LANKA KAND लंका कांड

 लंका कांड को युद्ध कांड भी कहा जाता है  . लंका कांड  तुलसीदास जी  कृत रामचरितमानस का षष्ठम सोपान भाग है. लंका कांड सुंदर कांड के बाद आता है.

तुलसीदास जी कहते हैं कि कामदेव के शत्रु शिव जी के सव्य श्री राम जी कि मैं वंदना करता हूं. कामदेव को भस्म करने वाले पार्वती पति श्री शंकर जी की मैं वंदना करता हूं. जो सत्पुरुषों को कैवल्य मुक्ति दे देते हैं और दुष्टों को दंड देते हैं.

नल - नील का पुल बाँधना

समुंद्र के वचन सुनकर श्री राम जी ने मंत्रियों को बुलाया और कहा कि अब विलंब ना करें, सेतु तैयार करें जिससे सेना उस पार उतर जाए.

जाम्बवान ने नल- नील दोनों भाइयों को सारी कथा सुना कर कहा कि श्री राम के प्रताप का स्मरण कर सेतु बनाओ.

 वानरों के समूहों को कहा कि वृक्षों और पर्वतों को उखाड़ कर लाइये. वानर ऊंचे पर्वतों को उठाकर लाते हैं और नल नील को देते, वह दोनों अच्छे से सेतु बनाते.

श्री राम का श्री रामेश्वर की स्थापना

 सेतु की अत्यंत सुंदर रचना देखकर कृपासिंधु राम कहने लगे कि यह परम रमणीय स्थान है . मैं यहां शिवलिंग की स्थापना करूंगा. मेरे हृदय में यह संकल्प है.

श्री राम के वचन सुनकर दूतों को भेजकर सुग्रीव ने श्रेष्ठ मुनियों को बुलावा भेजा और भगवान राम ने शिवलिंग की स्थापना कर उसका पूजन किया. श्री राम कहते हैं कि जो शिव से द्रोह रखकर मेरा भक्त कहलाता है .वह मनुष्य मुझे सपने में भी नहीं पा सकता. शंकर जी से विमुख होकर जो मेरी भक्ति चाहता है वह नरकगामी और मूर्ख है.

श्री राम कहने लगे जो रामेश्वर जी का दर्शन करेंगे और गंगाजल लाकर कर इस पर चढ़ावेगा उसे मुक्ति प्राप्त होगी.

नल नील ने सेतु बांधा . श्री राम की कृपा से उनका यश सर्वत्र फैल गया. श्री राम नाम के प्रताप से समुद्र पर पत्थर तैर गये.

रामचरितमानस के प्रसिद्ध दोहे चौपाई

सेना सहित श्री राम का समुद्र पार उतरना

जब श्री राम सेतुबंध के तट पर समुद्र का विस्तार देखने लगे तो प्रभु के दर्शनों के लिए जलचरों के समूह प्रकट हो गए . वह प्रभु के दर्शन कर हर्षित हो रहे हैं

प्रभु श्री राम की आज्ञा पा कर सेना चली. वानर सेना की विपुलता को कौन कह सकता है? सेतु बंध पर जब भीड़ अधिक हो गई तो कुुछ वानर आकाश मार्ग से उड़ने लगे और कुछ जलचर जीवों के पर चढ़कर पार जा रहे हैं. 

सेना सहित सुबेल पर्वत पर निवास

समुंदर पार जाकर डेरा डाला और प्रभु ने सब वानरों को आज्ञा दी तुम फल -मूल खाओ. वानर- भालू मीठे फल खा रहे हैं और जहां पर भी कोई राक्षस मिलता उसके नाक कान काट कर प्रभु के यश का गान करते हैं.

रावण की व्याकुलता

जब राक्षसों ने रावण को समाचार दिया कि समुंदर पर सेतुबंध गया है तो रावण घबराकर दसों मुखों से बोल उठा

बाँध्य बननिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस। 

 सत्य  तोयनिधि कंपति  उदधि पयोधि नदीस।।

वननिधि, नीरनिधि, जलधि, सिंधु, तयोनिधि ,वारीश , कंपति, उदधि, नदीश को क्या सचमुच ही बांध लिया? 

मंदोदरी का रावण को समझना

रावण अपनी व्याकुलता को विचार कर महल में गया. मंदोदरी ने सुना कि प्रभु राम ने समुंद्र को बांध लिया है. वह मनोहर वाणी से रावण को कहने लगी कि, "वैर उसी से करना चाहिए जिससे आप बुद्धि और बल में जीत सके". आप में और रघुनाथ में वैसे ही अंतर है जैसे जुगनू और सूर्य का.  उनका जन्म पृथ्वी का भार हरने के लिए ही हुआ है. आप जानकी राम को सौंपकर, पुत्र को राज्य देकर , वन जाकर श्री रघुनाथ का भजन करें, जिससे मेरे सुहाग अचल हो जाय.

रावण मंदोदरी से अपनी प्रभुता कहने लगा कि मैंने अपनी भुजाओं के बल पर देवता , दानव, वरुण, कुबेर , यमराज  आदि दिक्पालों को तथा काल को भी जीत रखा है. तुम्हे भय किस कारण उत्पन्न हुआ है. मंदोदरी जान गई कालवश होने के कारण ही उसके पति को अभिमान हुआ है.

