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Showing posts from August, 2021

AJA EKADASHI VART KATHA

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अजा एकादशी  एकादशी का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है. भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी व्रत कहा जाता है। अजा एकादशी व्रत कथा  अयोध्या में सूर्यवंशी राजा हरिश्चन्द्र राज्य करते थे. एक बार उन्होंने ने स्वप्न देखा कि उन्होंने ने ऋषि विश्वामित्र को अपना राज्य दान कर दिया है.  अगले दिन सुबह जब ऋषि विश्वामित्र उनके दरबार में आए तो उन्होंने राजा हरिश्चन्द्र को उनका स्वप्न स्मरण करवाया. राजा हरिश्चन्द्र  ने अपना सम्पूर्ण राज्य ऋषि को भेट कर दिया.  ऋषि विश्वामित्र ने उनसे दक्षिणा में स्वर्ण मुद्राएँ मांगी तो राजा ने कहा कि राज्य के साथ ही मेरा खजाना भी आप का हो गया है. दान की दक्षिणा चुकाने के लिए राजा हरिश्चन्द्र ने अपनी पत्नी, पुत्र और स्वयं को बेच दिया. राजा हरिश्चन्द्र एक चांडाल के दास बन गए क्यों कि उनको एक डोम ने खरीदा था जो कर लेकर शमशान में लोगों के दाह संस्कार करवाता था. कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने ने सत्य का साथ नहीं छोड़ा. एक दिन राजा हरिश्चन्द्र चिंता मग्न थे कि मेरा उद्धार कैसे होगा ? उसी समय महर्षि गौतम उनके पास आए. महर्षि गौतम ने उन्हें भाद्रमाह के कृष्ण पक्

SITA JI TINKE KI AUT KYUN KARTI HAI

  क्या आप जानते हैं कि सीता माता अशोक वाटिका में रावण के सामने आने पर तिनके की ओट क्यों करती थी ?  रामचरितमानस में एक चौपाई आती है  तृण  धर  ओट  कहत वैदेही ,                            सुमिरि अवधपति परम् स्नेही।।                                   सीता जी के अपहरण के पश्चात रावण ने सीता माता को अशोक वाटिका में रखा. रावण जब भी सीता जी धमकाता सीता जी तिनके की ओट कर लेती. रावण एक बार कहने लगा कि मेरे आते ही तुम तिनके की ओट क्यों कर लेती हो. क्या यह  घास का तिनका तुम्हारी रक्षा करेगा ? सीता जी रावण के कटु वचन सुन कर भी मौन रही.  इसके के पीछे एक प्रसंग है. जब सीता राम जी का विवाह हुआ तो प्रथा अनुसार सीता जी ने खीर बनाई.  क्योंकि माना जाता है कि नववधू के पहला पकवान मीठा बनाने से और खिलाने से घर परिवार में मिठास बनी रहती है.  सीता जी जब खीर परोसी  तब तेज़ हवा चलने के कारण एक घास का तिनका राजा दशरथ की खीर में आ गिरा. सीता जी अब खीर में तो हाथ डाल नहीं सकती थी. इसलिए उन्होंने एक चमत्कार किया. घास के तिनके को घूर कर देखा तो वह तिनका जल कर राख के बिंदु सा हो गया.  सीता जी सोचने लगी कि अच्छा हुआ कि

HANUMAN JI KI ASHTH SIDDHI KE NAAM

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हनुमान जी की अष्ट सिद्धि के नाम  हनुमान जी श्री राम के परम भक्त है. हनुमान जी बल बुद्धि के धाम है. माता सीता ने हनुमान जी की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अष्ट सिद्धियों और निधियों के दाता होने का आशीर्वाद दिया था . हनुमान जयंती पर पढ़ें हनुमान जी की अष्ट सिद्धियों के नाम ।  तुलसीदास जी द्वारा रचित हनुमान चालीसा में चौपाई आती है. अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता  अस वर दीन जानकी माता  हनुमान जी की अष्ट सिद्धियाँ 1 . अणिमा  - यह सिद्धि होने पर साधक अपने शरीर को अणु के समान लघु कर सकते हैं . कोई नग्न आंखों से उन्हें नहीं देख सकते. हनुमान जी इसी सिद्धि के कारण ही लंका  में प्रवेश किया था और सुरसा राक्षसी के मुख से वापस आए थे.   2. महिमा - इस सिद्धि के कारण साधक अपने शरीर को बढ़ाने की असीमित क्षमता रखता है . इसी सिद्धि के कारण ही हनुमान जी ने सुरसा के सामने अपने शरीर को सौ योजना तक बढ़ाया था और मां सीता को अशोक वाटिका में अपने विशाल रूप दिखाकर उनका संशय दूर किया था. 3. लघिमा - इससे साधक का शरीर इतना हल्का हो जाता है कि वह अपनी इच्छा अनुसार उड़ सकता है और कहीं भी जा सकता है . अपनी इसी शक्ति के बल

