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Showing posts from April, 2021

SUNDER KAND सुंदरकाण्ड

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सुंदरकांड तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस का पंचम कांड है . सुंदरकांड में हनुमान जी का लंका में जाना और लंका में सीता माता से मिल कर प्रभु की मुद्रिका और संदेश देना, लंका दहन करके हनुमान जी का वापस आना और श्री राम जी का सेना के साथ समुद्र तट के लिए प्रस्थान आदि प्रसंग आते हैं. तुलसीदास जी कहते हैं शांत ,अप्रमेय, मोक्ष रूप ,शांति देने वाले करुणा की खान, राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने  वाले जगदीश्वर कि मैं वंदना करता हूं . हनुमान जी का लंका के लिए प्रस्थान  जाम्बवान् के वचन सुनकर हनुमानजी कहने लगे जब तक मैं लौट कर ना आऊं , आप मेरी राह देखना . यह कहकर रघुनाथ  जी को शिश निवाकर हनुमान जी चले .   हनुमान जी समुद्र के किनारे जो पर्वत था उस पर बड़े  वेग चढ़े तो वह पर्वत पाताल में धंस गया.समुंदर ने मैनाक पर्वत को हनुमान जी को राम जी का दूत जानकर उसकी थकावट दूर करने को कहा . लेकिन हनुमान जी ने उसे हाथ से छू दिया और कहा कि श्रीराम का काम किए बिना मुझे विश्राम कहां ?  हनुमान जी की सुरसा से मिलना  देवताओं ने जब हनुमान जी को जाते देखा तो उनकी परीक्षा लेने सुरसा नाम की सर्पों की माता को भेजा. वह हनुमान जी

SHRI RAM JANAM KATHA

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 श्री राम जन्म कथा   राम नवमी का पर्व हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है. चैत्र मास शुक्ल नवमी तिथि के दिन राम नवमी का त्यौहार मनाया जाता है. इस दिन को भगवान विष्णु के अवतार श्री राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. श्रीराम भगवान विष्णु के सातवें अवतार है . श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है. एक आदर्श भाई, आदर्श पुत्र और आदर्श शासक थे .आज भी लोग किसी अच्छे पुत्र के उदाहरण देते हो तो कहते हैं पुत्र हो तो राम जैसा. राज्य हो तो राम राज्य जैसा . श्री राम और सीता जी की जोड़ी को भी आदर्श जोड़ी माना जाता है .  श्रीराम के नाम को तो श्री राम से भी बड़ा माना गया है. तुलसीदास जी के अनुसार, "राम नाम निर्गुण ब्रह्म और सगुण राम दोनों से बड़ा है " पौराणिक कथा के अनुसार रावण नाम के राक्षस ने देवताओं को अपने अधीन कर लिया और जहां भी यज्ञ, श्राद्ध,वेद पुराण की कथा होती वहां उसके भेजे राक्षस बहुत उत्पात मचाते. पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ गए तो पृथ्वी गाय का रूप धारण करके ब्रह्मा जी के पास गई .ब्रह्मा जी के साथ मिलकर सब ने भगवान विष्णु की स्तुति की .तब आकाशवाणी हुई थी मैं सूर्यवंश मे

