UTTAR KAND उत्तर कांड

 उत्तर कांड तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस का एक भाग (खंड, सोपान) है जो लंका कांड के बाद आता है. लंका कांड में श्री राम रावण को युद्ध में हराने के बाद सीता माता को मुक्त करवा कर पुष्पक विमान में अयोध्या पुरी की ओर प्रस्थान करते है.

भरत - विरह 

नगर के लोग आतुर हो रहे हैं कि श्रीराम के लौटने की अवधि में एक दिन ही बचा है. कौशल्या आदि माताओं के मन में आनंद हो रहा है कि सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम आ रहे हैं.

भरत जी सोच रहे हैं कि कहीं मुझे कुटिल जान कर प्रभु ने मुझे भुला तो नहीं दिया. फिर सोचते हैं कि मुझे भरोसा है कि प्रभु मुझे अवश्य मिलेगे . 

 भरत  - हनुमान जी मिलन

उसी समय हनुमान जी ने विप्र रुप में आकर श्री राम के आने का समाचार दिया कि प्रभु शत्रु को रण में हराकर सीता जी लक्ष्मण सहित आ रहे हैं. भरत जी ने हनुमान जी को गले से लगा लिया.

हनुमान जी ने श्रीराम के पास तुरंत लौट कर सब कुशल कही. तब प्रभु हर्षित होकर विमान पर चढ़कर चले.

रामचरितमानस के प्रसिद्ध दोहे चौपाई

अयोध्या में आनन्द और श्रीराम का स्वागत

भरत जी ने श्रीराम के आने का समाचार गुरु, माताओं को सुनाया. नगर वासी हर्षित होकर जो जैसे है वैसे ही दौड़ पड़े. गुरु वशिष्ठ, कुटुंबी और छोटे भाई शत्रुघ्न सहित भरत जी श्रीराम की अगवानी के लिए चले.

उधर श्रीराम विभीषण जी को अपनी जन्मभूमि का वर्णन कर रहे हैं. श्रीराम ने जब सब लोगों को आते देखा तो विमान को नगर के समीप उतरने की प्रेरणा दी.

प्रभु श्रीराम ने वामदेव, वशिष्ठ आदि मुनियों को आते देखा तो अपना धनुष पृथ्वी पर रख दिया और लक्ष्मण जी सहित दौड़ कर उनके चरण कमल पकड़ लिये. 


भरत मिलाप

फिर भरत जी ने श्रीराम के चरण पकड़ लिये. श्रीराम ने उन्हें गले से लगा लिया. आनंद वश भरत जी के मुख से वचन नहीं निकलते. फिर प्रभु ने शत्रुघ्न को गले मिले. 

फिर शत्रुघ्न सहित भरत जी ने सीता जी के चरणों में सिर निभाया. प्रभु श्रीराम को देख कर अयोध्या वासी हर्षित हुए. श्री राम ने एक चमत्कार किया. श्रीराम असंख्य रूपों में प्रकट हुए और क्षण मात्र में सबसे मिले. यह रहस्य कोई ना जान पाया.

माताएँ दौड़ी हुई आई. श्री ने सब माताओं से मिलकर कोमल वचन कहे कि वियोग से उत्पन्न विपत्ति दूर हो गई है. जानकी जी ने माताओं से मिलकर आशीष ली . 

लंका पति विभीषण, सुग्रीव, नल - नील, जाम्बवन्त, अंगद, हनुमान जी आदि सभी ने मनुष्य शरीर धारण कर लिये. श्रीराम ने सबको गुरु विशिष्ट से मिलाया और बताया कि मेरे हित के लिए इन्होंने अपने जन्म तक हार दिये. 

श्रीराम राज्याभिषेक

श्रीराम अपने महल की ओर चले तो आकाश से फूलों की वृष्टि हो रही है.  गुरु विशिष्ट ने ब्राह्मणों को बुला कर कि आज शुभ घड़ी, सुन्दर दिन और शुभ योग है. आप सब आज्ञा दीजिये जिससे श्रीराम चन्द्र जी सिंहासन पर विराजमान हो जाए.