रावण और प्रहस्त संवाद

सभा में जब रावण ने मंत्रियों से पूछा कि शत्रु से किस प्रकार युद्ध करना चाहिए? मंत्री कहने लगे कि इसमें विचार क्या करना मनुष्य, भालू और वानर हमारा भोजन है. 

रावण का पुत्र प्रहस्त हाथ जोड़कर कहने लगा कि , "हे प्रभु! नीति के विरुद्ध कुछ नहीं करना चाहिए मंत्रियों की बुद्धि थोड़ी है. एक बंदर समुद्र लांघ कर आया. उसका चरित्र सब जानते .उस समय किसी को भूख ना लगी ( बंदर तो तुम्हारा भोजन है). नगर जलाते किसी ने नहीं पकड़ा. 

वह खेल में समुंद्र बांध और सुबेल पर्वत पर सेना सहित उतरे हैं .मुझे कायर ना समझे . नीति अनुसार दूत भेजकर सीता को श्री राम को दे दीजिए . अगर स्त्री पाकर वह लौट जाएं तो झगड़ा ना बढ़ाए. यदि फिर भी ना फिरे तो हठ पूर्वक मारकाट करें  . 

रावण ने गुस्से में पुत्र से कहा कि तुझे ऐसी बुद्धि किसने सिखायी ? मुझे संदेह हो रहा है कि तू बांस की जड़ में घमौई क्यों हुआ ? पिता के कठोर वचन सुनकर प्रहस्त यह कहता हुआ सभा से चला गया की मृत्यु के वश व्यक्ति को दवा नहीं सुहाती.

सुबेल पर्वत पर श्रीराम की झांकी और मुकुट -छत्रादि का गिरना

रात में श्री राम ने दक्षिण की ओर देखकर विभीषण से कहा कि दक्षिण दिशा में मानो बादल घूमड़ रहा है . बिजली चमक रही है . मीठे - मीठे स्वर में बादल गरज रहे हैं .  विभिषण बोले कि कृपालु ना तो यह बिजली है और ना बादल की घटा .

लंका की चोटी पर एक महल है .वहां रावण ने सिर पर मेघ डंबर जैसा छात्र धारण किया है . वही मानो बादलों की घटा है और मंदोदरी के कानों में कर्ण फूल हिल रहे हैं  वही मानो बिजली चमक रही है.

रावण का अभिमान समझ के श्री राम ने धनुष पर बाण का संधान किया . एक ही बाण में छत्र ,मुकुटऔर कर्ण फूल कटकर जमीन पर गिर गए. किसी को भी इसका भेद ना लगा और रावण की सारी सभा भयभीत हो गई . 

 ना भूकंप आया, ना हवा चली और ना कोई अस्त्र-शस्त्र किसी ने नेत्रों से देखा. रावण ने हंसकर कहा कि सिरों का गिरना जिसके लिए शुभ है .उसके लिए मुकुट का गिरना अशुभ कैसे हुआ ? रावण को सिर नवाकर सब लोग अपने अपने घर गए .

मंदोदरी का रावण को समझाकर श्रीराम की महिमा कहना

मंदोदरी फिर से रावण से कहने लगी कि, "श्रीराम से विरोध छोड़ दें ,श्रीराम विश्वरूप है".लेकिन रावण द्वारा मंदोदरी की बातों का विरोध करते हुए सवेरा हो गया.

अंगद का दूत बनकर लंका जाना

प्रातः काल श्री रघुनाथ ने मंत्रियों को बुलाकर सलाह पूछी.  जाम्बवान ने श्री राम के चरणों में सिर नवाकर कहा  सलाह दी कि बालि पुत्र अंगद को दूत बनाकर  भेजें . श्री राम ने अंगद से कहा कि तुम लंका जाओ .  शत्रु से वही बात करना जिससे हमारा काम हो और उसका कल्याण हो . अंगद ने लंका पहुंच कर रावण को श्री राम का संदेश दिया. लेकिन जब रावण नहीं माना तो अंगद जी वापिस लौट आए और लंका का सारा समाचार सुना दिया.

 युद्धारम्भ

शत्रु की सूचना प्राप्त कर श्रीराम ने मंत्रियों को बुलाया और कहा कि लंका के चार द्वार हैं . उन पर किस प्रकार आक्रमण किया जाए .  तब विचार कर वानरों की सेना के चार दल बनाकर सबसे उचित सेनापति नियुक्त किए .वानर सेना श्री राम की जय ,लक्ष्मण जी की जय,  वनराज सुग्रीव की जय कहकर गर्जना करने लगी.

जब रावण को पता चला तो वह हंसकर कहने लगा बंदर काल की प्रेरणा से चले आए हैं . सब लोग चारों दिशाओं में जाओ और रीछ वानरों को खाओ . रावण की आज्ञा पाकर राक्षस अपने अपने शस्त्र ले कर चले.

चारों ओर नफीरी और भेरी बज रही है . उधर रावण की और इधर श्री राम की दोहाई बोली जा रही हैं . श्री राम के प्रताप से वानरों के समूह राक्षसों को मसल रहे हैं. वानरों  के समूह किले पर चढ़कर श्री राम की जय बोलने लगे. राक्षस युद्ध के मैदान से भागे और लंका में हाहाकार मच गई. 

जब रावण ने यह समाचार सुना तो उसने कहा कि युद्ध में जो भी पीठ दिखा कर भागेगा मैं उसे स्वयं तलवार से मारूंगा . यह वचन सुनकर सब युद्ध के मैदान में लौट गए .अब उन्होंने  प्राणों का मोह छोड़ दिया . वे ललकार कर  वानरों से भिड़ने लगे . जिससे वानर भय से आतुर हो गए. 

