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Showing posts from February, 2021

SHRI HARI VISHNU KE BHAKT KE KAHANI

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श्री हरि विष्णु के सच्चे भक्त की कहानी कहते हैं अगर भगवान  को सच्चे मन से जपो तो वह  शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं. फिर चाहे आप ईश्वर को किसी भी नाम से याद करो,जप करो.  भगवान विष्णु  के एक ऐसे ही सच्चे भक्त की कहानी.  एक बार एक सीधा- साधा, अनपढ़ गवार किसान था.वह एक संत जी के पास गया और कहने लगा कि मुझे ईश्वर का ऐसा नाम बता दो जिसे मैं सारा दिन  जपता रहू और अपना काम भी करता रहूं.  मेरा परलोक भी सुधर जाए. संत ने कहा ठीक है तुम अघमोचन (अघ जाने के पाप) और मोचन (जाने हरने वाला) नाम जपा करो.  अघमोचन नाम का दिन रात जाप किया करो. सीधा-साधा किसान रास्ते में जाते - जाते अघमोचन - अघमोचन नाम रटते हुए जा रहा था.  लेकिन कुछ देर बाद 'अ' भूल गया और घमोचन घमोचन नाम रटने लगा. अब दिन-रात वह घमोचन घमोचन रटता    रहता. एक दिन भगवान विष्णु भोजन करते हुए मुस्कुरा रहे थे ,तो मां लक्ष्मी ने इसका कारण पूछा.   भगवान विष्णु कहने लगे कि लक्ष्मी मेरा एक भक्त मेरा ऐसा नाम रट रहा है. जिसका शास्त्रों में कोई वर्णन ही नहीं है . लेकिन नाम चाहे वह गलत ही ले रहा हो लेकिन उसका मन मेरी और ही लगा हुआ है. इसके मन में मेरी

COMFORT ZONE A MOTIVATIONAL STORY सुविधा क्षेत्र

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 Hindi moral story  एक बार एक गाँव में दो भाई रहते थे. उनके आंगन में एक  पेड़ था. वे उसके फल बेचकर अपना गुजारा कर  लेते थे .अपनी जिंदगी में कभी किसी और काम को करने के लिए उन्होंने कोशिश ही नहीं की. लेकिन अक्सर सोचते कि ईश्वर हमारी गरीबी कब दूर करेगा. एक दिन उनका पुराना मित्र जिसके साथ दोनों बचपन में एक ही स्कूल में पढते थे ,गांव में आया. रात को उनके यहां रुक गया. अपने मित्रों की  गरीबी देख कर वह बहुत परेशान था. वह समझ गया कि खाने का इंतजाम दो लोगों का ही था. इसलिए एक भाई ने बहाना बना दिया कि आज मेरा व्रत है. मित्र ने खाना खाया और सारी रात सोचता रहा है ऐसा क्या करूं कि इन लोगों की दरिद्रता दूर हो जाए. अगले दिन सुबह  मित्र अपना काम करके चुपचाप चला गया .पूरे गांव में शोर मच गया कि जो पेड़ दोनों भाइयों की रोजी-रोटी का साधन था. उसको उनका पुराना मित्र काट कर चला गया है. मित्र पर तरह-तरह के आरोप लगने लगे .  पांच साल बाद  उनका मित्र फिर उसी गांव में आया तो सोचने लगा कि क्या करूं ,इस गांव में जाऊं ना जाऊं .अगर गाँव के अंदर गया तो पिटाई भी हो सकती हैं लेकिन फिर भी हिम्मत करके चला गया. सोचने लगा

