GURU MILA TO BHANDAN CHHUTE MOTIVATIONAL STORY

" गुरु मिले तो बंधन छूटे " एक कहानी जो जीवन में एक सच्चे गुरु के महत्व को दर्शाती है.

एक बार एक राजा के पास बोलने वाला तोता था .एक पंडित महीने में दो बार राजा के पास कथा सुनाने आता था.पंडित को आदत थी कहने की "हरि मिले तो बंधन छूटे". जब भी पंडित जी ऐसा कहते तो तोता उन्हें झूठा कहता था.               


 पंडित जी जब भी आते तोता हर बार ऐसा ही कहता .पंडित जी को राजा के सामने बहुत असहज महसूस होता था . पंडित जी ने यह बात अपने गुरु को बताई .गुरुजी ने कहा कि तुम मुझे उस तोते के पास ले जाओ . 

पंडित अपने गुरु को तोते के पास ले गए .गुरुजी ने तोते से पूछा तुम ऐसा क्यों कहते हो.तोते ने बोला कि मैंने एक बार बोल क्या  दिया ,'हरि मिले तो बंधन छूटे 'मेरा तो बंधन छूटने को नहीं आ रहा .

मैं एक बार उड़ता हुआ एक पेड़ पर बैठा था.उसके पास ही साधुओं का आश्रम था . वहा पर एक साधु ने बोला 'हरि मिले तो बंधन छूटे' ,मेरा स्वभाव है बोलने का,मैंने भी ऐसा ही बोल दिया .यह सुनकर उस साधु के सेवकों ने देखा कि यह हरि नाम बोलने तोता है.मुझे पकड़ कर लोहे के पिंजरे में बंद कर दिया. 

उसके बाद एक व्यापारी आश्रम में आया.उसने भी देखा बोलने वाला तोता तो मुझे आश्रम से अपने साथ ले आया और मुझे चांदी के पिंजरे में बंद कर दिया .एक दिन राजा के महल में भोज था .उसमें उस व्यापारी को भी बुलाया गया था.उस ने मुझे राजा को भेंट कर दिया.

रानी को मेरा बोलना इतना पसंद आया उसने मुझे सोने के पिंजरे में बंद कर दिया.मेरे पिंजरे बदलते रहे लेकिन मेरा बंधन छुटने को नहीं आ रहा.इसीलिए मैं पंडित को झूठा कहता हूं.

 गुरु जी तोते के कान में कुछ कहते हैं और चले जाते हैं .अगले दिन तोता निष्प्राण सा पिंजरे में पड़ा मिलता है .एक सेवक राजा को बताने जाता है ,राजा जी तोता  निष्प्राण पिंजरे में पड़ा है, हिल डुल नहीं रहा .पीछे से दूसरे सेवक ने सोचा लगता है कि मर गया  क्यों ना इसे पिंजरे में से निकाल दूं.

 जैसे ही सेवक ने पिंजरे का दरवाजा खोला तो वह  तोता फुर्र से उड़ गया और साथ में कहने लगा।                               "गुरु मिले तो बंधन छूटे " ," गुरु मिले तो बंधन छूटे"

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