AASHIRVAAD आशीर्वाद

 आशीर्वाद, आशीष,दुआ का अर्थ होता है किसी अपने की मंगल कामना के लिए कहे गये शब्द. आशीर्वाद का हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है.

हम किसी भी शुभ कार्य या फिर महत्वपूर्ण कार्य से पहले ईश्वर के पश्चात अपने माता- पिता, गुरु या फिर परिवार में जो भी बुजुर्ग होते है उनका आशीर्वाद जरूर लेते हैं.

माता पिता के आशीर्वाद मे, उनकी प्रार्थनाओं में असीम शक्ति होती है. क्योंकि कई बार हम जब ईश्वर से भी प्रार्थना करते हैं तो कहते हैं, "तू है माता, पिता तू ही है".

जब घर के बड़े बुजुर्गों से हम अपने जीवन की शुभता के लिए आशीर्वाद मांगते है और वे मानों हमें, युग - युग जियो, खुब तरक्की करो, चिरायु भव, सदा सुहागिन रहो का आशीर्वाद दे कर प्रोत्साहित करते हैं और मानो हमे आशीर्वाद दे कर जीवन में आने वाली हर कठिनाई को हम से दूर कर दे.


पिता के आशीर्वाद का एक प्रेरणादायी प्रसंग

एक बार एक लड़का था. उसके पिता ने मरते समय कहा कि दिया कि बेटा खूब तरक्की करो. मेरा आशीर्वाद है कि तुम मिट्टी में भी हाथ डालोगे तो वह सोना हो जाएगी. लड़का मेहनत और लगन से काम करता रहा और धीरे धीरे ठेले से उसने छोटी सी दुकान खरीद ली फिर एक दुकान से दूसरी, एक शहर से दूसरे शहर उसका व्यापार बढ़ता गया. 

कुछ सालों बाद उसका व्यापार विदेशों में भी फैल गया. वह अपनी तरक्की का श्रेय अपने पिता के आशीर्वाद को ही देता था. जहाँ तक कि कुछ लोग तो उसे मजाक से पिता का आशीर्वाद कहकर पुकारते थे. लेकिन उसे इस बात का कोई गुस्सा नहीं आता था. 

एक बार उसके एक मित्र ने कहा कि तुम्हारे पिता के आशीर्वाद में इतनी ताकत थी तो वह स्वयं इतने गरीब क्यों थे. वह लड़का कहने लगा कि मैं जहाँ अपने पिता की नहीं उनके आशीर्वाद की बात कर रहा हूँ. मेरे पिता ने मरते समय दिल से आशीर्वाद दिया था और मुझे पूर्ण विश्वास है कि उसी के कारण मेरी तरक्की हुई है.

लडके ने कहा कि मुझे कोई ऐसा व्यापार बताओ जिससे मेरा नुकसान पक्का निश्चित हो. मैं देखना चाहता हूं कि मेरे पिता का आशीर्वाद मुझे कैसे बचाता है ? 

उसके दोस्त ने कहा कि तुम अफ्रीका जाकर लोंग का व्यापार करो. क्योंकि वहाँ के लोंग जहाँ पर 10 गुना महंगे बिकते है. इसलिए जब तुम जहाँ से लोंग खरीद कर वहां बेचोगे तो तुम्हारा नुकसान पक्का है.

लड़का अपने देश से लोंग खरीद कर अफ्रीका के एक देश पहुँचा. वहाँ पहुँच कर वहाँ का रेगिस्तान देखने निकाला. उसी समय वहाँ का बादशाह अपने सैनिकों के साथ रेगिस्तान की रेत में कुछ ढूँढ रहा था. वह लड़का उत्सुकता से वहाँ पहुँचा और पूछने लगा कि आप सब क्या कर रहे हैं.  बादशाह ने बताया कि मेरी की बहुत प्रिय अंगूठी खो गई है उसी को ढूंढ रहा हूँ. अंगूठी मेरे लिए बहुत भाग्यशाली थी. 