KANS VADH KATHA कंस वध कथा

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 श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार है. श्री कृष्ण का जन्म भाद्रमास की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. श्री कृष्ण का जन्म कंस के कारावास में माँ देवकी के गर्भ से हुआ.   मथुरा नगरी में राजा उग्रसेन राज्य करते थे. उनके अत्याचारी पुत्र कंस ने उन्हें गद्दी से हटा कर कारागार में बंद कर दिया. कंस मथुरा नगरी का निरकुंश शासक बन गया और अपने अत्याचारों से प्रजा को प्रताड़ित करता था. प्रजा में उसके प्रति असंतोष था लेकिन उसकी असीम शक्ति के आगे प्रजा कुछ भी करने में असमर्थ थी. देवकी कंस की बहन थी. देवकी और वसुदेव जी के विवाह के बाद जब कंस अपनी बहन देवकी की विदाई कर रहा था तो आकाशवाणी हुई की तुम्हारी बहन का आठवां पुत्र तुम्हारी मौत का कारण बनेगा. कंस तो देवकी को मारना चाहता था परंतु वसुदेव जी ने वादा किया कि वो सभी संतानों को उसे सौंप देगें, इस प्रकार उन्होंने ने देवकी की जान बचा ली.कंस ने देवकी और वसुदेव जी को जेल में कैद कर दिया. देवकी और वसुदेव ने अपने छह पुत्र कंस को दे दिए.  उनके सातवें पुत्र हुए 'बलराम' , जिसे योग माया ने माँ रोहिणी के गर्भ में संरक्षित कर दिया. बलराम ज

SHRI KRISHNA KO CHHAPPAN BHOG KYUN lagaya jata hai

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श्री कृष्ण का जन्म भाद्रमाह की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा नगरी के कारावास में हुआ.इस दिन को पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है.  जन्माष्टमी पर श्री कृष्ण को छप्पन भोग लगाया जाता है. माना जाता है कि 56 भोग लगाने से मनवांछित फल प्राप्त होता है. कृष्ण को छप्पन भोग क्यों लगाया जाता   है ?  माना जाता है कि माँ यशौदा श्री कृष्ण को एक दिन में आठ पहर भोजन कराती थी. लेकिन एक बार इंद्र के घमंड को तोड़ने के लिए श्री कृष्ण ने बृज वासियों को इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पूजा करने के लिए कहा. श्री कृष्ण का मानना था गोवर्धन पर्वत के कारण ही उनके पशुओं को चारा मिलता है जिसे खाकर दूध देते हैं. गोवर्धन पर्वत ही बादलों को रोककर बारिश करवाता है . जिसके कारण खेती होती हैं. इससे इंद्र क्रोधित हो गया और मूसलाधार बारिश करनी शुरू कर दी. जिस में सब कुछ बहने लगा श्रीकृष्ण ने तब गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर धारण किया . सभी ब्रज वासियों को उसके नीचे आने को कहा और उनकी रक्षा की. श्री कृष्ण ने लगातार 7 दिन अन्न जल ग्रहण नहीं किया. जब इंद्र को पता चला कि श्री कृष्ण विष्णु जी के अवतार हैं त

