ARANYA KAND अरण्यकाण्ड





अरण्यक काण्ड तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस का एक खण्ड (भाग, सोपान) है. यह काण्ड अयोध्या काण्ड के बाद आता है . 

एक बार वन में रहते हुए प्रभु श्री राम ने सुंदर फूल चुनकर उसके गहने बनाकर सीता जी को पहनाए . उसी समय इंद्र का मूर्ख पुत्र जयंत को श्रीराम का बल देखने की इच्छा से हुई. वह कोए का रूप धरकर सीता जी के चरणों में चोंच मार कर भाग गया .

जब श्रीराम ने जाना तो उन्होंने धनुष पर बाण का संधान  कर उसके पीछे छोड़ दिया. बाण को पीछे आता देखकर वह अपने असली रूप को धरकर अपने पिता इंद्र ,ब्रह्मलोक ,शिवलोक, और समस्त लोकों में गया.लेकिन श्रीराम का शत्रु जानकर किसी ने भी उसे शरण ना दी .

नारद जी ने जयंत को व्याकुल देखकर उसे प्रभु श्री राम की शरण में भेजा. उसने आतुर होकर प्रभु श्रीराम के चरण पकड़ लिए. प्रभु श्री राम ने उसे एक आंख से काना करके छोड़ दिया. 

श्रीराम का चित्रकूट छोड़ कर जाना और अत्रि ऋषि से मिलन

 प्रभु श्री राम में चित्रकूट में बहुत से चरित्र किए . श्री राम ने अनुमान लगा लिया कि यहां पर सब लोग मेरे बारे में जान गए हैं . इसलिए वह यहां बड़ी भीड़ हो जाएगी. प्रभु श्रीराम ने मुनियों से विदा ली. श्रीराम, सीता जी ,लक्ष्मण जी सहित अत्रि ऋषि के आश्रम में गए. 

अत्रि ऋषि ने श्रीराम को अपने हृदय से लगा लिया.  उन्होंने ने प्रभु श्री राम को आसन पर बिठा कर उनकी स्तुति की . हे लक्ष्मीपति , हे सुखो स्वरूपा- शक्ति श्री सीता जी को मैं भजता हूं . मेरी बुद्धि कभी भी आपके चरणों को ना छोड़े. 

रामचरितमानस के प्रसिद्ध दोहे चौपाई

अनसूया जी का सीता जी को पतिव्रत धर्म कहना

सीता जी विनम्रता पूर्वक अत्रि ऋषि की पत्नी अनसूया जी से मिली . उन्होंने सीता जी को दिव्य वस्त्र और आभूषण दिए जो कि नित्य नए निर्मल और सुहावने बने रहते हैं .अत्रि ऋषि की पत्नी अनसूया जी ने सीता जी को स्त्री धर्म की शिक्षा दी . उन्होंने ने कहा कि, "माता-पिता भाई सहित सभी हित करने वाले हैं लेकिन पति तो असीम सुख देने वाला है. जो स्त्री पति की सेवा नहीं करती उसे यमपुरी में भी दुख सहने पड़ते हैं".

धीरज  धर्म  मित्र  अरु  नारी                            

आपद काल परिखि अहि चारी

 धैर्य ,धर्म, मित्र और स्त्री इन चारों की परीक्षा विपत्ति में होती हैं .उन्होंने कहा कि संसार में 4 तरह की पतिव्रता हैं  . 

 उत्तम श्रेणी की पतिव्रता के मन में यह भाव होता है कि उसके पति को छोड़कर मेरे स्वपन में भी दूसरा पुरुष ना आए.

 मध्यम श्रेणी की पतिव्रता दूसरे पुरुष को अपने भाई, पिता या पुत्र के समान समझती हैं .

जो स्त्री भयवश पतिव्रता रहती है उसे अधम जानना चाहिए .जो स्त्री पति को धोखा देती है उसे नर्क की यातना झेलनी पड़ती है.

लेकिन जो स्त्री पतिव्रत धर्म का पालन करती है . उसे शुभ गति प्राप्त होती है.

 हे सीता तुम्हारा नाम लेकर स्त्रियाँ पतिव्रत धर्म का पालन करेंगी. तुमको तो श्रीराम प्राणों से भी प्रिय हैं. मां जानकी ने उनके वचन सुनकर परम सुख प्राप्त किया .

श्रीराम ने अत्रि ऋषि से विदा ली और श्रीराम, सीता  जी और लक्ष्मण जी वन को चले .रास्ते में उन्हें विराध राक्षस मिला .  श्री राम ने उसे मार डाला और उसे परमधाम पहुँचा.

