KISHKINDHA KAND किष्किन्धा काण्ड
हनुमान जी का ब्राह्मण वेश में श्री राम से मिलन
सुग्रीव जी ने हनुमान जी को ब्रह्मचारी रूप धरकर श्रीराम के पास उनके मन की बात जाने के लिए भेजा कि कहीं वह बालि के भेजे हुए तो नहीं है ?
हनुमान जी ब्राह्मण वेश में श्री राम के पास पहुंचे . हनुमान जी कहने श्रीराम से पूछते हैं कि क्या आप ब्रह्मा , विष्णु , महेश तीनों में से कोई एक हो ? या फिर नर नारायण दोनों हो .
श्रीराम ने कहा कि,"हम कौशल राज दशरथ के पुत्र हैं . राम लक्ष्मण हमारा नाम है . पिता का वचन मानकर हम वन में आए हैं .हमारे साथ एक सुकुमारी स्त्री थी जिसे राक्षस ने हर लिया है . हम उसे खोजते हुए जहां आए हैं .
इतना वचन सुनते ही हनुमान जी ने श्री राम के चरणों को पकड़ लिया . हनुमान जी कहने लगे कि आपकी माया के वश मैं आपको पहचान नहीं पाया . फिर हनुमान जी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए .
श्री राम और सुग्रीव जी मिलन प्रसंग
श्री राम ने हनुमान जी को अपना अनन्य भक्त जानकर हृदय से लगा लिया . हनुमान जी ने श्री राम जी को बताया कि इस पर्वत पर वनराज सुग्रीव रहते हैं . आप उनसे मित्रता कर ले .वह माता सीता के को ढूंढने में आपकी मदद करेंगे .
हनुमान जी श्री राम और लक्ष्मण जी को पीठ पर चढ़ाकर सुग्रीव के पास ले गए और अग्नि को साक्षी मानकर दोनों की मैत्री करा दी . लक्ष्मण जी ने सुग्रीव जी से श्रीराम का सारा इतिहास कहा .
सुग्रीव जी ने बताया कि मैं एक बार मंत्रियों के साथ बैठा हुआ था तो राम ! राम ! हा राम !कहते हुए एक स्त्री को पराये शत्रु के वश पड़े देखा . हमें देखकर राम ! राम ! हा राम ! पुकार कर एक वस्त्र गिरा दिया .श्रीराम ने वह वस्त्र मांगा तो सुग्रीव जी ने तुरंत श्रीराम को दे दिया.
श्रीराम का सुग्रीव से वन में रहने का कारण जानना
सुग्रीव जी ने कहा कि, " मैं सब विधि से आपकी सहायता करूंगा".श्री राम ने सुग्रीव से वन में रहने का कारण पूछा . सुग्रीव ने कहा कि हे नाथ मैं और बालि दोनों भाई हैं . एक दिन मायावी दानव ने उसको ललकारा. उसकी ललकार सुन कर बालि उसके पीछे दौड़ा . बालि को देखकर वह दानव गुफा में जा घुसा.
बालि ने मुझे समझा कर कहा कि तुम एक पखवारे( 15 दिन) मेरी राह देखना. यदि मैं ना आऊं तो समझ लेना मैं मारा गया . मैंने एक महीने तक इंतजार किया . एक दिन गुफा में से रक्त की धारा बह निकली तो मुझे लगा की बाली मारा गया . मैं गुफा के द्वार पर शिला लगा कर भाग गया .
मंत्रियों ने राज्य को बिना राजा के देख कर मुझे जबरदस्ती राज्य सौंप दिया . लेकिन एक दिन बाली वापस आ गया और उसे लगा कि मैंने राज्य के मोह में गुफा के द्वार पर पत्थर रखा था .
उसने मुझे बहुत मारा और मेरा सर्वस्व और स्त्री छीन ली . वह श्राप के कारण जहांँ नहीं आता . फिर भी मैं भयभीत रहता हूं . सुग्रीव का दुख सुनकर श्री राम ने कहा कि, "मैं एक ही बाण में उस बालि को मार डालूंगा ".
सुग्रीव ने श्रीराम से कहा कि बालि महान बलवान और रणधीर है . उसने श्रीराम को दुन्दुभि राक्षस की हड्डियां और ताल के वृक्ष दिखाएं . श्रीराम ने बिना परिश्रम के उन्हें ढाह दिया तो सुग्रीव को निश्चय हो गया कि श्री राम बालि का वध अवश्य करेंगे.
रामचरितमानस के प्रसिद्ध दोहे चौपाई
श्री राम द्वारा बालि वध
श्री राम ने सुग्रीव को बालि के पास भेजा . सुग्रीव की ललकार सुनकर बालि दौड़ा .बालि की पत्नी ने उसे बहुत प्रकार समझाया . बालि कहने लगा कि ,"श्रीराम समदर्शी हैं . मैं जानता हूं वह मुझे मारेंगे . उनके हाथों मर कर मैं परम गति को पा जाऊंगा .
