SUNDER KAND सुंदरकाण्ड
सुंदरकांड तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस का पंचम कांड है . सुंदरकांड में हनुमान जी का लंका में जाना और लंका में सीता माता से मिल कर प्रभु की मुद्रिका और संदेश देना, लंका दहन करके हनुमान जी का वापस आना और श्री राम जी का सेना के साथ समुद्र तट के लिए प्रस्थान आदि प्रसंग आते हैं. तुलसीदास जी कहते हैं शांत ,अप्रमेय, मोक्ष रूप ,शांति देने वाले करुणा की खान, राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर कि मैं वंदना करता हूं . हनुमान जी का लंका के लिए प्रस्थान जाम्बवान् के वचन सुनकर हनुमानजी कहने लगे जब तक मैं लौट कर ना आऊं , आप मेरी राह देखना . यह कहकर रघुनाथ जी को शिश निवाकर हनुमान जी चले . हनुमान जी समुद्र के किनारे जो पर्वत था उस पर बड़े वेग चढ़े तो वह पर्वत पाताल में धंस गया.समुंदर ने मैनाक पर्वत को हनुमान जी को राम जी का दूत जानकर उसकी थकावट दूर करने को कहा . लेकिन हनुमान जी ने उसे हाथ से छू दिया और कहा कि श्रीराम का काम किए बिना मुझे विश्राम कहां ? हनुमान जी की सुरसा से मिलना देवताओं ने जब हनुमान जी को जाते देखा तो उनकी परीक्षा लेने सुरसा नाम की सर्पों की माता को भेजा. वह हनुमान जी