SHRI KRISHAN 108 NAMES WITH MEANING IN HINDI

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 श्री कृष्ण के 108 नाम अर्थ सहित  श्री कृष्ण  को हम कृष्णा, माधव, गोविन्द, द्वारिकाधीश, गिरधर गोपाल कई नामों से पुकारते है. भक्त के मन में उनकी जैसी छवि होती है वो उसी नाम से उनका सिमरन करते हैं. यहाँ हम श्री कृष्ण के 108  नामों(lord Krishna names) का वर्णन करने जा रहे हैं. LORD KRISHNA 108 NAMES  1. कृष्ण : सब को अपनी ओर आकर्षित करने वाला,  सांवले रंग वाले 2. माधव : ज्ञान के भंडार, माया के पति 3 . मुरारी : मुर दैत्य के शत्रु 4. गिरधर : गोवर्धन पर्वत उठाने वाले 5. गोपाल: गाय के रक्षक, ग्वालों के साथ खेलने वाले 6. हरि : प्रकृति के भगवान, दुखो को हरने वाले 7 . मुरली मनोहर : मुरली बजाकर मन मोहने वाले 8. श्याम : जिनका रंग सावला हो 9 . देवकिनन्दन: माँ देवकी के पुत्र 10. वसुदेव : सब जगह रहने वाले 11. मुरलीधर: मुरली धारण करने वाले 12. बाल गोपाल: भगवान कृष्ण का बाल रूप  13 . गोविन्दा : गाय, प्रकृति और भूमि  को चाहने वाले 14. अचला : भगवान 15 . अच्युत : जिसने कभी चुक  ना की हो 16. अद्भुतह : अद्भुत प्रभु 17. आदिदेव : देवताओं के स्वामी 18 . विष्णु : भगवान विष्णु के स्वरुप 19 . उपेद्र: इन्द्र के

SWAMI VIVEKANAND AND MURTI POOJA

 एक बार एक राजा ने स्वामी विवेकानंद जी से कहा कि पता नहीं हिन्दू पत्थर की मूर्तियों को कैसे पूजते हैं. वो तो सिर्फ निर्जीव पत्थर होती है. ऐसे पत्थरों को हम पैरों के नीचे कुचलते है. निर्जीव पत्थरों का चेहरा बना देने से क्या होता है ? क्या उनमें प्राण आ जाते हैं. स्वामी विवेकानंद जी ने दीवार पर पीछे लगी राजा के पिता का चित्र मंगवाया और राजा से कहा कि इस चित्र पर थूक दो. राजा को बहुत क्रोध आया . राजा ने कहा कि यह मेरे यह मेरे पिता की तस्वीर है. आप ने यह बात कहने की धृष्टता कैसे की.  स्वामी विवेकानंद जी ने कहा कि ऐसा करो कि अगर आप थूक नहीं सकते तो ऐसा करे इसे पैरों के नीचे कुचल दो. इतना सुनते ही राजा का क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया. राजा ने कहा कि इस तस्वीर में मैं अपने पिता का स्वरूप देखता हूँ. मैं अपने पिता का अपमान सहन नहीं कर सकता. स्वामी जी बोले कि, यह तस्वीर तो बस एक कागज़ का टुकड़ा है. जिस में केवल कुछ रंग भरे हैं. इस में ना कोई हड्डी है ना प्राण है. फिर भी तुम अपने पिता का स्वरूप देखते हैं. ऐसे ही हिन्दू भी पत्थर, धातु की मूर्तियों में अपने देवी - देवताओं को मूर्त रूप में पूजते

KRISHAN JANMASHTMI KYUN MANAI JATI HAI कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है

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 Janmashtmi(कृष्ण जन्माष्टमी )  कृष्णजन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है?  कृष्ण जन्माष्टमी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. श्री कृष्ण भगवान विष्णु के 8वें अवतार है.  श्री कृष्ण का जन्म भाद्रमाह की अष्टमी तिथि को हुआ था इस दिन को जन्माष्टमी या कृष्णजन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है. श्री कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में  अत्याचारी कंस का वध करने के लिए मथुरा नगरी के कारावास में हुआ.  मथुरा नगरी में राजा उग्रसेन राज्य करते थे. उनके अत्याचारी पुत्र कंस ने उन्हें गद्दी से हटा कर कारागार में बंद कर दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन गया. देवकी कंस की बहन थी. देवकी और वसुदेव जी के विवाह के बाद जब कंस अपनी बहन देवकी की विदाई कर रहा था तो आकाशवाणी हुई की तुम्हारी बहन का आठवा पुत्र तुम्हारी मौत का कारण बनेगा. कंस तो देवकी को मारना चाहता था परंतु वसुदेव जी ने वादा किया कि वो सभी संतानों को उसे सौंप देगें, इस प्रकार उन्होंने ने देवकी की जान बचा ली.कंस ने देवकी और वसुदेव जी को जेल में कैद कर दिया. देवकी और वसुदेव ने अपने छह पुत्र कंस को दे दिए.  उनके सातवें पुत्र हुए 'बलराम' , जिसे योग माया ने

