SHIV PARVATI VIVAAH KATHA
महाशिवरात्रि पर्व पर पढ़ें शिव पार्वती विवाह कथा
माँ सती के पिता राजा दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया. यज्ञ का भाग लेने के लिए सभी देवताओं को निमंत्रण भेजा .भगवान शिव से विरोध के कारण उन्हें नहीं बुलाया सती ने बिना बुलाए ही अपने पिता दक्ष के यज्ञ में जाने के लिए भगवान शिव से अनुमति मांगी.
भगवान शिव ने कहा मित्र, पिता ,गुरु और स्वामी के घर बिना बुलाए जा सकते हैं. लेकिन जब आपस में विरोध चल रहा हो तो स्नेह नहीं मिलेगा .मर्यादा भंग होगी .लेकिन जब किसी भी तर्क से सती नहीं मानी तो भगवान शिव ने दो गणों को उनके साथ भेज दिया.
वहां पहुंचकर सती ने यज्ञ में भगवान शिव का भाग नहीं देखा तो उनका शरीर क्रोध की अग्नि में जलने लगा . वह अपने पिता द्वारा किया गया पति का अपमान न सह सकी और हवन कुंड की अग्नि को अपना देह त्याग कर दिया.
सती मरते समय श्रीहरि से यह वरदान मांगा था कि उनकी प्रीति भगवान शिव के लिए जन्म - जन्म तक रहें .इसलिए अगले जन्म में उन्होंने हिमाचल के घर में माँ पार्वती के रूप जन्म लिया . जब नारदजी पर्वतराज हिमालय के घर गए तो हिमाचल राज ने उनसे अपनी पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा.
नारद जी ने कहा तुम्हारी पुत्री सारे जगत में पूज्य होगी .संसार की स्त्रियों उनका नाम लेकर पतिव्रत रूपी तलवार की धार चढ़ जाएगी . नारद जी ने कहा इसके हाथ में ऐसी रेखा है इसे योगी ,जटाधारी ,नंगा, अमंगल वेश वाला पति मिलेगा.
यह सुन कर दोनों पति -पत्नी हिमाचल और माँ पार्वती की माँ मैना ने पूछा इसका निवारण क्या है ?नारद जी ने कहा है विधाता ने जो लिख दिया इसे कोई नही मिटा सकता . नारद जी ने प्रेरणा दी की इसकी शादी भगवान शिव के साथ कर दो. जो अवगुण है वह गुण बन जाएंगे. परंतु शिव भक्ति कठिन है . पार्वती जी ने नारद जी के कहने पर भगवान शिव की कठिन तपस्या की .
भगवान शिव ने सप्त ऋषियों को पार्वती की परीक्षा लेने भेजा.सप्त ऋषियों ने कहा, "तुम नारद के कहने पर इतनी घोर तपस्या कर रही हो ".क्या नारद के कहने पर भी किसी का घर बसा है? माँ पार्वती जी ने जवाब दिया मैं मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान चुकी हूं .
नारद जी स्वयं आकर भी कह दे तो भी मैं अपना हठ नहीं छोडूंगी .सप्त ऋषियों भगवान शिव को सारा वृत्तांत सुनाया .
उसी समय तारक नाम का एक राक्षस हुआ उसने देवताओं को युद्ध में हरा दिया. वह अपने आप को अजर अमर समझता था. ब्रह्मा जी ने देवताओं को बताया कि इस की मृत्यु शिवपुत्र द्वारा होगी. सती ने पार्वती के रूप में हिमाचल के घर में जन्म ले लिए हैं .
भगवान शिव तो घोर समाधि में है . देवताओं ने कामदेव को भगवान शिव की समाधि भंग करने के लिए भेजा. जब कामदेव ने भगवान शिव के हृदय में बाण छोड़ा तो भगवान शिव की समाधि टूट गई और वह कामदेव के इस काम से क्रोधित हो गए . अपना तीसरा नेत्र खोला और कामदेव भस्म हो गया .
अपने पति की यह दशा देखकर उसकी पत्नी रति भगवान शिव से विनती करने लगी .उनके रुदन को देखकर भगवान शिव ने कहा आज से तेरे पति का नाम अनंड्ग होगा. भगवान कृष्ण जब अवतार लेंगे तो उनका पुत्र प्रद्युमन तुम्हारा पति होगा .
ब्रह्मा ,विष्णु सहित सभी देवता भगवान शिव से कहने लगे सभी अपनी आंखों से आपका शुभ विवाह देखना चाहते हैं .सप्त ऋषियों को हिमाचल के पास भेजा .उन्होंने शुभ दिन, शुभ नक्षत्र ,शुभ घड़ी से शोधवा कर लगन निश्चित कर दिया. शिव जी के गणों ने उनका श्रृंगार किया. जटाओं का मुकुट, सांपों के कुण्डल, शरीर पर विभूति रमायी, गले में विष और नर मुण्डों की माला पहन कर बैल पर सवार हो कर चल पडे़.
जब पार्वती जी की मैया भगवान शिव की आरती उतारने गई तो भगवान के भयानक रूप को देखकर सोचने लगी मैंने नारद जी का ऐसा क्या बिगाड़ा था ? जो नारद ने पार्वती को शिव से विवाह करने के लिए कठिन तपस्या करने को कहा.
तब नारद स्वयं पधारे और उन्होंने मैना को समझाया कि पार्वती जी स्वयं जगत जननी भवानी है और उन्हें सती के पुनर्जन्म की कहानी सुनाई. भगवान शिव ने फिर उन्हें अपने दिव्य रुप के दर्शन दिए .ऋषियों ने फिर वेदों में जैसी लिखी थी वैसे शादी कराई. हिमाचल में उचित दान, आदर और सम्मान के साथ बारात की विदाई की.
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शिव पार्वती के विवाह में बोला गया मंत्र
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