RAM NAAM KI MAHIMA

  हनुमान जी ने कही राम नाम की महिमा


राम नाम की महिमा अपरंपार है . राम नाम के जाप से पत्थर भी तर जाते हैं . 

लंका युद्ध से पहले जब हनुमान जी सीता माता का पता लगा कर आ गए और समुद्र देव ने श्री राम को समुद्र पर सेतु बनाने का सुझाव दिया. 

समुद्र पर सेतु निर्माण के लिए सारी वानर सेना कार्य कर रही थी. श्री राम देख रहे थे उनका नाम लिख कर पत्थर पानी में डालते हैं तो वह तर जाते हैं.

श्री राम मन में विचार करने लगे कि मेरे नाम से पत्थर तर जाते हैं तो समुद्र में मेरे द्वारा डाला गया पत्थर भी तर जाएंगा. लेकिन जैसे ही श्रीराम ने पत्थर पानी में डाला तो वह डूब गया.

श्री राम विस्मित हुए कि ऐसा क्यों हुआ? 

हनुमान जी यह सारा प्रसंग देख रहे थे.  हनुमान जी पूछने लगे कि प्रभु क्या सोच रहे हैं. श्री राम कहने लगे कि हनुमान जिस पत्थर पर मेरा नाम लिखा है वह पत्थर तर रहे हैं लेकिन पानी में मेरे द्वारा डाला गया पत्थर क्यों डूब गया.

हनुमान जी कहने लगे कि प्रभु आपके नाम को धारण करने के कारण पत्थर पानी में तैर रहे हैं लेकिन जिन पत्थरों को आप स्वयं त्याग रहे हैं उनको डुबने से कौन बचा सकता है ? अर्थात श्री राम का नाम भव सागर से तारने वाला है। 

Shri Ram quotes in Hindi and Sanskrit

हनुमान जी ने सिद्ध किया राम से बड़ा राम का नाम


कहा जाता है कि जब श्री राम अयोध्या के राजा बने तो उन की सभा में बहस हुई की राम बडे़ या फिर राम का नाम बड़ा.  

नारद जी कहते थे कि" राम का नाम बड़ा" और बाकी सभी सभा जन कहते थे कि" राम बड़े " अपने वचन को सिद्ध करने के लिए नारद जी ने एक युक्ति लगाई . जब हनुमान जी सभा में आए उन्होंने हनुमान जी को सभी ऋषि-मुनियों को प्रणाम करने के लिए कहा लेकिन महाराज जी विश्वामित्र के बारे में उन्हें कुछ नहीं बताया इसलिए उन्होंने प्रणाम नहीं किया.

उधर विश्वामित्र जी को जाकर बोल दिया, "हनुमान ने आपको प्रणाम नहीं किया. उन्होंने आपका अपमान किया है." विश्वामित्र जी ने श्री राम से कहा कि हनुमान ने मेरा अपमान किया है. इसे मृत्यु दंड दे दो. 

जब हनुमान जी को पता लगा कि श्री राम जी उन्हें मृत्यु दंड देने वाले हैं तो वह एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए. और राम राम की धुन जपने लगे. राम नाम रटते रटते उनका ध्यान लग गया. 

जब श्री राम जी वहां पहुंचे तो उन्होंने हनुमान जी पर बहुत से तीर चलाए पर हनुमान जी का एक बाल भी बांका नहीं हुआ. लेकिन अपने गुरु की आज्ञा को पूरा करने के लिए राम जी ने उन पर ब्रह्मास्त्र भी चलाया लेकिन वह भी विफल हो गया.

ऐसा इस लिए हुआ क्योंकि हनुमान जी लगातार राम राम जप रहे थे. ऋषि विशिष्ट ने फिर ऋषि विश्वामित्र से कहा कि आप राम को इस धर्म संकट से निकाल दो.हनुमान राम राम रट रहे हैं. इसलिए हनुमान का एक बाल भी बांका नहीं हो रहा .

उधर श्री राम अपने गुरु की आज्ञा पूरी ना कर पाने के कारण परेशान थे . फिर विश्वामित्र ने श्री राम को अपने वचन से मुक्त कर दिया .फिर नारद जी ने बताया कि हनुमान नेेे ऋषि विश्वामित्र का अपमान नहीं किया .

मैंने जानबूझ कर उन्हें ऋषि विश्वामित्र के बारे में बताया ही नहीं था .क्योंकि मैं सिद्ध करना चाहता था कि राम से बड़ा राम का नाम है ,और इस बात को राम भक्त हनुमान से बढ़कर और कौन सिद्ध सकता है. जो राम नाम जपते हैं उनका कोई बुरा नहीं कर सकता.उस दिन सिद्ध हो गया राम से बड़ा राम का नाम है.

कलयुग में राम नाम की महिमा तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में की है कि-

 कलियुग जोग न जग्य न  ग्याना । 

 एक     अधार   राम गुन   गाना ।। 

सब भरोस तजि जो भज रामहि।        

प्रेम  समेत  गाव   गुन     ग्रामहि ।। 

भाव - तुलसीदास जी कहते हैं कि  कलयुग मे न योग है, ना यज्ञ है, ना ही ज्ञान है  केवल राम नाम ही एक आधार है जो सब भरोसे त्याग कर श्री राम का नाम सिमरन करता है और उनके गुणों का गान करता है.


सोई भव तर कछु संसय नाहीं। 

नाम प्रताप  प्रगट कलि माहीं।। 

कलि कर  एक पुनीत प्रतापा। 

मानस पुन्य  होहिं नहीं पापा।। 

भाव - श्री राम का नाम जपने वालि भव सागर तर जाता है इसमें कोई भी संदेह नहीं है. नाम का प्रताप तो कलयुग में प्रत्यक्ष है. कलयुग का एक पुनीत प्रताप है कि मानसिक पुण्य तो होते हैं लेकिन मानसिक पाप नहीं होते हैं.


दोहा - कलियुग सम जुग आन नहीं जौं कर विश्वास। 

        गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनहिं प्रयास।। 

भाव - अगर आप विश्वास करे तो कलयुग के समान कोई युग नहीं है क्योंकि कलयुग में श्री राम के निर्मल गुणों का गान कर मनुष्य संसार रूपी भव सागर से बिना परिश्रम ही तर जाता है.


काल    धर्म  नहीं  ब्यापहिं ताही । 

रघुपति चरन   प्रीति अति  जाही।। 

नट कृत बिकट कपट खगनायक । 

नट     सेवक    न ब्यापइ   माया।। 

भाव - जिसकी श्री राम के चरणों में प्रीति है उनको काल धर्म नहीं व्यापते. हे पक्षी राज!  जैसे नट ( बाजीगर) का किया कपट(खेल) देखने वाले के लिए विकट( दुर्गम) होता है लेकिन बाजीगर के सेवक ( जंभूरे) को उसकी माया नहीं व्यापती भाव सेवक को उसका खेल दुर्गम नहीं लगता है.


दोहा- हरि माया कृत दोष गुन बिनु हरि भजन न जाहिं । 

भजिअ राम तजि काम सब अस बिचारि मन माहिं।। 

भाव- श्री हरि की माया से रचे हुए दोष और गुण श्री हरि (राम) के भजन के बिना नहीं जाते. ऐसा  सोच कर सब कामनाओं को छोड़कर कलयुग में श्री राम के नाम का भजन करना चाहिए


 

पढ़े श्री राम नाम का वर्णन कहाँ कहाँ है

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