BHAKT AUR BHAGWAAN KI KATHA

भक्त और भगवान की कथा 

कहते हैं कि भगवान तो भाव के भूखे होते हैं. भगवान तो सच्ची श्रद्धा पर रिझते है. सच्ची श्रद्धा भाव के कारण ही प्रभु श्री राम ने शबरी के बेर खाये. श्री कृष्ण ने दुर्योधन के महल का सुख त्याग विदुर के घर पर साग रोटी खाई.पढ़े श्री राम के ऐसे ही एक भोले भक्त का प्रसंग जहाँ श्री राम को और सीता जी को भोग लगाने के साथ उसका भोग स्वयं बनाना भी पड़ा.

राम भक्त की कथा 


एक बार एक लड़का था. वह सारा दिन कोई काम - धंधा ना करता. खाता -पीता और सौ जाता. सारा दिन घर पर निठल्ला  पडा़ रहता.एक दिन घरवालों ने उसे घर से निकाल दिया कि काम - धंधा तो कोई करता नहीं घर पर बोझ है.

अब बेचारा परेशान कि क्या करु? कहाँ जाऊँ? सबसे बड़ी परेशानी क्या खाऊँ? रास्ते में उसे एक संत मिले. संत तो स्वाभाव से ही दयालु होते हैं. लड़के ने अपनी व्यथा उनको सुनाई. संत बोले अयोध्या जी चले जाओ. राम जी तुम्हारा बेड़ा पार लग़ा देगे.

अब जैसे - तैसे अयोध्या जी पहुँच गया. अब सोचे क्या करू  ? कहाँ रहूँ? वहाँ एक मंदिर के बाहर एक साधू बैठे थे. साधू को देख कर सोचने लगा कि, साधू महाराज तो खूब हट्टे कट्टे है. खूब खाना खाते होगे. उसी समय साधू महाराज के चार - पांच शिष्य ओर आ गए. वह भी खूब हृष्ट - पुष्ट थे . उसने मन में निश्चिय कर लिया कि इन का शिष्य बन जाता हूँ. खूब खाना खाने को मिलेगा.

वह साधू महाराज के पास गया और कहने लगा क मुझे अपना शिष्य बना लो. साधू महाराज कहने लगे कि बन जाओ. वह लड़का कहने लगा कि, "महाराज मुझे करना क्या होगा ". वह कहने लगे कि मंदिर में छोटे - मोटे काम कर देना, और मैं तुम्हें नाम दीक्षा दे दूंगा. प्रभु का नाम जपना. 

लड़का बोला वो तो ठीक है महाराज लेकिन मुझे खाने को क्या मिलेगा. उस पेटू का तो हर समय ध्यान खाने में ही रहता था. साधू महाराज कहने लगे कि दिन में दो बार भोजन मिलेगा. 

लड़का कहने लगा कि महाराज मुझे ज्यादा भूख लगती है. क्या मैं चार बार भोजन कर सकता हूँ  ? साधू महाराज बोल ठीक है बेटा चार बार खा लेना. साधू महाराज ने उसे नाम दीक्षा दी और इसकी तो मौज हो गई. अब बैठे बिठाया खाना मिलने लगा. 

लेकिन कुछ दिन बाद उठा तो क्या देखता है कि सारे चूल्हे ठंडे पड़े हैं. गुरु जी से पूछने लगा कि क्या आज खाना नहीं बनेगा? गुरु ने कहा कि हम सब का एकादशी का व्रत है. हम सब तो निराहार रहेगे.

लड़का कहने लगाकि अगर मैंने एकादशी का व्रत रखा तो मैं द्वादशी नहीं देख पाऊँगा. क्योंकि मुझे तो इतनी ज्यादा भूख लगती है. गुरु को दया आ गई. वह बोलेकि यहाँ तो चूल्हा नहीं जलेगा. तू ऐसा कर भंडारे से राशन ले जा और सरजू नदी के किनारे जाकर खाना बना लेना और खा ले.  गुरु ने चलते समय कहा कि खाना बना कर राम जी को भोग लगा देना. 

अब सरजू नदी के किनारे जाकर भोजन बनाया. खाने से पहले गुरु जी की बात याद आ गई कि भोजन से पहले राम जी को भोग लगा देना.

भोजन थाली में डाला और राम जी को पुकारने लगा. राम जी आओ मेरी रोटी का भोग लगाओ और सरजू का पानी पियो. लेकिन राम जी तो आए नहीं. उस पेटू ने तो कभी देखा ही नही था कि मंदिर में राम जी को भोग कैसे लगाया जाता था. वह सोच रहा था कि राम जी वैसे ही भोग लगाएंगे जैसे हम लोग भोजन करते हैं.

