SITA RAM VIVAH KATHA

श्री राम और सीता माता का विवाह प्रसंग( SITA RAM VIVAH ) 

श्री राम भगवान विष्णु और माता सीता लक्षमी जी का अवतार थी. श्री राम का जन्म  अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में हुआ . सीता जी का जन्म जनक पुरी में हुआ.  जनक जी के पास भगवान शिव का पिनाक धनुष था. जिसे कोई उठ नहीं पाता था. लेकिन एक दिन सीता माता जी ने भगवान शिव के धनुष को उठा लिया था. उस दिन राजा जनक ने निश्चय किया कि जो भी भगवान शिव के धनुष को उठा कर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएंगा उनकी पुत्री उसका वरण करेंगी.

 सीता स्वयंवर का निमंत्रण सब राज्यों में भेजा गया. ऋषि विश्वामित्र को भी राजा जनक के निमंत्रण भेजा था. श्री राम और लक्ष्मण जी उस समय ताड़का, सुबाहु और राक्षसों के वध के लिए श्री विश्वामित्र के आश्रम में थे. वह दोनों भाईयों को अपने साथ सीता जी के स्वयंवर में ले गए थे. 

श्रीराम का धनुष यज्ञ में जाना

 ऋषि विश्वामित्र जी श्री राम और लक्ष्मण जी को सीता स्वयंवर के धनुष यज्ञ में अपने साथ लेकर जनकपुरी गए  अगले दिन सुबह जब भगवान राम और लक्ष्मण बाग में फूल लेने गए तो वहां सीता जी की सुंदर छवि देख कर श्री राम ने बड़ा सुख पाया . राम जी की छवि देख कर सीता जी ने अपने शरीर की  सुध भूल गई. 


जब सीता जी मां पार्वती का पूजन करने गई तो मां पार्वती ने आशीष दी कि जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है तुम्हें वहीं वर मिलेगा.  

राम सीता के विवाह की कहानी. राम जी का धनुष यज्ञ में जाना

धनुष यज्ञ में जनक जी ने गुरु विश्वामित्र  और दोनों भाइयों को सबसे अधिक सुंदर, उज्जवल और विशाल मंच पर बिठाया.उस राज्यसभा में बहुत से महारथी राजा आए थे. 

तुलसीदास जी कहते हैं जब सीता जी रंगभूमि में आई तो उनका स्वरूप देकर सभी मोहित हो गए. फिर राजा जनक ने कहा जो भी शिव जी का कठोर धनुष तोड़ेगा जानकी उसको वरण करेगी .

श्रीराम का शिव जी के पिनाक धनुष' को तोड़ना

सब राजा धनुष को पकड़ते हैं लेकिन कोई भी धनुष को हिला भी नहीं पाता और सब उपहास का पात्र बन कर वापस चले जाते हैं . तब राजा जनक कठोर वाणी से कहते हैं , "क्या धरती वीरों से खाली हो गई है"? यह सुनते ही लक्ष्मण क्रोधित होते हैं ,और कहते हैं अगर मुझे श्रीराम आज्ञा दे तो मैं ब्रहमांड को गेंद की तरह उठा लू. शिवजी का 'पिनाक धनुष' कौन सी चीज है .

विश्वामित्र जी श्री राम को धनुष तोड़ कर राजा जनक का संताप मिटाने को कहते हैं .

श्री राम ने फुर्ती से धनुष उठाया . उन्होंने धनुष को कब उठाया ,कब चढ़ाया और कब खींचा किसी को पता ही नहीं चला.उन्होंने धनुष को क्षण में बीच में तोड़ डाला . जिसकी कठोर ध्वनि पूरे लोक में फैल  गई .शतानंद जी ने आज्ञा दी और सीता जी ने श्री राम को जय माला पहना दी . 

