SHRI RAM JANAM KATHA
श्री राम जन्म कथा
राम नवमी का पर्व हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है. चैत्र मास शुक्ल नवमी तिथि के दिन राम नवमी का त्यौहार मनाया जाता है. इस दिन को भगवान विष्णु के अवतार श्री राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है.
श्रीराम के नाम को तो श्री राम से भी बड़ा माना गया है. तुलसीदास जी के अनुसार, "राम नाम निर्गुण ब्रह्म और सगुण राम दोनों से बड़ा है "
पौराणिक कथा के अनुसार
रावण नाम के राक्षस ने देवताओं को अपने अधीन कर लिया और जहां भी यज्ञ, श्राद्ध,वेद पुराण की कथा होती वहां उसके भेजे राक्षस बहुत उत्पात मचाते. पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ गए तो पृथ्वी गाय का रूप धारण करके ब्रह्मा जी के पास गई .ब्रह्मा जी के साथ मिलकर सब ने भगवान विष्णु की स्तुति की .तब आकाशवाणी हुई थी मैं सूर्यवंश में मनुष्य रूप में उतार लूंगा .यह सुनकर पृथ्वी निर्भय हो गई.
रावण के पूर्व जन्म की कहानी उसे क्यों लेना पड़ा राक्षस कुल में जन्म
श्रीराम ने त्रेता युग में अयोध्या में राजा दशरथ उनकी रानी कौशल्या (श्री राम के माता- पिता) के यहाँ जन्म लिया . उस दिन चैत्र का महीना था, तिथि नवमी थी .शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजीत मुहूर्त था .दोपहर का समय था ,ना बहुत सर्दी ना बहुत गर्मी थी
भरत, लक्ष्मण, शत्रुध्न उनके भाई थे. ऋषि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण जी को कुछ दिनों के लिए राजा दशरथ से मांग कर ले गए थे .क्योंकि वह जानते थे श्री राम का जन्म राक्षसों के वध के लिए हुआ है . वहाँ श्रीराम ने ताड़का नाम की राक्षसी और सुबाहु नाम के राक्षस को मार कर मुनियों के कष्टों को दूर किया.
ऋषि विश्वामित्र के साथ ही श्री राम और लक्ष्मण जी जनकपुरी सीता जी के स्वयंवर में गए थे. जहाँ कोई भी शिवजी के धनुष को हिला भी नहीं पाया .
श्री राम ने ऋषि विश्वामित्र की आज्ञा से फुर्ती से धनुष उठाया . उन्होंने धनुष को कब उठाया ,कब चढ़ाया और कब खींचा किसी को पता ही नहीं चला.उन्होंने धनुष को क्षण में बीच में तोड़ डाला . जिसकी कठोर ध्वनि पूरे लोक में फैल गई . श्री राम ने शिवजी के पिनाक धनुष को तोड़कर स्वयंवर जीता था और सीता जी से उनका विवाह हुआ था .
राजा दशरथ उनका राज्याभिषेक करना चाहते थे लेकिन देवताओं ने सरस्वती जी से उनकी मदद करने के लिए कहा ताकि श्री राम वन गमन कर सके और राक्षसों को मार सके.
सरस्वती जी ने कैकेयी की मंथरा नाम की दासी की बुद्धि फेर दी और मंथरा ने कैकेयी को भड़काया कि भरत तो ननिहाल गए हैं . रानी कौशल्या ने जानबूझ कर इस समय राम का राज्य अभिषेक करा रही है और वह तुम्हें राज्य से निकाल देगी . मंथरा ने कैकेयी को सौतों की कई कहानियां सुनाई. कैकेयी ने राजा दशरथ से दो बार मांगे.
एक वर के रूप में श्री राम को वन गमन और दूसरे भरत को राज्य अभिषेक . श्री राम का जन्म रघुकुल में हुआ था और रघुकुल रीत सदा चली आई ,प्राण जाए पर वचन ना जाए . अपने पिता के वचन के पालन के लिए वह 14 वर्ष के वनवास को गए उनके साथ सीता जी और लक्ष्मण जी भी वन में गए.
जब भरत को अपनी माता कैकेयी की करनी का पता चला तो उन्होंने राज्य करने से इंकार कर दिया और वह श्रीराम से मिलने चित्रकूट में गए . श्रीराम के समझाने पर कि हमें अपने पिता की आज्ञा का पालन करना चाहिए भरत राम जी की चरण पादुकाएं लेकर अयोध्या वापस आ गए और श्री राम की पादुका से आज्ञा मांग कर राज्य करने लगे और स्वयं पर्णकुटी बनाकर उसमें रहने लगे.
प्रभु श्री राम में चित्रकूट में बहुत से चरित्र किए . श्री राम ने अनुमान लगा लिया कि यहां पर सब लोग मेरे बारे में जान गए हैं . इसलिए वह यहां बड़ी भीड़ हो जाएगी.
इसलिए श्री राम पंचवटी में कुटी बना कर रहने लगे क्यों कि श्रीराम जानते थे जहाँ बहुत से राक्षस घूमते हैं. श्री राम ने जब राक्षसों द्वारा खाई मुनियों की हड्डियां देखी तो पृथ्वी को राक्षसों से विहीन करने का प्रण लिया.जब शूर्पणखा वहाँ आई तो उसके नाक, कान काट कर मानो रावण को चुनौती दी हो.
शूर्पणखा के भड़काने पर रावण सीता माता का हरण करके ले गया तब श्री राम ने हनुमान और सुग्रीव की वानर सेना की सहायता से सीता जी का पता लगाया और समुद्र पर सेतु बनाकर लंका पहुंच गए .
वहां श्री राम ने रावण का युद्ध में वध कर सीता माता को उस के बंधन से मुक्त करवाया था .अन्याय पर न्याय की जीत के हुई और दस सिर वाले रावण की हार हुई . विभीषण को लंका का राज्य दे दिया .श्री राम ,सीता जी और लक्ष्मण जी सहित अयोध्या वापस आ गए और अयोध्या के लोगों ने उस दिन घी के दिए जलाए . हनुमान जी श्री राम के परम भक्त है. लव कुश श्रीराम और सीता जी के पुत्र है.
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