श्रीराम का शरभंगजी से मिलना 

 श्री राम  ,सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ वहां आए जहां शरभंगजी थे . शरभंगजी ऋषि ने कहा कि, "हे प्रभु मैं आपके दर्शनों को लिए दिन-रात राह देख रहा था.  एक बार ब्रह्मलोक जाते हुए मैंने सुना था कि, "श्री राम इस वन में आएंगे". 

आपको देख कर मैं धन्य हो गया. अपना जप, यज्ञ ,तप, जाप और व्रत आदि  जो मुनि ने किए थे. वो  प्रभु श्री राम को अर्पण करके उसके बदले भक्ति का वरदान लिया. शरभंगजी ने योगग्नि से अपने शरीर को जला डाला और बैकुंठ को चले गए. 

श्रीराम का राक्षस वध की प्रतिज्ञा लेना

श्री रघुनाथ जी ने आगे वन में हड्डियों का ढेर देखा तो मुनिया से उसके बारे में पूछा. मुनियों ने बताया कि जिन मुनियों को राक्षसों ने खाया है. ये उन मुनियों की हड्डियों का ढेर है . यह सुनकर प्रभु ने पृथ्वी को राक्षस रहित करने का प्रण लिया.

श्री राम और अगस्त्य ऋषि मिलन और संवाद

फिर प्रभु श्री राम , सीता जी और लक्ष्मण जी ऋषि अगस्त्य के आश्रम में पहुंचे . अगस्त्य ऋषि ने प्रभु को आसन पर बैठाया और विधि पूर्वक उनकी पूजा की .

श्री राम ने मुनि से कहा कि, " आप तो जानते हैं मेरा वन में आगमन राक्षसों के विनाश के लिए हुआ है ". आप मुझे बताएं कि मैं कैसे उनको मारूं ? 

ऋषि कहने लगे आप तो सब लोकों के स्वामी हैं . आप मुझसे प्रश्न कर रहे हैं .आप सदा अपनी सेवकों को बढ़ाई देते हैं इसलिए आप  मुझसे पूछ रहे हैं . फिर अगत्स्य मुनि कहने लगे कि, "प्रभु पंचवटी नाम का पवित्र स्थान है  वहाँ आप दंडकवन को पवित्र करे "

श्री राम का पंचवटी में निवास

मुनियों की आज्ञा पाकर प्रभु श्रीराम पंचवटी के निकट पहुंचे तो वहाँ उनकी भेट गृध्रराज जटायु से हुई. पंचवटी में प्रभु श्रीराम पर्णकुटी बनाकर रहने लगे .

शूर्पणखा और श्रीराम, लक्ष्मण संवाद

एक बार रावण की बहन शूर्पनखा जोकि नागिन के समान दुष्ट हृदय की थी .सुंदर रूप धरकर उनके पास आई और कहने लगे कि " मेरे योग्य जगत में कोई पुरुष नहीं  मिला तुम दोनों को  देखकर आज मेरा मन माना है ".

श्री राम ने सीता जी की ओर देखकर कहा कि मेरा छोटा भाई कुमार है. फिर वह लक्ष्मण जी के पास गई.लक्ष्मण जी ने कहा  कि," तुमे वही वरेगा जो लज्जा का त्याग करेगा".

क्रोधित होकर शुर्पनखा ने भयानक रूप धारण कर लिया . जिसे देखकर सीता जी भयभीत हो गई .लक्ष्मण जी ने प्रभु के इशारे पर उसे नाक, कान से हीन कर दिया. मानो उसके हाथों रावण को चुनौती दी हो. उसके शरीर से रक्त बहने लगा. 

शूर्पणखा का खर दूषण के पास जाना और खर दूषण वध

वह अपने भाई खर दूषण के पास विलाप करती हुई थी और कहने लगी कि, "तुम्हारी वीरता को धिक्कार है". इतना सुन दोनों भाई सेना लेकर चले . जब श्रीराम ने देखा कि राक्षसों की सेना आ रही है. उन्होंने लक्ष्मण जी से कहा कि,"तुम जानकी को लेकर पर्वत की कंदरा में चले जाओ ".

प्रभु श्रीराम कमर में तरकस कसकर  विशाल भुजाओं में धनुष लेकर राक्षसों को देख रहे हैं. खर दूषण ने अपने दूतों को श्री राम के पास संदेश भेजा कि अपनी छुपाई हुई स्त्री हमें दे दो और दोनों भाई जीते जी वापस चले जाओ.

दूतों ने संदेशा प्रभु श्री राम को दिया . प्रभु मुस्कुराकर  बोले कि हम छत्रिय हैं. हम तो काल से भी लड़ जाएं . हम ऋषि मुनियों की रक्षा करने वाले हैं और दुष्टों को दंड देने वाले हैं .

