SHRI KRISHAN AUR SUDAMA KI KATHA श्री

 कृष्ण और सुदामा की कथा

Krishna and sudama story 


श्री कृष्ण सुदामा की मित्रता बताती है कि मित्रता में राजा और रंक दोनों एक समान है. सुदामा श्री कृष्ण के परम मित्र थे. 
सांदीपनि ऋषि के गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करते हुए श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता हुई थी. सुदामा पुराणों के ज्ञाता ब्राह्मण थे . माना जाता है  शिक्षा दीक्षा के बाद  सुदामा अपने गांव अस्मावतीपुर में भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन  करते थे . लेकिन  कई बार अपने बच्चों का पेट  अच्छे से भर सके उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे. सुदामा कई बार अपने मित्र श्री कृष्ण की बारे में  अपनी पत्नी को  बताते रहते थे.

सुदामा अपनी पत्नी को बताते थे कि अब वे द्वारिका के राजा बन गए हैं.एक दिन सुदामा की पत्नी ने कहा आपको जाकर श्रीकृष्ण से आर्थिक मदद माननी चाहिए ताकि हम अपने बच्चों का अच्छे से पेट भर सके .अपनी पत्नी के कहने पर सुदामा मान गए .सुदामा के पास  श्री कृष्ण के लिए भेट के रूप में ले जाने के लिए कुछ भी नहीं था. इसलिए उनकी पत्नी मांग कर किसी से भुने हुए चावल ले आई .

माना जाता है कि उस दिन अक्षय तृतीया का दिन था जब श्री कृष्ण के पास सुदामा गए थे .आज भी अक्षय तृतीया के दिन दान और पूजा का महत्व है .इसे धन-संपत्ति के लाभ से भी जोड़ा जाता है. सुदामा कई दिनों की यात्रा के बाद द्वारिका जी पहुंचे थे. द्वारिका की चकाचौंध देखकर सुदामा आश्चर्यचकित हो गए .

श्री कृष्ण के महल के द्वार पर जाकर सुदामा द्वारपाल से कहने लगे कि मैं श्रीकृष्ण से मिलना चाहता हूं. द्वारपाल ने उनका परिचय पूछा तो उन्होंने बताया कि मेरा नाम सुदामा है, और मैं श्री कृष्ण का मित्र हूं .

 द्वारपाल उन्हें द्वार पर प्रतीक्षा करने के लिए कह कर स्वयं श्री कृष्ण के पास गया. द्वारपाल ने कहा कि एक दीन हीन ब्राह्मण द्वार पर आया है . उसके सिर पर ना तो पगड़ी है और उसने एक फटी सी धोती पहनी है. पैरों में जूते भी नहीं है. लेकिन वह कह रहा है कि वह आपका मित्र हैं, उसका नाम सुदामा है.

द्वारपाल  के मुख से जब श्री कृष्ण ने सुदामा का नाम सुना तो श्रीकृष्ण नंगे पांव दौड़े- दौडे़ द्वार पर गए. उन्होंने सुदामा  को हृदय से लगा लिया . श्री कृष्ण सुदामा को अपने महल में ले गए और अपने नेत्रों की वर्षा से ही उन्होंने सुदामा के पैर धुलवा दिए. 

स्नान, भोजन के बाद श्री कृष्ण और सुदामा ऋषि संदीपनी के आश्रम की बातें याद करने लगे. श्री कृष्णा ने पूछा कि भाभी ने मेरे लिए क्या भेजा है.  सुदामा श्री कृष्ण की समृद्धि देखकर चावलों की पोटली छुपाने लगे . श्रीकृष्ण को पुरानी बात याद आ गई ऋषि संदीपनी के आश्रम में एक बार श्री कृष्ण और सुदामा जंगल में गए थे . गुरु माता ने सुदामा को चने दिए थे  कि भूख लगने पर दोनों खा लेना. रास्ते में बारिश होने के कारण दोनों अलग-अलग पेड़ पर चढ़ गए और सुदामा ने सारे चने  खा लिए थे.  श्री कृष्ण  ने पूछा क्या खा रहे हो . सुदामा ने कहा कि ठंड के कारण  मैं कांप रहा हूँ  इस लिए मेरे दांतों से आवाज आ रही है.कहते हैं किसी का हिस्सा खाने से दरिद्रता आती हैं इसी कारण सुदामा दरिद्र थे.

 एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार एक बार एक ब्राह्मणी थी जो कि बहुत ही निर्धन थी। भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करती थी । एक बार उसे पांच दिन तक भिक्षा में कुछ भी खाने को ना मिला।

छठे  दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चने मिले । उसने सोचा कि सुबह उठकर ठाकुर जी को भोग लगाकर फिर चने खाएंगी. ब्राह्मणी ने चने एक पोटली में बांध कर रख दिये .

उसी रात्रि उस की कुटिया में चोर चोरी करने आये। कुटिया में उन्हें चुराने के लिए जब कुछ और नहीं मिला तो वे चोर यह विचार कर की शायद इससे कोई मुल्यवान चीज़ होंगी पोटली चुरा कर ले गए।

चोरों की कदमों की आहट से ब्राह्मणी जाग गई और उसने शोर मचा दिया। ब्राह्मणी के शोर मचाने पर चोर भाग गये और गांव वाले चोरों के पीछे भागे.

चोर भागते हुए ऋषि संदीपनी के आश्रम में जाकर छिप गये जहां श्री कृष्ण और सुदामा उस समय उसी आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।

जब गांव वाले चलें गए तो चोर आश्रम से भाग गए लेकिन जाते समय चने की पोटली वहीं छोड़ गए। उधर ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया कि जो भी मनुष्य मुझ निर्धन के चने खाएंगा  वह दरिद्र हो जाएंगा। 

अगले दिन सुबह वह चने की पोटली गुरु माता को मिली। गुरु माता ने जब श्री कृष्ण और सुदामा जंगल में लकड़ी लेने जा रहे थे तो वह पोटली सुदामा को दी और कहा कि भूख लगने पर बांट कर खा लेना।

लेकिन सुदामा तो ब्रह्म ज्ञानी थे पोटली पकड़ते ही सारा रहस्य उन्हें समझ में आ गया। सुदामा विचार करने लगे कि गुरु माता ने आदेश दिया है कि दोनों बांट कर चने खा लेना लेकिन उस ब्राह्मणी ने तो श्राप दिया है कि जो भी चने खाएंगा वह दरिद्र हो जाएंगा। यदि श्री कृष्ण ने यह चने खा लिये तो सारी सृष्टि दरिद्र हो जाएंगी।

 इसी श्राप के भय से सुदामा ने सारे चने स्वयं खा लिये और उस ब्राह्मणी का श्राप स्वयं पर ले लिया। इस तरह सुदामा ने श्री कृष्ण से अपनी सच्ची मित्रता निभाई थी।

इसलिए श्री कृष्ण के ने कहा तब तुमने चने छुपाएं थे .अब तुम चावल छुपा रहे हो .श्री कृष्ण ने प्रेम भाव से चावलों की पोटली ली और दो मुठ्ठी चावल खा लिए. श्री  कृष्ण कहने लगे जितना रस मुझे आज इन चावलों को खा कर आया है .आज तक और किसी को  चीज को खाकर नहीं आया.

सुदामा श्री कृष्ण से कुछ भी ना मांग पाए. बिना कुछ मांगे ही घर लौट गए .  रास्ते भर सोचते रहे कि  पत्नी को जा कर क्या जवाब दूंगा. लेकिन घर पहुंचने पर टूटे-फूटे घर की जगह महल बना था .उनकी पत्नी और बच्चे ने बहुत सुंदर वस्त्र पहने थे .यह देखकर सुदामा समझ गए कि यह सब श्री कृष्ण की कृपा से हुआ. ऐसे ही है ठाकुर जी बिना मांगे ही अपने भक्तों की मुरादे पूरी करते है. 

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