POSITIVE THOUGHT motivational सकारात्मक सोच

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  कठिन परिस्थितियां में भी हम अगर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हैं तो हम बेहतरीन हल ढूंढ सकते हैं। अगर हम समस्या को ज्यादा बड़ा मानेंगे तो हमारा दिमाग हमें उससे जुड़ी समस्याओं के ही पहलू दिखाएगा। लेकिन अगर हमारा ध्यान उसके समाधान की तरफ होगा तो दिमाग उस समस्या के क्या क्या समाधान हो सकते हैं हमें वही पहलू दिखाएगा। इसलिए सदैव सकारात्मक सोचें।  एक बार बात है कि दो व्यापारी एक ही नगर में रहते थे . लगभग दोनों की आमदनी एक जैसी थी. एक अपनी हर परेशानी के लिए ईश्वर को कोसता रहता कि सारी परेशानियां मुझे ही क्यों आती है. दूसरा किसी भी मुश्किल के आने पर मुश्किल क्यों आई सोचने कि बजाए मुश्किल  का हल कैसे निकले यह सोचता.मरने के बाद दोनों ही भगवान के पास पहुंचे.  भगवान ने बारी-बारी से दोनों से पूछा कि, " अगले जन्म में तुम पिछले जन्म  की सी कौन सी समस्या का हल चाहते हो और कैसे ".   पहला व्यापारी बोला कि पिछले जन्म में तो मेरा गुजारा बहुत मुश्किल से चलता था. कभी बीवी घर खर्च के लिए पैसे मांगती रहती थी . कभी बच्चे स्कूल की फीस के लिए, घूमने फिरने के लिए पैसे मांगते . मां दवाइयों और दान पुण्य के

BAWA LAL DHYAL JI MAHARAJ बावा लाल दयाल जी

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 बावा लाल दयाल जी महाराज ध्यानपूर नाम ध्यानपुर बटाला तहसील , जिला गुरदासपुर पंजाब का एक गांव है. इस गांव की प्रसिद्धि का कारण  महान  संत बावा लाल दयाल जी है. यहां पर बाबा लाल दयाल जी की समाधि स्थल व् धाम है. History of Bawa Lal Dayal Ji Maharaj बाबा लाल दयाल जी एक महान संत, वैष्णवाचार्य, योगीराज , सतगुरु थे. बाबा लाल दयाल जी का जन्म 1355 ईस्वी माघ मास शुक्ल पक्ष द्वितीय को  कस्बे कसूर पाकिस्तान में हुआ था. उनके पिता का नाम भोला मल और माता का नाम कृष्णा देवी था. बचपन में ही उनके मुख पर अलौकिक शोभा थी . बाबा लाल दयाल जी के बारे में बचपन में एक भविष्यवाणी की गई थी कि यह बालक अपने साथ अपनी आने वाली पीढ़ियों का भी मार्गदर्शन करेगा . यह भविष्यवाणी भी सत्य साबित हुई. बाबा जी ने 300 वर्ष का सुदीर्घ जीवन प्राप्त किया .माना जाता है कि वह हर 100 साल बाद अपनी विद्या से बालक बन जाते थे. 8 साल की आयु में उन्होंने शास्त्रों का अध्ययन किया .10 वर्ष की आयु में उन्होंने महान गुरु संत चैतन्य स्वामी जी से मिले और उनसे नाम दीक्षा ली. बाबा जी ने देश विदेशों में घूमकर धर्म का प्रचार किया. सहारनपुर के जंगलो

SHREE KRISHNA MOR MUKUT kyun phenta hai श्री कृष्ण मोर मुकुट पर क्यों धारण करते हैं

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 श्री कृष्ण को मोर पंखधारी और मयूर भी कहा जाता है. मोर पंख श्री कृष्ण के श्रंगार का मुख्य अंग है. क्या आप जानते हैं श्री कृष्ण  मोर पंख अपने मुकुट पर क्यों धारण किया?   बार एक मोर नंद गांव में श्री कृष्ण को रिझाने के लिए प्रतिदिन भजन गाता था . लेकिन श्रीकृष्ण उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देते थे . श्री कृष्ण के इस व्यवहार से मोर एक दिन रो पडा़. उसी समय एक मैना उधर से गुजरी. उस मोर से पूछने लगी यह तो श्रीकृष्ण का द्वार है यहां क्यों रो रहे हो?   मोर मैना को बताता है श्री कृष्ण को रिझाने के लिए एक साल से प्रतिदिन यहां भजन गाता हूं. लेकिन श्री कृष्ण मेरी ओर ध्यान ही नहीं देते .मैना कहती है अगर श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त करनी है तो मेरे साथ राधा रानी के द्वार बरसाने चलो.  मोर ने जैसे ही बरसाने जाकर श्री कृष्ण का भजन गाना शुरू किया राधा रानी दौड़ी आई और उसे गले लगा लिया.   मोर ने सारा प्रसंग राधा रानी से सुनाया. राधा रानी कहने लगी तुमने जो एक साल से श्रीकृष्ण को रिझाने की कोशिश की है उसी का फल अब तुम्हें मिलेगा  अब तुम जाकर श्रीकृष्ण को कुछ और सुनाना. मोर ने कहा मैंने अपनी करुणा के बारे में ब