धनुष यज्ञ में परशुराम जी का आना और लक्ष्मण जी और श्रीराम से संवाद

शिव जी के धनुष का टूटना सुनकर परशुराम जी आ गए राजा जनक ने प्रणाम किया और परशुराम ने सीता जी को आशीर्वाद दिया . धनुष के टुकड़े जमीन पर पड़े देखकर पूछा, रे मूर्ख जनक बता धनुष को किसने तोड़ा. धनुष तोड़ने वाला सहस्त्रबाहु के समान मेरा दुश्मन है.  

लक्ष्मण जी कहते हैं कि हमने बचपन में बहुत सी धनुहियाँ तोड़ी हैं. श्री राम के लिए सभी धनुष एक समान है. धनुष छूते ही टूट गया. इसमें श्रीराम का कोई दोष नहीं है.परशुराम कहते हैं तू मेरे क्रोध को जानता नहीं है. मैंने पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था. अपने फरसे से मैंने सहस्त्रबाहु की बुजाओं को काटा था.

लक्ष्मण जी कहते हैं मुनीश्वर आप बार-बार मुझे कुल्हाड़ी दिखाते हैं. इस पर परशुराम विश्वामित्र से कहते हैं  यह बालक बहुत उद्दंड ,मूर्ख और निडर है. इस पर विश्वामित्र कहते हैं कि आप इस बालक का  क्षमा करें. श्री राम कहते हैं शिव धनुष तो मैंने तोड़ा है. इससे परशुराम करते हैं तुम मुझसे युद्ध कर.  श्रीराम सिर निवा कर कहते हैं आप  क्रोध छोड़ दीजिए .कुठार आपके हाथ में है मेरा सिर आपके आगे जिससे आपका क्रोध शांत हो अब वही करें. 

लक्ष्मण आपको वीर समझकर क्रोध में आ गया था लेकिन ब्राह्मणों में तो अधिक दया होनी चाहिए . श्रीराम द्वारा मुनि और विप्रवर सुनकर परशुराम क्रोधित हो गए. श्री राम कहते हैं शिव जी का पिनाक धनुष तो पुराना हो गया और छूते ही टूट गया.

 यदि ब्राह्मण कहकर हमने आपका निरादर किया है तो फिर संसार में ऐसा कौन होता है जिसे हम सिर निवाएँ. छत्रिय का शरीर धर कर रघुवंशी युद्ध से नहीं डरते. ब्राह्मण वंश की ऐसी प्रभुता है जो उनसे डरता है वह निर्भय हो जाता है .

श्रीराम की रहस्यमई बातें सुन कर  परशुराम जी की बुद्धि के पर्दे खुल गए .वह अपना संदेह मिटाने के लिए श्री राम को विष्णु जी का धनुष खींचने को देते हैं जो अपने आप ही उनके पास चला जाता है तो उनके मन का संशय दूर हो गया. श्री राम की जय हो कहकर वन में चले गए. यह देखकर जनकपुरी के स्त्री-पुरुष हर्षित हो गए. 

श्री राम और माँ सीता जी का विवाह प्रसंग

जनक जी  ने फिर दशरथ जी को बुलावा भेजा. जनकपुरी से आई चिट्ठी पढ़कर पूरी सभा हर्षित हो गई कि श्रीराम ने शिवजी का धनुष तोड़ कर सीता जी का है  स्वयंवर जीत लिया है. 

दशरथ जी बारात सजा कर जनकपुरी की ओर चल पड़े . बारात की शोभा देखते ही बनती हैं . श्री राम लक्ष्मण को दशरथ जी के आने के आगमन का पता चलता है.वह दशरथ जी और अपने भाइयों और संबंधियों से मिले .

चारों भाइयों को देखकर नगर की स्त्रियाँ ईश्वर से कह रही है कि चारों भाइयों का विवाह इसी नगर में हो जाए .नारद जी श्री राम जी की जन्म पत्रिका लेकर जनकपुरी गए .श्रीराम की बारात में भगवान श्रीहरि विष्णु, भगवान ब्रह्मा जी ,भगवान शिव और कार्तिकेय आदि सभी देवता ब्राह्मणों का रूप धारण करके श्री राम जी की छवि देख कर सुख प्राप्त कर रहे हैं .