सभी ब्राह्मणों ने कहा कि श्रीराम का राज्याभिषेक सम्पूर्ण जगत को आनंद देने वाला है. आप विलम्ब ना करे. मंत्री सुमंत जी ने दूतों को भेज कर मांगलिक वस्तुएँ मंगवा ली.

श्रीराम ने तीनों भाईयों को स्नान कराया और फिर उनकी जटाएं खोली. फिर स्वयं स्नान कर वस्त्र , आभूषण धारण धारण किये. उनकों देखकर सैंकड़ों कामदेव लजा गए. 

फिर सासुओं ने जानकी जी को स्नान कराकर दिव्य वस्त्र, आभूषण पहना दिए. श्रीराम की बायी ओर रूप और गुणों की खान जानकी जी सुशोभित हो रही हैं.


काकभुशुण्डि जी कहते हैं कि गरुड़ जी उस समय ब्रह्म, शिव जी और मुनियों के समूह भगवान के दर्शन के लिए आए. श्री राम जानकी जी सहित दिव्य सिंहासन पर विराजमान हुए. सबसे पहले गुरु विशिष्ट ने तिलक किया फिर ब्राह्मणों ने तिलक किया और फिर माताओं ने बारी - बारी आरती उतारी.

भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न जी, विभीषण, अंगद, हनुमान और सुग्रीव क्रमशः छत्र, चंवर, पंखा, तलवार, ढाल और शक्ति लिए हुए सुशोभित हो रहे हैं. सब देवताओं ने प्रभु की स्तुति की और अपने लोक चले गए. 


वेद स्तुति

फिर चारों वेद भाटों का रूप धारण कर आए और प्रभु के गुणों का बखान कर ब्रह्म लोक चले गए. 


शिव स्तुति

काकभुशुण्डि जी गरूड़ जी से कहते हैं कि फिर शिव जी वहाँ आएं और श्रीराम की स्तुति करने लगे. जिन्हें आप की लीला कथा का आधार है उनको संत और भगवान सदा प्रिय लगते हैं. वो प्रेम पूर्वक शुद्ध हृदय से आपके चरणों की सेवा करते हैं. आदर और निरादर को समान समझ कर संत सुखी हो कर  पृथ्वी पर विचरते है. 


मैं आपको भजता हूँ, आपका नाम जपता हूँ और आपको नमस्कार करता हूँ. मुझे आपकी अचल भक्ति और अपने भक्तों का सत्संग प्रदान करे. प्रभु के गुणों का बखान कर महादेव हृषित होकर कैलाश चले गए. 

काकभुशुण्डि जी गरूड़ जी से कहते हैं कि मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार राम कथा का वर्णन किया है. यह कथा भय और दुख हरने वाली है.


वानरों और निषादराज की विदाई

अवधपुरी में नित नये मंगलोत्सव हो रहे हैं. सभी वर्गों के लोग हृषित है. वानरों का प्रभु के चरणों में प्रेम है और छ: महीने बीत गए उन लोगों को अपने घर भूल गये.

प्रभु ने सब लोगों को अपने पास बैठाया और कहा कि आप लोगों ने मेरी बहुत सेवा की है. हे सखा गण! अब तुम सब लोग घर जाओ और दृढ नियम से मुझे भजते रहना. प्रभु ने उचित सम्मान के साथ विदा किया. हनुमान जी ने सुग्रीव जी के चरण पकड़ कर विनती की और कहा कि कुछ दिन प्रभु के चरणों की सेवा कर लौट आऊंगा. सुग्रीव ने कहा कि पवन कुमार मन लगा कर श्रीराम की सेवा करना. 

प्रभु ने फिर निषादराज जी को कहा कि तुम घर जाओ. तुम मुझे भरत के समान हो तुम अवधपुरी आते जाते रहना.


राम राज्य का वर्णन

श्रीराम के राज्य पर प्रतिष्ठित होने पर तीनों लोक हृषित हुए. कोई किसी से वेर नहीं करता. सब लोग वर्ण आश्रम के अनुसार वेद - मार्ग पर चल कर सुख पाते.