अगर तुम लोगों में शक्ति ना हो तो वापस लौट जाओ. युद्ध में पीठ दिखाने को वालों को मैं नहीं मारता . जब खर दूषण को प्रभु का संदेशा मिला तो है वे अस्त्र-शस्त्र लेकर श्रीराम पर बरसाने लगे . 

श्रीराम में उनके शस्त्रों को तिल के समान टुकड़ों में काट डाला  . राक्षसों के बहुत से योद्धा मारे गए. अपने योद्धाओं को व्याकुल देखकर त्रिशरा, खर दूषण श्रीराम की ओर आए और श्रीराम पर प्रहार करने लगे.

श्रीराम ने क्षण भर में उनके शस्त्रों को काट डाला.  क्षण भर में सभी राक्षसों का विनाश हो गया. जिसे देखकर देवता फूल बरसाने लगे . लक्ष्मण  जी सीता जी को ले आए. 

शूर्पणखा का रावण को भड़काना

खर दूषण के मरण के बाद शर्पूनखा ने रावण को भड़काया की तुम्हारे जीते जी मेरी यह दशा हो गई है. वह अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र हैं . मुझे उनकी करनी से ऐसा लगा कि, "मानो पृथ्वी को राक्षसों से विहीन करने कर देंगे". वह राक्षसों का वध करके देवताओं और मुनियों को सुख दे रहे हैं . 

उनका नाम राम है. उनके साथ जो सुंदर स्त्री है मानो उस पर सौ रति न्यौछावर हो. मैंने उनसे कहा कि, "मैं तेरी बहन हूं तो मेरी हंसी करने लगे ". मेरे नाक, कान काट दिए .मेरी पुकार सुनकर खर दूषण आए तो उन्होंने सेना सहित खर , दूषण और त्रिशरा को मार डाला.

 रावण विचार करने लगा कि मेरे भाई मेरे समान ही बलवान थे. भगवान के सिवाय उन्हें कोई नहीं मार सकता . लगता है भगवान ने पृथ्वी पर अवतार ले लिया है . मैं जाकर हठपूर्वक  उनसे  वैर करूंगा .उनके बाण से प्राण त्याग कर भवसागर तर जाऊंगा. 

अगर वह दोनों नर के रूप में सुंदर राजकुमार हुए तो भी उनको पराजित करके उनकी स्त्री को छीन लूंगा . रावण ऐसा विचार कर मरीच के पास गया.

सीता जी का अग्नि में प्रवेश

 लक्ष्मण जी जब वन में कंदमूल लेने गए थे तब श्री राम ने सीता जी से कहा कि, "तुम पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली हो .मैं राक्षसों का विनाश करने के लिए मनुष्य लीला करूंगा . तुम तब तक अग्नि से में निवास करना " .

श्री राम की बात समझ कर सीता जी अग्नि में समा गई और उन्होंने अपने जैसा रूप और शील वाली छाया मूर्ति वहां रख दी .भगवान की इस लीला को लक्ष्मण जी भी नहीं जान पाए.

मारीच और रावण संवाद

मरीच ने रावण से आदर पूर्वक पूछा कि, " आप अकेले आए हैं ? रावण ने मरीच को सारी बात सुनाई और कहा कि तुम कपट मृग बनो जिससे मैं राजवधू का अपहरण कर लूं.

मारीच रावण को समझाने लगा कि यही राजकुमार मुनि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करने के लिए आए थे. श्रीराम ने मुझे बिना फल का बाण मारा था  .जिस से मैं सौ योजन पर आ गिरा था. वह मनुष्य के रूप में ईश्वर हैं. यदि वह मनुष्य हैं तो भी बहुत शूरवीर हैं .उनसे विरोध करके सफलता नहीं मिलेगी .

जिसने ताड़का, सुबाहु, खर ,दूषण और त्रिशिरा का वध किया, ऐसा बल क्या किसी मनुष्य में हो सकता है ? अपने कुल की कुशल चाहते हो तो अपने राज्य में लौट जाओ. इतना सुनते ही रावण मारीच को गालियां देने लगा. 

   मरीज ने हृदय में अनुमान किया कि नौ लोगों   शस्त्रधारी , भेद जानने वाले ,स्वामी, मूर्ख, धनवान,     वैद्य ,भाट ,कवि और  रसोइये से कभी भी वैर नहीं करना चाहिए . 

मारीच ने सोचा कि अगर मैं रावण की बात ना मानूंगा वह उसी क्षण मुझे मार देगा . उससे तो अच्छा है मैं श्री राम के बाण से मरू. 

