BHAKT DHRUV KI KATHA HINDU MYTHOLOGY STORY
भक्त ध्रुव भगवान श्री हरि विष्णु के परम भक्त थे. नारद जी ने दिया था ध्रुव को भगवान विष्णु का मंत्र सृष्टि के विकास के लिए ब्रह्मा जी ने स्वयंभुव मनु और शतरूपा को उत्पन्न किया. दोनों के दो पुत्र और तीन कन्याएँ उत्पन्न हुई. देवहूति2. प्रसूति 3. आकूति पुत्रियां हुई और उत्तानपाद और प्रियव्रत पुत्र हुए. उनके पुत्र उत्तानपाद की सुरुचि और सुनीति नाम की दो रानियां थी . राजा उत्तानपाद का अपनी रानी सुरुचि से लगाव था.सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था और सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था. एक दिन सुरुचि का पुत्र उत्तम राजा की गोद में खेल रहा था .तभी ध्रुव बाल सुलभ चपलता से राजा की गोद पर चढ़ने लगा तो सुरुचि ने ध्रुव को कहा कि, "तू राजपुत्र होने पर भी राजा की गोद में चढ़ने का अधिकारी नहीं है. क्योंकि तुमने मेरी कोख से जन्म नहीं लिया ? तुम ईश्वर की भक्ति करो कि, अगले जन्म में तुमे मेरी कोख से जन्म लेने का सौभाग्य मिले ". सुरुचि के विष भरे शब्द सुनकर ध्रुव का हृदय तड़प उठा. अपने पिता को भी विवश देख ध्रुव सिसकते हुए अपनी माता सुनीति के समीप गए. विवशता से विह्वल माँ की आंखों में आंसू छलक