राम राज्य में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते थे. किसी की छोटी आयु में मृत्यु नहीं होती थी. ना कोई दरिद्र ना कोई दुखी है. सभी स्त्री, पुरुष चतुर और सुजान है.

अयोध्या में श्रीराम सात समुद्रों की मेखला वाली पृथ्वी के एक मात्र राजा है. गाएं मनचाहा दूध देती है, समुद्र मर्यादा में रहता है, सूर्य उतना ही जाते हैं जितनी अवश्यकता है. मेघ मांगने पर जल देते हैं. प्रभु ने अनेकों अश्विन यज्ञ किये.


पुत्रोंत्पत्ति और अयोध्या जी का वर्णन

सीता जी सदा पति के अनुकूल रहती है और मन लगा कर प्रभु की सेवा करती है. भगवान शिव कहते हैं कि हे उमा! सीता जी सर्वगुण सम्पन्न है और वह श्रीराम के चरणारविन्द में प्रीति करती है. सब भाई अनुकूल रह कर उनकी सेवा करते हैं. 


सीता जी के लव और कुशल दो पुत्र उत्तर हुए. जिनका वेद और पुराणों में वर्णन किया. वे दोनों विजयी, नम्र और गुणों के धाम है और अत्यंत सुंदर है, मानो श्री हरि के प्रतिबिम्ब हो. दो - दो पुत्र सभी भाईयों के हुए जो बडे़ ही सुंदर, गुणवान् और सुशील थे.

 अयोध्या पुरी के दर्शन कर सम्पूर्ण पाप भाग जाते हैं. जहाँ स्वयं लक्ष्मीपति भगवान राजा हो . 

एक बार श्री राम के बुलावे पर गुरु वशिष्ठ जी, ब्राह्मण और नगरवासी आये. श्रीराम ने कहा कि वही मेरा सेवक है जो मेरी आज्ञा माने. यदि मैं कोई अनीति करूँ तो भय त्याग कर मुझे टोक दे.

शिव जी कहते हैं कि जैसी मेरी बुद्धि थी वैसी पूरी राम कथा मैंने सुनाई . पार्वती जी कहती है कि हे नाथ आप ने कहा कि यह  सुन्दर कथा गरूड़ जी ने काकभुशुण्डि जी से सुनी. कौआ हरि भक्ति को कैसे पा गया और उन्होंने कोए का रूप क्यों धारण किया .  गरूड़ जी काकभुशुण्डि जी के पास क्यों गए  ? 

गरूड़ जी का मोह

 भगवान शिव मां पार्वती से कहने लगे कि अब कथा सुनो कि गरूड़ जी काकभुशुण्डि जी के पास क्यों गए. जब मेघनाद के हाथों श्रीराम ने अपने को बंधा लिया. तब नारदजी ने गरूड़ जी को भेजा. गरूड़ जी को हृदय में विषाद उत्पन्न हुआ कि जिनका नाम जपकर मनुष्य संसार के बन्धन से छूट जाता है. उनही श्रीराम जी को एक तुच्छ से राक्षस ने नागपाश में बांध लिया.

गरूड़ जी ने नारदजी को उनका संदेह दूर करने के लिए कहा. नारदजी ने कहा कि मेरे समझाने से यह मोह नहीं मिटेगा. आप ब्रह्म जी के पास जाइये. ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम शंकर जी के पास जाओ. तुम्हारे संदेह का नाश वही होगा. 

गरूड़ जी जब मुझे रास्ते में मिले तो मैंने उन्हें कहा कि मैं तुम्हें वही भेजता हूँ. जहाँ प्रतिदिन हरि कथा होती. उसे सुनते ही तुम्हारा संदेह दूर हो जाएगा.

गरूड़ जी का काकभुशुण्डि जी के पास जाना और राम कथा सुनना

गरूड़ जी ने काकभुशुण्डि जी से पूछा कि प्रभु आप किस कार्य से आये है. गरूड़ जी कहने लगे कि महादेव जी ने आपकी बहुत बढ़ाई की है . अपने श्री मुख से मुझे श्रीराम जी की पवित्र राम कथा सुनाएँ . 

