SITA SAWAYAMBAR KA SANDESH (nimantran) ayodhya kyyn nahi beja gaya

क्या आप जानते हैं सीता स्वयंवर में राजा जनक ने राजा दशरथ के राज्य अयोध्यापुरी में  निमंत्रण क्यों नहीं भेजा ?


 इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. माना जाता है कि राजा जनक के राज्य में एक व्यक्ति शादी के बाद अपनी पत्नी से मिलने ससुराल जा रहा था . रास्ते में एक जगह दलदल आ गई. उसमें एक गाय मरने के कगार पर फंसी हुई थी .उस व्यक्ति ने सोचा कि यह गाय तो मरने ही वाली है .उसने गाय पर पैर रखे और दलदल वाला रास्ता पार कर लिया.

 गाय ने मरने से पहले उसे श्राप दिया जिसे तुम मिलने जा रहा है उसे देखते ही वह मर जाए .और इतना कहते ही गाय मर गई. वह व्यक्ति इस श्राप से बहुत डर गया और अपने ससुराल पहुंच कर पीठ करके  अपनी पत्नी के घर के बाहर बैठ गया और आंखें बंद कर ली .

क्योंकि उसे गाय का श्राप याद आ रहा था जिस से तू मिलने जा रहा है उसे देखते ही वह मर जाए. जब पत्नी को यह बात पता चली तो वह कहने लगी आप मेरी तरफ देखो ऐसा कुछ नहीं होगा. 

पत्नी की ओर  देखते ही उसकी आंखों की रोशनी चली गई. पत्नी अपनी समस्या लेकर राजा जनक के द्वार पहुंची और राजा जनक को इस समस्या का समाधान करने के लिए कहा. 

राजा जनक ने बहुत से विद्वान बुलाए और इस समस्या का हल पूछा .उन्होंने बताया कि अगर कोई पतिव्रता स्त्री छलनी में गंगाजल लेकर इसकी आंखों पर छींटे लगाए तो वह इसकी आंखें ठीक हो सकता हैं.

राजा जनक ने सब ओर घोषणा करवा दी कि अगर कोई भी पतिव्रता स्त्री हैं, तो वह इस व्यक्ति की आंखों पर छींटे लगाए . जिस से इस व्यक्ति की आंखों की रोशनी वापस आ जाए. 

यह  सूचना राजा दशरथ के दरबार तक भी पहुंची उन्होंने रानियों से पतिव्रता होने के बारे में पूछा. रानी कहने लगे कि हमारे राज्य में तो झाड़ू लगाने वाली जो सेविका है वह भी पतिव्रता है. राजा दशरथ  ने एक झाड़ू लगाने वाली को बुलाया और उसे पतिव्रता होने के बारे में पूछा उसने हां में सिर हिलाया.

राजा दशरथ ने अपने राज्य को आदर्श दिखाने के लिए झाड़ू वाली को राजकीय सम्मान के साथ राजा जनक के राज्य में भेजा.राजा जनक ने भी उसका स्वागत किया .

 राजा जनक ने उस औरत से पूछा कि वह छलनी में  गंगा जल लाकर इस व्यक्ति की आंखों पर छींटे लगाकर  इसकी मदद करेगी.  उसने हां में हामी भर दी.  

वह औरत गंगा किनारे पहुंची और उसने गंगा जी से प्रार्थना की कि हे गंगा मैया अगर मेरा पतिव्रत धर्म सच्चा है तो इस छलनी में से एक भी  बूंद पानी ना नीचे गिरे.
यह प्रार्थना करके उस औरत ने छलनी में जल भरा तो  छलनी ऊपर तक भर गई.उसमें से एक बूंद भी पानी नीचे नहीं गिरा. यह सोच कर कि गंगा जी का पवित्र जल धरती पर ना छलके उस ने थोड़ा सा जल गंगा जी में ही गिरा दिया और छलनी में जल ले आई. 

 उस औरत ने जैसे ही छलनी में से गंगा जल के छींटे उस व्यक्ति की आंखों पर लगाए तो उसकी आंखों की रोशनी वापस आ गई. पूरी राज्यसभा इस कार्य को देखकर आश्चर्यचकित हो गई. 

राजा जनक ने उसका बहुत सम्मान किया और उत्सुकता से पूछा देवी आप कौन हैं?  उस ने बताया कि मैं अयोध्यापुरी में झाड़ू लगाने का काम करती हूँ. राजा जनक ने सम्मान के साथ उस औरत को अयोध्या वापिस भेज दिया.

माना जाता है कि जब सीता जी का स्वयंवर राजा जनक ने रखा तो उन्हें इस घटना का स्मरण हो आया .उन्होंने सोचा कि जिस राज्य झाड़ू लगाने वाली इतनी पतिव्रता थी उसका पति कितना शक्तिशाली होगा .

   राजा जनक सोचने लगे अगर इस बार भी राजा दशरथ ने किसी भी साधारण व्यक्ति को भेज दिया  और उसने धनुष  का संधान कर लिया तो सीता जी को वर के रूप  उसे चुनना पड़ेगा . इसीलिए उन्होंने अयोध्यापुरी में सीता स्वयंवर का संदेशा नहीं भेजा.

लेकिन कहते हैं ना होता वही है जो ईश्वर की इच्छा होती है .श्री रामचंद्र जी और लक्ष्मण जी, ऋषि विश्वामित्र के साथ उस धनुष यज्ञ में पहुंच गए .जहां कोई भी उस धनुष को उठाना तो दूर हिला भी नहीं पाया .शिव जी के पिनाक धनुष को श्री रामचंद्र जी ने कब उठाया कब प्रत्यंचा पर चढ़ाया और कब का टूट गया किसी को पता भी नहीं चला . श्री राम ने  स्वयंवर  जीत लिया और सीता जी ने जय माला श्री राम को पहना दी. 

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