SITA JI KE JANAM KATHA

 



सीता जी को मां लक्ष्मी का अवतार माना गया है. उनका जन्म मिथिला में होने के कारण उन्हें मैथिली, राजा जनक की पुत्री होने के कारण जानकी, वैदेही, जनकसुता नामों से जाना जाता है. वह अयोध्या नरेश दशरथ की पुत्र वधू और श्री राम की पत्नी थी. उन्होंने ने महलों के सुख त्याग कर अपना पतिव्रत धर्म निभाया.

राजा जनक के शासनकाल में एक बार भीष्म अकाल पड़ा राजा जनक को विद्वानों ने उपाय बताया कि अगर राजा स्वयं खेत में जाकर हाल जोते तो इस अकाल से जल्दी छुटकारा पाया जा सकता है .

राजा जनक ने अपने राज्य की समृद्धि के लिए स्वयं हल चलाने का निश्चय किया .जब राजा जनक हल चला रहे थे उनकी हल किसी धातु की वस्तु से टकरा गई. उस जगह धरती से एक पेटी मिली.

जिसमें से एक सुंदर कन्या मिली. हल की सीत से टकराने के कारण वह पेटी मिली थी. इसलिए कन्या का नाम सीता रखा गया . राजा जनक और रानी सुनयना ने उस कन्या को अपना लिया. राजा जनक ने अपनी पुत्री की तरह उनका पालन पोषण किया और उन्हें हर तरह की स्वतंत्रता और शिक्षा दी. 

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