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Showing posts from October, 2021

BHAKT DHRUV KI KATHA HINDU MYTHOLOGY STORY

  भक्त ध्रुव भगवान श्री हरि विष्णु के परम भक्त थे. नारद जी ने दिया था ध्रुव को भगवान विष्णु का मंत्र  सृष्टि के विकास के लिए ब्रह्मा जी ने स्वयंभुव मनु और शतरूपा को उत्पन्न किया. दोनों के दो पुत्र और तीन कन्याएँ उत्पन्न हुई.  देवहूति2. प्रसूति 3. आकूति पुत्रियां हुई और उत्तानपाद और प्रियव्रत पुत्र हुए.    उनके पुत्र उत्तानपाद की सुरुचि और सुनीति नाम की दो रानियां थी . राजा उत्तानपाद का अपनी रानी सुरुचि से लगाव था.सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था और सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था.  एक दिन सुरुचि का पुत्र उत्तम राजा की गोद में खेल रहा था .तभी ध्रुव बाल सुलभ चपलता से राजा की गोद पर चढ़ने लगा तो सुरुचि ने ध्रुव को कहा कि, "तू राजपुत्र होने पर भी राजा की गोद में चढ़ने का अधिकारी नहीं है. क्योंकि तुमने मेरी कोख से जन्म नहीं लिया ? तुम ईश्वर की भक्ति करो कि, अगले जन्म में तुमे मेरी कोख से जन्म लेने का सौभाग्य मिले ". सुरुचि के विष भरे शब्द सुनकर ध्रुव का हृदय तड़प उठा. अपने पिता को भी विवश देख ध्रुव सिसकते हुए अपनी माता सुनीति के समीप गए. विवशता से विह्वल माँ की आंखों में आंसू छलक

GOVARDHAN PUJA ANNANKOOT

 गोवर्धन पूजा और अन्नकूट मनाने की परम्परा कब और क्यों शुरू हुई गोवर्धन पूजा अन्नकूट पर्व दीवाली के अगले दिन मनाया जाता है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा श्री कृष्ण ने द्वापर शुरू की थी. इस दिन घरों और मंदिरों में गोबर से गोवर्धन की आकृति बना कर पूजन किया जाता है. भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र देव का अहंकार तोड़ने के लिए और वृन्दावन वासियों को बारिश से बचाने के लिए पर्वत अपनी उंगली पर उठा लिया था. श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत अपनी उंगली पर क्यों उठाया?  एक बार इंद्र के घमंड को तोड़ने के लिए श्री कृष्ण ने बृज वासियों को इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पूजा करने के लिए कहा. श्री कृष्ण का मानना था गोवर्धन पर्वत के कारण ही उनके पशुओं को चारा मिलता है जिसे खाकर दूध देते हैं. गोवर्धन पर्वत ही बादलों को रोककर बारिश करवाता है . जिसके कारण खेती होती हैं. इससे इंद्र क्रोधित हो गया और मूसलाधार बारिश करनी शुरू कर दी. जिस में सब कुछ बहने लगा श्रीकृष्ण ने तब गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर धारण किया . सभी ब्रज वासियों को उसके नीचे आने को कहा और उनकी रक्षा की. श्री

