SATI MATA KATHA AUR DAKSH YAGYA सती माता कथा

सती माता ने दक्ष यज्ञ में देह त्याग क्यों किया ? 

प्राचीन समय में एक ब्रह्म सभा में सभी देवता उपस्थित थे. जब दक्ष प्रजापति के वहां पहुँचने पर सभी देवता  सम्मान प्रकट करने के लिए उठ खड़े हुए. लेकिन शंकर जी बैठे रहे तो दक्ष प्रजापति ने क्रोधित हो कर कहा कि तुम में शिष्टता नहीं है. दक्ष प्रजापति ने क्रोध में भगवान शिव को शाप दिया कि, इंद्र आदि देवताओं के समान तुम को यज्ञ में भाग ना मिले.

दक्ष के शाप को सुनकर नंदी ने शाप दिया कि दक्ष और उसके समर्थकों को सशरीर आनंद प्राप्त ना हो और कर्मकांड में पड़ कर दुख पाते रहे. यह सुनकर भृगु ऋषि ने क्रोधित होकर कहा कि, "जो शिव के भक्त होगे वे शास्त्रों के प्रतिकूल पाखंडी कहे जाएंगे". यह सुनकर भगवान शिव वहाँ से चले गये. उसके पश्चात् विष्णु और सब देवता त्रिवेणी में स्नान करने गए. इस प्रकार ससुर और जमाई में विरोध चलता रहा.

मां सती के पिता दक्ष को ब्रह्मा जी ने प्रजापतियों का नायक बना दिया . दक्ष को इस बात का अभिमान हो गया इतना बड़ा पद आज तक किसी को नहीं मिला. दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया.  यज्ञ का भाग लेने के लिए सभी देवताओं को निमंत्रण भेजा . 

जब सती ने देखा कि आकाश मार्ग से सभी अपने-अपने विमानों में जा रहे हैं . उन्होंने पूछा भगवान शिव से पूछा कि यह सब कहां जा रहे हैं ?  शिवजी ने बताया कि तुम्हारे पिता दक्ष प्रजापति बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे हैं .लेकिन मुझ से विरोध के कारण मुझे नहीं बुलाया क्योंकि एक बार ब्रह्मा जी की सभा में वह मुझ से अप्रसन्न हो गए थे. 

माँ सती ने बिना बुलाए ही अपने पिता दक्ष के यज्ञ में जाने के लिए भगवान शिव से अनुमति मांगी. भगवान शिव ने कहा मित्र, पिता ,गुरु और स्वामी के घर बिना बुलाए जा सकते हैं. लेकिन जब आपस में विरोध चल रहा हो तो स्नेह  नहीं मिलेगा .मर्यादा भंग होगी .लेकिन जब किसी भी तर्क से सती नहीं मानी तो भगवान शिव ने गणों  को उनके साथ भेज दिया. 

यज्ञ में पहुंचकर सती ने यज्ञ में भगवान शिव का भाग नहीं देखा तो उनका शरीर क्रोध की अग्नि में जलने लगा . माता सती कहने लगी कि, " शिव जी समदर्शी, निष्कलंक और पवित्र है. उनकी सेवा कर बड़े बड़े महात्माओं ने ब्रह्मानंद को प्राप्त किया."

तुम अधर्म के वश मूर्खता कर रहे हो. तुम्हारे जैसे शिव निंदक से प्राप्त देह अब मैं धारण नहीं करना चाहती. शिव जी के अपराधी से उत्पन्न शरीर को धिक्कार है. यह कह कर सती ने योगासन में बैठकर समाधिस्थ होकर अपने हृदय से अग्नि और वायु को उत्पन्न किया और उनका शरीर जलने लगा. यह देखकर शिव जी के गणों ने दक्ष प्रजापति पर आक्रमण किया तो भृगु जी ने मंत्र से दक्षिणाग्नि में आहुति दी जिससे ऋभुगण देवता उत्पन्न हुये उन्होंने ने शिव गणों को मार कर भगा दिया.

नारदजी ने यह समाचार भगवान शिव को दिया कि सती ने दक्ष यज्ञ में देह त्याग कर दिया है और भृगु ऋषि ने उनके गणों को भगा दिया है.

यह सुनकर क्रोधित होकर भगवान शिव ने जटा खोलकर पृथ्वी पर पटक दिया जिससे वीर भद्र उत्पन्न हुआ. भगवान शिव ने आदेश दिया कि तुम यज्ञ सहित दक्ष का नाश कर दो. यह सुनते ही वीरभद्र शिव गणों सहित दक्ष यज्ञ में पहुँच गए. उन्होंने यज्ञशाला को घेर कर उसका मण्डप, पाकशाला, अग्निशाला को तोड़ दिया. यज्ञ कुण्डों को अपवित्र कर दिया. 