हनुमान जी औ ने जब अपने दल को विकल देखा तो वह पश्चिम द्वार गए.  जहां मेघनाद युद्ध कर रहा था. वह द्वार टूटता ना था . हनुमान जी ने युद्ध में मेघनाथ का रथ तोड़ दिया था . सारथी को मार गिराया. मेघनाथ की छाती में लात मारी तो दूसरा सारथी रथ में डाल कर से घर ले गया . 

तब अंगद ने सुना कि हनुमानजी किले पर अकेले हैं तो वह भी वहां किले पर चढ़ गए .  दोनों वानरों ने उत्पात मचाना आरंभ कर दिया.  राक्षसों को मसल रहे हैं . सिरोको ऐसे तोड़ते रहे हैं मानो दही के कूंडे फूट रहे हो.

श्रीराम सब को अपने परम धाम भेज रहे हैं. शत्रु की सेना को कुचल कर फिर दिन का अंत होता देख दोनों बंदर वहाँ आ गए जहाँ श्रीराम थे. रात में चारों सेनाएँ वहाँ आ गई जहाँ श्री राम थे.जब श्री राम ने सब को कृपा करके देखा त्यों ही सब वानर श्रम रहित हो गए. 

लंका में रावण ने मन्त्रियों को बुला कर कहा कि वानरों ने आधी सेना का संहार कर दिया है. क्या विचार करना चाहिए? 

माल्यवान् का रावण को समझना

माल्यवान ने जो रावण का नाना था ने कहा कि तुम जब से सीता को हर लाए हो तब से अपशकुन हो रहे हैं. शिव जी और ब्रह्म जी जिनकी सेवा करते हैं, तुम ने उन से वैर किया  ? 

वैर छोड़ कर जानकी श्री राम को दे दो और श्री राम का नाम भजो. रावण  को उनके वचन बाणों की तरह लगे. रावण ने कहा कि तू बूढ़ा हो गया है. नहीं तो तुमे मार देता. तब माल्यवान ने अनुमान लगाया कि इसे श्रीराम अब मारना ही चाहते हैं  . 

मेघनाद ने कहा कि सुबह मेरी करामात देखना मैं बहुत कुछ करूँगा. 

लक्ष्मण जी और मेघनाद युद्ध

सवेरा होने पर वानर फिर द्वार पर आ गए. मेघनाद ने जब सुना कि वानरों ने किले को घेर लिया है तो वह किले से उतरा और पुकारने लगा कि कोशलाधीश दोनों भाई कहा है? नल, नील, द्विविद, सुग्रीव और अंगद, हनुमान कहाँ है? भाई से द्रोह करने वाला विभिषण कहा है  ? उसे तो मैं हठ पूर्वक मारूंगा.

उसने धनुष बाण पर बाणों का संधान किया जहाँ तहाँ वानर गिरने लगे. सेना को बेहाल देख कर हनुमान जी ने क्रोध कर बड़ा भारी पहाड़ मेघनाद पर छोड़ा. पहाड़ को आता देख कर वह आकाश में उड़ गया. उसका रथ, सारथी, घोड़े सब नष्ट हो गए. 

मेघनाथ  श्री राम के पास आया और उन पर अस्त्र -शस्त्र   से प्रहार किया तो प्रभु ने सबको काट कर अलग कर दिया.  मेघनाद ने धूलल बरसा कर चारों ओर अंधेरा कर दिया . माया देखकर वानर व्याकुल हो गए तो श्रीराम में एक ही बाण से सारी माया काट डाली. 

श्री राम की आज्ञा से लक्ष्मण जी अंगद आदि वानरों को लेकर क्रुद्ध होकर चले . मेघनाद और लक्ष्मण जी दोनों आपस में भिड़ते हैं . मेघनाद छल - बल और अनीति करता है .  लक्ष्मण जी ने उनको तोड़ दिया और सारथी  के टुकड़े-टुकड़े कर दिए.  

लक्ष्मण जी को शक्ति लगना

जब मेघनाद को लगा कि उसके प्राण संकट में है. उस ने लक्ष्मण जी पर वीर घातिनि शक्ति चलाई. जो लक्ष्मण जी की  छाती पर जा लगी . जिससे इनको मूर्छा आ गई .

मेघनाद लक्ष्मण जी के पास गया और अनगिनत योद्धा के साथ उन्हें उठाने लगा  लेकिन लक्ष्मण उससे नहीं उठते तो वह खिसियाना कर चला गया.

संध्या होने पर श्री राम ने लक्ष्मण जी के बारे में पूछा तो हनुमान जी लक्ष्मण जी को ले आए. छोटे भाई की दशा देखकर प्रभु श्री राम बहुत दुखी हुए . 

हनुमान जी का सुषेण वैद्य को लाना

 जाम्बवन्त ने कहा कि लंका में सुषेण वैद्य रहता है.  तो हनुमान जी छोटा रूप धारण कर गए उनको घर सहित  उठा लाए .

सुषेण वैद्य ने पर्वत औषधि का नाम बताकर हनुमान जी से कहा कि औषधि ले आओ .

हनुमान जी का संजीवनी लेने जाना और कालनेमि का उद्धार

हनुमान जी प्रभु श्री राम के चरणों में फिर निवाकर औषधि लेने चले.जब रावण को गुप्तचरों से इस बात का पता चला तो वह कालनेमि के पास गया.

