VISHNU JI KAPIL AVTAR KATHA MYTHOLOGYICAL STORY
भगवान विष्णु ने कपिल मुनि के रूप में पंचम अवतार लिया था. कपिल मुनि सांख्य शास्त्र के प्रर्वतक माने जाते हैं. उन्होंने कर्दम ऋषि और देवहूति के पुत्र के रूप में जन्म लिया.
कर्दम ऋषि की उत्पत्ति ब्रह्मा जी की छाया से हुई थी. वह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे. उनको ब्रह्मा जी ने सृष्टि के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए कहा.
कर्दम ऋषि ने दस हजार वर्ष तक भगवान विष्णु की अराधना की. उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर प्रभु शंख, चक्र, गदा लिए प्रकट हुए.
कर्दम ऋषि कहने लगे कि ब्रह्मा जी ने मुझे गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने का आदेश दिया है. मैं ऐसी पत्नी चाहता हूँ जो गृहस्थाश्रम में भी सहयोग करे और मेरी साधना में भी सहयोग करे.
भगवान विष्णु ने कहा कि स्वयंभुव मनु और शतरूपा अपनी पुत्री देवहूति का विवाह आपसे करने के लिए आएंगे. भगवान ने कहा कि मैं तुम्हारा पुत्र बन कर आऊंगा और तुम्हारा कल्याण होगा.
देवहूति और कर्दम ऋषि का विवाह हो गया और देवहूति उनके आश्रम में रहकर उनकी सेवा करने लगी.
देवहूति और कर्दम ऋषि की नौ कन्याओं का जन्म हुआ. जब कर्दम ऋषि ने सन्यास लेने को कहा तो देवहूति ने उन्हें पुत्र जन्म के बाद सन्यास लेने की बात स्मरण करवाई. कर्दम ऋषि ने कहा कि संसार का कल्याण करने के लिए भगवान विष्णु स्वयं तुम्हारे गर्भ में आएंगे.
जब भगवान विष्णु देवहूति के गर्भ में आए तो ब्रह्मा जी मरीचि आदि ऋषियों के साथ कर्दम ऋषि के आश्रम में गए.
देवहूति के गर्भ से विष्णु जी ने अवतार लिया. कर्दम ऋषि कहने लगे कि प्रभु आपके अवतरण से मेरे मनोरथ पूर्ण हो गए. मेरा देवादिक ऋण दूर हो गया. मैं आपके दर्शन कर प्रजापति पद से मुक्त होकर सन्यास मार्ग पर जाना चाहता हूं.
प्रभु ने कहा कि आप जहाँ जाना चाहते हैं जाओ. सब कुछ मुझ में ही अर्पण कर दो. यह ही निष्कामता है, इससे मृत्यु को वश में किया जा सकता है. कर्दम ऋषि ने प्रभु की परिक्रमा की ओर वन को चले गए.
कर्दम ऋषि के वन में चले जाने के पश्चात जब कपिल भगवान और देवहूति बिंदुसार के आश्रम में रहने लगे. एक दिन देवहूति ने इंद्रियों की नि:सारता व्यक्त की तो कपिल भगवान ने कहा कि, "मैं आपको भक्ति योग बतलाता हूं" .
मन को ममता और अहंकार से दूर रखना चाहिए. काम और लोभ से रहित मन शुद्ध होता है . वैरागी मन से भगवान की भक्ति प्राप्त होती है. संसार बंधन का कारण है. जो मेरी कथाएं सुनता है और हृदय मुझमें लगाता है और संतों का साथ करता है उसे ज्ञान प्राप्त होता है
.उसे श्रद्धा, प्रेम और भक्ति पूर्वक मोक्ष प्राप्त होता है .यह भक्ति का एक क्रम है.इंद्रिय सुख प्राप्त कर योग मार्ग पर चलने वाला भी इसी शरीर में मुझे प्राप्त कर सकता है .
माता देवहूति ने मोक्ष स्वरूप कर्तव्य को पूछा. कपिल जी ने सांख्यशास्त्र का वर्णन किया .उन्होंने कहा कि वेदों द्वारा बताये कर्मों के द्वारा भगवान विष्णु की भक्ति करे.
विषयों की कोई आकांक्षा ना करें क्योंकि जिसे एक मात्र प्रभु चरणों का ध्यान होता है वह मुक्ति को क्या करोगे ?उनकी भक्ति साक्षात मोक्ष रूप है.
