SHRI RAM CHANDR MARYAADA PURSOTAM RAM
श्री राम की कहानी
श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार है. उनके राम, श्रीराम , श्रीरामचन्द्र , मर्यादा पुरुषोत्तम, रघुपति, रघुवीर, आदि नाम है. राम एक आदर्श भाई, आदर्श पुत्र और आदर्श शासक थे .आज भी लोग किसी अच्छे पुत्र के उदाहरण देते हो तो कहते हैं पुत्र हो तो राम जैसा. राज्य हो तो राम राज्य जैसा . श्री राम और सीता जी की जोड़ी को भी आदर्श जोड़ी माना जाता है .
जब राक्षसों के राजा रावण ने देवताओं को अपने अधीन कर लिया और पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ गए तो पृथ्वी गाय का रूप धारण करके ब्रह्मा जी के पास गई .ब्रह्मा जी के साथ मिलकर सब ने भगवान विष्णु की स्तुति की .तब आकाशवाणी हुई थी मैं त्रैता युग में सूर्यवंश में मनुष्य रूप में अवतार लूंगा .
अयोध्या में दशरथ नाम के राजा हुए और उनकी कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी तीन रानियां थी . उनका कोई भी पुत्र नहीं था. उन्होंने श्रृंगी ऋषि से पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया तो अग्निदेव हाथ में चरू हविष्यान्न (खीर ) लेकर प्रकट हुए . उन्होंने राजा से कहा कि तुम जाकर इसको जैसा उचित समझो रानियों में बांट दो. राजा ने एक भाग कौशल्या ,एक भाग कैकयी और 2 भाग सुमित्रा को दे दिए .
इस प्रकार तीनों रानी गर्भवती हुई . दीनों पर दया करने वाले प्रभु प्रकट हुए .उनका मेघों के समान श्याम शरीर था . भुजाओं में दिव्य अभूषण थे. वर माला पहने हुए थे .बड़े-बड़े नेत्र थे. माता ने दोनों हाथ जोड़कर स्तुति की और बोली प्रभु जी यह रूप छोड़कर बाल लीला करो .यह सुनकर भगवान ने बालक रूप में रोना शुरू कर दिया .इस प्रकार भगवान श्रीराम का धरती पर अवतार हुआ.
श्री राम ने फुर्ती से धनुष उठाया . उन्होंने धनुष को कब उठाया ,कब चढ़ाया और कब खींचा किसी को पता ही नहीं चला.उन्होंने धनुष को क्षण में बीच में तोड़ डाला . जिसकी कठोर ध्वनि पूरे लोक में फैल गई . सीता जी ने श्री राम को जयमाला पहना दी.
राजा दशरथ श्रीराम का राज्याभिषेक करना चाहते थे लेकिन देवताओं ने सरस्वती जी से उनकी मदद करने के लिए कहा ताकि श्री राम वन गमन कर सके और राक्षसों को मार सके.
सरस्वती जी ने कैकेयी की मंथरा नाम की दासी की बुद्धि फेर दी और मंथरा ने कैकेयी को भड़काया कि भरत तो ननिहाल गए हैं . रानी कौशल्या ने जानबूझ कर इस समय राम का राज्य अभिषेक करा रही है और वह तुम्हें राज्य से निकाल देगी. कैकेयी ने राजा दशरथ से दो बार मांगे.
एक वर के रूप में श्री राम को वन गमन और दूसरे भरत को राज्याभिषेक. श्री राम का जन्म रघुकुल में हुआ था और रघुकुल रीत सदा चली आई ,प्राण जाए पर वचन ना जाए . अपने पिता के वचन के पालन के लिए वह 14 वर्ष के वनवास को गए उनके साथ सीता जी आदर्श पत्नी की तरह और लक्ष्मण जी भी वन में गए.
जब भरत को अपनी माता कैकेयी की करनी का पता चला तो उन्होंने राज्य करने से इंकार कर दिया और वह श्रीराम से मिलने चित्रकूट में गए . श्रीराम के समझाने पर कि हमें अपने पिता की आज्ञा का पालन करना चाहिए भरत राम जी की चरण पादुकाएं लेकर अयोध्या वापस आ गए.
जब श्री राम, लक्ष्मण जी और सीता जी के साथ पंचवटी में कुटी बना कर रहते थे तब शूर्पणखा नाम की राक्षसी वहाँ आई और कहने लगी कि मेरे योग्य जगत में कोई पुरुष नहीं मिला तुम दोनों को देखकर आज मेरा मन माना है .
श्री राम ने सीता जी की ओर देखकर कहा कि मेरा छोटा भाई कुमार है. फिर वह लक्ष्मण जी के पास गई.लक्ष्मण जी ने कहा कि," तुमे वही वरेगा जो लज्जा का त्याग करेगा".
क्रोधित होकर शुर्पनखा ने भयानक रूप धारण कर लिया . जिसे देखकर सीता जी भयभीत हो गई .लक्ष्मण जी ने प्रभु के इशारे पर उसे नाक, कान से हीन कर दिया. मानो उसके हाथों रावण को चुनौती दी हो.
शूर्पणखा के भड़काने पर रावण सीता माता का हरण करके ले गया तब श्री राम ने हनुमान और सुग्रीव की वानर सेना की सहायता से सीता जी का पता लगाया और समुद्र पर सेतु बनाकर लंका पहुंच गए .
वहां श्री राम ने रावण का युद्ध में वध कर सीता माता को उस के बंधन से मुक्त करवाया था .अन्याय पर न्याय की जीत के हुई और दस सिर वाले रावण की हार हुई . विभीषण को लंका का राज्य दे दिया .श्री राम ,सीता जी और लक्ष्मण जी सहित अयोध्या वापस आ गए और अयोध्या के लोगों ने उस दिन घी के दिए जलाए . हनुमान जी श्री राम के परम भक्त है. लव ,कुश श्रीराम और सीता जी के दो पुत्र हुए.
श्रीराम के राज्य पर प्रतिष्ठित होने पर तीनों लोक हृषित हुए. कोई किसी से वैर नहीं करता. सब लोग वर्ण आश्रम के अनुसार वेद - मार्ग पर चल कर सुख पाते.
राम राज्य में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं होते थे. किसी की छोटी आयु में मृत्यु नहीं होती थी. ना कोई दरिद्र ना कोई दुखी है.
श्रीराम सात समुद्रों की मेखला वाली पृथ्वी के एक मात्र राजा है. गाएं मनचाहा दूध देती है, समुद्र मर्यादा में रहता है, सूर्य उतना ही तपते हैं जितनी अवश्यकता होती. मेघ मांगने पर जल देते हैं.
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