SATI MATA KATHA AUR DAKSH YAGYA सती माता कथा

सती माता ने दक्ष यज्ञ में देह त्याग क्यों किया ?  प्राचीन समय में एक ब्रह्म सभा में सभी देवता उपस्थित थे. जब दक्ष प्रजापति के वहां पहुँचने पर सभी देवता  सम्मान प्रकट करने के लिए उठ खड़े हुए. लेकिन शंकर जी बैठे रहे तो दक्ष प्रजापति ने क्रोधित हो कर कहा कि तुम में शिष्टता नहीं है. दक्ष प्रजापति ने क्रोध में भगवान शिव को शाप दिया कि, इंद्र आदि देवताओं के समान तुम को यज्ञ में भाग ना मिले. दक्ष के शाप को सुनकर नंदी ने शाप दिया कि दक्ष और उसके समर्थकों को सशरीर आनंद प्राप्त ना हो और कर्मकांड में पड़ कर दुख पाते रहे. यह सुनकर भृगु ऋषि ने क्रोधित होकर कहा कि, "जो शिव के भक्त होगे वे शास्त्रों के प्रतिकूल पाखंडी कहे जाएंगे". यह सुनकर भगवान शिव वहाँ से चले गये. उसके पश्चात् विष्णु और सब देवता त्रिवेणी में स्नान करने गए. इस प्रकार ससुर और जमाई में विरोध चलता रहा. मां सती के पिता दक्ष को ब्रह्मा जी ने प्रजापतियों का नायक बना दिया . दक्ष को इस बात का अभिमान हो गया इतना बड़ा पद आज तक किसी को नहीं मिला. दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया.  यज्ञ का भाग लेने के लिए सभी देवताओं को निमंत्र

KRISHNA BHAKTI KATHA IN HINDI

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श्री कृष्ण के भक्त की निस्वार्थ भक्ति की भावपूर्ण कथा  भक्ति अपने इष्ट के प्रति समर्पण भाव होता है. वेदों पुराणों में भगवान की भक्ति करने के अनेक मार्ग बताएं गए हैं. भगवान के कई भक्त ऐसे भी हुए है जिन्होंने ने अनन्य और निस्वार्थ भाव से भक्ति की और ईश्वर ने जिस हाल में रखा उसी में खुश रहे . कभी अपने भक्ति के बदले ईश्वर से कोई कामना नहीं की. पढ़े श्री कृष्ण के ऐसे ही भक्त की निस्वार्थ भक्ति का प्रसंग  श्री कृष्ण एक अनन्य भक्त थे. उनकी भक्ति ऐसी थी कि कभी भी भगवान से कुछ भी नहीं मांगते थे.  एक दिन वह मंदिर में गए तो उन्हें ठाकुर जी का स्वरूप नहीं दिखा तो उन्होंने और भक्तों से पूछा कि ठाकुर जी कहा चले गए?  भक्त कहने लगे कि ठाकुर जी तो सामने ही है, तुम को क्यों नहीं दिख रहे.  यह सुनकर भक्त का हृदय ग्लानि से भर गया . वह सोचने लगा कि जरूर मुझ से कोई भारी पाप हो गया है इसलिए ठाकुर जी सबको दर्शन दे रहे है लेकिन मुझे नहीं दिख रहे. आत्मग्लानि में भर कर भक्त ने निश्चय किया कि मैं यमुना जी मैं डूब कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लूगां. उधर भगवान श्री कृष्ण एक ब्राह्मण का रूप धारण कर यमुना जी के रास्ते

BHAKTI KYA HAI

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भक्ति क्या है  भक्ति ईश्वर के प्रति समर्पण भाव है. ईश्वर की भक्ति में इतनी शक्ति होती है कि जो उसकी अराधना करते हैं भव से पार उत्तर जाते हैं. भक्ति ईश्वर के प्रति प्रेम का प्रगाढ़ रूप है. भगवान से मांगना हो तो भक्ति प्रेम से मांगना चाहिए. ईश्वर की भक्ति श्रद्धा भाव से हर कोई कर सकता है. ईश्वर की भक्ति में बहुत शक्ति होती है।  भक्ति नयनों नहीं होती नहीं तो सूरदास जी श्री कृष्ण के भक्त ना होते. एक बार सूरदास जी से किसी ने कहा कि आप हर रोज मंदिर आते है जबकि आप देख नहीं सकते.  सूरदास जी ने बडा़ सुंदर उत्तर दिया. सूरदास जी कहने लगे कि ईश्वर तो देख रहा हैं कि उनका भक्त रोज आता है. भक्ति हाथ पैरों से नहीं होती नहीं तो दिव्यांग नहीं कर पाते.   भक्ति सूनने बोलने से होती तो गूँगे बहरे नहीं कर पाते. लेकिन ईश्वर तो उनकी भी सुनता है जो बोल नहीं पाते. भक्ति धन और शक्ति से नहीं होती नहीं तो निर्धन और कमज़ोर कभी नहीं कर पाते. भगवान तो सच्ची श्रद्धा भक्ति पर रिझते है . इसलिए तो धन्ना जाट के बुलाने पर आ गए. शबरी के झूठे बेर खाये. मीराबाई को कृष्ण भक्ति में महलों का कोई मोह नहीं था. भक्ति केवल एक भाव ह