रावण ने कालनेमि  को सारा मर्म बताया तो कालनेमि ने समझाया कि जिससे तुम्हारा नगर जलाया है .उसका मार्ग कौन रोक सकता है ? तुम श्री राम का भजन करो. जिससे तुम्हारा कल्याण हो. कालनेमि की बातों से रावण क्रोधित हो गया . कालनेमि ने मन में सोचा कि रावण के हाथों मरने से अच्छा है. मैं श्री राम के दूत के हाथों में मरु. कालनेमि माया से मार्ग में सुंदर तालाब, मंदिर ,और बाग बनाया  . 

हनुमान जी ने आश्रम को देख कर सोचा कि मुनि की आज्ञा से जल पी कर थकान दूर कर लेता हूं. उन्होंने ने मुनि को प्रणाम कर जल मांगा तो मुनि ने उन्हें कमंडल दे दिया. हनुमान जी ने कहा कि इस जल से मेरी तृप्ति नहीं होगी. मुनि ने कहा कि तुम स्नान करके लौट आओ मै तुम को दीक्षा दूंगा.

तालाब में जाते ही जब मकरी ने उनके चरण पकड़े तो हनुमान जी ने उसे मार डाला. तब वह सुंदर देह धारण करके आकाश में चली गई. उसने हनुमान जी को बता दिया कि यह मुनि नहीं निशाचर है.

हनुमान जी ने निशाचर के पास जाकर कहा कि पहले आप गुरु दक्षिणा ले ले फिर मुझे मंत्र दीजियेगा. हनुमान जी उसके सिर को पूंछ में लपेट कर पछाड़ दिया. राम- राम करते उसने प्राण छोड़ दिए. हनुमान जी हर्षित हो कर चले. 

हनुमान जी पर्वत पर औषधि को ना पहचान पाए तो पर्वत ही उखाड़ कर ले आए.

भरत जी के बाण से हनुमान जी का मूर्च्छित होना

पर्वत को लेकर आकाश मार्ग से जब वह अयोध्या पूरी के ऊपर पहुँचे तो भरत जी ने आकाश में विशाल स्वरूप देखा. उन्होंने ने अनुमान लगाया कि कोई राक्षस हो सकता है. भरत जी ने बिना फल का बाण मारा  . हनुमान जी राम -राम का सिमरन कर मूर्च्छित हो कर पृथ्वी पर गिर पड़े. राम नाम सुनकर भरत जी आतुरता से दौड़े  . 

भरत जी ने कहा कि यदि मन, वचन और शरीर से मेरा प्रेम श्री राम के चरणों में है तो वानर पीड़ा से रहित हो जाय. यह सुनते ही हनुमान जी कोशलाधीश श्री राम की जय कह कर उठ पड़े.भरत जी ने हनुमान जी को गले से लगा लिया.

भरत हनुमान जी संवाद

भरत जी ने श्रीराम, लक्ष्मण और माता जानकी की कुशल पूछी तो हनुमान जी ने उन्हें सारी कथा सुना दी जिसे सुन कर भरत जी बहुत दुखी हुए. भरत जी ने कहा कि तुम पर्वत सहित मेरे बाण पर चढ़ जाओ मैं तुम्हें वहाँ भेज दूंगा जहाँ श्रीराम है. भरत जी की बात सुन कर हनुमान जी के ह्रदय में अभिमान उत्पन्न हुआ कि मेरे बोझ से बाण कैसे चलेगा. 

किंतु श्री राम के नाम का प्रभाव विचार कर भरत जी के चरणों में वन्दना की कि मैं आपका प्रताप हृदय में रखकर तुरंत चला जाउँगा  . भरत जी की सराहना कर हनुमान जी चले जा रहे हैं.

श्रीराम का प्रलाप और हनुमान जी का लौटना

उधर श्री राम कह रहे हैं कि आधी रात हो गई है हनुमान जी अभी नहीं आए.  उन्होंने ने लक्ष्मण जी को गले से लगा लिया. श्री राम कहने लगे कि, "धन, स्त्री, पुत्र, घर और परिवार बार - बार होते हैं लेकिन सहोदर भ्राता बार - बार नहीं मिलता  . तुम्हारी माता को मैं क्या उत्तर दूंगा. प्रभु के विलाप को सुन कर वानर विकल हो गए. उसी समय हनुमान जी आ गए  . मानो करूणा रस में वीर रस आ गया हो.

लक्ष्मण जी का उठ बैठना

 वैद्य सुषेण ने तुरंत उपाय किया जिससे लक्ष्मण जी उठ कर बैठ गए. श्रीराम ने लक्ष्मण जी को हृदय से लगा लिया. हनुमान जी ने वैद्य को वहाँ पहुँचा दिया जहाँ से लाए थे  . 

रावण का कुम्भकर्ण को जगाना

लक्ष्मण जी के ठीक होने की खबर सुनकर रावण व्याकुल हो गया. उसने कुम्भकर्ण को जगाया और उसे बताया कि कैसे वह सीता जी को हर लाया है और वानरों ने राक्षसों के कितने योद्धा मार डाले है  . 

कुम्भकर्ण का रावण को उपदेश

कुम्भकर्ण विलख कर कहने लगा कि तू जग जननी जगदंबा को हर लाया. अब तू अपना कल्याण चाहता है! तू उस देवता का विरोध कर रहा है जिसके शिव, ब्रह्म सेवक है  . हे भाई तू अंक भर कर मुझे मिल ले और मैं जाकर श्रीराम के दर्शन करू.

