RAJA PRIKSHIT KI JANAM KATHA

राजा परीक्षित की जन्म कथा

राजा परीक्षित अर्जुन और सुभद्रा के पौत्र थे. अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र थे . श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा द्वारा उत्तरा के गर्भ पर चलाएं गए ब्रह्म अस्त्र से परीक्षित का गर्भ में रक्षण किया था.

 महाभारत युद्ध में जब भीमसेन ने गदा से दुर्योधन की जंघा को तोड़ दिया तो उसके मित्र अश्वत्थामा ने सोते हुए द्रोपदी के पुत्रों के सिर काट दिये. अपने पुत्रों की हत्या देखकर द्रोपदी के क्रोध का अन्त न रहा. द्रोपदी का विलाप देखकर अर्जुन अश्वत्थामा को पकड़ने के लिए निकल पड़े।

 अश्वत्थामा तथा अर्जुन के मध्य भीषण युद्ध छिड़ गया। अश्वत्थामा ने देखा कि अर्जुन मुझे मारने आ रहा है तो उसने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, इस पर अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ा। नारद तथा व्यास के कहने से अर्जुन ने अपने ब्रह्मास्त्र का उपसंहार कर दिया, किन्तु अश्वत्थामा ने पांडवों को जड़-मूल से नष्ट करने के लिए अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा पर ब्रह्मास्त्र का वार किया। 

श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा कि उत्तरा का पुत्र अवश्य जन्म लेगा. अगर तेरे शस्त्र प्रयोग से बालक मृत उत्पन्न हुआ तो मैं स्वयं उसे जीवन प्रदान करूँगा. 

तू पृथ्वी पर पाप ढोता हुआ हज़ारों वर्षों तक निर्जन स्थानों पर भटकता रहेगा. तेरे शरीर से रक्त की दुर्गध आती रहेगी. 

अर्जुन अश्वत्थामा को पकड़ कर द्रोपदी के पास ले गए. भीम ने कहा कि इस आतताई को मार देना उचित है. द्रोपदी को उस पर दया आ गई. उसने कहा कि यह आपके गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र है और इसके मरण से इसकी माता को कष्ट होगा.श्री कृष्ण ने कहा कि इसकी मणि लेकर, इसके बाल मुंडा कर छोड़ दो. 

 उत्तरा ने श्री कृष्णा से विनती की मेरे गर्भ की रक्षा करे. उत्तरा के गर्भ में बालक ब्रह्म अस्त्र के तेज़ से दग्ध रहने लगा. उत्तरा की प्रार्थना सुनकर श्री कृष्ण ने स्वयं सुक्ष्म रूप में उसके गर्भ में प्रवेश किया.   भगवान का चतुर्भुज रूप अंगूठे के आकार का था. वह शंख,चक्र, गदा ,पद्म धारण किए हुए थे. उनकी आँखे रक्त वर्ण और कानों में कुण्डल थे. 

उनकी गदा अश्वत्थामा द्वारा छोड़े गए ब्रह्म अस्त्र की अग्नि को ऐसे शांत कर रही थी जैसे सूर्य देव अंधकार को मिटाते है. गर्भ में जब बालक ने ज्योतिर्मय शक्ति को अपने चारों ओर घूमते देखा तो बालक सोच में था कि यह कौन है ? 

बालक जब पैदा हुआ तो गृभ से बाहर आते ही मृतवत् हो गया. रनिवास में रुदन होने लगा कि कुरु वंश को पिण्ड दान करने वाला एक मात्र बालक भी  मृत पैदा हुआ. 

 जब श्री कृष्ण को इस बात का पता चला तो श्री कृष्ण सात्यकि के साथ वहा पहुंचे. द्रोपदी, सुभद्रा आदि रानियां विलाप करने लगी. वे कहने लगी आप ने प्रतिज्ञा की थी कि अगर ब्रह्म अस्त्र से बालक मृत्यु को प्राप्त हुआ तो मैं स्वयं बालक को जीवन दान दूंगा. 

श्री कृष्ण  प्रसुति गृह गए.  श्री कृष्ण ने अपनी कृपा दृष्टि डाली तो बालक रुदन करने लगा. श्री कृष्ण ने ब्रह्म अस्त्र को ब्रह्म लोक भेज दिया.  श्री कृष्ण ने उस बालक को जीवन दान दिया. 

राजा युधिष्ठिर ने उसका जातकर्म संस्कार किया और ब्राह्मणों को अपार दान - दक्षिणा दी. ब्राह्मणों ने कहा कि धर्मराज !  भगवान विष्णु की कृपा और रक्षा से आपके वंश में जो बालक उत्पन्न हुआ है वह यशस्वी और भागवत् भक्त होगा. इसमें श्री कृष्ण के समान उत्तम गुण, राजा बलि के समान धैर्य और कृष्ण- भक्ति में प्रहलाद के समान और अश्वमेधादिक यज्ञों को करने वाला होगा. 

राजा विराट के पुत्र उत्तर की पुत्री इरावती के साथ उनका विवाह हुआ. उनके जनमेजय आदिक चार पुत्र उत्पन्न हुए. उन्होंने कृपाचार्य को अपना गुरु बनाया. उन्होंने ने तीन अश्वमेध यज्ञ किए. 

ALSO READ

राजा परीक्षित के राज्य में कलयुग का आगमन

हिरण्यकश्यप और हिरणयाक्ष जन्म कथा

भगवान विष्णु वाराह अवतार

ऋषि कर्दम और देवहूति की कथा

कर्दम देवहूति वंशावली

भगवान विष्णु कपिल अवतार और माँ देवहूति को ज्ञान देना

दक्ष यज्ञ में सती माता देह त्याग

ध्रुव भक्त की कथा

भक्त ध्रुव और यक्ष युद्ध

ध्रुव के वंशज राज वेन की कथा

राजा पृथु की कथा

प्रचेताओं की कथा

हिरण्यकश्यप की कथा

प्रह्लाद भक्त की कथा


Comments

Popular posts from this blog

KHATU SHYAM BIRTHDAY DATE 2024

BAWA LAL DAYAL AARTI LYRICS IN HINDI

RADHA RANI KE 16 NAAM MAHIMA