SHRI RADHA RANI JANAM KATHA
राधा रानी की जन्म कथा
राधा अष्टमी पर पढ़ें राधा रानी जन्म कथा
ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधा रानी का प्राकट्य प्रथम बार गोलोक में हुआ था. राधा रानी और श्री कृष्ण गोलक में निवास करते थे. एक बार जब राधा रानी गोलोक से बाहर गई तो श्री कृष्ण उनकी विरजा नाम की सखी के साथ विहार करने लगे. जब राधा रानी वापिस आई तो श्री कृष्ण को विरजा संग देखकर क्रोधित हो गई.
क्रोध में राधा जी श्री कृष्ण को भला बुरा कहने लगी. विरजा नदी रूप में वहाँ से प्रवाहित हो गई. श्री कृष्ण को भला - बुरा कहने के कारण श्री कृष्ण के सखा श्रीदामा ने राधा रानी की भर्त्सना कर उनका विरोध किया.
राधा रानी ने उन्हें असुर होने का श्राप दिया. श्रीदामा ने कहा कि मुझे असुर योनी प्राप्त होने का दुख नहीं है. लेकिन तुम्हारे श्राप के कारण मुझे श्री कृष्ण से वियोग सहना पड़ेगा. मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि जब श्री कृष्ण अगला अवतार लेगे तुम को भी उनका विरोध सहना पड़ेगा. श्रीदामा इसी श्राप के कारण शंखचूड़ राक्षस के रूप में पैदा हुआ.
राधा रानी का रावल ग्राम में भी वृषभानु और कीर्ति के जहाँ प्राकट्य हुआ. राधा रानी का माता की कोख से जन्म नहीं हुआ. उनकी माता ने योग माया की प्रेरणा से गर्भ में वायु को धारण कर रखा था. राधा रानी स्वेच्छा से प्रकट हुई थी. बृषभानु जी और कीर्ति जी ने पुत्री के कल्याण के उद्देश्य से दो लाख गाय दान की थी.
एक अन्य कथा मिलती है कि बृषभानु जी को यज्ञ भूमि साफ करते समय एक कन्या मिली थी जिसे उन्होंने ने पुत्री रुप में अपना लिया.
ऐसा भी कहा गया है कि बृषभानु जी एक बार सरोवर के पास से गुजर रहे थे. उन्हें राधा रानी कमल के फूल पर मिली थी . उन्हें बृषभानु जी ने पुत्री बना लिया.
राधा रानी के बिना श्री कृष्ण की पूजा अर्चना अधूरी मानी जाती है. ऐसा माना जाता है कि राधा रानी की कृपा प्राप्त होने पर श्री कृष्ण की कृपा स्वत: प्राप्त हो जाती है.
राधा अष्टमी व्रत का महत्व
प्रातःकाल स्नान करके राधा कृष्ण की युगल प्रतिमा की पूजा करे. उन्हें पुष्प माला, तुलसी पत्र, फल और मिठाई अर्पित करे. श्री राधा कृष्ण की स्तुति और आरती करे .
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