युद्ध के मैदान में उसे विभिषण  मिला तो कुम्भकर्ण कहने लगा कि तुम धन्य हो रावण तो काल के वश हो गया है. मैं भी मृत्यु के वश हूँ मुझे अपना पराया नहीं सूझता. इसलिए तुम जाओ  .

कुम्भकर्ण युद्ध और उसकी परम गति

 उसने हनुमान जी, अंगद, नल- नील को पछाड़ दिया और वानर राज सुग्रीव को अपनी कांख में दबा लिया. सुग्रीव की होश आया तो कांख के नीचे से खिसक कर कुम्भकर्ण के नाक कान काट दिए. सुग्रीव फिर श्रीराम के पास आये और कहने लगे कि उसके भयानक रूप को देख कर वानरों में भय पैदा हो गया है.

श्री राम हाथ में धनुष ले कर राक्षस सेना का दलन करने लगे. राक्षसी सेना का संहार देख कर कुम्भकर्ण ने सिंहनाद किया और वानरों को पृथ्वी पर पटकने लगा.

वानरों ने आर्त वाणी में कहा कि शरणागत के दुख हरने वाले! रक्षा कीजिये! प्रभु ने सौ बाणों का संधान किया. जो उसके शरीर में घुस गए. उसने एक पर्वत उखाड़ दिया. प्रभु ने उसकी भुजा काट दी. वह पर्वत बाय हाथ में लेकर दौड़ा तो प्रभु ने वह भुजा भी काट दी.

वह बड़े वेग से मुंह फैला कर दौड़ा तो प्रभु ने उसके मुख को सौ बाणों से भर दिया. जब वह मुख में बाण लेकर दौड़ा तो प्रभु श्री राम ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जो रावण के आगे जाकर गिरा.

फिर कुम्भकर्ण  का धड़ दौड़ा. प्रभु ने उसके धड़ के दो टुकड़े कर दिए. उसका तेज़ प्रभु में समा गया. देवता फूल बरसाने लगे. श्री राम ने कुम्भकर्ण को अपने परम धाम भेज दिया.

मेघनाद का युद्ध और राम जी का नागपाश में बंधना

उधर रावण भाई के मरण पर विलाप कर रहा है. मेघनाद ने अपने पिता को समझाते हुए कहा कि आप कल मेरा पुरुषार्थ देखना. मेघनाद ने देवराज इंद्र से जो रथ पाया था उस पर चढ़कर आकाश मार्ग से चला.

मेघनाद ने लक्ष्मण जी, सुग्रीव और विभिषण के शरीर को बाणों से छलनी कर दिया. फिर वह श्रीराम से लड़ने लगा.वह जुड़े बाण छोड़ता वह सांप होकर लगते. प्रभु ने रण की शोभा बढा़ने के लिए अपने को नागपाश में बांध लिया.

मेघनाद ने सेना को व्याकुल देखकर दुर्वचन कहने लगा तो जाम्बवन्त जी ने उसे ललकार तो मेघनाद ने त्रिशूल चलाया. जाम्बवन्त ने वही त्रिशूल मेघनाद की छाती में दे मारा. वरदान के प्रताप से वह मारे नहीं मरता तो जाम्बवन्त जी ने उसे पैर से पकड़ कर लंका में फैंक दिया.

देव ऋषि नारदजी ने गरूड़ को श्री राम के पास भेजा.वह माया सर्पों के समूह को पकड़ खा गए. सब वानरों के समूह हर्षित हुए.

मेघनाद का यज्ञ विध्वंस और युद्ध और उद्धार

उधर मेघनाद की मूर्छा छूटी तो वह अजेय यज्ञ की प्रतिज्ञा कर गुफा मे चला गया. 

यहाँ विभिषण ने श्री राम से कहा कि मायावी मेघनाद अपवित्र यज्ञ कर रहा है जिससे उसे जल्दी जीता नहीं जा सकेगा.

श्री राम ने अंगद, हनुमान, नल- नील, सुग्रीव और विभिषण को लक्ष्मण जी के साथ भेजा. श्रीराम ने लक्ष्मण जी से कहा कि बल बुद्धि के उपाय से उसे मारना. लक्ष्मण जी ने कहा कि अगर मैं आज उसे बिना मारे आऊँ तो रघुपति का सेवक ना कहलाऊं . 

वानरों ने वहाँ जाकर यज्ञ विध्वंस कर दिया लेकिन वह फिर भी ना उठा तो वानरों ने लातों से मारा तो वह त्रिशूल लेकर दौड़ा. वानर लक्ष्मण जी के पास आ गए. 

उसने अंगद और हनुमान जी की छाती में त्रिशूल मार कर दोनों को जमीन पर गिरा दिया. फिर उसने लक्ष्मण जी पर त्रिशूल छोड़ा. लक्ष्मण जी ने उसके टुकड़े - टुकड़े कर दिए. मेघनाद माया दिखाने लगा कभी प्रकट होता तो कभी छिप जाता.

तब लक्ष्मण जी ने श्रीराम का स्मरण कर बाण का संधान किया जो उसकी छाती में जा लगा . मरते समय उसने कपट का त्याग किया और कहने लगा कि राम के भाई लक्ष्मण कहाँ है  ? राम कहां है ? 