दोनों भाइयों की लड़ाई में बालि ने सुग्रीव को मुठिका से प्रहार किया तो वह मार उसे वज्र समान लगी . वह श्रीराम के पास चला आया . श्रीराम ने उसके शरीर पर स्पर्श किया तो उसका पूरा शरीर वज्र हो गया . उसकी सारी पीड़ा जाती रही .
श्री राम ने कहा कि तुम दोनों भाइयों का रूप एक जैसा है . इसलिए उन्होंने सुग्रीव के गले में माला डाल दी . दोनों में फिर से युद्ध हुआ तो श्रीराम का बाण बालि के हृदय में लगा .
श्री राम को देखकर बालि ने हृदय से प्रणाम किया . फिर कठोर वचन से बोला कि आपका जन्म तो धर्म की रक्षा के लिए हुआ है फिर आपने मुझे छिपकर क्यों मारा ? मैं आपका वैरी और सुग्रीव आपका प्यारा ऐसा क्यों ?
श्री राम ने कहा कि छोटे भाई की स्त्री ,बहन ,पुत्र की स्त्री और कन्या एक समान है . इन पर बुरी दृष्टि डालने वाला पापी होता है और उन्हें मारने वाले को पाप नहीं होता .
बालि ने श्रीराम से वर मांगा कि मैं कर्म वश जिस भी योनि में जन्म लूं . मेरा आपके चरणो में प्रेम रहे . हे कल्याण प्रद प्रभु मेरे पुत्र अंगद जो कि मेरे ही समान बलवान हैं . उसे अपना दास बना ले और इतना कह कर बालि ने अपने प्राण त्याग दिया .
सुग्रीव को राज्य सौंपना
प्रभु श्री राम ने उसे अपने परम धाम भेज दिया . सुग्रीव ने बालि का मृतक कर्म किया. फिर श्री राम ने लक्ष्मण जी को समझा कर कहा कि सुग्रीव को राज्य दे. लक्ष्मण जी ने ब्राह्मणों को बुलाकर सुग्रीव को राज्य और अंगद को युवराज पद दिया . जो सुग्रीव बालि के भय से व्याकुल रहता था . उसे श्रीराम ने वानरों का राजा बना दिया .
वर्षा ऋतु में प्रवर्षण पर्वत पर श्रीराम का लक्ष्मण जी सहित निवास
श्री राम ने सुग्रीव से कहा कि वर्षा ऋतु आ गई है . तुम अंगद के साथ राज्य करो ओर मेरे काम को ध्यान में रखना . तब श्री राम और लक्ष्मण जी के साथ प्रवर्षण पर्वत पर रहने लगे. श्रीराम लक्ष्मण जी को भक्ति ,राजनीति और ज्ञान की कथाएँ सुनाते .
जब वर्षा ऋतु बीत गई और शरद् ऋतु आई तो श्रीराम लक्ष्मण जी से कहते हैं ," सीता की कोई खबर नहीं मिली " . लगता है राज्य, खजाने और स्त्री पाकर सुग्रीव ने मेरी सुधि भूला दी है . जिस बाण से मैंने बालि को मारा था उसी बाण से उस सुग्रीव को मारु. श्री राम को क्रोध में देखकर लक्ष्मण जी ने हाथों में धनुष बाण लेकर सुग्रीव के पास गए.
उधर हनुमान जी ने सुग्रीव को श्री राम के कार्य का स्मरण कराया . सुग्रीव ने कहा कि विषयों ने मेरे मन को हर लिया था लेकिन हनुमान जहां - जहां वाहनों के समूह रहते हैं उन्हें बुलावा भेजो.
लक्ष्मण जी का क्रोध में सुग्रीव को ललकारना
इधर लक्ष्मण जी धनुष चढ़ाकर कहा कि मैं नगर जला कर राख कर दूंगा .तब बालि पुत्र अंगद उनके समीप गए और फिर हनुमान जी और तारा जी ने लक्ष्मण जी को समझाया . नगर में ले जा कर उनका सम्मान किया .
सुग्रीव सहित सब श्रीराम के पास गए . श्री राम के चरणों में सिर नवाकर सुग्रीव ने कहा कि, "प्रभु आप मुझ पर दया करो आपकी माया अति प्रबल है . देवता, मनुष्य ,मुनि सभी माया के वश में है .फिर मैं एक कामी में बंदर हूं " .
श्रीराम ने मुस्कुरा कर कहा कि, "तुम मुझे भरत के समान प्रिय हो ". अब तुम वही कार्य करो जिसे सीता की खबर मिले . उसी समय वानरों के झुंड आ गए .
सुग्रीव का वानर सेना को माता सीता की खोज में भेजना
सुग्रीव ने सबको समझा कर कहा कि चारों ओर जाओ और सीता जी को खोजो. एक महीने की अवधि में वापिस आ जाना . अगर इस अवधि में बिना पता लगाए वापिस आए तो वे जीवित नहीं बचेगे. फिर सुग्रीव ने नल ,नील, अंगद ,हनुमान ,जाम्बवान् आदि योद्धा को दक्षिण की ओर भेजा .
