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Showing posts from December, 2020

SITA SAWAYAMBAR KA SANDESH (nimantran) ayodhya kyyn nahi beja gaya

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क्या आप जानते हैं सीता स्वयंवर में राजा जनक ने राजा दशरथ के राज्य अयोध्यापुरी में  निमंत्रण क्यों नहीं भेजा ?  इसके पीछे एक पौराणिक कथा है.  माना जाता है कि राजा जनक के राज्य में एक व्यक्ति शादी के बाद अपनी पत्नी से मिलने ससुराल जा रहा था . रास्ते में एक जगह दलदल आ गई. उसमें एक गाय मरने के कगार पर फंसी हुई थी .उस व्यक्ति ने सोचा कि यह गाय तो मरने ही वाली है .उसने गाय पर पैर रखे और दलदल वाला रास्ता पार कर लिया.  गाय ने मरने से पहले उसे श्राप दिया जिसे तुम मिलने जा रहा है उसे देखते ही वह मर जाए .और इतना कहते ही गाय मर गई. वह व्यक्ति इस श्राप से बहुत डर गया और अपने ससुराल पहुंच कर पीठ करके  अपनी पत्नी के घर के बाहर बैठ गया और आंखें बंद कर ली . क्योंकि उसे गाय का श्राप याद आ रहा था जिस से तू मिलने जा रहा है उसे देखते ही वह मर जाए. जब पत्नी को यह बात पता चली तो वह कहने लगी आप मेरी तरफ देखो ऐसा कुछ नहीं होगा.  पत्नी की ओर  देखते ही उसकी आंखों की रोशनी चली गई. पत्नी अपनी समस्या लेकर राजा जनक के द्वार पहुंची और राजा जनक को इस समस्या का समाधान करने के लिए कहा.  राजा जनक ने बहुत से विद्वान बुलाए

GAUTAM BUDDHA AND ANGULIMAL STORY IN HINDI

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गौतम बुद्ध और अंगुलिमाल डाकू की कहानी   गौतम बुद्ध और अंगुलिमाल की कहानी जो सिद्ध करती है कि गुरु या मार्ग दर्शक अगर सच्चा हो तो अंगुलिमार जैसा खूंखार और बर्बर डाकू  जिसमें 999 लोगों की हत्या की थी सच्चे गुरु का मार्गदर्शन मिलने पर वह उनका शिष्य बन गया. दूसरी और महात्मा बुद्ध जिन्हें लोगों ने बोला इस रास्ते से मत जाना नहीं तो अंगुलिमाल मार देगा. महात्मा बुद्ध बोले वो संत ही क्या जो मृत्यु के भय से रास्ता बदल ले . मुझे लगता है उसे मेरी जरूरत है मैं अवश्य जाऊंगा . Gautam Buddha story in hindi: एक बार  मगध राज्य में एक खूंखार डाकू था जो भी जंगल से गुजरता है उसे जान से मार देता है और उसकी उंगली काट कर अपने गले में पहनी माला में पिरो लेता है  . इसी कारण उसका नाम अंगुलिमाल पड़ा था.उसके आतंक के कारण कोई भी संध्या के बाद घर से बाहर नहीं जाता .   एक दिन संयोग वश महात्मा बुद्ध उस गांव में गए . उन्होंने अनुभव किया कि गांव के लोगों के मन में किसी बात की दहशत है .उन्होंने गांव वालों से इसका कारण पूछा. गांव वालों ने  उन्हें  अंगुलिमाल के बारे में बताया कि उसने 1000 लोगों की हत्या करने का का प्रण लिय

SITA RAM VIVAH KATHA

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श्री राम और सीता माता का विवाह प्रसंग( SITA RAM VIVAH )  श्री राम भगवान विष्णु और माता सीता लक्षमी जी का अवतार थी.  श्री राम का जन्म   अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में हुआ .  सीता जी का जन्म  जनक पुरी में हुआ.  जनक जी के पास भगवान शिव का पिनाक धनुष था. जिसे कोई उठ नहीं पाता था. लेकिन एक दिन सीता माता जी ने भगवान शिव के धनुष को उठा लिया था. उस दिन राजा जनक ने निश्चय किया कि जो भी भगवान शिव के धनुष को उठा कर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएंगा उनकी पुत्री उसका वरण करेंगी.   सीता स्वयंवर का निमंत्रण  सब राज्यों में भेजा गया. ऋषि विश्वामित्र को भी राजा जनक के निमंत्रण भेजा था. श्री राम और लक्ष्मण जी उस समय ताड़का, सुबाहु और राक्षसों के वध के लिए श्री विश्वामित्र के आश्रम में थे. वह दोनों भाईयों को अपने साथ सीता जी के स्वयंवर में ले गए थे.  श्रीराम का धनुष यज्ञ में जाना  ऋषि विश्वामित्र जी श्री राम और लक्ष्मण जी को सीता स्वयंवर के धनुष यज्ञ में अपने साथ लेकर जनकपुरी गए  अगले दिन सुबह जब भगवान राम और लक्ष्मण बाग में फूल लेने गए तो वहां सीता जी की सुंदर छवि देख कर श्री राम ने बड़ा सुख पाया . राम

