PRIKSHIT KE RAJAY ME KALYUG KA AAGMAN

 राजा परीक्षित के राज्य में कलयुग का आगमन कैसे और कब हुआ? 

राजा परीक्षित अर्जुन और सुभद्रा के पौत्र थे. अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र थे . श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा द्वारा उत्तरा के गर्भ पर चलाएं गए ब्रह्म अस्त्र से परीक्षित का  गर्भ में रक्षण किया था.

श्री कृष्ण के देह त्यागकर बैकुण्ठ यात्रा की खबर सुनकर युधिष्ठिर अपने भाईयों सहित स्वर्ग जाने को तैयार हुए. उन्होंने अपने पौत्र परीक्षित को राज सौंप दिया. पांडवों के हिमालय को चले जाने के बाद परीक्षित पृथ्वी का पालन करने लगे. 

जब राज्य परीक्षित दिग्विजय करने चले तो उन्हें राजा के रूप में कलयुग मिला जो अपने पैरों से गौ और बछड़े को मार रहा था. उन्होंने देखा कि धर्म बैल का रूप धारण कर जा रहा है जिसका केवल एक ही पैर था. उसने पृथ्वी को बिना बछड़े की माता के समान जानकर पूछा कि तुम किसके लिए इतनी दुखित हो रही हो. पृथ्वी पर श्री कृष्ण तुम्हारे भार को हल्का करते थे. क्या उनके अंतर्ध्यान होने कारण तुम दुखी हो.

पृथ्वी गाय का रूप में पृथ्वी पर हो रहे उत्पादों से दुखी थी. एक राजसी वेष में एक शुद्र हाथ में एक लम्बा सा दंड लिए गौ और बैल को मार रहा था. 

राजा परीक्षित ने जब उसे ऐसा कर्म करते देखा तो उन्होंने पूछा कि तू मेरे द्वारा इस संसार की धर्म पूर्वक रक्षा जाने पर भी तू इन मूक प्राणियों को क्यों मार रहा है? तुम क्या लगता है कि अब गौ रक्षक श्री कृष्ण और अर्जुन नहीं है तो क्या इस पृथ्वी पर दूसरा कोई वीर नहीं है? तू निश्चित ही मेरे बाणों से वध करने योग्य है. 

हे एक पैर से चलने वाले वृषभ ! आप कौन है? हे गौमाता! आप क्यों दुखी है? हे वृषभ देव! आपके शेष तीन पैर किस ने काटे है. जिसने आप को कष्ट दिया है मैं उसको अवश्य दंड दूंगा. राजा परीक्षित ने फिर पृथ्वी रूपी गौ माता से कहा कि आप दु:ख त्याग दे.मैं आपको दुखी करने वाले को दण्डित करूँगा. 

राजा परीक्षित ने कलयुग को मारने के लिए ज्यों ही तलवार उठाई कलयुग उनके चरणों पर गिर गया. कलयुग के इस प्रकार पैरों में गिरने के कारण राजा परीक्षित को कलयुग पर दया आ गई. 

राजा परीक्षित बोले कि मैं तुम्हें नहीं मारूंगा . परन्तु तुम मेरे राज्य से बाहर चले जाओ.  तुम मेरे राज्य में अधर्म ना फैलाओ. जहाँ सत्य और धर्म विद्यमान हो, यज्ञ विधि से भगवान की पूजा होती हो तुम वहाँ मत जाना. जहाँ भगवान विष्णु की पूजा हो तुम वहाँ वास मत करना.

कलयुग ने कांपते हुए हाथ में तलवार लिए हुए राजा परीक्षित से कहा मैं जहाँ भी रहूँगा मुझे आपका भय लगा रहेगा.

अब आप मुझे वह स्थान बताएं जहाँ मैं वास कर सकूँ. मैं जहाँ भी रहूँगा आप के बताएं हुए नियमों का पालन करूँगा.  

राजा परीक्षित ने कहा कि जहाँ जुआ, मद्यपान, व्यभिचारिणी स्त्रियाँ हो, और जहाँ प्राणियों को मारा जाता हो ऐसे अधर्म के स्थान पर ही तुम वास करना. कलयुग ने कहा मुझे एक और स्थान दे. राजा परीक्षित ने कहा तुम स्वर्ण में भी वास कर सकते हो. कलयुग ने राजा के स्वर्ण मुकुट को अपने वास का स्थान बना लिया. 

एक बार राजा परीक्षित आखेट के लिए वन में गए. वहाँ मृग के पीछे दौड़ते - दौड़ते उन्हें बहुत प्यास लगी. जल की खोज में वह जलाशय के निकट पहुँचे. वहाँ आश्रम में शामिक मुनि को ध्यान में लीन थे. इसलिए राजा का आगमन न जान सके.

राजा परीक्षित ने इसे अपना अपमान समझा कि यह मुनि बहुत अभिमानी है जो द्वार पर आए अतिथि का सत्कार नहीं करता. क्रोध में आकर राजा परीक्षित ने धनुष की कोर से उठा कर एक मृत सर्प मुनि के गले में डाल दिया. राजा कहने लगा कि यह मुनि इंद्रियों को रोके हुए, आंखे बंद कर झूठी समाधि लगा कर बैठा है, 

राजा के इस कृत्य को शमीक मुनि का पुत्र देख रहा था. उसने कौशिकी नदी के तट पर जाकर हाथ में जल लेकर राजा परीक्षित को श्राप दिया , जिस प्रकार राजा ने मेरे निर्दोष पिता के गले में मृत सर्प डाल कर अपमान किया है. उस पाप के कारण आज से सातवें दिन तक्षक नाग के काटने से राजा परीक्षित मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे.

इस प्रकार शाप देकर बालक अपने पिता के गले में पड़े सर्प को देख कर रोने लगा . उसका रुदन सुनकर शमीक ऋषि ने नैत्र खोल कर गले में पड़े सर्प को हटा कर उसके रोने का कारण पूछा. शमीक ऋषि के पुत्र ने सारा वृतांत पिता को सुनाया.

शमीक ऋषि ने पुत्र से कहा कि तुमने छोटे से अपराध के लिए राजा को ऐसा शाप क्यों दिया ? जिस धर्मात्मा राजा के तेज से रक्षित प्रजा निर्भय होकर कल्याण को प्राप्त हो रही है तुम ने ऐसे राजा को इतना घोर शाप क्यों दिया? तुम्हें राजा को ऐसा शाप नहीं देना चाहिए था.

उधर राजा ने जब स्वर्ण मुकुट उतारा तो राजा को अपने किए हुए कर्म का पश्चाताप हुआ. शमीक ऋषि ने राजमहल पहुँच कर राजा को अपने पुत्र द्वारा दिए गए शाप से अवगत करवाया कि आज से सातवें दिन तक्षक नाम के कारण आप की मृत्यु हो जाएगी.

राजा परीक्षित ने अपना राज्य अपने पुत्र जनमयेज को सौंप दिया . राजा परीक्षित ने अपने गुरु शुकदेव से श्री मद् भागवत् कथा सुनी और सातवें दिन उनकी तक्षक नाग के काटने से मृत्यु हुई.

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