SHRI KRISHNA AUR BHAGWAAN SHIV YUDH श्री कृष्ण और शिव जी का युद्ध

 श्री कृष्ण और भगवान शिव के बीच में एक भयंकर युद्ध बाणासुर के कारण हुआ था . पढ़े क्या था युद्ध का कारण और युद्ध का क्या परिणाम निकला . 

बाणासुर नाम का एक असुर हुआ. बाणासुर दैत्य राज बलि का पुत्र था. वह भगवान शिव का भक्त था . उसने भगवान शिव से तपस्या करके हजारों भुजाओं का वरदान मांगा और वर मांगा कि भगवान शिव उसके किले के रक्षक बने. 

भगवान शिव को यह सुनकर कुछ अपमानित महसूस हुआ लेकिन बाणासुर के वर मांगने के कारण भगवान शिव उसके किले के रक्षक बन गए. अब बाणासुर अत्यंत शक्तिशाली हो गया और देवता उससे भयभीत रहने लगे. 

एक दिन बाणासुर की भगवान शिव से युद्ध करने की इच्छा हुई .भगवान शिव ने कहा कि मैं तुमसे युद्ध नहीं कर सकता लेकिन तुम्हें पराजित करने वाला कृष्ण इस धरती पर अवतार ले चुका है .  भगवान शिव ने कहा कि जब तुम्हारे किले की ध्वजा गिर जाए तो समझ लेना कि तेरा शत्रु आ चुका है.

यह सुनकर बाणासुर ने भगवान शिव की कठिन तपस्या की . उसने वरदान मांगा कि जब कृष्ण से मेरा युद्ध होगा तो आप मेरे प्राणों की रक्षा करेंगे . भगवान शिव ने उसे यह वरदान दे दिया .

बाणासुर की एक पुत्री थी जिसका नाम  उषा था.  उषा से शादी के लिए बहुत से राजा महाराजा आए लेकिन बाणासुर सब का अपमान करके विवाह करने से मना कर देता .बाणासुर को भय था कि कहीं उषा उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी से विवाह ना कर ले. इसलिए उसने एक किला बनवाया और उसमें उषा को कैद करवा दिया.

 एक रात्रि उषा को सपना आया जिसमें उसने एक सुंदर राजकुमार को देखा. उसने अपना स्वप्न अपनी सखी चित्रलेखा को सुनाया. चित्रलेखा को एक वरदान मिला हुआ था. वह बहुत सुंदर कला- कृतियाँ बनाती थी. उसने उषा की आंखों में अपनी माया से स्वप्न को देखकर अपनी कला से  उसने सुंदर राजकुमार का चित्र बनाया.

 उस चित्र को देखकर उषा को राजकुमार से प्रेम हो गया. चित्रलेखा ने बताया कि यह सुंदर राजकुमार श्री कृष्ण का पौत्र अनिरुद्ध है. चित्रलेखा ने अपनी माया से उसे उषा के सामने ला दिया. उषा को देखकर अनिरुद्ध भी उस पर मोहित हो गया और दोनों ने गुप्त रूप से शादी कर ली.

यह खबर जब बाणासुर को मिली तो उसने अनिरुद्ध को कैद कर लिया क्योंकि उसके किले की ध्वजा गिर गई थी और वह समझ गया कि उसे पराजित करने वाला आ चुका है. जब श्री कृष्ण और बलराम को इस बात का पता चला तो उन्होंने अनिरुद्ध को छुड़ाने के लिए बाणासुर के राज्य पर चढ़ाई कर दी. दोनों ओर के वीरों ने अपने शौर्य का परिचय दिया. बाणासुर जब हारने लगा तो उसने भगवान शिव का स्मरण किया.

भगवान शिव जब प्रकट हुए तो श्री कृष्ण और शिव जी आमने-सामने थे दोनों मन में बाणासुर का धन्यवाद भी कर रहे थे जिसके कारण वे एक दूसरे के आमने-सामने दर्शन कर पाए. 

 युद्ध शुरू हुआ श्री कृष्ण और शिव जी ने एक दूसरे पर कई तरह के अस्त्र-शस्त्र चलाएं लेकिन दोनों को उससे कोई हानि नहीं हुई .श्री कृष्णा ने निंद्रास्त्र चलाकर भगवान  शिव को कुछ समय के लिए सुला दिया और श्रीकृष्ण ने बाणासुर की भुजाएं काटनी शुरू कर दी जिस पर वह अभिमान करता था .जब उसकी चार भुजा ही शेष रह गई तो अचानक शिवजी की नींद खुल गई और बाणासुर की यह दशा देखकर क्रोधित हो गए. 

उन्होंने अपना "शस्त्र शिवज्वर अग्नि" चलाया जिससे चारों ओर ज्वर  और बीमारियां फैल गई. श्री कृष्ण ने  "नारायणज्वर शीत  शस्त्र " चलाया जिससे ज्वर का नाश हो गया लेकिन इस युद्ध से सृष्टि के विनाश का डर पैदा हो गया.

सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए सभी देवताओं ने मां दुर्गा की आराधना की .तब माता ने दोनों पक्षों को शांत किया

 शिव जी ने कहा कि वह केवल अपने वचन के कारण बाणासुर की रक्षा कर रहे हैं . वह चाहते हैं कि श्री कृष्ण बाणासुर के प्राण ना ले. श्री कृष्ण ने कहा कि मैं बाणासुर को मारूंगा नहीं क्योंकि भगवान विष्णु ने प्रह्लाद को  वर दिया था कि 21 पीढ़ी तक उसके वंशजों को उनका भी अवतार नहीं मारेगा.  श्री कृष्ण ने कहा कि वह केवल अपने पौत्र अनिरुद्ध की आजादी चाहते हैं . 

श्री कृष्ण की मंशा जानकर दोनों पक्षों में सुलह हो गई . श्री कृष्ण और शिव जी के बीच  युद्ध खत्म हो गया . बाणासुर ने दोनों देवताओं श्री कृष्ण और भगवान शिव से क्षमा  मांगी  कि उसके कारण दोनों में युद्ध हुआ. बाणासुर ने अनिरुद्ध को रिहा कर दिया और उसने उषा और अनिरुद्ध का विवाह करवा दिया. 

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