बादशाह ने पूछा तुम इस देश में क्यों आए हो. लड़के ने कहा कि मैं जहाँ लोंग बेचने भारत से आया हूँ. बादशाह ने कहा कि जहाँ लोंग बेच कर तो तुम्हारा नुकसान पक्का है. लड़के ने कहा कि जानता हूँ लेकिन मेरे पिता ने कहा था कि तुम मिट्टी को भी हाथ लगाओगे तो वह सोना बन जाएगी. मैं जानना चाहता हूं कि मेरे पिता का आशीर्वाद जहाँ कैसे असर दिखाता है. इतना कहते हैं उसने जैसे ही हाथ में रेत को लिया उसके हाथ में बादशाह की अंगूठी आ गई. 

बादशाह अपनी मनपसंद अंगूठी पाकर बहुत खुश हो गया और उसने लड़के के सारे लोंग खरीद लिए और उनकी कीमत से कई गुना अधिक उसको रूपये दे दिए. इस तरह उसके पिता का आशीर्वाद जहाँ भी उसका रक्षक बन गया.

ईश्वर, माता पिता और गुरु के आशीर्वाद का हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है. आशीर्वाद से हम अपने भाग्य को भी बदल सकते हैं. 

श्री कृष्ण के भक्त के आशीर्वाद का प्रसंग

 श्री कृष्ण एक अनन्य भक्त थे. उनकी भक्ति ऐसी थी कि कभी भी भगवान से कुछ भी नहीं मांगते थे. 

एक दिन वह मंदिर में गए तो उन्हें ठाकुर जी का स्वरूप नहीं दिखा तो उन्होंने और भक्तों से पूछा कि ठाकुर जी कहा चले गए? 

भक्त कहने लगे कि ठाकुर जी तो सामने ही है, तुम को क्यों नहीं दिख रहे. 

यह सुनकर भक्त का हृदय ग्लानि से भर गया . वह सोचने लगा कि जरूर मुझ से कोई भारी पाप हो गया है इसलिए ठाकुर जी सबको दर्शन दे रहे है लेकिन मुझे नहीं दिख रहे. आत्मग्लानि में भर कर भक्त ने निश्चय किया कि मैं यमुना जी मैं डूब कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लूगां.

उधर भगवान श्री कृष्ण एक ब्राह्मण का रूप धारण कर यमुना जी के रास्ते में बैठे एक कोढ़ी के पास पहुंचे और उससे कहने लगे कि अभी श्री कृष्ण के भक्त जहाँ से गुजरने वाले है . उस भक्त के आशीर्वाद में बहुत शक्ति है उनके आशीर्वाद से तुम्हारा कोढ ठीक हो सकता है इसलिए जब तक वह आशीर्वाद ना दें तब तक उनके चरण मत छोड़ना.

कोढ़ी यमुना जी की ओर चला गया और भक्त को पहचान कर उनके चरण पकड़ लिये और उनके आशीर्वाद मांगने लगा.  भक्त कहने लगे कि मेरा आशीर्वाद लेकर क्या करोंगे? 

भक्त मन में सोचने लगे कि मैं तो अधम पापी हूँ. तभी तो मुझे छोड़ कर ठाकुर जी के दर्शन सबको हो रहे थे. लेकिन कोढ़ी ने उनके चरण नहीं छोड़े और वह आशीर्वाद मांगता रहा. श्री कृष्ण के भक्त ने बेमन से आशीर्वाद दिया कि भगवान तुम्हारी इच्छा पूरी करे. उनके इतना कहने भर की देर थी कि कोढ़ी का कोढ़ दूर हो गया और उसकी काया निर्मल हो गई.

भक्त विस्मित था कि यह करिश्मा कैसे हो गया ? उसी समय ठाकुर जी साक्षात भक्त के सामने प्रकट हो गए. भक्त के नैत्रों में आंसू बह रहे और श्रद्धा से प्रभु चरणों में गिर पड़े.

 भक्त कहने लगा कि, "प्रभु आपकी कैसी माया है ? मंदिर में तो आपने मुझे दर्शन नहीं दिये और अब आप साक्षात प्रकट हो गये".

