LORD SHIVA ARDHNARISHWAR ROOP भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप

हिन्दू धर्म में भगवान शिव को अनेक रूपों में पूजा जाता है . उनका एक रूप अर्धनारीश्वर रूप है .उन्होंने अपने इस रुप से दर्शाया है कि स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं .

माना जाता है कि जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की उन्होंने बहुत से जीव बनाए.परंतु उनकी संख्या में वृद्धि ना होने से ब्रह्म जी बहुत चिंतित हुए .उन्हें लगा कि उनकी  बनाई रचनाएं अपने जीवन उपरांत नष्ट हो जाएगी . उन्हें फिर से नए सिरे से उनका सृजन करना पड़ेगा. अपनी समस्या के समाधान के लिए उन्होंने भगवान शिव का कठोर तप किया 

. ब्रह्मा जी की  तपस्या से खुश  हो कर और उनकी समस्या के समाधान के लिए भगवान शिव ने उन्हें अर्धनारीश्वर रूप में दर्शन दिए .भगवान शिव ने कहा मेरे इस रूप के आधे भाग में शिव है जो पुरुष और आधे भाग में शक्ति है जो स्त्री का प्रतीक है .

भगवान शिव ने अपने शरीर में स्थित शक्ति के अंश को अलग कर दिया .शक्ति ने अपनी भृकुटी के मध्य से अपने समान  कांति वाली शक्ति को प्रकट किया. इस शक्ति ने    बाद में राजा दक्ष के घर  उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया .भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को प्रजननशील प्राणी के सृजन  की प्रेरणा दी .

फिर ब्रह्मा जी ने नारी तत्व वाले जीवो की रचना की और सृष्टि धीरे-धीरे बढ़ने लगी. भगवान शिव ने स्त्री पुरुष की समानता को दर्शाया है .स्त्री पुरुष प्रकृति का अभिन्न अंग है. एक के बिना दूसरे का विकास नहीं हो सकता. शिव चेतना है और शक्ति प्रकृति है .

 शक्ति हर जीव में मां के रूप में होती है जो अपनी संतान की रक्षा और पालन-पोषण करती है और शिव पिता रूप में अपनी संतान को ज्ञान प्रदान करते हैं और उनका पोषण करते हैं.शिव और शक्ति का एक दूसरे के बिना कोई अस्तित्व ही नहीं है.

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