राम को दूल्हे के रूप में देखकर सीताजी की माता सुनयना जी को मन में बहुत सुख हुआ. उन्होंने श्री राम जी की आरती उतारी और श्री राम जी ने मंडप की ओर आगमन किया. 

जनक जी ने सभी बारातियों को उचित आसन दिए . वसिष्ठ जी ने शतानंद जी को राजकुमारी को शीघ्र लाने के लिए कहा . सीता जी सखियों के साथ मंडप में आई उनकी सुंदरता का वर्णन तुलसीदास जी कहते है किया नहीं जा सकता . देवताओं की पूजा करके मुनियों ने सीता जी की सुंदर आसन दिया.दोनों कुलों के गुरुओं ने वर और कन्या की हथेलियों को मिलाकर शंखोच्चार किया. 

जनक जी ने वेदों के अनुसार सीता जी का कन्यादान किया.श्री राम जी सीता जी के सिर में सिंदूर दे रहे हैं यह शोभा देखते ही बनती है . फिर गुरु वशिष्ट की आज्ञा से राम जी और सीता जी  को एक आसन पर बिठाया गया . 

जिसने भी इस मंगल कार्य को देखा उसका शरीर बार-बार पुलकित हो रहा था .फिर वशिष्ठ जी ने मंडप सजा कर मांडवी जी  का विवाह भरत जी से,   उर्मिला जी का लक्ष्मण जी से,  श्रुत कीर्ति जी का शत्रुध्न जी  से विवाह करवाया .   बारात को जब जनकपुरी में ठहरे हुए बहुत दिन बीत गए तो विश्वामित्र जी और शतानन्द जी ने जनक को समझाया कि अब आपको दशरथ जी को  अयोध्या वापिस जाने की आज्ञा देनी चाहिए.

फिर जनक जी ने संदेश भिजवाया की दशरथ जी चलना चाहते हैं. यह सुनकर सभी प्रेम के वश हो गए .जनक जी ने  बहुत सा दहेज दिया एक लाख घोड़े , पच्चीस हजार रथ, दस हजार हाथी , गाड़ियों में भरकर सोना ,वस्त्र, रतन और भैंस, गाय और बहुत सी चीजें  दी.

सीताजी की माता ने गोद में लेकर आशीर्वाद दिया और वह सिखाती है कि सदा पति की प्यारी रहना ,तुम्हारा सुहागा अचल रहे , सास-ससुर गुरु की सेवा करना.फिर विनती करके उन्होंने सीताजी को राम जी को समर्पित किया .कन्याएँ बार-बार माताओं और सखियों से मिलती हैं.

बारात का अयोध्या पूरी में स्वागत

 मंगल मुहूर्त में बाजे बजने लगे और दशरथ जी ने जनक जी से विदा ली. बारात जब अयोध्या जी पहुंची तो घर-घर मंगल गान होने लगे. बारात जब राज  द्वार पर आई तो  सभी माताएँ ने बहुओं का परछन करने लगी

 .सभी रीतियाँ करने के बाद राजा ने रानी को कहा  सभी बहुएँ अभी बच्चियाँ है और पराए घर से आई हैं . उनकी रक्षा उसी प्रकार करना जैसे आंखों की  पलके करती हैं. फिर विश्वामित्र जी ने राजा से अपने आश्रम जाने के लिए विदा मांगी. 

जब से श्री राम जी का विवाह कर आए हैं तब से अयोध्या में आनंद का वास है तुलसीदास जी कहते हैं सीता जी और रघुनाथ जी के विवाह प्रसंग जो गाएगा ,सुनेगा उस पर श्री राम जी की सदा कृपा रहेगी.

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