KARAM BARA YA BHAGY

कर्म बड़ा या भाग्य श्री हरि विष्णु और नारद जी की एक प्रेरणादायक कहानी 


"कर्म बड़ा या भाग्य" यह बहस सदियों से चली आ रही है. कर्म और भाग्य एक दूसरे के पूरक माने गए हैं. पढ़े इस कथन को सत्य करता एक प्रेरणादायक प्रसंग.

एक बार देव ऋषि नारद श्री हरि से मिलने बैकुण्ठ धाम पहुँचे. देव ऋषि नारद श्री हरि विष्णु से कहने लगे कि ,"प्रभु पृथ्वी पर आपका प्रभाव कम हो गया है. पाप कर्म करने वालों को शुभ फल मिलता है और पुण्य कर्म करने वालों को बुरा फल मिलता है". 

भगवान विष्णु कहने लगे कि देव ऋषि नारद सब कुछ तो विधि के विधान के अनुसार ही हो रहा है. नारदजी कहने लगे कि मैं पृथ्वी पर देखकर आया हूँ कि पुण्य कर्म करने वाले को बुरा फल मिला और पाप कर्म करने वाले को अच्छा फल मिला. श्री हरि कहने लगे कि आप ने पृथ्वी पर ऐसी कौन सी घटना देखी है विस्तार से कहे.

नारदजी कहने लगे कि प्रभु एक गाय दलदल में फंसी हुई थी. एक चोर वहाँ आया वह गाय को बाहर निकालने की बजाय उस पर पैर रख कर दूसरी ओर चला गया. वहाँ उसे स्वर्ण सिक्कों से भरी थैली मिली. 

कुछ समय पश्चात वहाँ एक ब्राह्मण आया. उसने पूरी ताकत लगाकर गाय को दलदल से बाहर निकाल दिया. आगे जाकर उसे ठोकर लगी और वह गढ्ढें मे गिर गया . गिरने के कारण उसे चोट लग गई. प्रभु यह आप का कैसा न्याय है. 

भगवान विष्णु कहने लगे कि जो भी हुआ नारदजी न्याय संगत ही हुआ. उस चोर के भाग्य में खजाना लिखा था लेकिन इस पाप कर्म के कारण उसे केवल एक थैली स्वर्ण मुद्राएँ ही मिली. 

उस ब्राह्मण के भाग्य में मृत्यु लिखी थी. लेकिन गाय को बचाने के पुण्य कर्म के कारण उस की मृत्यु ठोकर लगकर चोट में परिवर्तित हो गईं.

अच्छे कर्मों का फल सदैव अच्छा ही होता है. लेकिन कई बार अच्छे कर्म करने के बाद भी आने वाली परेशानियों से हमें लगता है कि अच्छे कर्म करने के बाद भी परेशानियां कम क्यों नहीं हो रही. लेकिन क्या पता हमारे अच्छे कर्मों के कारण ही हम बड़ी मुश्किलों से बच रहे हो. कर्म फल ऐसी फसल है कि जो बोएंगे वही काटेंगे. 

इसलिए अच्छे कर्म करे जिससे भाग्य को भी बदला जा सकता हैं.

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