NARAD JI NE VISHNU BHAGWAAN SHRI HARI KO SHRAP KYUN DIYA

   क्या आप जानते हैं कि नारद जी ने भगवान विष्णु (श्री हरि) को शाप क्यों दिया. नारद जी श्री हरि के परम भक्त है लेकिन बार माया के वश उन्होंने ने भगवान विष्णु को श्राप दिया था.

हिमालय पर्वत के समीप के गुफा में गंगा जी बहती थी . वह आश्रम नारद जी को सुहावना लगा और वह वहां भगवान का स्मरण करते हुए उनकी गति रुक गई (उन्हें  दक्ष प्रजापति ने शाप दिया था जिसके कारण में वह एक स्थान पर नहीं ठहर पाते थे ) और उनकी समाधि लग गई . नारद मुनि की समाधि देखकर इंद्रदेव डर गए. 

उन्हें लगा कि नारद जी कहीं स्वर्ग लोक में निवास तो नहीं चाहते ? उन्होंने कामदेव को उनकी समाधि भंग करने के लिए भेजा . कामदेव ने नाना प्रकार के मायाजाल रचे. लेकिन नारद मुनि पर उनका को प्रभाव ना देखकर कामदेव से डर गए और उन्होंने मुनि के चरणों को जा पकड़ा . नारद मुनि के मन में क्रोध नहीं आया और उन्होंने कामदेव को लौटा दिया.

 नारदजी भगवान शिव के पास गए . उन्हें इस बात का अहंकार हो गया की मैंने कामदेव को जीत लिया है . 

भगवान शिव ने नारदजी को शिक्षा दी कि यह  कथा जो तुमने मुझे सुनाई है वो श्री हरि विष्णु को मत बताना . नारद जी को भगवान की यह शिक्षा अच्छी ना लगी.

 नारद जी हरि गुण गाते हुए क्षीर सागर पहुंचे. नारदजी ने कामदेव का सारा चरित्र भगवान को सुनाया. भगवान बोले नारदजी आपको भी कामदेव कैसे सता सकता है ?

नारद जी ने अभिमान से कहा कि प्रभु यह आपकी कृपा है .भगवान विष्णु समझ गए कि नारदजी के हृदय में गर्व के वृक्ष का अंकुर पैदा हो गया है . मैं उसे उखाड़ दूंगा क्योंकि सेवकों का हित करना मेरा प्रण है .

नारद जी भगवान को शीश निवा कर चले .उनके हृदय में अहंकार और अधिक हो गया . भगवान ने अपनी माया से रास्ते में सौ योजना का सुंदर नगर रचा . वहां शील निधि नाम का राजा रहता था .इस नगर की राजकुमारी के स्वयंवर के लिए अनगिनत राजा आए हुए थे 

नारदजी उस नगर में गए तो वहां के राजा ने नारद की पूजा की और राजकुमारी को नारद जी को दिखाया और कहा कि नाथ ! इसके गुण दोष कहे.

उस कन्या को देख  कर नारदजी  वैराग्य भूल गए और सोच विचार करने लगे कि वही उपाय करना चाहिए जिससे यह कन्या वर के रूप में मुझे ही चुने .

नारदजी ही सोचने लगी भगवान विष्णु से उनका रूप मांग लू. भगवान अपनी लीला से वहीं प्रकट हो गए . नारदजी ने सब कथा सुनाई और कहा कि प्रभु मुझे अपना रुप दे दीजिए . जिस तरह मेरा हित हो आप शीघ्र वही करें . 

प्रभु हंसकर बोले कि ,"नारदजी जिसमें आपका परम हित होगा हम वही करेंगे" . नारदजी प्रभु की गूढ़ वाणी को समझ नहीं सके और जहां  स्वयंवर हो रहा था वही चले गए. 

नारद जी मन में प्रसन्न थे कि मेरा रूप बहुत सुंदर है. कन्या  मुझे ही वरेगी .लेकिन मुनि के कल्याण लिए भगवान ने उन्हें ऐसा करुप बनाया जिसका वर्णन नहीं हो सकता. भगवान शिव के दो गण ब्राह्मण रूप बनाकर सारी लीला देख रहे थे .

राजकुमारी सखियों  के साथ वहाँ आई और राजाओं को देखती हुई घूमने लगी. उसने नारदजी की ओर भूल कर भी नहीं देखा. भगवान भी राजा का रूप धारण कर वहाँ आए थे . राजकुमारी ने जयमाला उनके गले में डाल दी . भगवान दुल्हन को ले गए .यह देख नारदजी विकल हो गए. 

 भगवान शिव के गणों ने कहा कि नारदजी जी दर्पण में अपना मुंह तो देखिये. नारदजी ने झांककर जल में देखा तो अपना रूप देख कर शिव गणों को शाप दे दिया कि तुम दोनों  राक्षस हो जाओ .

 मुनि ने फिर जल में देखा तो उन्हें अपना रूप प्राप्त हो गया. वह तुरंत भगवान विष्णु के पास गए . रास्ते में सोच रहे थे उन्होंने जगत में मेरी ऐसी हंसाई क्यों कराई है?  भगवान विष्णु उन्हें रास्ते में मिल गए साथ में लक्ष्मी जी और वही राजकुमारी थी. 

नारद जी ने भगवान विष्णु से कहा कि, "तुम धोखेबाज और मतलबी हो .अब अपने किए का फल जरूर पाओगे.  मेरा शाप है कि जब तुम मनुष्य रूप धारण करोगे . तुमने मेरा जो बन्दर रूप बनाया था वही बंदर तुम्हारी सहायता करेंगे .जिस स्त्री को मैं चाहता था उसे मेरा वियोग करा दिया .तुम भी स्त्री वियोग का दुख सहन करोगे.

शाप को सिर पर चढ़ा कर भगवान विष्णु ने अपनी माया खींच ली. माया के हटते ही ना वहां स्त्री रही और ना लक्ष्मी जी . नारद जी ने भगवान के चरण पकड़ लिए प्रभु मेरी रक्षा करें .कृपया मेरा शाप मिथ्या हो जाए .

भगवान ने कहा कि यह मेरी ही कृपा से हुआ है .नारद जी ने कहा मैंने आपको खोटे वचन कहे उसका पाप कैसे मिटेगा ? भगवान ने कहा कि तुम भगवान शिव के शतनाम का जाप करो जिससे तुम्हारे हृदय में शांति होगी. इस प्रकार नारद जी को समझा कर प्रभु अंतर्ध्यान हो गए .

 शिव गणों ने नारदजी से विनती की हमारा शाप दूर करने की कृपा करें . नारद जी ने कहा कि तुम दोनों राक्षस बनोगे. तुम्हें महान तेज , ऐश्वर्य और बल की प्राप्ति होगी. भगवान विष्णु जब मनुष्य रूप धारण करेंगे तब श्री हरि के हाथ से तुम्हारी मृत्यु होगी फिर तुम दोनों मुक्त हो जाओगे. फिर संसार में जन्म नहीं लोगे. यह सुन वे दोनों  मुनि को सिर निवाकर चले. 

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