हनुमान जी उसे उठा कर लंका के द्वार पर रखकर लौट आये. सभी देवता श्री राम के निर्मल यश का गान करने लगे. पुत्र के मरण की खबर सुन कर रावण मूर्छित ही गया. मन्दोदरी छाती पीट कर विलाप करने लगी. सभी लोग रावण को नीच कहने लगे. रावण ने सभी को ज्ञान का उपदेश दिया.

रावण का युद्ध और श्रीराम का विजय रथ

रात बीत गई सवेरा होने पर राक्षसों  की विशाल सेना चली. रावण ने कहा कि योद्धाओं तुम रीछ वानरों को मसल डालो. मैं दोनों भाईयों को मारूंगा. दोनों ओर के योद्धा जय जयकार करके आपस में भिड़ गए. 

रावण को रथ और श्रीराम को बिना रथ के देख कर विभिषण अधीर हो गए. विभिषण कहने लगे कि आपके पास ना रथ है, ना तन की रक्षा करने वाला कवच है और ना ही जूते है ? वह कहने लगे कि रावण किस तरह जीता जाएगा  ? 

श्रीराम ने कहा कि जिस रथ से विजय होती है वह रथ दूसरा ही है. शौर्य और धैर्य इस रथ के पहिये है. सत्य और शील उसकी ध्वजा और पताका है. बल - विवेक, दम और परोपकार उसके घोड़े है.  जो क्षमा, दया और समता रूपी डोरी से रथ में जुड़े हुए है.

ईश्वर का भजन सारथी है. वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है. दान फरसा है  , बुद्धि शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान धनुष है. निर्मल और अचल मन तरकस है.शम , यम और नियम ये बाण है. ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है. 

हे! सखा ऐसा रथ जिस के पास हो वह वीर संसार रुपी महान दुर्जेय शत्रु को भी जीत सकता है. प्रभु के वचन सुन कर विभिषण ने उनके चरण पकड़ कर कहा कि इसी बहाने आपने मुझे उपदेश दिया.

रावण बीस भुजाओं में दस धनुष ले कर रथ पर चढ़कर गर्व  से चला. वह इधर -उधर झपटकर वानरों को मसलने लगा .रावण ने दसों धनुषों पर बाण का संधान करके वानरों पर छोड़े. वानर हे रघुवीर रक्षा कीजिये पुकारने लगे  . 

लक्ष्मण रावण युद्ध

लक्ष्मण जी श्री राम को सिर निभा कर चले .लक्ष्मण जी को देखकर रावण ने कहा कि ,"अरे मेरे पुत्र के घातक मैं तुमको ही ढूंढ रहा था .तुमको मार कर मैं अपनी छाती ठंडी करूंगा ".

उसने लक्ष्मण जी पर प्रचंड बाण छोड़े .लेकिन लक्ष्मण जी ने सब के सौ टुकडे कर दिए उसके सारथी को मार दिया. उसके रथ को तोड़ दिया. उसके मस्तकों और छाती  में सौ - सौ बाण मारे .जिससे रावण को होश ना रहा.

लेकिन होश आते ही रावण ने लक्ष्मण जी की छाती में ब्रह्मा जी द्वारा दी गई शक्ति चलाई . जिससे लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए . लक्ष्मण जी को उठाकर हनुमान जी श्री राम के पास ले गए . 

श्री राम ने लक्ष्मण जी से कहा कि, "तुम काल के भी भक्षक हो और देवताओं के रक्षक हो " . इतने वचन सुनते ही लक्ष्मण जी उठ गए .लक्ष्मण जी ने शीघ्रता से रावण के रथ को चूर चूर कर दिया और सारथी को मार दिया. 

उसका हृदय बाणों से छलनी कर दिया जिससे वह पृथ्वी   पर गिर पड़ा.उसका दूसरा सारथी उसे लंका ले गया.  रावण मूर्छा छूटते ही यज्ञ करने लगा . जब विभिषण को इस बात का पता चला तो उसने श्रीराम से कहा कि रावण का यज्ञ सिद्ध होने पर वह सहज नहीं मरेगा.

रावण यज्ञ विध्वंस 

आप वानरों को यज्ञ विध्वंस करने भेजें .श्री राम की आज्ञा पाकर वानरों ने रावण का  यज्ञ  विध्वंस कर डाला और श्री राम के पास आ गए. निशाचरों  की सेना चली तो देवताओं ने श्री राम से विनती की. प्रभु इसने हमें दारुण दुख  दिये हैं . अब इसे अधिक ना खिलाइये.

देवताओं के वचन सुनकर प्रभु ने हाथ में धनुष उठा लिया. श्रीराम के बाणों से राक्षसों के मरे हुए योद्धा लडा़ई के मैदान में सो रहे हैं.

इन्द्र का श्री राम के लिए रथ भेजना

राक्षसों की सेना का विनाश देख रावण विचार करने लगा. मैं अकेला रह गया हूँ . इसलिए उसने अपार माया रची. इंद्र देव ने श्री राम को बिना रथ के युद्ध करते देख अपना रथ भेजा. श्री उस रथ पर चढ़ गए. 

श्री राम और रावण युद्ध

रावण ने माया फैलायी और वानरों और लक्ष्मण जी ने बहुत से रामों को देखा. श्री राम ने जब सेना को आश्चर्य चकित देखा तो उन्होंने कहा सारी माया हर ली.