ऐसे योगी अष्ट सिद्धि की कामना नहीं करते .जो अनन्य भाव से भक्ति करते हैं, मुझ पर धन आदि सब कुछ निछावर करते हैं, मैं मृत्यु से भी उनको मुक्त कर देता हूं .यदि मनुष्य कल्याण की कामना करता है तो भक्ति योग से युक्त हुआ मुझ में मन लगाए.
फिर कपिल भगवान ने तत्वों के लक्षण कहे. परमात्मा का कोई आदि अंत नहीं है . वह गुणों से रहित है और प्रकृति से परे हैं . उसके प्रकाश से संसार प्रकाशित हो रहा है. उसके दो रूप है आवरण और विक्षेप. आवरण अविद्या है और विक्षेप प्रभु की माया है .
मनुष्य भी जीव तथा ईश्वर भेद से दो प्रकार का है. प्रकृति के साथ उत्पन्न होने के कारण जीव है और जो प्रकृति को वश में कर सृष्टि करता है वह ईश्वर है . प्रकृति का वंशवर्ती अपने को कर्ता कहता है ,और जो कर्तापन के अभिमान से परे है वह ईश्वर है .
माया के मार्ग रूप चौबीस तत्व हैं -
पृथ्वी ,जल, तेज, वायु, आकाश यह पांच महातत्व है.
गन्ध, रूप, रस, स्पर्श और शब्द पांच महातत्व के गुण है.
तन्मात्रा, श्रोत्रात्म , त्वचा, चक्षु, जिह्वा, ध्राण, वाक्, हाथ, चरण, गुदा और लिंग ये दस ज्ञानेन्द्रिय और कर्मन्द्रिय .
मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त ये अन्त: करण भीतर इन्द्रिय. यह चौबीस त्वत सगुण ब्रह्मा कहे जाते हैं.
मनुष्य को अपनी बुद्धि से भक्ति, वैराग्य और ज्ञान से योग युक्त होकर आत्मा से परमात्मा को प्राप्त करना चाहिए.
कपिल भगवान कहने लगे कि, "दुखों का मूल अहंकार है. इसे त्याग कर जो कर्त्तापन के भाव से मुक्त रहता है वही मुक्त है. मनुष्य को विषयों से वैराग्य कर भक्ति योग से युक्त होना चाहिए. यमादि योग के अष्टांगों का पालन करना चाहिए ,सत्संग करे, सब को सम भाव से देखे और ब्रह्मचर्य का पालन करें.
स्त्री, पुत्रादि का स्नेह और शरीर का अहंकार ना करे. आत्मज्ञान होने से संदेह का नाश हो जाता है. जो मुझ में चित्त लगाता है उसे मृत्यु के चक्र में भी नही फंसना पड़ता और गति प्राप्त हो जाती है.
कपिल भगवान बोले कि ध्यान योग सब योग से श्रेष्ठ है. ऐसे योग के साधक को प्राण वायु को वश में करने के लिए प्राणायाम करना चाहिए. प्राणायाम से मन निर्मल हो जाता है.
एकाग्रता से नासिका के अग्रभाग में मन की दृष्टि से भगवान की मूर्ति का ध्यान करे क्योंकि भगवान भक्त के हृदय में निवास करते हैं. भक्त के हृदय में भगवान के लिए प्रेम उत्पन्न होता है और भक्ति से उसका हृदय परिपूर्ण हो जाता है.
कपिल भगवान ने कहा कि हे माता! भक्ति के अनेक मार्ग है. राजस, तामस, और सात्विक भाव इसके मुख्य भेद है . मैं फल की इच्छा पाने वाले को फल, सायुज्य मुक्ति वाले को सायुज्य मुक्ति, नाना प्रकार की इच्छा करने वालों को उनकी उपासना के अनुसार फल देता हूँ.
सबसे सरल मार्ग है कि मनुष्य मेरा ध्यान, पूजन और स्तुति करें. सब में मेरी भावना करें, धैर्य, वैराग्य का पालन करे और यम - नियम का पालन कर मेरे नाम का जाप करे. ऐसा मनुष्य अंत में मुझे प्राप्त हो जाता है.
भगवान कपिल कहने लगे कि हे अम्बे! मैंने भक्ति और योग दोनों तुम से कहे. इनमें से एक का भी पालन करने वाला ईश्वर को पा जाता है. ईश्वर सब मे समान भाव में स्थित है वह ईश्वर का ब्रह्म स्वरूप है जिसे देव कहते हैं. वह कर्मों की गति है.
