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 Hindi moral story 


एक बार एक गाँव में दो भाई रहते थे. उनके आंगन में एक  पेड़ था. वे उसके फल बेचकर अपना गुजारा कर  लेते थे .अपनी जिंदगी में कभी किसी और काम को करने के लिए उन्होंने कोशिश ही नहीं की. लेकिन अक्सर सोचते कि ईश्वर हमारी गरीबी कब दूर करेगा.

एक दिन उनका पुराना मित्र जिसके साथ दोनों बचपन में एक ही स्कूल में पढते थे ,गांव में आया. रात को उनके यहां रुक गया. अपने मित्रों की  गरीबी देख कर वह बहुत परेशान था. वह समझ गया कि खाने का इंतजाम दो लोगों का ही था. इसलिए एक भाई ने बहाना बना दिया कि आज मेरा व्रत है. मित्र ने खाना खाया और सारी रात सोचता रहा है ऐसा क्या करूं कि इन लोगों की दरिद्रता दूर हो जाए.

अगले दिन सुबह  मित्र अपना काम करके चुपचाप चला गया .पूरे गांव में शोर मच गया कि जो पेड़ दोनों भाइयों की रोजी-रोटी का साधन था. उसको उनका पुराना मित्र काट कर चला गया है. मित्र पर तरह-तरह के आरोप लगने लगे . 

पांच साल बाद  उनका मित्र फिर उसी गांव में आया तो सोचने लगा कि क्या करूं ,इस गांव में जाऊं ना जाऊं .अगर गाँव के अंदर गया तो पिटाई भी हो सकती हैं लेकिन फिर भी हिम्मत करके चला गया. सोचने लगा देखकर आता हूँ कि जो मैंने पांच साल पहले किया था उसका परिणाम क्या निकला.

 हिम्मत करके अपने मित्र के घर गया तो जाकर क्या देखता है? उस टूटे-फूटे झोपड़े की जगह एक सुंदर सा घर बना हुआ था. घर के अंदर गया तो दोनों भाइयों ने उसके चरण पकड़ लिए और कहने लगे कि अच्छा हुआ तुमने वह पेड़ काट दिया . 

इसके कारण हमने कभी बाहर जाकर काम करने का सोचा ही नहीं था. हम अपनी जिंदगी में संतुष्ट थे .पेड़ कटने के बाद हमारे पास रोजी- रोटी का कोई साधन नहीं था.अब दोनों भाई नौकरी की तलाश करने लगे.

बड़े भाई को सरपंच के जहां छोटे- मोटे कामकाज करने के लिए नौकरी मिल गई. एक दिन सरपंच की पत्नी जो कम पढ़ी लिखी थी. अपने बच्चों को ना पढ़ा पाने के कारण सरपंच से उन्हें पढ़ाने के लिए किसी अध्यापक को ढूंढने की बात कर रही थी.  उस बड़े भाई ने कहा कि मैं 10  दसवीं पास हूं. मैं आपके बच्चों को पढ़ा सकता हूं. अब सरपंच के और उसके दूसरे भाइयों के बच्चे उसके पास पढ़ने आने लगे. धीरे धीरे और लोगों के बच्चों को भी वह पढा़ने लगा.

 बड़े भाई ने कहा कि जब बच्चे मुझे मास्टर जी कहते तो,  मुझे बहुत गर्व महसूस होता .अब धीरे-धीरे पैसा और सम्मान दोनों मिलने लगा . अब पैसे और सम्मान के बल पर मेरी शादी पड़ोस के गाँव की पढ़ी-लिखी लड़की से हो गई. पत्नी ने मुझे आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया और अब मैं 12वीं की परीक्षा की तैयारी कर रहा हूं और साथ में स्कूल में बच्चों को पढ़ाता हूं. 

दूसरे भाई की नौकरी एक ढाबे पर लग गई. वहां वह ढाबे के मालिक की खाना बनाने में मदद करता था. धीरे-धीरे उसने खाना बनाना सीख लिया और वहां का प्रमुख रसोईया बन गया. अब गांव में और आस-पास के गांव में किसी के भी घर में कोई भी कार्यक्रम होता तो उसे खाना बनाने का न्यौता देते. 

इस तरह दोनों भाइयों ने पांच सालों में जितनी तरक्की कर  ली उतनी वह शायद उस पेड के रहते ना कर पाते. कई बार हमारा सुविधा क्षेत्र (कम्फर्ट ज़ोन) भी हमारी तरक्की के रास्ते की रूकावट होता है. कहने का भाव यह है कि कई बार हम लोग किसी चीज के आश्रय के कारण आत्मनिर्भर हो नहीं पाते लेकिन सफलता का एक ही रास्ता आत्मनिर्भरता है.

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