KARDAMA DEVAHUTI VANSHAVALI

  सृष्टि के विकास के लिए ब्रह्मा जी ने स्वयंभुव मनु और शतरूपा को उत्पन्न किया. दोनों के संयोग से दो पुत्र और तीन कन्याएँ उत्पन्न हुई.  देवहूति2. प्रसूति 3. आकूति पुत्रियां हुई और उत्तानपाद और प्रियव्रत पुत्र हुए.  देवहूति का कर्दम ऋषि से विवाह करवाया और उनकी नौ कन्याएँ हुई . देवहूति के गर्भ से विष्णु जी ने उनके पुत्र के रूप में कपिल अवतार लिया. कर्दम ऋषि ने अपनी नौ कन्याओं का नवों प्रजापतियों के साथ विवाह किया.  1. मरीचि के साथ कला का उनकी पुत्री कला और मरीचि ने कश्यप और पूर्णिमान  नाम के दो पुत्रों को जन्म दिया. पूर्णिमान के विरज और विश्वग नामक पुत्र और देवतुल्य नामक कन्या हुई जो आगे चलकर गंगा नामक नदी हुई. 2. अत्रि के साथ अनसूया का अत्रि की पत्नी अनसूया से ब्रह्मा विष्णु महेश के अंश से दत्तात्रेय, दुर्वासा और चन्द्रमा नामक पुत्र हुए. विदुर जी ने पूछा कि, ब्रह्मा विष्णु महेश ने उनके जहाँ क्यों जहाँ जन्म लिया.  मैत्रेय जी कहने लगे कि, "अत्रि ऋषि ब्रह्मवेत्ता थे. उन्होंने ने तपोबल से भगवान के जैसे पुत्र की याचना की . तीनों देव अपने - अपने चिह्नों से युक्त बैल, हंस और गरूड़ पर अत्रि

VISHNU JI KAPIL AVTAR KATHA MYTHOLOGYICAL STORY

 भगवान विष्णु ने कपिल मुनि के रूप में पंचम अवतार लिया था. कपिल मुनि सांख्य शास्त्र के प्रर्वतक माने जाते हैं. उन्होंने  कर्दम ऋषि और देवहूति के पुत्र के रूप में जन्म लिया.  कर्दम ऋषि की उत्पत्ति ब्रह्मा जी की छाया से हुई थी. वह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे. उनको ब्रह्मा जी ने सृष्टि  के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए कहा.  कर्दम ऋषि ने दस हजार वर्ष तक भगवान विष्णु की अराधना की. उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर प्रभु शंख, चक्र, गदा लिए प्रकट हुए. कर्दम ऋषि कहने लगे कि ब्रह्मा जी ने मुझे गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने का आदेश दिया है. मैं ऐसी पत्नी चाहता हूँ जो गृहस्थाश्रम में भी सहयोग करे और मेरी साधना में भी सहयोग करे.  भगवान विष्णु ने कहा कि स्वयंभुव मनु और शतरूपा अपनी पुत्री देवहूति का विवाह आपसे करने के लिए आएंगे. भगवान ने कहा कि मैं तुम्हारा पुत्र बन कर आऊंगा और तुम्हारा कल्याण होगा.  देवहूति और कर्दम ऋषि का विवाह हो गया और देवहूति उनके आश्रम में रहकर उनकी सेवा करने लगी. देवहूति और कर्दम ऋषि की नौ कन्याओं का जन्म हुआ. जब कर्दम ऋषि ने सन्यास लेने को कहा तो देवहूति ने उन्हें पुत्र जन्म के बाद स

