KARDAMA AUR DEVAHUTI KI STORY

 कर्दम ऋषि की उत्पत्ति ब्रह्मा जी की छाया से हुई थी. वह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे. उनको ब्रह्मा जी ने सृष्टि  के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए कहा. 

कर्दम ऋषि ने दस हजार वर्ष तक भगवान विष्णु की अराधना की. उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर प्रभु शंख, चक्र, गदा लिए प्रकट हुए.

कर्दम ऋषि कहने लगे कि ब्रह्मा जी ने मुझे गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने का आदेश दिया है. मैं ऐसी पत्नी चाहता हूँ जो गृहस्थाश्रम में भी सहयोग करे और मेरी साधना में भी सहयोग करे. 

भगवान विष्णु ने कहा कि स्वयंभुव मनु और शतरूपा अपनी पुत्री देवहूति का विवाह आपसे करने के लिए आएंगे. भगवान ने कहा कि मैं तुम्हारा पुत्र बन कर आऊंगा और तुम्हारा कल्याण होगा. 

दो दिन बाद स्वयंभुव मनु और शतरूपा अपनी पुत्री के साथ वहाँ आए. कर्दम ऋषि ने देवहूति की परीक्षा ली. उन्होंने ने तीन आसन बिछाये. मनु शतरूपा आसन पर बैठ गए लेकिन देवहूति नहीं बैठी. 

देवहूति ने सोचा कि होने वाले पति द्वारा बिछाये गए आसन पर बैठने से पाप लगेगा और आसन पर ना बैठने से बिछाये आसन का अपमान होगा . इसलिए वह दाहिना हाथ आसन पर रखकर बैठ गई. कर्दम ऋषि को कन्या योग्य लगी. 

उन्होंने मनु शतरूपा से कहा कि आपकी पुत्री की प्रशंसा स्वयं भगवान विष्णु ने की थी.  मैं आपकी पुत्री से विवाह करूँगा लेकिन जब इसे पुत्र प्राप्ति होगी मै सन्यास ले लूगां. 

देवहूति ने इस बात को स्वीकार किया क्योंकि उन्होंने ने सोचा कि जिस को विवाह से पहले स्वयं भगवान विष्णु ने दर्शन दिए है उनका संग जितना भी मिल जाए मेरे लिए सौभाग्य होगा.

देवहूति और कर्दम ऋषि का विवाह हो गया और देवहूति उनके आश्रम में रहकर उनकी सेवा करने लगी. कर्दम ऋषि सन्यासी जैसा ही जीवन जापन करते थे. देवहूति की सेवा से प्रसन्न होकर कहा कि जो चाहे वर मांग ले.

देवहूति ने कहा कि, "आपने मुझे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था" . यह सुनकर कर्दम ऋण ने योग बल से विमान मंगवाया जिसमें सुख की सभी समग्रियांँ थी, जिसमें हज़ारों कमरे और सेवा के लिए दासियाँ थी. कर्दम ऋषि ने कहा कि तुम बिन्दुसार कुंड में स्नान करो. देवहूति जैसे ही सरोवर में उतरी हजारों कन्याओं ने स्वयं को उनकी दासी बता कर श्रृंगारिक सामग्रियों से सज्जित किया. कर्दम ऋषि पर उनके प्रेम का संचार हुआ.कर्दम ऋषि देवहूति सहित विमान में सवार हुए. कर्दम ऋषि ने द्वीपों और पृथ्वी खंड की रचना को देवहूति को दिखाया. 

देवहूति और कर्दम ऋषि की नौ कन्याओं का जन्म हुआ. जब कर्दम ऋषि ने सन्यास लेने को कहा तो देवहूति ने उन्हें पुत्र जन्म के बाद सन्यास लेने की बात स्मरण करवाई. कर्दम ऋषि ने कहा कि संसार का कल्याण करने के लिए भगवान विष्णु स्वयं तुम्हारे गर्भ में आएंगे. 

जब भगवान विष्णु देवहूति के गर्भ में आए तो ब्रह्मा जी मरीचि आदि ऋषियों के साथ कर्दम ऋषि के आश्रम में गए. ब्रह्मा जी ने दोनों को आशीर्वाद दिया और कन्याओं का शीघ्र विवाह करने के लिए कहा. 

कर्दम ऋषि ने अपनी नौ कन्याओं को नवों प्रजापतियों के साथ विवाह किया. 

1. मरीचि के साथ कला का

2. अत्रि के साथ अनसूया का

3. अंगिरा के साथ श्री श्रद्धा का

4. पुलस्त्य के साथ हविर्भुव का 

5. पुलह के साथ गति का

6. क्रतु के साथ क्रिया का 

7. भृगु के साथ खातिर का

8. वसिष्ठ के साथ अरून्धती का

9. अथर्वा के साथ शान्ति का विवाह करवा दिया.

इसके पश्चात देवहूति के गर्भ से विष्णु जी ने अवतार लिया. कर्दम ऋषि कहने लगे कि प्रभु आपके अवतरण से मेरे मनोरथ पूर्ण हो गए. मेरा देवादिक ऋण दूर हो गया. मैं आपके दर्शन कर प्रजापति पद से मुक्त होकर सन्यास मार्ग पर जाना चाहता हूं.

प्रभु ने कहा कि आप जहाँ जाना चाहते हैं जाओ. सब कुछ मुझ में ही अर्पण कर दो. यह ही निष्कामता है, इससे मृत्यु को वश में किया जा सकता है. कर्दम ऋषि ने प्रभु की परिक्रमा की ओर वन को चले गए. 


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