हे भवानी उन्होंने  रामचरितमानस सरोवर का रूपक बता कर राम कथा का वर्णन किया. कथा सुनकर गरूड़ जी का संदेह दूर हो गया. गरूड़ जी कहने लगे कि प्रभु को नागपाश में देख कर मुझे मोह  हो गया था. हे तात ! यदि मुझे मोह ना होता तो मैं आपसे सुन्दर हरि कथा कैसे सुनता. शुद्ध संत उसे ही मिलते हैं जिस पर श्रीराम की कृपा होती है. 

काकभुशुण्डि जी कहने लगे कि माया से ब्रह्मा जी, शिव जी भी डरते हैं, दूसरे जीवों की गिनती ही क्या है ? यह माया श्रीराम की दासी है. यह श्रीराम की कृपा बिना नहीं छूटती. श्री राम ने भक्तों के लिए राजा का शरीर धारण किया और साधारण मनुष्यों से अनेक चरित्र किये. भगवान की लीला राक्षसों को मोहित करने वाली और भक्तों को सुख देने वाली है.


काकभुशुण्डिजी का अपने पूर्व जन्म की कथा  सुनाना

गरूड़ जी कहने लगे कि मैंने भी श्रीराम को मोह के वश मनुष्य माना लेकिन आप की कृपा से मेरे मोह का नाश हो गया. गरूड़ जी ने काकभुशुण्डि जी से पूछा कि आपने काकभुशुण्डि शरीर किस कारण पाया.

काकभुशुण्डि जी कहने लगे कि श्री शिव जी की कृपा से मुझे बहुत से जन्मों की याद है. पूर्व एक कल्प में कलयुग था तब मैंने अयोध्या पुरी में एक शूद्र का जन्म पाया. मैं शिव जी का सेवक और दूसरे देवताओं की निंदा करने वाला अभिमानी था. 

अयोध्या में एक बार अकाल पड़ा और मैं विपत्ति का मारा उज्जैन चला गया और वहाँ शंकर जी की अराधना करने लगा. एक ब्राह्मण वेद विधि से शिवजी की पूजा करते लेकिन हरि निंदा करने वाले नहीं थे.

वह मुझे पुत्र की भांति मानकर पढ़ाते थे. उन्होंने ने मुझे शिव मंत्र दिया. मैं शिव मंदिर में जाकर मंत्र जपता. मैं हरि भक्तों से द्रोह करता था. 

 एक बार गुरु जी ने मुझे  शिक्षा दी कि ब्रह्मा जी और शिव जी भी श्री हरि के चरणों के प्रेमी है. तू उनसे द्रोह कर सुख चाहता है? गुरु जी ने शिवजी को श्री हरि का सेवक कहा तो मेरा हृदय जल उठा. मैं गुरु जी से द्रोह करता. 

एक बार मैं शिव जी के मंदिर में शिवनाम जप रहा था. उसी समय गुरु जी वहाँ आए मैंने अभिमान वश गुरु जी को प्रणाम नहीं किया. गुरु जी दयालु थे उन्हें क्रोध नहीं आया. लेकिन गुरु का अपमान महादेव सह ना सके. 

मंदिर में आकाशवाणी हुई कि मूर्ख तेरे गुरु  को क्रोध नहीं है, लेकिन तुम्हें शाप देता हूँ. तू गुरु के सामने अजगर की तरह बैठा रहा. अत : तू सर्प हो जा और पेड़ की खोखले में जाकर रह. 

शिव जी की वाणी सुनकर गुरु ने हाथ जोड़कर कर विनती करने लगे . जिसे सुनकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और आकाशवाणी हुई कि वर मांगो.हे दीनों पर दया करने वाले शंकर कृपा करें कि थोड़े ही समय में यह शाप  मुक्त हो जाए.

आकाशवाणी हुई कि इसने भयंकर पाप किया है लेकिन तुम्हारी विनती से प्रसन्न हूं इस लिए  मैं इस पर कृपा करूँगा.