SHARAD PURNIMA 2021 शरद पूर्णिमा 2021

 SHARAD PURNIMA 2021 शरद पूर्णिमा 2021 हिंदू धर्म में अश्विन मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व है. इस दिन चंद्रमा और महालक्ष्मी की पूजा की जाती है . इस बार शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर दिन मंगलवार को मनाई जाएगी.शरद पूर्णिमा को कोजागरी और रास पूर्णिमा और कमला पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन लक्ष्मी नारायण, शिव पार्वती, और राधा कृष्ण की पूजा करते हैं.  शरद पूर्णिमा का महत्व  शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है. इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है जिसके कारण उसकी किरणों का प्रभाव पृथ्वी पर बहुत अधिक होता है. माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा होती है.शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर चंद्रमा की किरणों के नीचे रखी जाती है . माँ लक्ष्मी की पूजा का विधान शरद् पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने का भी विशेष विधान है . माना जाता है कि इस दिन माँ लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती है. जो लोग रात्रि को मां लक्ष्मी का पूजन करते हैं धन की देवी उनके घर में वास करती है. इस दिन लक्ष्मी पूजा करने से धन में वृद्धि होती है  . इस दिन संध्या के समय दीपक

MOKSHADA EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE IN HINDI

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 मोक्षदा एकादशी व्रत कथा और महत्व  मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष मास की शुक्ल की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है और पित्र दोष से मुक्ति मिलती है . इस व्रत का फल अनंत है. इस दिन का महत्व इस लिए भी अधिक है क्योंकि माना जाता है कि मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन ही श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध में अर्जुन को श्री मद् भागवत गीता का उपदेश दिया था. इस लिए इस दिन को गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है.  मोक्षदा एकादशी का महत्व (SIGNIFICANCE OF MOKSHADA EKADSHI)  मोक्षदा एकादशी का व्रत रखना बहुत फलदायी माना जाता हैं. माना जाता है कि अगर इस व्रत का पुण्य पितरों को अर्पित कर दिया जाए तो उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है.  इस दिन किए गए दान का महत्व बाकी दिनों में किए दान से कई गुना ज्यादा मिलता है.  मोक्षदा एकादशी व्रत कथा                ( MOKSHADA EKADSHI VRAT KATHA)  भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध के पश्चात महाराज युधिष्ठिर को एकादशी व्रत का महत्व बताया था . एक बार चंपा नगर में वैखानक नाम का एक राजा राज्य करता था. उसके राज्य में प

VISHNU JI VARAH AVTAR AUR HIRANYAKSH VADH

वाराह जयंती 2023 Sunday, 17 September  भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को वराह जयंती मनाई जाती है। 2023 में वाराह जयंती 17 सितंबर दिन रविवार को मनाई जाएगी।  भगवान विष्णु ने वाराह अवतार हिरण्याक्ष का वध करने के लिए लिया था. हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप की कथा भागवत पुराण में आती है. दोनों भाई असुर ( दैत्य) थे.  वह दोनों ऋषि कश्यप और दिति के पुत्र थे.  हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष के पूर्व जन्म की कथा के अनुसार एक बार ब्रह्म जी के चार मानस पुत्र भगवान विष्णु के दर्शन के लिए गए. उनको भगवान के द्वारपालों जय विजय ने रोका ,तो उन्होंने ने दोनों को शाप दिया कि तुम दोनों असुर योनि में जन्म लो. भगवान विष्णु को जब उनके आने का पता चला तो भगवान स्वयं द्वार पर पहुँचे. सनकादिक को अपने शाप पर पश्चाताप हुआ. भगवान ने कहा कि यह सब मेरी प्रेरणा से ही हुआ है . मुनियों ने कहा कि हम अपना श्राप तो वापिस नहीं ले सकते लेकिन तुम्हारा उद्धार स्वयं श्री हरि अवतार के हाथों होगा.भगवान ने दोनों को दिति के गर्भ से जन्म लेने का आदेश दिया.  दिति ने जुड़वां पुत्रों को जन्म दिया. पैदा होते ही उन दैत्यों की देह आत्मपौ

