AJA EKADASHI VART KATHA

अजा एकादशी 

एकादशी का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है. भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी व्रत कहा जाता है।

अजा एकादशी व्रत कथा

 अयोध्या में सूर्यवंशी राजा हरिश्चन्द्र राज्य करते थे. एक बार उन्होंने ने स्वप्न देखा कि उन्होंने ने ऋषि विश्वामित्र को अपना राज्य दान कर दिया है. 

अगले दिन सुबह जब ऋषि विश्वामित्र उनके दरबार में आए तो उन्होंने राजा हरिश्चन्द्र को उनका स्वप्न स्मरण करवाया. राजा हरिश्चन्द्र  ने अपना सम्पूर्ण राज्य ऋषि को भेट कर दिया. 

ऋषि विश्वामित्र ने उनसे दक्षिणा में स्वर्ण मुद्राएँ मांगी तो राजा ने कहा कि राज्य के साथ ही मेरा खजाना भी आप का हो गया है.

दान की दक्षिणा चुकाने के लिए राजा हरिश्चन्द्र ने अपनी पत्नी, पुत्र और स्वयं को बेच दिया. राजा हरिश्चन्द्र एक चांडाल के दास बन गए क्यों कि उनको एक डोम ने खरीदा था जो कर लेकर शमशान में लोगों के दाह संस्कार करवाता था. कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने ने सत्य का साथ नहीं छोड़ा.

एक दिन राजा हरिश्चन्द्र चिंता मग्न थे कि मेरा उद्धार कैसे होगा ? उसी समय महर्षि गौतम उनके पास आए. महर्षि गौतम ने उन्हें भाद्रमाह के कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी का व्रत करने और रात्रि को जागरण करने को कहा. महर्षि गौतम ने कहा कि इस व्रत से तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएगे.

महर्षि गौतम के कहे अनुसार राजा हरिश्चन्द्र ने व्रत और रात्रि जागरण किया. अजा एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा के सभी पाप नष्ट हुए और उनके सारे कष्ट दूर हुए.
राजा हरिश्चन्द्र को अपना खोया हुआ राज्य, पत्नी और पुत्र पुनः मिल गया और उनके पिछले जन्मों के पाप नष्ट हो गए. 

अजा एकादशी व्रत का महत्व

अजा एकादशी व्रत को अश्वमेध यज्ञ के समान फलदायी माना गया है. इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करनी चाहिए. इस से सुख और वैभव की प्राप्ति होती है और इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होता है.
सुबह उठ कर स्नान करके लक्ष्मी नारायण भगवान के आगे दीप प्रज्ज्वलित करे . सात्विक वस्तुओं का भोग लगाएं. इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी जरूर अर्पित करे. 

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