SHAT TILA EKADSHI VART षटतिला एकादशी व्रत

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षटतिला एकादशी व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष को  मनाई जाती है .इसदिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है .इस दिन तिल का छः तरह  से प्रयोग किया जाता है. इसलिए इसे षटतिला एकादशी कहते हैं . तिल मिश्रित जल से स्नान तिल का उबटन  तिल का हवन  तिल का दान  तेल का भोजन  तिल मिश्रित जल का सेवन करना चाहिए  षटतिला एकादशी के महत्त्व की कथा भगवान विष्णु ने नारद जी को सुनाई थी . जो इस प्रकार है एक ब्राह्मणी पृथ्वी लोक पर रहती थी जो कि भगवान विष्णु का व्रत पूजन करती थी. लेकिन किसी भी साधु-संत को दान नहीं देती थी .एक बार उस ब्राह्मणी में एक मास तक लगातार व्रत किया .जिससे उसका शरीर शुद्ध हो गया. भगवान विष्णु सोचने लगे अब इसको देवलोक में स्थान तो मिल जाएगा. लेकिन इसकी तृप्ति कैसे होगी? क्योंकि इसमें कभी भी  अन्नादि का दान नहीं किया?  भगवान विष्णु एक भिखारी के वेश में ब्राह्मणी के पास पहुंचे और उस से भिक्षा मांगी. भगवान विष्णु सोचने लगे अगर यह भिक्षा में अन्न दान करेगी तो इसकी तृप्ति हो जाएगी . लेकिन उस ब्राह्मणी ने भगवान को भिक्षा में एक मिट्टी का ढेला दे दिया .भगवान विष्णु उस मिट्टी के ढ़ेले के साथ विष्णु

SHIV PARVATI VIVAAH KATHA

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महाशिवरात्रि पर्व पर पढ़ें शिव पार्वती विवाह कथा   महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। महाशिवरात्रि पर्व के बारे में पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इस दिन भगवान शिव और माँ पार्वती का विवाह हुआ था. इस महापर्व पर भगवान शिव और माँ पार्वती की विवाह प्रसंग की कथा को  सुनना बहुत मंगलकारी माना गया है.      माँ सती के पिता राजा दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया.  यज्ञ का भाग लेने के लिए सभी देवताओं को निमंत्रण भेजा .भगवान शिव से विरोध के कारण उन्हें नहीं बुलाया सती ने बिना बुलाए ही अपने पिता दक्ष के यज्ञ में जाने के लिए भगवान शिव से अनुमति मांगी.  भगवान शिव ने कहा मित्र, पिता ,गुरु और स्वामी के घर बिना बुलाए जा सकते हैं. लेकिन जब आपस में विरोध चल रहा हो तो स्नेह  नहीं मिलेगा .मर्यादा भंग होगी .लेकिन जब किसी भी तर्क से सती नहीं मानी तो भगवान शिव ने दो गणों  को उनके साथ भेज दिया.  वहां पहुंचकर सती ने यज्ञ में भगवान शिव का भाग नहीं देखा तो उनका शरीर क्रोध की अग्नि में जलने लगा . वह अपने पिता द्वारा किया गया पति का अपमान न सह सकी और हवन कुंड की अग्नि को अपना देह त्याग कर दिया.  सती मरत