HANUMAN JI KE JIVAN SE KYA PRERNA (SEIKH) SAKTA HAI

हनुमान जी के चरित्र से हम क्या सीख (शिक्षा) ले सकते हैं ?   हनुमान जी श्री राम के परम भक्त है. वह अतुलित बल और बुद्धि के धाम है. वह भगवान शिव के 11 वें रूद्रावतार माने जाते हैं. सूर्य देव ने उन्हें स्वयं शास्त्रों का ज्ञान दिया था. इन्द्र ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया था कि उनका शरीर वज्र के समान होगा. सीता माता ने उनकी भक्ति से प्रसन्न हो कर अष्ट सिद्धि और नौ निधि के दाता होने का वरदान दिया था. हम हनुमान जी के चरित्र से बहुत कुछ सीख सकते हैं. शक्ति प्रदर्शन कहा करना है और कहा नहीं हम हनुमान जी के चरित्र से सीख सकते हैं हम हनुमान जी के जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं कि अपनी शक्ति का प्रदर्शन कहा और किस तरह करना है. वह अशोक वाटिका में सीता के सम्मुख लघु रूप में गए लेकिन जब सीता माता को संशय हुआ तो उन्होंने अपना विकराल रूप दिखाया.  जब समुद्र लांघते समय सुरसा उन्हें खाना चाहती थी तो हनुमान जी ने उसके मुख से बड़ा रूप बना कर अपनी शक्ति दिखाई. जब सुरसा अपना मुख बढ़ाती गई तो हनुमान जी ने बुद्धिमत्ता दिखा कर छोटा सा रुप बनाया और उसके मुख के अंदर जाकर वापिस आकर प्रणाम किया. उनके बुद्धि कौशल को द

KARDAMA AUR DEVAHUTI KI STORY

 कर्दम ऋषि की उत्पत्ति ब्रह्मा जी की छाया से हुई थी. वह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे. उनको ब्रह्मा जी ने सृष्टि  के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए कहा.  कर्दम ऋषि ने दस हजार वर्ष तक भगवान विष्णु की अराधना की. उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर प्रभु शंख, चक्र, गदा लिए प्रकट हुए. कर्दम ऋषि कहने लगे कि ब्रह्मा जी ने मुझे गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने का आदेश दिया है. मैं ऐसी पत्नी चाहता हूँ जो गृहस्थाश्रम में भी सहयोग करे और मेरी साधना में भी सहयोग करे.  भगवान विष्णु ने कहा कि स्वयंभुव मनु और शतरूपा अपनी पुत्री देवहूति का विवाह आपसे करने के लिए आएंगे. भगवान ने कहा कि मैं तुम्हारा पुत्र बन कर आऊंगा और तुम्हारा कल्याण होगा.  दो दिन बाद स्वयंभुव मनु और शतरूपा अपनी पुत्री के साथ वहाँ आए. कर्दम ऋषि ने देवहूति की परीक्षा ली. उन्होंने ने तीन आसन बिछाये. मनु शतरूपा आसन पर बैठ गए लेकिन देवहूति नहीं बैठी.  देवहूति ने सोचा कि होने वाले पति द्वारा बिछाये गए आसन पर बैठने से पाप लगेगा और आसन पर ना बैठने से बिछाये आसन का अपमान होगा . इसलिए वह दाहिना हाथ आसन पर रखकर बैठ गई. कर्दम ऋषि को कन्या योग्य लगी.  उन्होंने म