वीरभद्र ने भृगु ऋषि की दाढ़ी उखाड़ दी क्योंकि भृगु जी ने दाढ़ी दिखा कर शिव जी की हंसी उड़ाई थी. भग नामक देवता की आंखे निकाल दी क्योंकि उसने आंखों से दक्ष प्रजापति को इशारा किया था. वीरभद्र ने पूषा के दांत उखाड़ दिये क्योंकि उसने दांत दिखा कर शिव जी की हंसी उड़ाई थी. वीरभद्र ने दक्ष का गला दबा कर मार दिया और उसका सिर तोड़ कर उसे दक्षिणाग्नि से हवन कर दिया और फिर समस्त देवताओं के साथ कैलाश लौट गए. 

शिव गणों द्वारा मारे गए देवताओं ने ब्रह्मा जी के पास जाकर वीरभद्र द्वारा यज्ञ में किए गए विध्वंस का वृतांत कहा.  ब्रह्मा जी कहने लगे कि शिवजी के विरोधियों को यह दंड मिलना चाहिए . शिवजी के बिना तुम लोगों ने यज्ञ में देयभाग क्यों ग्रहण किया  ? इसी कारण मैं और विष्णु जी वहां नहीं गए. शिव जी के पास जाकर प्रायश्चित करो और यज्ञ फिर से करने की प्रार्थना करो.

ब्रह्मा जी सभी देवताओं के साथ कैलाश पर्वत पर शिव जी पास गए और कहने लगे कि ,"आप समस्त सृष्टि के अधिष्ठाता भेद रहित साक्षात ब्रह्म और प्रकृति के मूल हैं. आप संसार की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं. वेदों की रक्षा की खातिर मृत्यु का कारण रूप बनकर आपने दक्ष यज्ञ करवाया.

आप प्रारब्ध को नष्ट कर सकते हैं. इसलिए मेरी विनती मानकर दक्ष के यज्ञ को पूर्ण करवाइए . यज्ञ में आपको भाग ना देकर अपना ही अकल्याण किया है .मैं आपसे देवताओं के सहित यह विनती करता हूं कि आप कोई उपाय करें. जिससे दक्ष जीवित हो सके, भग को नेत्र और भृगु को दाढ़ी और पूषा को दांत प्राप्त हो जाए .आपके गणों ने पत्थरों से देवताओं के अंग भंग कर दिए हैं उन्हें अयोग्य करें . 

भगवान फिर कहने लगी मैंने दक्ष को दंड अवश्य दिया है लेकिन ऐसा कुछ नहीं है जिसका निराकरण नहीं हो सके. दक्ष को बकरे का सिर लग जावे, भग देवता अपने यज्ञ भाग को मित्र देवता के नेत्र से देखें. पूषा यजमान के दांत से आटे का भोजन करें ,भृगु ऋषि को बकरे की दाढ़ी लगा दी जावे.  यज्ञ का नाम देव यज्ञ हो गया. 

शिवजी ब्रह्मा जी और सभी देवता यज्ञ स्थान पर पहुंचे और बकरे का सिर लगते ही दक्ष प्रजापति उठ बैठे . उन्होंने शिवजी से अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी कहने लगा कि तत्वों का ज्ञान ना होने के कारण मैंने आपसे दूर्वचन कहें.

आपकी कृपा है कि आपने मुझे नर्क में नहीं भेजा. आप कृपया प्रसन्न होवे. सभी देवताओं ने यज्ञ को आरंभ किया. सभी ने विष्णु जी का ध्यान किया, विष्णु जी गरूड़ पर बैठकर यज्ञ स्थल पर उपस्थित हुए. सभी देवताओं ने उनकी बहुत प्रकारों स्तुति की .भगवान विष्णु स्तुति से प्रसन्न हुए और यज्ञ कर्ता दक्ष से कहने लगे कि जैसे मुझे संसार का कारण, आत्मा और ईश्वर समझतें हो वैसे शिव जी को भी समझना चाहिए .

हम दोनों में भेद करना मूर्खता है. दक्ष ने दोनों देवताओं का समान रूप से पूजन किया उसके पश्चात सभी देवताओं का पूजन कर यज्ञ समाप्त किया . यज्ञ से प्रसन्न होकर सभी देवता स्वर्ग चले गए. उधर सती जी ने अपना शरीर त्याग कर राजा हिमवान के घर उनकी पत्नी मैना के गर्भ से जन्म लिया. वहां उन्होंने पार्वती नाम से भगवान शिव को पति रूप में स्वीकार किया . जो श्रद्धा भाव सहित भगवान शिव के चरित्र को सुनता पढ़ता है वह पाप रहित हो जाता है.



Comments

Popular posts from this blog

BAWA LAL DAYAL AARTI LYRICS IN HINDI

RADHA RANI KE 16 NAAM MAHIMA

MATA CHINTPURNI CHALISA LYRICS IN HINDI