LAKSHYA KE PASS PAHUNCH KE DHAIRYA NE KHOA

 एक बार जंगल के समीप एक गाँव था. उस जंगल में बहुत से जंगली जानवर थे जो अक्सर गाँव में आ जाते. गाँव वालों को भी बहुत बार अपनी जरूरत की चीजों के लिए जंगल में जाना पड़ता था. जंगली जानवरों के हमलों से बचने के लिए पेड़ों पर चढ़ना सिखना अनिवार्य था. गाँव में एक व्यक्ति थे जो गाँव वालों को पेड़ पर चढ़ना सिखाते थे. एक दिन सात आठ लडके उन से चिकने और ऊंचे पेड़ पर चढ़ने का प्रशिक्षण ले रहे थे. जब लड़के पेड़ पर चढ़ रहे थे तो वह ध्यान से उन्हें ऊपर चढ़ता देख रहे थे. लेकिन जब लड़के उस पेड़ से नीचे उतर रहे थे तो उन्होंने हर एक लड़के से कहा कि सावधानीपूर्वक नीचे आना कोई जल्दी मत करना. जब सब लड़के पेड़ से नीचे आ गए तो उन्होंने अपने गुरु से सवाल किया. जब हम ऊपर चढ़ रहे थे तब तो आपने कुछ नहीं कहा जबकि पेड़ पर चढ़ना ज्यादा जोखिम भरा था. जब हम नीचे उतर रहे थे तब आपने हमें सावधान रहने को क्यों कहा ?  गुरु ने कहा कि जब तुम पेड़ पर चढ़ रहे थे तब तुम जानते थे कि चिकने पेड़ पर चढ़ना जोखिम भरा हो सकता है. इसलिए तुम सावधान थे. लेकिन जब तुम पेड़ से नीचे उतर रहे थे तब तुम्हारी सतर्कता कम ना हो जाए इसलिए मैंने तुम्ह

PATIENCE (DHAIRYA)धैर्य (सहनशीलता)

 एक बार एक राजा था. उसे मूर्तियों से बहुत लगाव था. उसके महल में तीन मूर्तियां थी जिन से राजा को बहुत प्रिय थी . एक दिन सफाई करते समय सेवादार से एक मूर्ति टूट गई.  राजा ने उसी क्षण मूर्ति तोड़ने वाले सेवादार  को मृत्यु दंड की घोषणा की दी. मृत्यु दंड का आदेश सुनकर भी सेवादार तनिक भी विचलित नहीं हुआ. बल्कि उसने बाकी की बची हुई दोनों मूर्तियों को तोड़ दिया. उसके इस कृत्य को देख कर राजा आवाक रह गया और उसका क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया . उसने सेवादार से  प्रश्न पूछा .   तुम ने बाकी बची दोनों मुर्तियां क्यों तोड़ दी? जबकि तुम जानते हो यह मुर्तियां मुझे बहुत प्रिय है. इनके कारण तुम्हें मृत्यु दंड भी मिल चुका था. सेवादार का जबाब सुनकर राजा बहुत लज्जित हुआ .  सेवादार ने कहा कि महाराज मैं जानता था कि इन मूर्तियां से आप को बहुत लगाव है. दोनों मूर्तियां मिट्टी से बनी हुई थी जैसे आज गलती से मुझ से टूटी वैसे कल वो किसी और से भी टूट सकती थी. मैं नहीं चाहता था कि जैसे आप की अपनी प्रिय मूर्ति के टूटने पर मुझे मृत्यु दंड मिला वैसा किसी और मिले.  अब राजा अपने दिए हुए दंड के कारण लज्जित महसूस कर रहा था.

