HIRANYA KASHYAP AUR HIRANYAKSHA JANAM KATHA
हिरण्यकश्णकशिपु और हिरण्याक्ष की कथा भागवत पुराण में आती है. हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष दोनों दैत्य थे.जिनका वध करने के लिए स्वयं भगवान विष्णु को अवतार लेना पड़ा.
महर्षि कश्यप तथा दिति हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष के माता पिता थे. महर्षि कश्यप की बहुत सी पत्नियां थी. उनकी पत्नी दिति एक दिन कामातुर होकर उनके पास गई.
महर्षि कश्यप उन्हें समझाने लगे कि संभोग के लिए यह उचित समय नहीं है. लेकिन उनकी पत्नी ने उनकी बात नहीं मानी.
दिति को बाद में बहुत भय सताने लगा कि उनकी संताने कैसी होगी. महर्षि कश्यप ने दिति को बताया कि तुम्हें दो पुत्र होगे जो असुरी प्रवृत्ति के होगे .
उनका वध करने के लिए भगवान विष्णु को स्वयं अवतार लेना होगा.यह सुनकर दिति चिंतित हो गई. कश्यप ऋषि कहने लगे कि तुम्हारे पोत्रौं में से एक भगवान विष्णु का परम भक्त होगा.
दिति ने दोनों को सौ सालों तक अपने गर्भ में रखा. उनके प्रभाव से सूर्य, चंद्रमा का तेज़ क्षीण होने लगा. सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी से विनती की. ब्रह्मा जी कहने लगे कि यह सब विष्णु के कौतुक से हो रहा है.
ब्रह्मा जी कहने लगे कि एक बार ब्रह्म जी के चार मानस पुत्र भगवान विष्णु के दर्शन के लिए गए. उनको भगवान के द्वारपालों जय विजय ने रोका ,तो उन्होंने ने दोनों को शाप दिया कि तुम दोनों असुर योनि में जन्म लो.
भगवान विष्णु को जब उनके आने का पता चला तो भगवान स्वयं द्वार पर पहुँचे. सनकादिक को अपने शाप पर पश्चाताप हुआ. भगवान ने कहा कि यह सब मेरी प्रेरणा से ही हुआ है.
भगवान ने दोनों को दिति के गर्भ से जन्म लेने का आदेश दिया.उनके जन्म के समय स्वर्ग, पृथ्वी और अन्तरिक्ष में उत्पात होने लगे. पर्वतों के साथ पृथ्वी कांपने लगी. सूर्यादि ग्रह अदृश्य हो गए. कुत्ते, सियार ऊपर मुख कर रोने लगे. मेघ पीब की बर्षा करने लगे. देव प्रतिमाएँ रोने लगी
वह दोनों बहुत ही बाहुबली थे. उन्होंने ने इन्द्र आदि को जीत लिया था. हिरण्याक्ष को मारने के लिए भगवान ने वाराह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का संहार करने के लिए नरसिंह अवतार लिया.
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