ISHWAR BARA DAYALU HAI

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ईश्वर बड़ा दयालु है एक प्रेरणादायक कहानी  ईश्वर बड़ा दयालु (दया करने वाला, कृपालु) है", कहानी सिद्ध करती है कि ईश्वर पर विश्वास करने वाले किसी भी समस्या के आने ईश्वर को उलाहना नहीं देते . बल्कि हर परिस्थिति में उस पर शुक्रिया करते हैं और सदैव सकारात्मक सोचते हैं। एक बार एक राजा के महल में बहुत सुंदर बाग था . उसमें तरह - तरह के फल लगे हुए थे .राजा ने बाग की देखभाल के लिए एक माली को रखा हुआ था. जो कि बड़ी लगन से बाग की देखभाल करता. वह राजा को हर रोज बाग का कोई ना कोई ताजा फल टोकरी में भर खाने को देता . उस माली को ईश्वर के प्रति बहुत निष्ठा थी .उसे लगता था कि ईश्वर जो भी करता है अच्छे के लिए ही करता है. ईश्वर बड़ा ही दयालु है . एक दिन उसने सोचा कि वह राजा के लिए पके हुए फलों में से सेब, केला, अमरुद, अंगूर,संतरा क्या ले जाए? फिर उसे लगा कि अंगूर ज्यादा पके हुए हैं और मीठे हैं. आज वही राजा जी के लिए ले जाता हूं.  माली ने अंगूरों की टोकरी राजा के सामने रखी .राजा ने एक अंगूर खाया सच में बहुत ही मीठे अंगूर थे . राजा के मन में न जाने क्या खुराफात आई ?  राजा एक अंगूर खाता और एक अंगूर किसान

चैत्र नवरात्रि 2021 CHAITAR NAVRATRI

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  इस बार चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल दिन मंगलवार से शुरू हो रहे हैं और समाप्ति 21 अप्रैल को होगी.  चैत्र नवरात्रि के साथ ही हिन्दू नववर्ष प्रारंभ होता है. चैत्र नवरात्रि में राम नवमी का त्यौहार मनाया जाता है. मान्यता है कि रामनवमी के दिन श्रीराम ने अवतार लिया था. माना जाता है कि नवरात्रि में मां पृथ्वी पर अपने भक्तों के बीच में रहती है. इस लिए भक्त माँ दुर्गा को खुश करने के लिए पाठ पूजा करते हैं. माँ की आरती, चालीसा, दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं और माँ की भेंटे गाते हैं. नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा की जाती है. 13 अप्रैल से नवरात्रि शुरू हो रही जानिए  हर एक नवरात्र की तारीख .  13 -  अप्रैल   मां शैलपुत्री  पूजा, घटस्थापना 14 -  अप्रैल   मां ब्रह्मचारिणी पूजा 15 -  अप्रैल   मां चंद्रघंटा पूजा 16 -  अप्रैल   मां कुष्मांडा पूजा  17 -  अप्रैल   मां स्कंदमाता पूजा 18 - अप्रैल    मां कात्यानी पूजा 19 - अप्रैल    मां कालरात्रि पूजा 20 - अप्रैल    मां महागौरी पूजा दुर्गा मां अष्टमी  21 - अप्रैल    मां सिद्धिदात्री पूजा , राम नवमी नवरात्रि में मां दुर्गा के आगमन का विशेष महत्व है.हर वर्ष नवरा

KISHKINDHA KAND किष्किन्धा काण्ड

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  किष्किन्धा काण्ड तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस का एक खण्ड (भाग, सोपान) है. यह काण्ड अरण्य   काण्ड के बाद आता है . इस कांड में श्री राम और हनुमान जी का मिलन, श्रीराम का सुग्रीव से मित्रता करना, बालि वध और वानर सेना का माता सीता को खोजने जाने के प्रसंग आते हैं.  हनुमान जी का ब्राह्मण वेश में श्री राम से मिलन सुग्रीव जी ने हनुमान जी को ब्रह्मचारी रूप धरकर श्रीराम के पास उनके मन की बात जाने के लिए भेजा कि कहीं वह बालि के भेजे हुए तो नहीं है ?  हनुमान जी ब्राह्मण वेश में श्री राम के पास पहुंचे . हनुमान जी कहने श्रीराम से पूछते हैं कि क्या आप ब्रह्मा , विष्णु ,  महेश तीनों में से कोई एक हो ? या फिर नर नारायण दोनों हो .  श्रीराम ने कहा कि,"हम कौशल राज दशरथ के पुत्र हैं . राम लक्ष्मण हमारा नाम है . पिता का वचन मानकर हम वन में आए हैं .हमारे साथ एक सुकुमारी स्त्री थी जिसे राक्षस ने हर लिया है . हम उसे खोजते हुए जहां आए हैं .  इतना वचन सुनते ही हनुमान जी ने श्री राम के चरणों को पकड़ लिया . हनुमान जी कहने लगे कि आपकी माया के वश मैं आपको पहचान नहीं पाया . फिर हनुमान जी अपने वास्तविक रूप में