श्रीराम के चरणों में सिर नवाकर और आज्ञा पाकर सब हर्षित होकर चले गए . सबसे पीछे हनुमान जी ने आज्ञा मांगी तो श्रीराम ने उन्हें अपनी मुद्रिका दी और कहा कि सीता को मेरा बल तथा विरह कह कर शीघ्र लौटना .
सभी वानर नदी, तालाब ,वन , पर्वत पर सीता जी को खोजते जा रहे हैं . रास्ते में कोई भी राक्षस मिल जाता तो हैं उसे मार देते हैं . कोई मुनि दिख जाता है उसे सीता जी का पता पूछते हैं .
इतने में सब को प्यास लगी और सब व्याकुल हो गए. हनुमान जी ने पानी की खोज में पहाड़ की चोटी पर चढ़कर चारों ओर देखा तो उन्हें एक गुफा में बहुत से पक्षी प्रवेश करते दिखे . सब वानर हनुमान जी के आगे कर उस गुफा में चलें गए.
उन्हें वहां तपो मूर्ति स्त्री दिखी. उसने सब से कहा कि जलपान करो और फल खाओ . आज्ञा पाकर जलपान करने के बाद सब उसके पास आ गए और सबने अपनी कथा कहीं . उस स्त्री ने कहा कि तुम सब आंखें बंद कर लो और गुफा छोड़कर बाहर चले जाओ . तुम सब सीता जी को पाओगे . जब सब ने आंखें खोली तो सब वीर समुंदर के किनारे खड़े थे .
वह स्वयं वहां आ गई जहां श्री रघुनाथ जी थे . श्री राम के चरणों में सिर निवाया . प्रभु ने अपनी भक्ति प्रदान की और बद्रीका आश्रम चली गई .
सम्पाति का वानरों को सीता माता की खोज खबर देना
लवण सागर के तट पर सब वानर विचार कर रहे हैं की अवधि समाप्त होने वाली है लेकिन सीता माता का कोई पता नहीं चला. वापिस गए तो हमारी मृत्यु निश्चित है . वानरों की बातें सुनकर पर्वत कंदरा से बाहर निकलकर सम्पाती नाम के गीध ने कहा आज तो भगवान ने मुझे भरपेट आहार भेज दिया है .
गीध सम्पाति को देखकर अंगद कहने लगे जटायु के समान धन्य कोई नहीं है . उन्होंने श्री राम के कार्य के लिए प्राण छोड़ दिए . फिर सम्पाती ने जटायु का पूरा वृत्तांत सुनकर वानरों से कहा कि मुझे समुंदर के किनारे ले चलो ताकि मैं जटायु को तिलांजलि दे सकूं . उसके बदले में मैं आपको बता दूंगा सीता जी कहां पर है ?
जटायु की क्रिया के बाद संपाती ने बताया कि मैं और मेरा भाई जवानी में उड़कर सूर्य के निकट चले गए थे . जटायु तेज ना सह सका और वह वापस आ गया . लेकिन मैं अभिमान वश सूर्य के पास चला गया .सूर्य के तेज के कारण मेरे पंख जल गए और मैं जमीन पर गिर पड़ा .
वहां मुझे चंद्रमा नाम के मुनि मिले . उन्होंने कहा कि त्रेता युग में जब साक्षात परब्रह्म मनुष्य का रूप धारण करेंगे उनकी स्त्री को राक्षसों का राजा हर कर ले जाएगा . उसकी खोज में दूत आएंगे . उनको मिलकर तू पवित्र हो जाएगा . तेरे पंख उग आएंगे . उन्हें तुम सीता जी को दिखा देना . मुनि की वाणी आज सत्य हो गई.
सुनो त्रिकूट पर्वत पर लंका बसी है . वहां अशोक वाटिका में सीता जी सोच मगन बैठी हैं . मैं गीध की दृष्टि से उन्हें देख सकता हूं लेकिन तुम नहीं देख सकते .
जो सौ योजन (चार सौ कोस) के समुंदर लांघ सकता है . वहीं यह कार्य कर सकता है . गीध अपनी बात कह कर चला गया . लेकिन हर किसी ने समुद्र लांघने में संदेह प्रकट किया . जाम्बवान् ने कहा कि मैं अब बूढा़ हो गया हूं . अंगद हमारा नेता है उसे भी कैसे भेजा जाए ?
जाम्बवान् जी का हनुमान जी को प्रेरित करना
जाम्बवान् ने हनुमान जी से कहा कि ," तुम पवन के पुत्र हो. जगत में ऐसा कौन सा कार्य है जो तुम नहीं कर सकते. तुम्हारा अवतार श्रीराम के कार्य के लिए हुआ है .
इतना सुनते ही हनुमान जी ने विशालकाय रूप धारण किया और कहा कि मैं इस समुद्र को खेल में ही लांघ सकता हूं . हनुमान जी ने जाम्बवान् जी से पूछा कि, "मुझे क्या करना चाहिए"?
जाम्बवान् जी ने कहा तुम सीता जी का पता लगाकर लौट आओ और उनकी खबर श्री राम को कह दो .श्री राम अपने बाहुबल से सीता जी को ले आएंगे और राक्षसों का संहार करेंगे .
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