राम जी नहीं आए तो थोड़ा परेशान हो गया और कहने लगाकि आप इसलिए नही ं आ रहे ना क्यों कि मंदिर में आप को कई तरह के भोग लगते हैं  . मेरी रूखी -सूखी रोटी बनाने के कारण आप नहीं आ रहे ना. लेकिन मैं आपको बता दूँ मंदिर में आज आप को भोजन नहीं मिलेगा क्यों आज एकादशी का व्रत है ? 

आज भोजन नहीं बनेगा.आप भूखे ही रह जाओगे. वह फिर से राम जी को पुकारने लगा. राम जी उसके भोले पन से प्रसन्न हुए और सीता जी के साथ उसे दर्शन दिए. वह पूछने लगा प्रभु मैंने तो आप को भोग के लिए बुलाया था. यह आपके साथ कौन है ? राम जी कहने लगे कि यह मेरी अर्धांगिनी सीता जी है. सोचने लगा खाना तो कम पड़ जाएगा. एक को बुलाया आए दो. बोला चलो ठीक है.अब उसने राम जी और सीता जी दोनों को भोग लगाया.

अगली एकादशी आई तो बोला गुरु जी इस बार ज्यादा राशन दे देना. क्योंकि वहाँ ज्यादा भगवान भोग लगाने आते हैं. गुरु ने सोचा कि शायद इस को ज्यादा भूख लगती होगी. इसलिए यह ऐसा बोल रहा है. गुरु ने उसे ज्यादा राशन ले जाने की अनुमति दे दी.

इस बार भोजन बनाने के बाद पुकारने लगा  ," सीता राम आइये, आकर भोग लगाइये ". इस बार साथ में लक्ष्मण जी भी आ गए. बोला प्रभु यह कौन? प्रभु बोले मेरा छोटा भाई है. अब सोचने लगा कि एक को बुलाओ तो दो आते हैं. दो को बुलाया तो तीन आते हैं. उसने तीनों को भोग लगाया. 

अगली एकादशी पर बोला गुरु जी मुझे ओर ज्यादा राशन चाहिए क्योंकि वहाँ तो बहुत ज्यादा भगवान आते हैं. गुरु का माथा ठनका, सोचने लगे कि शायद यह राशन बेच देता होगा. इस बार जाकर देखना पड़ेगा. 

यह भगवान का भक्त भी कमाल का था. बोला इस बार पहले भोजन नहीं बनाऊंगा. पहले उनको बुला लेता हूं. जितने भगवान आएगे उतना भोजन बना लूंगा.  

प्रभु श्रीराम को बुलाने लगा, सीता राम आइये, लक्ष्मण जी को साथ लाइये, आकर भोग लगाइये. इस बार पूरा राम परिवार आ गया. बोला प्रभु सीता जी और लक्ष्मण जी का तो मुझे पता है. बाकी सब कौन? प्रभु बोले मेरे छोटे भाई भरत, शत्रुघ्न और मेरे भक्त हनुमान जी है. 

लड़का बोला प्रभु, "इस बार मैंने भोजन नहीं बनाया. ऐसा करे आप सब भोजन बनाओ. भोग लगाओ और मुझे भी खिलाओ.  राम जी ऐसे भक्त को पाकर मुस्कुरा रहे हैं. सीता जी भोजन बना रही है. बाकी राम परिवार कोई ना कोई काम कर रहा है.

उसी समय गुरु जी आ गए. बोला गुरु जी देखो कितने सारे भगवान आए हैं. गुरु जी को कोई दिखा ही नहीं. राम जी से कहने लगा, "प्रभु आप मुझे दिख रहे हो, गुरु जी को क्यों नहीं दिख रहे ".

राम जी बोले क्यों कि तुम ने सरल और शुद्ध भाव से मुझे पुकारा तो मैं आ गया. तुम्हारे गुरु ने ऐसे भाव और सरलता से कभी मुझे पुकारा ही नहीं. 

अब लड़का अड़ गया. आप को मेरे गुरु को भी दर्शन देने होगे. क्योंकि मुझे तो अपने गुरु जी की वजह से ही आप के दर्शन हुए है. अगर गुरु जी ने कहा ना होता कि राम जी को भोग लगाना है तो मुझे आप के दर्शन कैसे होते.

भक्त की जिद्द के आगे भगवान हार गए और पूरे राम परिवार के दर्शन गुरु जी को भी हुए. गुरु भी ऐसे शिष्य को पाकर धन्य हो गए कि इसकी सरलता और शुद्ध भाव के कारण मुझे साक्षात पूरे राम परिवार के दर्शन हुए. अब वह लड़का भी राम जी का परम भक्त बन गया. 

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