SAMRAT ASHOK'S STORY " SHISH KA KYA ABHIMAAN"

  एक बार सम्राट अशोक राज्य के भ्रमण पर निकले. रास्ते पर उन्हें एक भिक्षुक मिले. सम्राट अशोक घोड़े से उतरे और उनके चरणों में अपना शिश झुकाया. उनके मंत्री ने सम्राट से पूछा कि महाराज आप इतने बड़े सम्राट आप ने एक मामूली से भिक्षुक के चरणों में अपना शिश क्यों निवाया.  सम्राट अशोक उस दिन चुप रहे लेकिन कुछ दिन के बाद सम्राट ने उसे एक थैला देकर  आदेश दिया कि शाम तक इस थैले में जो सामान है वह बेच कर आओ.  मंत्री ने राज भवन से बाहर आकर देखा तो उसमें एक भैंसे का, एक बकरे का ,एक घोड़े का और इंसान का सिर था. शाम तक उसने भैंसे, घोड़े, और बकरे का सिर बेच दिया लेकिन इंसान का सिर खरीदने को कोई भी तैयार नहीं था. शाम को सम्राट अशोक के पास आकर उसने बताया कि महाराज बाकी के सिर तो बिक गया है लेकिन इंसान का सिर कोई भी खरीदने को तैयार नहीं है.  सम्राट ने कहा कि ऐसा करना कि कल इंसान का सिर किसी को मुफ्त में दे आना. मंत्री अगले दिन फिर से इंसान के सिर को लेकर गया लेकिन किसी ने मुफ्त में भी नहीं लिया. मंत्री ने सम्राट अशोक को बताया कि कोई इंसान का सिर मुफ्त में भी लेने को तैयार नहीं है. लोग कहते हैं कि किसी ने इ

WHEN LORD KRISHNA BORN STORY IN HINDI

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 श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा हिन्दी में    श्री कृष्ण भगवान विष्णु के 8वें अवतार है. श्री कृष्ण का जन्म भाद्रमाह की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में माँ देवकी के गर्भ से मथुरा के कारावास में अत्याचारी कंस का वध करने के लिए हुआ था. मथुरा नगरी में राजा उग्रसेन राज्य करते थे. उनके अत्याचारी पुत्र कंस ने उन्हें गद्दी से हटा कर कारागार में बंद कर दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन गया. देवकी कंस की बहन थी. देवकी और वसुदेव जी के विवाह के बाद जब कंस अपनी बहन देवकी की विदाई कर रहा था तो आकाशवाणी हुई की तुम्हारी बहन का आठवा पुत्र तुम्हारी मौत का कारण बनेगा. कंस तो देवकी को मारना चाहता था परंतु वसुदेव जी ने वादा किया कि वो सभी संतानों को उसे सौंप देगें, इस प्रकार उन्होंने ने देवकी की जान बचा ली.कंस ने देवकी और वसुदेव जी को जेल में कैद कर दिया. देवकी और वसुदेव ने अपने छह पुत्र कंस को दे दिए.  उनके सातवें पुत्र हुए 'बलराम' , जिसे योग माया ने माँ रोहिणी के गर्भ में संरक्षित कर दिया. बलराम जी ने माँ  रोहिणी के यहा जन्म लिया. जब उनकी आठवीं संतान श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ. उस समय जेल के दरवाजे अपन