श्रीराम ने रावण के सारथी और घोडों को मार दिया और रथ को चूर - चूर कर दिया. रावण ने दूसरे रथ पर चढ़ कर श्रीराम पर नाना प्रकार के अस्त्र शस्त्र चलाएं.

श्री राम ने उसकी बीस भुजाओं और दसों सिरों पर एक साथ बाण चलाएं. बीसों भुजाएँ और दसों सिर कट कर पृथ्वी पर गिर पड़े.  लेकिन सिर और हाथ कटते ही नये हो जाते. प्रभु श्रीराम बार - बार उसके सिर और भुजाओं को काटते. आकाश में उसके सिर और भुजाएँ फैल गई. 

रावण ने विभिषण पर परम शक्ति छोड़ी तो श्रीराम ने विभिषण को पीछे कर शक्ति स्वयं पर सह ली  . जिस से श्रीराम मुर्च्छित हो गए. 

विभिषण ने गदा से रावण पर प्रहार किया और फिर दोनों में मल युद्ध होने लगा. हनुमान जी ने विभिषण जी को थका हुआ जान कर रावण से भिड़ गए. 

रावण माया दिखाने लग गया और उसने अनेकों रूप प्रकट किए. जिस से भालू, वानर विचलित होने लगे तो श्रीराम ने बाण चला कर माया के रावणों को मार डाला.

रावण ने जब हनुमान आदि सभी वानरों को मूर्च्छित कर दिया तो जाम्बवान् जी ने रावण की छाती में लात मार कर मूर्च्छित कर दिया तो सारथी रात्रि जानकर रावण को रथ में डाल कर ले गया.

त्रिजटा और सीता जी संवाद

उसी रात्रि त्रिजटा ने सीता जी को सब कथा बताई. शत्रु के सिर और भुजाओं के बढने की बात सुन कर सीता जी के हृदय में बहुत भय हुआ. सीता जी ने त्रिजटा से पूछा कि, "सम्पूर्ण विश्व को दुख देने वाला कैसे मरेगा "?  त्रिजटा ने कहा कि, " हृदय में बाण लगते ही रावण मर जाएगा ".

प्रभु उसके हृदय में बाण इस लिए नहीं मारते क्यों कि उसके हृदय में आप बसती है. सिरों में बार - बार बाण लगने से उसके हृदय से आपका ध्यान हटाने जाएगा. इस तरह सीता जी को समझाकर त्रिजटा चली गई. 

रावण वध

सुबह उठते ही रावण रण भूमि की ओर चल पड़ा और प्रचंड माया दिखाने लगा. विभिषण ने श्रीराम से कहा कि, " इस के नाभिकुंड में अमृत वास करता है. जिस के फल पर यह जिवित है ".

प्रभु श्री राम ने सुनते ही बाण छोड़े और मरते समय रावण गरज कर बोला राम कहां है? 

मंदोदरी का विलाप

रावण की भुजाओं और सिरों को मंदोदरी के सामने रखकर श्री राम के बाण तरकश में वापिस आ गए और रावण का तेज श्रीराम के मुख में समा गया. देवता फूल बरसाने लगे और श्रीराम की जय हो कहने लगे.

उधर पति के सिर देख कर मंदोदरी पृथ्वी पर गिर पड़ी और विलाप करने लगी कि जिसने भुज बल से यमराज को भी जीत लिया था. श्रीराम से विमुख होने के कारण आज कुल में कोई नाम लेने वाला भी नहीं बचा.

श्री राम ने उनको परम धाम भेज दिया मैं श्री राम को नमस्कार करती हूँ. उधर श्री राम ने विभिषण को कहा कि शोक त्याग कर भाई की अन्त्येष्टि करो.


विभीषण का राज्याभिषेक

सब क्रिया - कर्म करने के बाद श्री राम ने लक्ष्मण जी से कहा कि तुम सुग्रीव, अंगद, हनुमान के साथ जाओ और विभिषण का राज तिलक कर दो. उन्होंने ने विभिषण का राजतिलक कर दिया. 

हनुमान जी का सीताजी को श्री राम की कुशल सुनाना

प्रभु श्री राम ने हनुमान जी से कहा कि तुम लंका जाओ और जानकी को सब समाचार सुनाओ. सीता जी ने हनुमान जी को पहचान लिया और उन्होंने ने प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी की कुशल पूछी. 

हनुमान जी ने कहा कि श्रीराम कुशल है और उन्होंने ने संग्राम में रावण को जीत लिया है.यह सुनकर सीता जी हृषित हुई  . उन्होंने ने हनुमान जी से कहा कि प्रभु श्री राम तुम पर प्रसन्न रहे और समस्त गुण तुम्हारे हृदय में बसे  . 

हे तात ! तुम वही उपाय करो जिस से मैं श्री राम के दर्शन कर सकू. हनुमान जी ने सीता जी का संदेश श्रीराम को सुनाया. जानकी का संदेश सुन कर प्रभु श्री राम ने विभिषण से कहा कि हनुमान के साथ जाओ और जानकी को सम्मान सहित ले आओ

सीता जी का आगमन और अग्नि परीक्षा

. विभिषण जी सुंदर पालकी सजा कर सीता जी को ले आए. वानर, भालू सीता जी के दर्शन करने दौडे़. आकाश से देवताओं ने फूल बरसाए.

सीता जी के असली रूप को अग्नि में रखा था  . अब श्री राम उनको प्रकट करना चाहते हैं. प्रभु के चरणों में सिर निवास कर सीता जी ने लक्ष्मण जी से कहा कि तुम आग तैयार करो.