भगवान कहने लगे कि, "तुम ने मेरी भक्ति निस्वार्थ भाव से की है. कभी भी मुझ से कुछ नहीं मांगा इसलिए मुझ पर तुम्हारा ऋण हो गया था और मैं तुम्हारा ऋणी हो गया था. इसलिए मुझे तुम्हारे सामने आने में संकोच हो रहा था. तुम ने जब अपने पुण्य पुंज से कोढ़ी को आशीर्वाद दि या कि भगवान तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करे तो मैं कुछ मुक्त हो गया और निसंकोच तुम्हारे सामने आ पाया. 

गुरु के आशीर्वाद का प्रसंग

 एक बार एक लड़का गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण कर रहा था. उसे समाचार मिला कि तुम्हारी बहन की शादी है जल्दी से गांव आ जाओ .उसने जाकर गुरु जी को बहन की शादी के बारे में बताया. 

वह गुरु जी से कहने लगा गुरु जी मैं चाहता हूं कि मेरी बहन की शादी इतनी धूमधाम से हो कि पूरे गांव में उसके जैसा शादी किसी की ना हुई हो.  अगले दिन वह अपने गांव के लिए विदा होने लगा तो उसने गुरु जी उसने गुरु जी को प्रणाम किया. 

गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी मनोकामना ईश्वर पूरी करें . तुम्हारी बहन की शादी जितनी धूमधाम से तुम चाहते हो वैसे ही हो. गुरुजी ने उसे अनार के थैले भर कर दिए और कहा कि तुम्हारी बहन के विवाह में काम आएंगे. वह सोचने लगा कि गुरु जी चाहते तो कोई आर्थिक मदद कर सकते थे लेकिन गुरु जी ने अनार क्यों दिए ? लेकिन गुरु जी का आशीर्वाद लेकर वह अपने गाँव की ओर चल पड़ा.

रास्ते में वह कुछ देर विश्राम करने के लिए रुका. वहां पर घोषणा हो रही थी कि राजकुमारी का स्वस्थ ठीक नहीं है उसकी दवा के लिए अनार के रस की जरूरत है . उस नगर के राजा की बेटी का स्वास्थ्य काफी समय से खराब चल रहा था. उसके ईलाज कई वैद्य कर चुके थे. 

अगर किसी के पास अनार हो तो राज महल में आ जाए उसे मुंह मांगा इनाम दिया जाएगा .जब उस लड़के ने घोषणा सुनी तो वह सिपाहियों से कहने लगा मेरे पास अनार है. आप इसे राजकुमारी के ईलाज के लिए राज महल भिजवा दें.

वैद्य जी द्वारा दी गई औषधि अनार के रस के साथ खाते ही राजकुमारी के स्वास्थ्य में सुधार आने लगा. राजा ने उस लड़के को अपने पास बुलाया और कहा कि आज तुम्हारी वजह से मेरी बेटी के स्वास्थ्य में कई दिनों बाद सुधार आया है.

 तुम इतने सारे अनार लेकर कहां आ रहे हो ? उसने राजा को बताया कि उसकी बहन की शादी है . अनार मुझे मेरे गुरु जी ने दिए है और मैं गुरुकुल से लेकर आ रहा हूं. 

राजा ने कहा कि तुम्हारी बहन की शादी की जिम्मेवारी अब मेरी है.तुम्हारी बहन की शादी ऐसी होगी कि आसपास के गांव वाले बहुत समय तक याद करेंगे . 

 राजा के मुख से यह वचन सुनते ही उसे गुरु जी का आशीर्वाद याद आया कि मेरे गुरु जी ने यही आशीर्वाद दिया था .  अब उसे समझ में आया कि गुरु जी को इस घटना का आभास पहले से ही था.  इसलिए ही गुरु जी ने मुझे उपहार के रूप में वित्तीय सहायता नहीं अनार दिए.

आज वह जान चुका था कि गुरु के आशीर्वाद में कितनी शक्ति होती है. वहीं से ही उसका गुरु के लिए श्रद्धा से उसका सिर झुका गया.

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