स्वर्ण मृग प्रसंग

 जब रावण उस वन के करीब पहुंचा जहां श्री राम थे . तब मारीच ने  ऐसा सुंदर कपट मृग का रूप बनाया कि मानो  उसका शरीर मणियों से जड़ा हुआ हो. सीता जी ने जब सुंदर हिरण को देखा तो श्रीराम से कहने लगी कि इसकी छाल बहुत सुंदर है . इसे मार कर इसका चमड़ा ला दीजिए .

श्रीराम जो मरीच के कपट मृग बनने का कारण जानते थे . वह देवताओं का कार्य करने के लिए हर्षित हुए . श्रीराम ने हाथ में धनुष लेकर उस पर दिव्या बाण चढ़ाया. श्री राम लक्ष्मण जी से कहने लगे कि जंगल में बहुत से राक्षस फिरते हैं . तुम सीता की रखवाली करना.

मारीच का वध

श्री राम को देखकर मृग भागा और श्री राम  उसके पीछे  दौड़े . मृग छल करता हुआ श्री राम को दूर ले गया . जब श्रीराम ने उसे बाण मारा  तो उसने पहले लक्ष्मण जी का नाम लेकर और फिर श्री राम का स्मरण करके प्राण त्याग दिए . प्रभु  श्रीराम ने उसे परम गति दी 

मरीज का वध करके श्री राम लौट पड़े .उधर जब मरीच ने मरने से पहले हा !लक्ष्मण की दुख भरी आवाज लगाई तो सीता जी लक्ष्मण जी से कहने लगी  कि " लगता है तुम्हारे  भ्राता संकट में हैं ". लक्ष्मण जी ने बहु विधि सीता माता को समझाया कि प्रभु श्रीराम तो स्वपन में भी संकट में नहीं पड़ सकते . 

 सीता जी के कुछ मर्म वचन कहने पर लक्ष्मण जी सीता जी को वन और दिशाओं को सौंप वहां चले गए जहां श्रीराम थे . 

श्री सीता हरण और सीता जी का विलाप

रावण मौका देखकर सन्यासी के वेश में सीता जी के पास आया और कुछ देर बाद उसने अपना असली रूप दिखाया . जिसे देखकर सीता जी भयभीत हो गई .  सीता जी कहने लगी कि दुष्ट रुक जा ! अभी मेरे प्रभु आ रहे हैं . तू काल के वश होकर मेरी चाह कर रहा है. 

सीता जी के वचन सुनकर रावण को क्रोध आ गया . लेकिन मन में उसने सीता जी की वंदना की . फिर क्रोध से उनको रथ पर बैठाया . सीता जी विलाप कर रही है कि लक्ष्मण तुम्हारा कोई दोष नहीं है . मैंने ही क्रोध का फल पाया है . 

गृध्रराज जटायु और रावण युद्ध

सीता जी की दुख भरी वाणी जब गृध्रराज जटायु  ने सुनी तो उन्होंने रावण को ललकारा की पुत्री सीता को छोड़ दे . जटायु ने बड़े वेग के साथ रावण को चोंच  मारी . जिससे रावण पृथ्वी पर गिरा और कुछ क्षण के लिए मूर्छित हो गया . रावण ने जल्दी उठकर क्रोध कर कटार से जटायु के पंख  काट डाले . रावण जल्दी से सीता जी को रथ पर चढ़ा कर आकाश मार्ग से चल पड़ा.

पर्वत पर बैठे बंदरों को  देखकर सीता जी ने हरि नाम लेकर वस्त्र डाल दिया . रावण ने सीता जी को लंका ले जाकर अशोक वन में रखा . रावण सीता जी को भय और प्रीति दिखाकर हार गया तो उसने उनको अशोक वृक्ष के नीचे रखा .

श्री राम का विलाप और जटायु से मिलन

 उधर जब श्रीराम ने लक्ष्मण जी को आते देखा तो कहने लगे कि ,"लक्ष्मण तुम्हें नहीं मेरी आज्ञा का उल्लंघन क्यों किया" ? लक्ष्मण श्री राम के चरणों में गिर कर कहने लगे कि प्रभु मेरा कोई दोष नहीं है .

श्री राम ने जब आश्रम में सीता जी को ना पाया तो वह मनुष्य की भांति व्याकुल हो गए .श्रीराम लताओं, वृक्षों , पशुओं, पक्षियों से पूछते हैं कि क्या आपने मृगनयनी सीता को देखा है ? फिर श्रीराम नेेेेेेे  गृध्रराज जटायु को घायल अवस्था में देखा . जब श्रीराम ने उसके सर पर स्पर्श किया तो उसकी सारी पीड़ा  जाती रही . 