वस्तुओं में जो रूप परिवर्तन होता है उस रूप का भेद काल है और काल बहुत प्रबल है. यह सब का संहारक है. यह ना तो किसी का मित्र हैं और न शत्रु हैं. इसके वश में चराचर विश्व है जो सबको मारने वाला और उत्पन्न करने वाला है.
श्री कपिल भगवान कहने लगे कि, "इस काल से बचने का मार्ग है कि दुख नाशक वस्तुओं का संग्रह ना करना और विषयों से विरक्त होना. लोक परलोक दोनों में सुखकारी माना गया है .नरक के में घोर कष्ट नहीं सहने पड़ते. संसार में आकर दुखों से छूटने का उपाय करना चाहिए".
मनुष्य जीवन भर जीविका के लिए अनियम करता है लेकिन जीविका कभी स्थिर नहीं रहती. अंत में बूढ़े बैल के समान वृद्ध होने पर उसका तिरस्कार होता है जब काल उसे अपने पाश बंधन में बांध लेता है और उसकी मृत्यु हो जाती है. उसे नरक यातना झेल कर फिर से मनुष्य जीवन लेना पड़ता है
कपिल भगवान बोले कि, हे माता! जीव के पूर्वकृत कर्मों का प्रवर्तक ईश्वर है . उसी पूर्वकृत कर्म के कारण उसे शरीर धारण के लिए गर्भ में प्रवेश करना पड़ता है .गर्भ में नौ महीने पूरे होने पर ईश्वर से प्रार्थना करता है कि मुझे यहां से निकाले . बड़े होने पर मैं और मेरे की बुद्धि द्वारा सदैव असत् का संग्रह करता हैं.
संसार में भय और दीनता को त्याग कर जीव को सदैव काल से सतर्क रहना चाहिए . जीव की सुगति के लिए कर्म को योग बुद्धि द्वारा योग वैराग्य से युक्त इस संसार और शरीर में आसक्ति नहीं होती.वह मोक्ष का मार्ग होता है.
चार आश्रमों में गृहस्थ आश्रम सबसे पुनीत है. यदि संयम नियम से रहे तो चारों पदार्थ पूर्ण हो जाते हैं परंतु जो नियम से नहीं रहते उनका जीवन व्यर्थ हो जाता है.
निवृत्ति के मार्ग में ममता और अहंकार का स्थान नहीं है. जो निवृत्ति के मार्ग को धारण करते हैं वह स्वर्ग पाते हैं. ऐसे योगी ब्रह्मा को प्राप्त कर लेते हैं.
हे माता! तुम विष्णु भगवान की शरण में जाओ, जो भक्ति पूर्वक उनका भजन करता है उसे वैराग्य प्राप्त होता है. कर्म, यज्ञ, दान, तप, वेदपाठ और मन इन्द्रियों को जीतने से, योग के अष्टांगों तथा भक्ति से,प्रकाश करने वाले सगुण निर्गुण भगवान प्रकट होते हैं. जो मुझ में चित्त लगता है उसे बैकुंठ प्राप्त होता है.
जब देवहूति का मोह दूर हो गया तो उन्होंने ने कपिल भगवान की स्तुति की. आप ने सृष्टि की रचना की है, आपकी सहस्त्र शक्तियां है, आप सब जीवों के स्वामी है. आपके उदर से कमल उत्पन्न हुआ और कमल से ब्रह्मा जी, ब्रह्मा जी ने आपके आशीर्वाद से सारी सृष्टि उत्पन्न की. आप कर्मों से रहित है फिर भी संसार की सृष्टि आप में स्थित है.
हे प्रभु मैं आपको गर्भ में धारण करने योग्य कैसे हो सकी? आश्चर्य की बात है. मैं आपके कपिल रूप से साक्षात परब्रह्म विष्णु को प्रणाम करती हूँ.
कपिल भगवान ने कहा कि हे माता! इस मार्ग का अनुष्ठान करने से आप जीवन मुक्त हो जाओगी . इस प्रकार माता को आत्म गति दिखाकर कपिल भगवान अपने लोक चले गए. देवहूति ने जटाजूट धारण कर सब प्रकार के तप और व्रतादि करके ब्रह्मा को प्राप्त हो गई. आज तक वह स्थान सिद्धपद नाम से संसार में प्रसिद्ध है.
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