मेरा शाप व्यर्थ नहीं जाएगा यह हजार जन्म अवश्य लेगा. लेकिन इसे दुख नहीं व्यापेगा और किसी भी जन्म में ज्ञान नहीं मिटेगा.

शिवजी ने कहा कि मेरा आशीर्वाद है कि तुम्हारी सर्वत्र अबाध गति होगी. शिवजी की वाणी सुनकर गुरु प्रसन्न हुए और मुझे समझा कर चले गये. काल की प्रेरणा से में विध्यालय में जाकर सर्प हुआ और कुछ काल बाद मैंने शरीर त्याग दिया. 

मैं जो भी शरीर धारण करता उसमें मेरा ज्ञान नहीं गया. मैं जो भी शरीर धारण करता उसमें श्री राम का भजन करता रहा.

अंतिम शरीर मैंने ब्राह्मण का पाया. मेरा शरीर श्री राम के चरणों में लगा रहता. मेरे हृदय में यह लालसा थी कि मैं श्री राम के चरण कमलों के दर्शन करूँ. लोमेश ऋषि से सगुण ब्रह्म की अराधना पूछी. मैंने कहा कि आप वह उपदेश कहे जिस से में श्रीराम को अपनी आँखों से देख सकूँ.मैंने उत्तर - प्रत्युत्तर किया.  जिससे मुनि को क्रोध आ गया.  

अरे मूर्ख! तेरे हृदय में अपने पक्ष का भारी हठ है. अत: तू चांडाल पक्षी (कौआ) हो जा. मेरा स्वभाव देख कर ऋषि को पछतावा हुआ और मझे बुला कर राम मंत्र दिया. वह सुन्दर वाणी से बोले कि यह गुप्त रामचरितमानस मैंने शिवजी की कृपा से प्राप्त किया और भक्त जानकर  मैंने तुमे विस्तार से सुनाया . 

गुरु ने मुझे कहा कि तुम श्रीराम के प्रिय हो, इच्छा अनुसार रूप धरने में समर्थ, ज्ञान और वैराग्य के भंडार ,तुम जिस स्थान पर भी निवास करोगे वहाँ से चार कोस तक अविद्या नहीं व्यापेगी.

 गुरु का आशीर्वाद पाकर मैं इस आश्रम में आ गया. यहाँ मुझे सत्ताईस कल्प बीत गये हैं.  

काकभुशुण्डि जी के वचन सुन कर गरूड़ जी बोले कि मैं कृतकृत्य हो गया. मैंने आपकी कृपा से श्रीराम के गुण समूहों को सुना. मैं आपकी बार - बार वन्दना करता हूँ. फिर काकभुशुण्डि जी को सिर निवाकर गरूड़ जी अपने धाम चले गये.

भगवान शिव कहने लगे कि मैंने यह पवित्र इतिहास जिसे सुनते ही भव पाश दूर हो जाते हैं. जो यह कथा निरंतर सुनते हैं वह हरि भक्ति पा सकते हैं. मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार पापों का नाश करने वाली राम कथा तुम से कही है. पार्वती जी कहने लगी कि कथा सुनकर मेरा सन्देह दूर हो गया है और श्री राम के चरणों में नवीन प्रेम उत्पन्न हो गया है.

तुलसी विनय और रामायण माहात्मय

तुलसीदास जी कहते हैं कि मेरे समान कोई दीन नहीं है और रघुवीर के समान कोई दीनों का हित करने वाला नहीं है. ऐसा विचार कर मेरे जन्म - मरण के भयानक दुख का हरण कर लीजिये.

श्रेष्ठ कवि भगवान शिव ने पहले दुर्गम मानस - रामायण की रचना की थी उन मानस - रामायण को अपने अन्त:करण के अन्धकार मिटाने के लिए तुलसीदास जी ने इस मानस के रूप में भाषाबद्ध किया.

यह रामचरितमानस पुण्य रूप, पापों का हरण करने वाला, भक्ति देने वाला, माया, मोह का नाश करने वाला है. जो भी मनुष्य भक्ति से इस मानसरोवर में गोता लगाएगा वह संसार रूपी सूर्य की किरणों से नहीं जलते.

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