ARANYA KAND अरण्यकाण्ड

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अरण्यक काण्ड तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस का एक खण्ड (भाग, सोपान) है. यह काण्ड अयोध्या काण्ड के बाद आता है .  एक बार वन में रहते हुए प्रभु श्री राम ने सुंदर फूल चुनकर उसके गहने बनाकर सीता जी को पहनाए . उसी समय इंद्र का मूर्ख पुत्र जयंत को श्रीराम का बल देखने की इच्छा से हुई. वह कोए का रूप धरकर सीता जी के चरणों में चोंच मार कर भाग गया . जब श्रीराम ने जाना तो उन्होंने धनुष पर बाण का संधान  कर उसके पीछे छोड़ दिया. बाण को पीछे आता देखकर वह अपने असली रूप को धरकर अपने पिता इंद्र ,ब्रह्मलोक ,शिवलोक, और समस्त लोकों में गया.लेकिन श्रीराम का शत्रु जानकर किसी ने भी उसे शरण ना दी . नारद जी ने जयंत को व्याकुल देखकर उसे प्रभु श्री राम की शरण में भेजा. उसने आतुर होकर प्रभु श्रीराम के चरण पकड़ लिए. प्रभु श्री राम ने उसे एक आंख से काना करके छोड़ दिया.  श्रीराम का चित्रकूट छोड़ कर जाना और अत्रि ऋषि से मिलन  प्रभु श्री राम में चित्रकूट में बहुत से चरित्र किए . श्री राम ने अनुमान लगा लिया कि यहां पर सब लोग मेरे बारे में जान गए हैं . इसलिए वह यहां बड़ी भीड़ हो जाएगी. प्रभु श्रीराम ने मुनियों से विदा ली. श

AYODHYA-KAND अयोध्या कांड

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  अयोध्या काण्ड तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस का एक खण्ड( भाग या सोपान) है. तुलसीदास जी कहते हैं, "मैं श्री गुरु के चरणों के रज से अपने मन रूपी दीपक को साफ करके श्री राम   के  निर्मल यश  का वर्णन करना चाहता हूं जिससे चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त होते हैं ".  जब से श्री रामचंद्र जी विवाह करके अयोध्या में आए हैं . तब से मानो सभी रिद्धि सिद्धि और ऐश्वर्या का समुद्र उमड़ पड़ा हो.एक दिन राजा दशरथ ने दर्पण में अपने सफेद बाल देखे. उन्हें लगा कि अब मुझे श्री राम को युवराज पद देकर अपना जीवन सफल बना लेना चाहिए. उन्होंने अपनी इच्छा गुरु वशिष्ट जी को सुनाई.गुरु जी से आज्ञा मिलते ही उन्होंने मंत्रियों को श्री राम के राज्याभिषेक की तैयारी करने की आदेश दिया . यह खबर सुनकर पूरी अयोध्या में और रनिवास में खुशी की लहर दौड़ गई . जहां श्री राम के  राज्याभिषेक की खबर सुनकर पूरी अयोध्यापुरी में बधावे बज रहे थे .वहां दूसरी तरफ देवता सरस्वती जी से वंदना करते हैं कि कुछ ऐसा करें जिससे श्री राम राज्य त्याग कर वन चले जाएं.    सरस्वती ने मन्थरा नाम कैकेयी की एक दासी को अपयश की पिटारी बनाकर