PATIENCE (DHAIRYA)धैर्य (सहनशीलता)

 एक बार एक राजा था. उसे मूर्तियों से बहुत लगाव था. उसके महल में तीन मूर्तियां थी जिन से राजा को बहुत प्रिय थी . एक दिन सफाई करते समय सेवादार से एक मूर्ति टूट गई. 

राजा ने उसी क्षण मूर्ति तोड़ने वाले सेवादार  को मृत्यु दंड की घोषणा की दी. मृत्यु दंड का आदेश सुनकर भी सेवादार तनिक भी विचलित नहीं हुआ. बल्कि उसने बाकी की बची हुई दोनों मूर्तियों को तोड़ दिया.

उसके इस कृत्य को देख कर राजा आवाक रह गया और उसका क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया . उसने सेवादार से  प्रश्न पूछा . 

 तुम ने बाकी बची दोनों मुर्तियां क्यों तोड़ दी? जबकि तुम जानते हो यह मुर्तियां मुझे बहुत प्रिय है. इनके कारण तुम्हें मृत्यु दंड भी मिल चुका था. सेवादार का जबाब सुनकर राजा बहुत लज्जित हुआ . 

सेवादार ने कहा कि महाराज मैं जानता था कि इन मूर्तियां से आप को बहुत लगाव है. दोनों मूर्तियां मिट्टी से बनी हुई थी जैसे आज गलती से मुझ से टूटी वैसे कल वो किसी और से भी टूट सकती थी. मैं नहीं चाहता था कि जैसे आप की अपनी प्रिय मूर्ति के टूटने पर मुझे मृत्यु दंड मिला वैसा किसी और मिले. 

अब राजा अपने दिए हुए दंड के कारण लज्जित महसूस कर रहा था. सेवादार ने उसे अहसास करवाया कि एक राजा को अपने निजी हित- अहित से ऊपर उठ कर न्याय करना चाहिए. मूर्ति से राजा को लगाव था लेकिन अपनी प्रिय वस्तु के टूटने पर धैर्य खोना और किसी को मृत्यु दंड देना अनुचित था. 

राजा ने उससे फिर प्रश्न किया कि तुमने दंड मिलने पर भी ईश्वर को दोष क्यों नहीं दिया अपितु तुम इस विषय परिस्थिति में परहित सोच रहे थे कि कहीं किसी और को मृत्यु दंड ना हो जाए . तुम इतने समभाव कैसे हो  तुम ने कठिन परिस्थिति में भी धैर्य कैसे बनाए रखा.

 सेवादार ने कहा कि महाराज ईश्वर ने मुझे बहुमुल्य जीवन दिया. हर प्रकार की सुख सुविधाएं प्रदान की. अगर ईश्वर ने कुछ कटु अनुदान दे भी दिया तो उस पर शक नहीं करना चाहिए. जीवन मृत्यु सब ईश्वर के हाथ में है.

एक सेवादार ने आज राजा को बहुत बड़ी शिक्षा दी थी कि अपने पद के कारण मिली शक्तियों का दूरपयोग नहीं करना चाहिए और  कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य नहीं खोना चाहिए. राजा ने उस सेवादार से माफी मांगी और मृत्यु दंड का आदेश वापिस ले लिया.

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मुसीबत में भी धैर्य नहीं खोना चाहिए







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