UTTAR KAND उत्तर कांड

 उत्तर कांड तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस का एक भाग (खंड, सोपान) है जो लंका कांड के बाद आता है. लंका कांड में श्री राम रावण को युद्ध में हराने के बाद सीता माता को मुक्त करवा कर पुष्पक विमान में अयोध्या पुरी की ओर प्रस्थान करते है. भरत - विरह  नगर के लोग आतुर हो रहे हैं कि श्रीराम के लौटने की अवधि में एक दिन ही बचा है. कौशल्या आदि माताओं के मन में आनंद हो रहा है कि सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम आ रहे हैं. भरत जी सोच रहे हैं कि कहीं मुझे कुटिल जान कर प्रभु ने मुझे भुला तो नहीं दिया. फिर सोचते हैं कि मुझे भरोसा है कि प्रभु मुझे अवश्य मिलेगे .   भरत  - हनुमान जी मिलन उसी समय हनुमान जी ने विप्र रुप में आकर श्री राम के आने का समाचार दिया कि प्रभु शत्रु को रण में हराकर सीता जी लक्ष्मण सहित आ रहे हैं. भरत जी ने हनुमान जी को गले से लगा लिया. हनुमान जी ने श्रीराम के पास तुरंत लौट कर सब कुशल कही. तब प्रभु हर्षित होकर विमान पर चढ़कर चले. रामचरितमानस के प्रसिद्ध दोहे चौपाई अयोध्या में आनन्द और श्रीराम का स्वागत भरत जी ने श्रीराम के आने का समाचार गुरु, माताओं को सुनाया. नगर वासी हर्षित होकर जो जैसे

SHRI RAM CHANDR MARYAADA PURSOTAM RAM

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श्री राम की कहानी  श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार है. उनके राम, श्रीराम , श्रीरामचन्द्र , मर्यादा पुरुषोत्तम, रघुपति, रघुवीर, आदि नाम है. राम  एक आदर्श भाई, आदर्श पुत्र और आदर्श शासक थे .आज भी लोग किसी अच्छे पुत्र के उदाहरण देते हो तो कहते हैं  पुत्र हो तो राम जैसा. राज्य हो तो राम राज्य जैसा  .  श्री राम और सीता जी की जोड़ी को भी आदर्श जोड़ी माना जाता है .  भारत के अतिरिक्त नेपाल, इंडोनेशिया, बाली, जावा, मलेशिया, श्रीलंका आदि देशों में श्री राम की पूजा की जाती है और उनकी लोक कथाओं में श्री राम का वर्णन मिलता है. जब राक्षसों के राजा रावण  ने देवताओं को अपने अधीन कर लिया और पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ गए तो पृथ्वी गाय का रूप धारण करके ब्रह्मा जी के पास गई .ब्रह्मा जी के साथ मिलकर सब ने भगवान विष्णु की स्तुति की .तब आकाशवाणी हुई थी मैं त्रैता युग में सूर्यवंश में मनुष्य रूप में अवतार लूंगा .  अयोध्या में दशरथ नाम के राजा हुए और उनकी कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी तीन रानियां थी . उनका कोई भी पुत्र नहीं था. उन्होंने श्रृंगी ऋषि से  पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया तो अग्निदेव हाथ में चरू हविष्यान

NARAD JI NE VISHNU BHAGWAAN SHRI HARI KO SHRAP KYUN DIYA

   क्या आप जानते हैं कि नारद जी ने भगवान विष्णु (श्री हरि) को शाप क्यों दिया. नारद जी श्री हरि के परम भक्त है लेकिन बार माया के वश उन्होंने ने भगवान विष्णु को श्राप दिया था. हिमालय पर्वत के समीप के गुफा में गंगा जी बहती थी . वह आश्रम नारद जी को सुहावना लगा और वह वहां भगवान का स्मरण करते हुए उनकी गति रुक गई (उन्हें  दक्ष प्रजापति ने शाप दिया था जिसके कारण में वह एक स्थान पर नहीं ठहर पाते थे ) और उनकी समाधि लग गई . नारद मुनि की समाधि देखकर इंद्रदेव डर गए.  उन्हें लगा कि नारद जी कहीं स्वर्ग लोक में निवास तो नहीं चाहते ? उन्होंने कामदेव को उनकी समाधि भंग करने के लिए भेजा . कामदेव ने नाना प्रकार के मायाजाल रचे. लेकिन नारद मुनि पर उनका को प्रभाव ना देखकर कामदेव से डर गए और उन्होंने मुनि के चरणों को जा पकड़ा . नारद मुनि के मन में क्रोध नहीं आया और उन्होंने कामदेव को लौटा दिया.  नारदजी भगवान शिव के पास गए . उन्हें इस बात का अहंकार हो गया की मैंने कामदेव को जीत लिया है .  भगवान शिव ने नारदजी को शिक्षा दी कि यह  कथा जो तुमने मुझे सुनाई है वो श्री हरि विष्णु को मत बताना . नारद जी को भगवान की यह