AASHIRVAAD आशीर्वाद

 आशीर्वाद, आशीष,दुआ का अर्थ होता है किसी अपने की मंगल कामना के लिए कहे गये शब्द. आशीर्वाद का हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है. हम किसी भी शुभ कार्य या फिर महत्वपूर्ण कार्य से पहले ईश्वर के पश्चात अपने माता- पिता, गुरु या फिर परिवार में जो भी बुजुर्ग होते है उनका आशीर्वाद जरूर लेते हैं. माता पिता के आशीर्वाद मे, उनकी प्रार्थनाओं में असीम शक्ति होती है. क्योंकि कई बार हम जब ईश्वर से भी प्रार्थना करते हैं तो कहते हैं, "तू है माता, पिता तू ही है". जब घर के बड़े बुजुर्गों से हम अपने जीवन की शुभता के लिए आशीर्वाद मांगते है और वे मानों हमें, युग - युग जियो, खुब तरक्की करो, चिरायु भव, सदा सुहागिन रहो का आशीर्वाद दे कर प्रोत्साहित करते हैं और मानो हमे आशीर्वाद दे कर जीवन में आने वाली हर कठिनाई को हम से दूर कर दे. पिता के आशीर्वाद का एक प्रेरणादायी प्रसंग एक बार एक लड़का था. उसके पिता ने मरते समय कहा कि दिया कि बेटा खूब तरक्की करो. मेरा आशीर्वाद है कि तुम मिट्टी में भी हाथ डालोगे तो वह सोना हो जाएगी. लड़का मेहनत और लगन से काम करता रहा और धीरे धीरे ठेले से उसने छोटी सी दुकान खरीद ली फिर ए

LALACH BURI BALA HAI MOTIVATIONAL STORY IN HINDI

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लालच बुरी बला है प्रेरणादायक कहानी   "लालच बुरी बला है" सब जानते हैं लेकिन ज्यादा पाने की लालसा के कारण व्यक्ति लालच में आ जाता है और जो उसे मिला होता है उसे भी वह खो देता है.  एक बार एक बुढ्ढा आदमी तीन गठरी उठा कर पहाड़ की चोटी की ओर बढ़ रहा था. रास्ते में उसके पास से एक हष्ट - पुष्ट नौजवान निकाला. बुढ्ढे आदमी ने उसे आवाज लगाई की बेटा क्या तुम मेरी एक गठरी अगली पहाड़ी तक उठा सकते हो ? मैं उसके बदले इस में रखी हुई पांच तांबे के सिक्के तुम को दूंगा. लड़का इसके लिए सहमत हो गया. निश्चित स्थान पर पहुँचने के बाद लड़का उस बुढ्ढे आदमी का इंतज़ार करने लगा और बुढ्ढे आदमी ने उसे पांच सिक्के दे दिए. बुढ्ढे आदमी ने अब उस नौजवान को एक और प्रस्ताव दिया कि अगर तुम अगली पहाड़ी तक मेरी एक और गठरी उठा लो तो मैं उसमें रखी चांदी के पांच सिक्के और पांच पहली गठरी में रखे तांबे के पांच सिक्के तुम को और दूंगा.  नौजवान ने सहर्ष प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और पहाड़ी पर निर्धारित स्थान पर पहुँच कर इंतजार करने लगा. बुढ्ढे आदमी को पहुँचते - पहुँचते बहुत समय लग गया.  जैसे निश्चित हुआ था उस हिसाब से बुजुर्ग न

BUDDHI KI PARAKH STORY OF WISDOM बुद्धि की परख

 एक बार एक राजा था. उसके तीन पुत्र थे. एक दिन राजा के मन में इच्छा हुई कि तीनों पुत्रों की बुद्विमता की परख की जाए . राजा ने तीनों पुत्रों को अपने कक्ष में बुलाया. राजा ने तीनों पुत्रों को एक - एक सिक्का दिया और कहा कि इस सिक्के से कुछ ऐसा खरीदों जिससे तुम्हारे कक्ष का कोना - कोना भर जाए.  उनमें से दो राजकुमार कहने लगे कि पिता जी अगर एक ही सिक्का देना है तो कम से कम सिक्का सोने का देना चाहिए था. लेकिन राजा नहीं माना. वह कहने लगे कि, इस सिक्के से ही कमरे को भरना तुम तीनों की चुनौती है.जो इस में जीतेगा उसे पुरस्कार दिया जाएगा." राजा ने तीनों को रात तक का समय दिया कि मैं रात को स्वयं तुम तीनों के कक्ष में आकर निरिक्षण करूँगा कि किसने सिक्के का उचित उपयोग किया है. रात्रि को राजा बारी - बारी से तीनों राजकुमारों के कमरे में गया.  सबसे बड़े राजकुमार ने ज्यादा सोच विचार नहीं किया था. क्योंकि उसके लिए एक सिक्के की कोई कीमत नहीं थी. उसके मन में था कि एक रूपये में ऐसा कुछ नहीं आ सकता जिस से कमरे का कोना - कोना भरा जा सके. उसे लगा राजा उनके साथ मजाक कर रहे हैं इसलिए उसने कुछ नहीं खरीदा.  दूसर

