KRISHNA BHAKTI KATHA IN HINDI

श्री कृष्ण के भक्त की निस्वार्थ भक्ति की भावपूर्ण कथा 

भक्ति अपने इष्ट के प्रति समर्पण भाव होता है. वेदों पुराणों में भगवान की भक्ति करने के अनेक मार्ग बताएं गए हैं. भगवान के कई भक्त ऐसे भी हुए है जिन्होंने ने अनन्य और निस्वार्थ भाव से भक्ति की और ईश्वर ने जिस हाल में रखा उसी में खुश रहे . कभी अपने भक्ति के बदले ईश्वर से कोई कामना नहीं की. पढ़े श्री कृष्ण के ऐसे ही भक्त की निस्वार्थ भक्ति का प्रसंग


 श्री कृष्ण एक अनन्य भक्त थे. उनकी भक्ति ऐसी थी कि कभी भी भगवान से कुछ भी नहीं मांगते थे. 

एक दिन वह मंदिर में गए तो उन्हें ठाकुर जी का स्वरूप नहीं दिखा तो उन्होंने और भक्तों से पूछा कि ठाकुर जी कहा चले गए? 

भक्त कहने लगे कि ठाकुर जी तो सामने ही है, तुम को क्यों नहीं दिख रहे. 

यह सुनकर भक्त का हृदय ग्लानि से भर गया . वह सोचने लगा कि जरूर मुझ से कोई भारी पाप हो गया है इसलिए ठाकुर जी सबको दर्शन दे रहे है लेकिन मुझे नहीं दिख रहे. आत्मग्लानि में भर कर भक्त ने निश्चय किया कि मैं यमुना जी मैं डूब कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लूगां.

उधर भगवान श्री कृष्ण एक ब्राह्मण का रूप धारण कर यमुना जी के रास्ते में बैठे एक कोढ़ी के पास पहुंचे और उससे कहने लगे कि, "अभी श्री कृष्ण के भक्त जहाँ से गुजरने वाले है . उस भक्त के आशीर्वाद में बहुत शक्ति है उनके आशीर्वाद से तुम्हारा कोढ ठीक हो सकता है इसलिए जब तक वह आशीर्वाद ना दें तब तक उनके चरण मत छोड़ना".

कोढ़ी यमुना जी की ओर चला गया और भक्त को पहचान कर उनके चरण पकड़ लिये और उनके आशीर्वाद मांगने लगा.  भक्त कहने लगे कि मेरा आशीर्वाद लेकर क्या करोंगे? 

भक्त मन में सोचने लगे कि मैं तो अधम पापी हूँ. तभी तो मुझे छोड़ कर ठाकुर जी के दर्शन सबको हो रहे थे. लेकिन कोढ़ी ने उनके चरण नहीं छोड़े और वह आशीर्वाद मांगता रहा. श्री कृष्ण के भक्त ने बेमन से आशीर्वाद दिया कि भगवान तुम्हारी इच्छा पूरी करे. उनके इतना कहने भर की देर थी कि कोढ़ी का कोढ़ दूर हो गया और उसकी काया निर्मल हो गई.

भक्त विस्मित था कि यह करिश्मा कैसे हो गया ? उसी समय ठाकुर जी साक्षात भक्त के सामने प्रकट हो गए. भक्त के नैत्रों में आंसू बह रहे और श्रद्धा से प्रभु चरणों में गिर पड़े.

 भक्त कहने लगा कि, "प्रभु आपकी कैसी माया है ? मंदिर में तो आपने मुझे दर्शन नहीं दिये और अब आप साक्षात प्रकट हो गये".

भगवान कहने लगे कि, "तुम ने मेरी भक्ति निस्वार्थ भाव से की है. कभी भी मुझ से कुछ नहीं मांगा इसलिए मुझ पर तुम्हारा ऋण हो गया था और मैं तुम्हारा ऋणी हो गया था. इसलिए मुझे तुम्हारे सामने आने में संकोच हो रहा था. तुम ने जब अपने पुण्य पुंज से कोढ़ी को आशीर्वाद दिया कि भगवान तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करे तो मैं कुछ ऋण मुक्त हो गया और निसंकोच तुम्हारे सामने आ पाया. 

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