवताओं को बताया कि इस की मृत्यु शिवपुत्र द्वारा होगी. सती ने पार्वती के रूप में हिमाचल के घर में जन्म ले लिए हैं . 

भगवान शिव  तो घोर समाधि में है . देवताओं ने कामदेव को भगवान शिव की समाधि भंग करने के लिए भेजा. जब कामदेव ने भगवान शिव के हृदय में बाण  छोड़ा तो भगवान शिव की समाधि टूट गई और वह कामदेव के इस काम से क्रोधित हो गए . अपना तीसरा नेत्र खोला और कामदेव भस्म हो गया . 

अपने पति की यह दशा देखकर उसकी पत्नी रति भगवान शिव  से विनती करने लगी .उनके रुदन को देखकर भगवान शिव ने कहा आज से तेरे पति का नाम अनंड्ग होगा.  भगवान कृष्ण जब अवतार लेंगे तो उनका पुत्र प्रद्युमन तुम्हारा पति होगा . 

ब्रह्मा ,विष्णु सहित सभी देवता भगवान  शिव से कहने लगे सभी अपनी आंखों से आपका शुभ विवाह देखना चाहते हैं. भगवान शिव ने श्री राम को वचनों को याद किया और हां कर दी .सप्त ऋषियों को हिमाचल के पास भेजा .उन्होंने शुभ दिन, शुभ नक्षत्र ,शुभ घड़ी से शोधवा कर लगन निश्चित कर दिया.  शिव जी के गणों ने उनका श्रृंगार किया. जटाओं का मुकुट, सांपों के कुण्डल, शरीर पर विभूति रमायी, गले में विष और नर मुण्डों की माला पहन कर बैल पर सवार हो कर चल पडे़.

जब पार्वती जी की मैया भगवान शिव की आरती उतारने गई तो भगवान के भयानक रूप को देखकर  सोचने लगी   मैंने नारद जी का ऐसा क्या बिगाड़ा था ? जो नारद ने पार्वती को शिव से विवाह करने के  लिए कठिन तपस्या करने को कहा. 

तब नारद स्वयं पधारे और उन्होंने मैना को समझाया कि  पार्वती जी स्वयं जगत जननी भवानी है और उन्हें सती के पुनर्जन्म की कहानी सुनाई. भगवान शिव ने फिर उन्हें अपने दिव्य रुप के दर्शन दिए .ऋषियों ने फिर वेदों में जैसी लिखी थी वैसे शादी कराई. हिमाचल में उचित दान, आदर और सम्मान के साथ बारात की विदाई की.

भगवान शिव


अचलेश्वर महादेव धाम बटाला "पंजाब"

यह भी पढे़- देव भूमि हिमाचल में स्थित शिव बाड़ी धाम

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