जटायु ने श्रीराम को वचन कहा कि रावण सीता को उठाकर दक्षिण दिशा की ओर ले गया है .  रावण ने ही मेरी यह गति की है .मैंने आपके दर्शन के लिए ही अपने प्राणों को रोक कर रखा था.

जटायु ने गीध की देह त्याग कर अनुपम रूप धारण कर लिया और श्री हरि के परमधाम को चला गया .श्रीराम ने उसका दाह कर्म अपने हाथों से किया . फिर दोनों भाई सीता जी को ढूंढने घने वन की ओर चल दिए . जहां श्री राम ने कबंध नामक राक्षस को मारा

श्री राम का शबरी के आश्रम जाना और नवधा भक्ति का उपदेश

प्रभु राम और लक्ष्मण जी फिर शबरी के आश्रम में पधारे  . शबरी प्रेम में इतनी मग्न हो गई की मुख  से वचन नहीं निकल पा रहा . उसने दोनों भाइयों के चरण धोकर आसन पर बिठाया और स्वादिष्ट कंदमूल और फल खाने को  दिए .

शबरी कहने लगी कि प्रभु मैं अधम जाति की हूँ . मैं आप की स्तुति किस प्रकार करूं  . प्रभु श्री राम ने कहा मैं तो केवल भक्ति का ही संबंध मानता हूं . मैं तुमसे अपनी नवधा भक्ति कहता हूं.

पहली भक्ति है संतों की संगत

 दूसरी भक्ति है मेरी कथा प्रसंग

 तीसरी है गुरु के चरण कमलों की सेवा

 चौथी कपट छोड़कर मेरे गुणों का गान 

पांचवी भक्ति मंत्र का जाप और मुझ पर दृढ़ विश्वास

छठी भक्ति है अच्छा स्वभाव या चरित्र

सातवीं भक्ति है जगत को समभाव से ही राममय देखना 

आठवीं भक्ति है जो मिल जाए उसमें संतोष करना और पराए के दोषों को ना देखना 

नवीं भक्ति है सरलता और किसी से छल ना करना और हृदय में मेरा भरोसा रखना .

इन नवों में से जिनके पास एक भी होती है . वह मुझे अत्यंत प्रिय हैं . फिर तुम में तो हर प्रकार की भक्ति है.

 क्या आप  सीता की कोई खबर जानती है तो बता दे ? शबरी कहती है कि प्रभु आप पंपा नामक सरोवर पर जाएं . वहां आपकी सुग्रीव से मित्रता होगी वह सब हाल आपको बताएगा . शबरी भगवान के दर्शन करके हरिपद में लीन हो गई. 

 श्रीराम पंपा नामक सरोवर पर गए उसके समीप मुनियों के आश्रम बने हुए थे . श्रीराम में तालाब में स्नान कर एक पेड़ की छाया में विश्राम किया .

नारदजी और श्रीराम संवाद

श्री राम को विरह में देखकर नारद जी के मन में विचार आया कि मेरे श्राप के कारण ही प्रभु इतनी दुखों को सह रहे हैं . नारद जी ने श्रीराम के पास जाकर उनके गुणों का गान किया . श्रीराम ने उन्हें हृदय से लगा लिया . 

नारद जी ने प्रभु श्रीराम से वर मांगा कि प्रभु आप के अनेकों नाम हैं . लेकिन इनमें से "राम नाम चंद्रमा होकर और अन्य नाम तारा"  बनकर भक्तों के हृदय में निवास करें . प्रभु श्री राम ने नारद जी से एवमस्तु कहा.

नारद जी ने फिर श्री राम से पूछा कि, "प्रभु जब मैं विवाह करना चाहता था तो आपने मुझे किस कारण विवाह करने से रोका "? 

श्री राम ने नारद जी से कहा  कि,"जो भक्त सब आशा भरोसा मुझ पर ही छोड़ कर मुझको ही भजता  है. मैं उसकी रखवाली वैसे ही करता हूं. जैसे माता अपने बालक की करती हैं . तुम भी मेरे लिए वैसे ही प्रिय हो. इसलिए मैंने तुम्हें विवाह करने से रोका था".श्री राम की अपने प्रति इतनी प्रीति देखकर नारदजी का शरीर पुलकित हो गया. 

तुलसीदास जी कहते हैं कि जो श्री राम का पवित्र यश गाएंगे और सुनेगे  उन्हें प्रभु श्री राम की दृढ़ भक्ति प्राप्त होगी.

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