सीता जी की विवेक, धर्म और नीति से सनी वाणी सुन कर लक्ष्मण जी के नेत्रों में जल भर आया. परन्तु श्रीराम से कुछ कह ना सके.

लक्ष्मण जी आग तैयार करके लकड़ी ले आए. आग को बढ़ी देख जानकी जी ने कहा कि, " मन  , वचन और कर्म से मेरे हृदय में रघुवीर को छोड़ कर कोई नहीं है तो यह अग्नि मेरे लिए चंदन के समान शीतल हो जाए  . कोशलपति की जय बोल कर सीता जी ने अग्नि में प्रवेश किया. सीता जी की छाया मूर्ति और लौकिक कलंक अग्नि में जल गए. प्रभु के इस  चरित्र को किसी ने नहीं जाना.

अग्नि ने शरीर धारण कर सीता जी को श्री राम को वैसे ही समर्पित किया जैसे क्षीर सागर ने विष्णु भगवान को लक्ष्मी जी को समर्पित किया था. वह श्री राम के वाम अंग में विराजित हुई. सभी देवताओं ने आकर बहुत प्रकार श्रीराम की स्तुति की.

फिर दशरथ जी वहां आए और प्रभु श्री राम ने लक्ष्मण जी सहित उनकी वन्दना की और कहा कि उनके पुण्य प्रताप के कारण ही अजेय राक्षस पर जीत प्राप्त हुई है. प्रभु ने उन्हें अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन कराया और श्रीराम ने उन्हें अपनी भक्ति प्रदान की और वह हृषित होकर देव लोक चले गए. 


देवताओं की स्तुति और इंद्र की अमृत वर्षा

फिर देव राज इंद्र ने प्रभु की उस्तुती की और कहा कि आज्ञा दीजिये कि मैं क्या से करूँ  ? प्रभु श्री राम ने कहा कि जिन वानर, भालुओं ने प्राण त्याग किये है तुम सबको जिला दो. प्रभु श्री राम तो त्रिलोकी को जिला सकते हैं उन्होंने ने इंद्र देव को बड़ाई देने के लिए ऐसा कहा. इंद्र देव ने अमृत छिड़क कर सबको जिला दिया.

सभी देवता विमान में चढ़ कर अपने - अपने लोक चले गए. फिर भगवान शिव हाथ जोड़ कर प्रभु श्री राम से विनती करने लगे. प्रभु आप मेरे हृदय में निवास करे और जब आपका राजतिलक होगा तो मैं आप की लीला देखने आऊंगा.

पुष्पक विमान में श्री सीता राम जी का अवध के लिए प्रस्थान

विभिषण जी पुष्पक विमान ले आए. श्री राम, लक्ष्मण जी और सीता जी के साथ- साथ सुग्रीव, नल, जाम्बवन्त्, अंगद, हनुमान और विभिषण जी सहित सभी विमान में चढ़े . विप्र चरणों में प्रणाम कर उत्तर दिशा की ओर विमान चलाया. विमान चलते ही सब श्रीराम की जय कहने लगे.

श्री राम सीता जी को रणभूमि दिखा रहे हैं यहाँ भारी निशाचर  मेघनाद, कुम्भकर्ण और रावण मारे गये. श्री राम ने बताया जहां पुल बंधवाया और श्री शिव जी की स्थापना की. फिर श्री राम ने सीता जी सहित रामेश्वर महादेव को प्रणाम किया.

वन में जहाँ - जहाँ श्री राम ने निवास किया वह स्थान सीता जी को दिखलाये. विमान दण्डकवन पहुँचा तो प्रभु अगस्त्य आदि ऋषियों के स्थान पर गये. ऋषियों से आशीर्वाद प्राप्त कर चित्रकूट आये. ऋषियों को संतुष्ट कर विमान आगे चला. श्री राम ने जानकी जी को यमुना जी के दर्शन कराये . फिर गंगा जी के कर तीर्थ राज प्रयाग के दर्शन किए.

त्रिवेणी में पहुँच कर प्रभु ने स्नान किया और हनुमान जी से कहा कि तुम ब्रह्मचारी का रूप धरकर अवधपुरी जाता जाओ.  भरत को हमारी कुशल कह कर और उनका समाचार लेकर आना. हनुमान जी तुरंत चल दिये.

श्रीराम भरद्वाज ऋषि के आश्रम गए. उन्होंने ने प्रभु की अनेकों प्रकार स्तुति की. ऋषियों को प्रणाम कर गंगा जी की ओर चले. वहाँ सीता जी ने गंगा जी की पूजा की. गंगा जी ने आर्शिवाद दिया तुम्हारा सुहाग अखंड रहे. निषादराज जी को प्रभु के आने का समाचार मिला तो वह प्रभु के चरणों में गिर पड़े. प्रभु ने उन्हें अपने हृदय से लगा लिया.

श्री राम चरित की महिमा

तुलसीदास जी कहते हैं कि रावण के शत्रु का यह पवित्र चरित्र श्री राम के चरणों में प्रीति उत्पन्न करने वाला है. जो सुजान लोग श्री राम की विजय सम्बन्धी लीला को सुनते हैं. उन्हें प्रभु नित्य विवेक, विजय और विभूति देते हैं. इस कलिकाल में श्री रघुनाथ जी के नाम को छोड़ कर दूसरा कोई आधार नहीं है.

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