HANUMAN JI KE JIVAN SE KYA PRERNA (SEIKH) SAKTA HAI
हनुमान जी के चरित्र से हम क्या सीख (शिक्षा) ले सकते हैं ?
हनुमान जी श्री राम के परम भक्त है. वह अतुलित बल और बुद्धि के धाम है. वह भगवान शिव के 11 वें रूद्रावतार माने जाते हैं. सूर्य देव ने उन्हें स्वयं शास्त्रों का ज्ञान दिया था. इन्द्र ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया था कि उनका शरीर वज्र के समान होगा. सीता माता ने उनकी भक्ति से प्रसन्न हो कर अष्ट सिद्धि और नौ निधि के दाता होने का वरदान दिया था. हम हनुमान जी के चरित्र से बहुत कुछ सीख सकते हैं.
शक्ति प्रदर्शन कहा करना है और कहा नहीं हम हनुमान जी के चरित्र से सीख सकते हैं
हम हनुमान जी के जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं कि अपनी शक्ति का प्रदर्शन कहा और किस तरह करना है. वह अशोक वाटिका में सीता के सम्मुख लघु रूप में गए लेकिन जब सीता माता को संशय हुआ तो उन्होंने अपना विकराल रूप दिखाया.
जब समुद्र लांघते समय सुरसा उन्हें खाना चाहती थी तो हनुमान जी ने उसके मुख से बड़ा रूप बना कर अपनी शक्ति दिखाई. जब सुरसा अपना मुख बढ़ाती गई तो हनुमान जी ने बुद्धिमत्ता दिखा कर छोटा सा रुप बनाया और उसके मुख के अंदर जाकर वापिस आकर प्रणाम किया. उनके बुद्धि कौशल को देख कर सुरसा ने उन्हें कार्य सिद्धि का आशीर्वाद दिया था.
समस्या नहीं समाधान कैसे ढूँढना सीख सकते हैं
लक्ष्मण जी को जब युद्ध भूमि में मुर्छा आई. तब राम जी ने कहा कि हनुमान तुम लक्ष्मण के प्राण बचा सकते हो. हनुमान जी ने तनिक भर भी यह विचार नहीं किया कि यह कैसी मुसीबत आ गई है.
मैं तो जानता नहीं बूटी कैसी दिखती है, कितनी दूर जाना पड़ेगा, सूर्य उदय से पहले वापस भी आना पड़ेगा. हनुमान जी ने समस्या की तरफ नहीं समाधान की तरफ ध्यान दिया .सुशैन वैद्य से पूछा कि बूटी कहां मिलेगी? उन्होंने कहा हिमालय पर्वत पर और हनुमान जी चल पड़े . बूटी की परख नहीं होने पर माथा पकड़ कर नहीं बैठे बल्कि पूरा पर्वत ही उखाड़ लाए और काम होने पर वापस भी छोड़ आए . हम हनुमान जी के चरित्र से समस्या पर नहीं उसका समाधान कैसे निकाले यह सोचना सीख सकते हैं.
कुशल कुटनीतिज्ञ
हनुमान जी एक कूटनीतिज्ञ थे उन्होंने विभीषण को अपने पक्ष में कर लिया और सुग्रीव की श्री राम से मित्रता करवाई जिससे सुग्रीव को अपना खोया हुआ राज्य मिल गया और श्रीराम ने सुग्रीव की वानर सेना की सहायता से लंकापति रावण पर विजय प्राप्त कर सीता माता को प्राप्त किया.
हनुमान जी के चरित्र से अभिमान रहित कैसे रहे सीख सकते हैं
हम हनुमान जी से निरअहंकारी(अभिमान रहित) रहना सीख सकते हैं. हनुमान जी अपने बल से उड़कर लंका गए, लंका जलाई, माता को राम का संदेश दिया वापिस आए .जाम्बवन्त श्री राम से कहते हैं कि प्रभु हनुमान ने सारा काम किया. लेकिन हनुमान जी कहते हैं प्रभु इसमें मेरा कोई हाथ ही नहीं है जो कुछ हुआ आपकी कृपा से ही हुआ इसमें मेरी कोई बड़ाई नहीं है. हम में से कोई होता तो शायद अभिमान में दनदनाते फिरता मैंने क्या यह सब वो भी अकेले . लेकिन हनुमान जी इतने सरल भाव से कहते हैं कि प्रभु इस में मेरी तो कोई बड़ाई नहीं है सब आप की कृपा से हुआ है.
कुशल सैनिक नेतृत्व
हनुमान जी एक अच्छे सैनिक(दूत) की तरह गई सीता माता का पता लगाया. रावण के बल का अनुमान लगाने के लिए जान बूझकर पेड़ उखाड़े . रावण का ही तेल, रुई हनुमान जी की पूँछपर बांधी गई. उस से सारी लंका जला दी. तेल भी उसका, रुई भी उसकी और आग भी उसकी और लंका में आग लगा कर सीता माता का संदेश लेकर सुरक्षित राम जी के पास वापस आ गए. आज के संदर्भ में देखें तो माना जा सकता है कि उस समय की एक तरह की सर्जिकल स्ट्राइक थी. शत्रु को एहसास कराने की कि मेरे प्रभु राम के पास मेरे जैसे सैनिक हैं. हनुमान जी ने लंका युद्ध के द्वौरान भी वानर सेना का कुशल नेतृत्व किया.
आदर्श से समझौता नहीं करना
मेघनाद ने जब ब्रह्मास्त्र का संधान किया . हनुमान जी मन में विचार करने लगे कि अगर ब्रह्मास्त्र को नहीं माना तो इसकी महिमा मिट जाएगी . इसलिए ब्रह्मास्त्र लगते ही हनुमान जी मूर्छित हो गए और मेघनाथ उन्हें नागपाश में बांध कर ले गया .
बहतरीन संवाद कौशल
जब विभीषण कहते कि,"मैं लंका में वैसे ही रहता हूं जैसे दांतों के बीच में जीभ रहती है ", मेरा तामसी (राक्षस) शरीर है.
हनुमान जी कहने लगे कि,"मैं कौन सा कुलीन हूं"? मैं चंचल वानर हूं . प्रभु श्री राम ने ही मुझ अधम पर कृपा की है .
जब सीता माता जी कहती हैं कि हे नाथ ! आपने मुझे क्यों भुला दिया ?
सीता जी के विरह वचन सुनकर हनुमान जी कहते हैं कि, " माता श्री राम के हृदय में आप से दूना प्रेम हैं ".
श्री राम ने कहा है कि तुम्हारे वियोग में मेरे लिए सभी पदार्थ प्रतिकूल हो गए हैं . मेघ मानो खोलता हुआ तेल बरसा रही हो . मन का दुख कहने से कम हो जाता है . पर कहूं किससे ? समझ लो कि मेरा मन सदा तेरे पास ही रहता है.
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