MAA LAKSHMI JI VISHNU BHAGWAAN KE CHRAN KYU DABATI HAI

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माँ लक्ष्मी भगवान विष्णु के चरण( पैर) क्यों दबाती है  PIC SOURCE : GOOGLE आप ने भगवान विष्णु की तस्वीर में मां लक्ष्मी को उनके चरण दबाते हुए देखा होगा इसका बहुत महत्व है.  धन लाभ हर व्यक्ति की इच्छा होती है और धन की देवी मां लक्ष्मी जी है. लक्ष्मी जी की प्राप्ति भगवान विष्णु के बिना नहीं हो सकती क्योंकि भगवान विष्णु जगत के पालनहार हैं. मां लक्ष्मी संपन्नता कि देवी हैं और दोनों पृथ्वी पर संतुलन बनाए रखने का काम करते हैं . एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार नारद जी मां लक्ष्मी से पूछते हैं कि सभी देवता- गण ,राजा महाराजा उनकी पूजा अर्चना करते हैं. फिर भी आप भगवान विष्णु के चरणों को क्यों दबाती हैं .क्या भगवान विष्णु को अपने से श्रेष्ठ समझती हैं.मैं जानना चाहता हूं कि आपके भगवान विष्णु के चरण दबाने के पीछे ऐसा कौन सा गहन राज छुपा है.  मां लक्ष्मी ने बताया कि यह सारी सृष्टि ग्रहों से संचालित हैं हम देवी देवता भी इन ग्रहों के प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकते. स्त्री के हाथ में देव गुरु बृहस्पति और पुरुष के चरणों में दानवों  के गुरु शुक्राचार्य का वास होता है .गुरु और शुक्र के मिलन से धन का योग बनता

LORD SHIVA ARDHNARISHWAR ROOP भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप

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हिन्दू धर्म में भगवान शिव को अनेक रूपों में पूजा जाता है . उनका एक रूप अर्धनारीश्वर रूप है .उन्होंने अपने इस रुप से दर्शाया है कि स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं . माना जाता है कि जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की उन्होंने बहुत से जीव बनाए.परंतु उनकी संख्या में वृद्धि ना होने से ब्रह्म जी बहुत चिंतित हुए .उन्हें लगा कि उनकी  बनाई रचनाएं अपने जीवन उपरांत नष्ट हो जाएगी . उन्हें फिर से नए सिरे से उनका सृजन करना पड़ेगा. अपनी समस्या के समाधान के लिए उन्होंने भगवान शिव का कठोर तप किया  . ब्रह्मा जी की  तपस्या से खुश  हो कर और उनकी समस्या के समाधान के लिए भगवान शिव ने उन्हें अर्धनारीश्वर रूप में दर्शन दिए .भगवान शिव ने कहा मेरे इस रूप के आधे भाग में शिव है जो पुरुष और आधे भाग में शक्ति है जो स्त्री का प्रतीक है . भगवान शिव ने अपने शरीर में स्थित शक्ति के अंश को अलग कर दिया .शक्ति ने अपनी भृकुटी के मध्य से अपने समान  कांति वाली शक्ति को प्रकट किया. इस शक्ति ने    बाद में राजा दक्ष के घर  उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया .भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को प्रजननशील प्राणी के सृजन  की प्रेरणा दी .

SHRI KRISHAN AUR SUDAMA KI KATHA श्री

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 कृष्ण और सुदामा की कथा Krishna and sudama story  श्री कृष्ण सुदामा की मित्रता बताती है कि मित्रता में राजा और रंक दोनों एक समान है. सुदामा श्री कृष्ण के परम मित्र थे.  सांदीपनि  ऋषि के गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करते हुए श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता हुई थी. सुदामा पुराणों के ज्ञाता ब्राह्मण थे . माना जाता है  शिक्षा दीक्षा के बाद  सुदामा अपने गांव अस्मावतीपुर में भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन  करते थे . लेकिन  कई बार अपने बच्चों का पेट  अच्छे से भर सके उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे. सुदामा कई बार अपने मित्र श्री कृष्ण की बारे में  अपनी पत्नी को  बताते रहते थे. सुदामा अपनी पत्नी को बताते थे कि अब वे द्वारिका के राजा बन गए हैं.एक दिन सुदामा की पत्नी ने कहा आपको जाकर श्रीकृष्ण से आर्थिक मदद माननी चाहिए ताकि हम अपने बच्चों का अच्छे से पेट भर सके .अपनी पत्नी के कहने पर सुदामा मान गए .सुदामा के पास  श्री कृष्ण के लिए भेट के रूप में ले जाने के लिए कुछ भी नहीं था. इसलिए उनकी पत्नी मांग कर किसी से भुने हुए चावल ले आई . माना जाता है कि उस दिन अक्षय तृतीया का दिन था जब श्री कृष्ण के पास सुदामा