RAM NAAM KI MAHIMA KA VARNAN KAUN KAUN SE GRANT ME KIYA GAYA HAI राम नाम

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 राम नाम की महिमा का वर्णन कौन कौन से ग्रंथ में किया गया है ?                   रामायण  श्री राम के जीवन से संबंधित मूल स्त्रोत महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण को माना जाता है. जो कि संस्कृत भाषा में लिखा गया है. उन्होंने प्रभु श्री राम के पावन एवं आदर्श चरित्र को लिपि बद्ध किया . यह महाकाव्य हमें त्याग, कर्तव्य और धर्म पर चलने की प्रेरणा देता है.              रामचरितमानस तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस तो लगभग उत्तर भारत में हर हिन्दू घर में पढ़ी जाती है. रामचरितमानस तुलसीदास जी द्वारा अवधि भाषा में लिखा गया ग्रंथ है. राम नाम की महिमा करते हुए तुलसीदास जी कहते हैं कि राम नाम उल्टा जप कर बाल्मिकी जी पवित्र हो गए और भगवान शिव भी मां भवानी संग इसका जाप करते हैं। जान आदिकबि नाम प्रतापू ।  भयउ सुद्ध करि उलटा जापू ॥ सहस नाम सम सुनि सिव बानी ।  जपि जेईं पिय संग भवानी ॥  राम नाम का उपनिषदों में वर्णन भगवान राम के ब्रह्म स्वरूप की महिमा का वर्णन बहुत से उपनिषदों में है.जैसे - महोपनिषद , भिक्षुकोपनिषद , पैंगलोपनिषद , शांडिल्योपनिषद तथा योगशिखोपनिषद । दो उपनिषद का नाम राम शब्द से प्रारंभ

PAPANKUSHA EKADSHI VRAT

PAPANKUSHAN EKADASHI 2021 पापांकुशा एकादशी 2021 KAB HAI, VRAT KATHA, MAHATAV  16 अक्टूबर 2021 अश्विन शुक्ल पक्ष को पापांकुशा एकादशी व्रत मनाया जाएगा.हिन्दू पंचाग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है. इस दिन विष्णु भगवान के पद्मनाभ रूप की पूजा करना शुभ माना जाता है. पापांकुशा एकादशी महत्व  भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध के पश्चात महाराज युधिष्ठिर को एकादशी व्रत का महत्व बताया था .  पापांकुशा एकादशी समस्त पापों का नाश करने वाली है. इस दिन पद्मनाभ भगवान की पूजा करनी चाहिए. इस एकादशी का फल वाजपेय और अश्वमेध यज्ञों से कई गुना अधिक मिलता है. इस एकादशी के प्रभाव से अन्न,धन, अयोग्यता और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस व्रत को करने से पापी मनुष्य भी मोक्ष को प्राप्त होता है.  एकादशी के दिन दान पुण्य  माना जाता है कि इस दिन तिल, अन्न, जल, छाता, जूते दान करने से व्यक्ति को यमराज नहीं दिखाई देते.  निर्धन को अपने सांंमर्थय के अनुसार दान करना चाहिए. जन हितकारी कार्य जैसे मंदिर, धर्मशाला, तालाब, धर्मशाला आदि के निर्माण कार्य इस दिन प्रारंभ करने का विशेष महत्व है. ब